सलातुल तस्बीह

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सलातुल तस्बीह (صلاة تسبيح) को तस्बीह वाली नमाज़ के रूप में भी जाना जाता है, यह सुन्नत प्रार्थना का एक रूप है । जैसा कि नाम से पता चलता है, इस अनोखी प्रार्थना में कई बार तस्बीह पढ़ना शामिल है और ऐसा कहा जाता है कि जो लोग इस विशेष तरीके से प्रार्थना करते हैं उनके कई पाप माफ कर दिए जाते हैं।[1]  पैगंबर मुहम्मद (सल्ल०) ने मुसलमानों को अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार यह प्रार्थना जरूर करने की सलाह दी ।

प्रक्रिया[संपादित करें]

इस अनोखी प्रार्थना में चार रकात शामिल हैं जो दो अलग-अलग सेटों में विभाजित है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह प्रार्थना किसी भी अन्य प्रार्थना से विशेष रूप से भिन्न नहीं है। एकमात्र अंतर तस्बीह को शामिल करने का है और इसे केवल महिमामंडन समाप्त करने के बाद ही पढ़ा जा सकता है जैसा कि व्यक्ति किसी अन्य प्रार्थना में करता है।

  1. सबसे पहले नमाज़ की नियत करें । इसके बाद सना पढ़ें फिर 15 बार तस्बीह पढ़ें। ( سُبْحَانَ اللَّهِ وَالْحَمْدُ لِلَّهِ وَلَا إِلَهَ إِلا اللَّهُ وَاللَّهُ أَكْبَرُ) (अर्थात् 'अल्लाह पवित्र है।', 'सभी प्रशंसाएं अल्लाह के लिए हैं।', 'अल्लाह के अलावा कोई दूसरा ईश्वर नहीं है।', 'अल्लाह सबसे महान है।')) 15 बार।
  1. सूरह फातिहा और दूसरा सूरह पढ़ें , फिर उसी तस्बीह को 10 बार पढ़ें।
  1. अब रुकू में जाएं और 3 बार 'सुब्हान रब्बि अल-अज़ीम' पढ़ें । उसके बाद तस्बीह को 10 बार पढ़ें।
  1. रुकू से खड़े होकर तस्बीह को 10 बार पढ़ें। ('समिअल्लाहु लिमन हमीदह, रब्बना लकल हम्द' के बाद)
  1. इसके पाठ के साथ पहले सुजुद में तस्बीह को 10 बार कहें।
  1. अब अल्लाहू अकबर कहते हुए सज्दे में चले जाएं और 3 बार 'सुब्हान रब्बि अल-आला' पढ़ने के बाद तस्बीह को 10 बार पढ़ें।
  1. सज्दे से उठने के बाद जलसा में (दोनों सज्दों के दौरान) बैठकर 10 बार तस्बीह पढ़ें।
  1. अब दूसरे सज्दे में जाएं, दूसरे सज्दे की तस्बीह पढ़ने के बाद इस तस्बीह को 10 बार पढ़ें।
  1. चार रकअत पूरी होने तक दोहराएँ। और चौथी रकात में सज्दों के बाद अत्तहिय्यात, दूरूद शरीफ और दुआ पढ़कर सलाम फेर दें।

नोट: इस पूरे नमाज के दौरान इस तस्कुबीह को कुल मिलाकर 300 बार पढ़ना चाहिए।

हदीस[संपादित करें]

अब्दुल्ला इब्न अब्बास (रज़ि) ने फरमाया:

मेरे चाचा! क्या मैं आपको एक अतिया न करूं ? क्या मैं आपको एक तोहफा और हदिया पेश न करूं ? क्या मैं आपको ऐसा अम्ल न बताऊं कि जब आप इसको करेंगे तो आपको दस फायदे हासिल होंगे । यानी अल्लाह तआला आपके अगले-पिछले, पुराने-नए, गलती से और जानबूझ कर किये गए, छोटे-बड़े, छुपकर और खुल्लमखुल्ला किये हुए सारे गुनाह माफ कर देगा । वो अम्ल ये है कि आप चार रकात सलातुल तस्बीह की नमाज़ पढ़ें ।

अगर आपसे हो सके तो रोज़ाना ये नमाज़ एक मर्तबा पढ़ा करें , अगर रोज़ाना ना हो सके तो जुमा के दिन पढ़ लिया करें , अगर ये भी ना हो सके तो महीने में एक बार पढ़ लिया करें , अगर आप ये भी ना हो सके तो साल में एक बार पढ़ लिया करें , अगर ये भी ना हो सके तो ज़िंदगी में एक बार पढ़ लिया करें ।"

नमाज़ के फायदे[संपादित करें]

नफ़ील नमाजों में सलातुल तस्बीह की नमाज़ की बहुत ज्यादा फजीलत बयान की गई है । इस नमाज को पढ़ने से दीन-व-दुनिया की बहुत सी बरकतें हासिल होती है । गुनाह माफ हो जाते हैं और इसके पढ़ने से रोजी में बरकत पैदा होती है । किसी मुसीबत और दुशवारी के वक्त अगर इस नमाज को पढ़ कर अल्लाह से दुआ की जाए तो वह मुसीबत इस नमाज की बरकत से दूर हो जाती है ।

यह भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. ""सुनन अबी दाऊद 1297 - प्रार्थना (किताब अल-सलात): स्वैच्छिक प्रार्थना - كتاب التطوع - सुन्नह.कॉम - पैगंबर मुहम्मद (صلى الله عليه و سلم) की बातें और शिक्षाएँ" ।". Sunnah.com.

बाहरी कड़ी[संपादित करें]