सम्पादन
पुस्तक, दैनिक, साप्ताहिक मासिक या सावधिक पत्र
संपादकीय
सतचरित्र ईमानदारी मानवता नैतिकता सत्य वचन ये सब ईश्वर रचित सत्य हैं इन अनमोल गुणों के अभाव के कारण इंसान दिन पर दिन जानवर प्रवृत्ति में तब्दील होते जा रहे हैं ये एक गंभीर विषय है समस्त समाज के समक्ष व विशेषकर समस्त समाज के ज्ञानवान लोगों के समक्ष इन महान व्यक्तियों की नैतिक जिम्मेदारी भी बनती है कि अपने समाज के लोगों को ईश्वर के मूल सत्य से अवगत कराते रहें । किंतु ऐसा नहीं हो रहा है ज्ञानवान लोग अपनी नैतिक जिम्मेदारी की सीमा रेखा को बहुत सीमित कर रखा हुआ है और जो ज्ञानवान व्यक्ति सक्रिय भी हैं वे इन फर्जी धर्म गुरुओं के अंग बनते जा रहे हैं बस इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर बीते हुये समय वा वर्तमान समय के परिदृश्य को देखते हुये अपने समस्त समाज को मूल सत्य से अवगत कराने के लिये एक अति सुक्ष्म प्रयास का शुभारंभ किया है अपनी मासिक पत्रिका सत्य आधारित हमारे विचार के माध्यम से अतएव आप महानुभाव व ज्ञानवान लोगों से मेरा विनम्र आग्रह है कि आप अपनी प्रतिक्रिया और अपने सुझाव हमें अवश्य भेंजे जिनका हम तहेदिल से स्वागत करेगें आपके द्वारा भेजे गये सुझाव का हम अपने अगले अंक में अवश्य शामिल करेंगे हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर हमारे पाठकों को आत्मज्ञान व अक्षय धनसंपदा प्रदान करें ।
प्रवीण कुमार अवस्थी
हिन्दी संस्करण - सत्य आधारित हमारे विचार
ISBN:978-93-5786-213-4
© सर्वाधिकार प्रकाशकाधीन
लेखक परिचय - ईश्वरवादी एक साधारण इंसान ।
लेखक व संपादक - प्रवीण कुमार अवस्थी
प्रकाशक - स्वयं प्रकाशन
संपर्क नंबर - 9451133568
सोशल मीडिया - व्हाट्सएप नंबर 8840017454
यूट्यूब लिंक - https://youtube.com/@P.K.A.USER-VN2KH1JP9m
ईमेल आईडी - praveen222025@gmail.com
वर्तमान निवास - गृह नं. - 612/P-40(KH-248) हनुमंत पुरम - ॥ फैजुल्लागंज - ॥
पिन कोड - 226024 - जनपद - लखनऊ - राज्य - (उत्तर प्रदेश) भारत
अनुक्रमणिका
1 - अनुक्रमणिका
2 - संपादकीय
3 - जिंदगी की किताब
4 - सच्चे मोती
5 - हमारे भगवान् राम के आदर्श
6 - भगवान् श्री कृष्ण और सुदामा
7 - द्रोपदी और भगवान् श्रीकृष्ण
8 - धनवान होना बहुत आसान
9 - अपने से अधिक धनवान व्यक्ति से ईर्ष्या
10 - प्रारब्ध निर्बल होने का समय अज्ञात
11 - इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं
12 - ईश्वर की अनुभूति
13 - आचरण शैतान के बातें भगवान की
14 - सतचरित्र से रिक्त
15 - जिन व्यक्तियों के पास
16 - जब हमारा ज्ञान कोष
17 - सत्य के रंग में रंग कर तो देखिये
18 - ईश्वर ने स्यवं छल कपट कर्म का भुगतान किया है
19 - रुधिर संबंधों में खरीद फरोख्त
20 - सत्य वाणी ही ईश्वर की वाणी है
21 - यज्ञ कुंड का प्रदुर्भाव
22 - अतिरिक्त धन के भंवर से बचें
(1)
संपादकीय
सतचरित्र ईमानदारी मानवता नैतिकता सत्य वचन ये सब ईश्वर रचित सत्य हैं इन अनमोल गुणों के अभाव के कारण इंसान दिन पर दिन जानवर प्रवृत्ति में तब्दील होते जा रहे हैं ये एक गंभीर विषय है समस्त समाज के समक्ष व विशेषकर समस्त समाज के ज्ञानवान लोगों के समक्ष इन महान व्यक्तियों की नैतिक जिम्मेदारी भी बनती है कि अपने समाज के लोगों को ईश्वर के मूल सत्य से अवगत कराते रहें । किंतु ऐसा नहीं हो रहा है ज्ञानवान लोग अपनी नैतिक जिम्मेदारी की सीमा रेखा को बहुत सीमित कर रखा हुआ है और जो ज्ञानवान व्यक्ति सक्रिय भी हैं वे इन फर्जी धर्म गुरुओं के अंग बनते जा रहे हैं बस इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर बीते हुये समय वा वर्तमान समय के परिदृश्य को देखते हुये अपने समस्त समाज को मूल सत्य से अवगत कराने के लिये एक अति सुक्ष्म प्रयास का शुभारंभ किया है अपनी मासिक पत्रिका सत्य आधारित हमारे विचार के माध्यम से अतएव आप महानुभाव व ज्ञानवान लोगों से मेरा विनम्र आग्रह है कि आप अपनी प्रतिक्रिया और अपने सुझाव हमें अवश्य भेंजे जिनका हम तहेदिल से स्वागत करेगें आपके द्वारा भेजे गये सुझाव का हम अपने अगले अंक में अवश्य शामिल करेंगे हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर हमारे पाठकों को आत्मज्ञान व अक्षय धनसंपदा प्रदान करें ।
प्रवीण कुमार अवस्थी
हिन्दी संस्करण - सत्य आधारित हमारे विचार
ISBN:978-93-5786-213-4
© सर्वाधिकार प्रकाशकाधीन
लेखक परिचय - ईश्वरवादी एक साधारण इंसान ।
लेखक व संपादक - प्रवीण कुमार अवस्थी
प्रकाशक - स्वयं प्रकाशन
संपर्क नंबर - 9451133568
सोशल मीडिया - व्हाट्सएप नंबर 8840017454
यूट्यूब लिंक - https://youtube.com/@P.K.A.USER-VN2KH1JP9m
ईमेल आईडी - praveen222025@gmail.com
वर्तमान निवास - गृह नं. - 612/P-40(KH-248) हनुमंत पुरम - ॥ फैजुल्लागंज - ॥
पिन कोड - 226024 - जनपद - लखनऊ - राज्य - (उत्तर प्रदेश) भारत
(2)
जिंदगी की किताब
जिस दिन से आपको अपने मान अपमान स्वाभिमान लाभ हानि दु:ख दर्द का ज्ञान होना प्रारंभ हो जाता है उसी पल से आपकी जिंदगी की किताब स्वतः ही लिखनी प्रारंभ हो जाती है आपकी उम्र लगभग 50 वर्ष के आसपास यदि हो गयी है तो स्वाभाविक है आपकी जिंदगी की किताब भी काफी मोटी हो गयी होगी फिर वही बात अब जब आपके साथ हानि लाभ स्वाभिमान मान अपमान दु:ख दर्द धनहानि जनहानि होना प्रारंभ होता है तब आपको किंचित मात्र भी विचलित नहीं होना चाहिए आपको किसी भविष्यवक्ता महात्मा ज्ञानी के पास जाने की भी आवश्यकता नहीं है बस आप अपनी वही मोटी सी किताब के कुछ पन्नों का अवलोकन कर लीजिएगा आपके समस्त सवालों के जवाब उसी में निहित मिल जाएंगे हम तो बस इतना ही कहेंगे कि आपलोग अपनी बेशकीमती जिंदगी की किताब में छल कपट मिथ्या प्रपंच रहित सुंदर पन्ने ही जोड़िएगा क्योंकि आपका भविष्य किसी और की किताब पढ़ना इतना पसंद नहीं करेगा जितना स्वयं आपकी I
(3)
सच्चे मोती
सच्चे मोती और सच्चे मोती की माला सभी लोगों को बहुत पंसद होती है मुझे भी बहुत पंसद थी किन्तु तभी तक जबतक मुझे यह ज्ञात नहीं था कि एक सच्चा मोती प्राप्त करने में एक जीवधारी सीप को अपने प्राण गवाने पड़ते हैं इसलिए मुझे अब सच्चा मोती नहीं पंसद है यह सच्चा मोती नहीं है यह झूठा मोती है यही है सच्चे मोती की सच्चाई किन्तु सच्चाई बहुत कम ही लोगों को पंसद आती है जबकि सच्चाई ईश्वार के करीब लाती है।
(4)
भगवान् राम के आदर्श
यह कथन हमारे भगवान श्री राम का है
कन्या भगिनी सुत की पत्नी या छोटे भाई की नारी जो इन्हें क्रूदृष्टि से देखता है वह वध के योग्य दुराचारी ॥
उपरोक्त प्रकार के लोगों की पहचान करना बहुत आसान है
सर्व प्रथम स्वयं का आत्म निरीक्षण कर लेना कहीं आप स्वयं ही तो ऐसे नहीं हैं और यदि आप ऐसे नहीं हैं तो बहुत अच्छी बात है इससे सुंदर बात तो कोई हो ही नहीं सकती ।
अब आपको बस इतना ही करना है कि अपने चारों तरफ अपने मित्रों अपने रिश्तेदारों अपने परिवार के लोगों में ऐसे इंसान की पहचान करना है पहचान करने के बाद हम यह तो नहीं कह सकते हैं कि ऐसे व्यक्ति का तुरंत ही वध कर दीजिए क्योंकि ऐसा हमको करना संविधान के विरुद्ध हो जाएगा किंतु ऐसे व्यक्ति से आप अपने बच्चों अपने आप को परिवार को बचा कर रखिएगा दूरी बनाकर रखिएगा इस प्रकार के लोग मौका पाते ही आपको बहुत बड़ी मुसीबत में डाल देंगे ।
इस प्रकार के व्यक्ति एक संस्कारित समाज के लिए अभिशाप ही हैं ।
(5)
भगवान् श्री कृष्ण और सुदामा
आप भारत छोड़कर विदेश में निवास करने जा तो रहे हैं किन्तु एक बात याद रखना निर्धन सुदमा से मित्रता निभाने वाले हमारे श्रीकृष्ण वहाँ नहीं मिलेंगे हमारे कान्हा तो भारत की पावन भूमि में ही जन्म लेते हैं।
(6)
द्रोपदी और भगवान् श्रीकृष्ण
आप भारत छोड़कर विदेश में निवास करने जा तो रहें हैं किन्तु एक बात याद रखना बहन की लाज बचाने वाले हमारे कृष्ण वहाँ नहीं मिलेगें हमारे भगवान् श्रीकृष्ण भारत भूमि में ही जन्म लेते हैं।
(7)
धनवान होना बहुत आसान
अत्याधिक धन कमाना य अत्याधिक धनवान होना वैभवशाली जीवन जीना बहुत आसना कार्य है इसके लिए आपको बहुत अधिक बुद्धि और शारीरिक बल की भी अवश्यकता नहीं है बस आप किसी भी कार्य को करना पाप अधर्म न समझें व दोहरा चरित्र मिठि जुबान का अधिक से अधिक प्रायोग करें और समझौता करने में परागंत हो जाएं स्यवं तक पहुँचने वाले धन के स्त्रोत की और धन पहुचाने वाले व्यक्ति से कोई मतलब नहीं रखें सिर्फ धन से ही मतलब रखें गोपनियता भंग होने पर समाज में बेज्जत होने का डर न रखें इमानदारी नैतिकता से कोई नाता रिस्ता न रखें ये सब हुनर आपकी सफलता में चार चाँद लगा देते हैं और आपको अतिशिघ्र अत्याधिक धनवान और वैभावशाली बना देते हैं किन्तु याद रखना इस प्रकार से कमाया हुआ धन वैभाव संस्कार विहिन,भाव विहिन, मानवता विहिन ही होता है आपका हृदय दैव प्रवृत्ति छोड़कर राक्षसि प्रवृत्ति का अनुसरण करना प्रारंभ कर देगा आपका परिवार व आप स्वयं विभिन्न प्रकार के व्यासनों में लिप्त हो जायेंगें आप चाह कर भी अपने परिवार को नियंत्रित नहीं रख पायेगें आप अत्मिक सुख से वंचित हो जायेगें बाहर से आप काफी सांत नजर आयेंगे अन्दर से असान्त हो जायेंगे इतना सब होने के बाद आपको प्राकृतिक नींद तो आएगी नहीं अब आपको नींद की दवा से ही नींद आयेगी ।
(8)
अपने से अधिक धनवान व्यक्ति से ईर्ष्या नहीं करना
किसी भी व्यक्ति के सुन्दर मकान उसके आने जाने के लिये सुन्दर कार व उसके रहन - सहन एवं उसके पास और भी बहुत से मौजूद संसाधन धन संपदा वैभव के प्रति यदि आप तनिक भी आसक्ति नहीं रखते हैं उस व्यक्ति की किसी भी वस्तु या संसाधन के उपभोग की लालसा नहीं रखते हैं उस व्यक्ति के प्रति थोड़ी भी ईर्ष्या या जलन की भावना नहीं रखते हैं और यदि उस व्यक्ति के समस्त वैभव को देखकर आपको निश्छल आत्मिक खुशी मिलती है और उस व्यक्ति के प्रति तनिक भी आपके मन में छल कपट नहीं होता है तो आप सच ही समझ लीजिये कि ईश्वर ने आपकी आंखो के माध्यम से वैसा ही हुबहु मानचित्र आपके लिये तैयार कर लिया है। और कुछ समय बाद आप देखेंगे कि वैसा ही वैभव स्वंय आपको भी प्राप्त हो गया है किन्तु इस दौरान यदि आप ने अपने चंचल मन शरीर कर्म से नियन्त्रंण खो देंगें तो आपका मानचित्र फाइल में ही बन्द रहेगा कभी जमीन पर अवतरित नही होगा ।
(9)
रुधिर संबंधों में खरीद-फरोख्त उचित नहीं
आप लोग अपने अथक प्रयासों से धन संग्रहित करते हैं जमीन या मकान खरीदने के लिए इस प्रकार की संपत्ति आपको वैभवशाली बनाने में अहम भूमिका निभाती है स्वयं के धन से जमीन खरीद कर जमींदार होना बहुत अच्छी बात है अपने कर्मजाल में फंसा आपका भाई किसी अहम मजबूरीवस अपनी जमीन का हिस्सा बेच रहा होता है तब हो सकता है कि आप अपने स्वंय के परिवार वा अपनी अन्य जीवन उपयोगी जरूरतों को ध्यान में रखकर इतनी बड़ी रकम से अपने भाई की मदद करने मे असमर्थ हों और अपने भाई की जमीन खरीदने में समर्थ हों और घर की जमीन घर में ही तो है इस प्रकार के बेहतरिन तर्क देने में समर्थ हों उसके बाद अपने भाई के खेत की मेड़ मिटा करके अपने खेत में मिला लेने में समर्थ हों किंतु जिस तारीख को आप अपने भाई से बेईमानी अवरोधक बैनामा पत्र पर दस्तखत करायेंगे उस क्षण जो मेड़ आपके भाई के हृदय में पड़ जायेगी क्या उसे मिटाने में कभी समर्थ हो पायेगें आप आपके भाई के नजर में जब भी वह जमीन आएगी तो आपका भाई वह दृश्य जीवन पर्यंत कभी नहीं भूल पायेगा कि हमारी जमीन लिखवा करके तब हमारे भाई ने हमारी मदद की थी हम तो बस यही कहेंगे कि रुधिर संबंधों में खरीद-फरोख्त किसी भी प्रकार से उचित नहीं है जमीन अन्यत्र भी खरीद सकते हैं अपने अनमोल संबंधों को इस आर्थिक युग की बलिवेदी पर भेंट मत होने दीजिये क्योंकि समय और युग बदलते रहते हैं ।
(10)
प्रारब्ध निर्बल होने का समय अज्ञात
आप समझते हैं कि हमने बड़ी ही बुद्धिमत्ता के साथ अपने द्वारा किये गये कुकर्मों को अपने परिवार अपने मित्रों अपने सगे संबंधियों और सामाज से छिपाने में हम सफल हो गये हैं। किन्तु आप सफल उस अज्ञात समय तक ही हैं जब तक कि आपका प्रारब्ध बलवान है जिस दिन आपका प्रारब्ध निर्बल हो जायेगा उसी दिन से आपके द्वारा किये गये समस्त छल कपट व कुकर्मों का भुगतान प्रारंभ हो जाएगा उसी सामाज मित्रों सगे संबंधियों और आपके अपने परिवार व अपनों के समक्ष जिनसे छिपाकर आपने वे कर्म किये थे उस समय आप की स्थिति क्या होगी इस बात का आकलन आप पहले यदि कर लेंगे तो हो सकता है कि ना करने वाले कर्मों से आप अपने आपको बचाने में सफल हो जायें ।
हमारे विचार, स्वयं हमारे हैं हम किसी महात्मा या सत्संग के संपर्क में नहीं है इन सबमें में हमारी तनिक भी रुचि नहीं है ।
(11)
इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं
ईश्वर न करे कि किसी के साथ कोई दुर्घटना घटित हो किंतु उदाहरणार्थ हम लिख रहे हैं कि यदि रास्ते में जाते समय आप लोगों के साथ दुर्भाग्यवश कोई दुर्घटना घटित हो जाती है उस समय दुर्घटना स्थल के आसपास मौजूद इंसानों से मदद लेने से पहले आप उनसे यह नहीं पूछते हैं कि आप किस धर्म के हैं किस संप्रदाय के हैं किस मजहब के हैं किस जाति के हैं बल्कि आप साहर्ष उनकी मदद को स्वीकार कर लेते हैं और आपको तत्काल मदद मुहैया करने वाले इंसान भी आपके धार्मिक चिन्हों को देखकर आपकी मदद नहीं करते हैं सिर्फ एक इंसानियत के नाते ही आपकी मदद करते हैं तब आप मदद करने वाले मदद पाने वाले दोनों तरफ के इंसान ईश्वरी बुद्धि का प्रयोग करते हैं अपनी अंतरात्मा की बुद्धि का प्रयोग करते हैं कितने प्रबुद्ध लोग हैं आप लोग इसके बावजूद भी आप इन धर्म संप्रदाय मजहब जाति के ठेकेदारों के षडयंत्र के शिकार क्यों हो रहे हैं आप लोग तो हर वर्ग में शिक्षित हैं तो इस वर्ग में अशिक्षित क्यों हो जाते हैं ।।
(12)
ईश्वर की अनुभूति
मंदिरों में बहुत भीड़ होती है मस्जिदों में भी बहुत भीड़ होती है गुरुद्वारों में भी बहुत भीड़ होती है गिरजा घरों में भी बहुत भीड़ होती है जिस दिन मंदिर की मूर्तियां बोलना प्रारंभ कर देंगी मस्जिद में आसमानी आवाज आनी प्रारंभ हो जाएगी गुरु की वाणी का सुनाई देना प्रारंभ हो जाएगा चर्च में यीशु ने बोलना प्रारंभ कर दिया तो आपलोग उसी पल से इन धार्मिक स्थलों पर जाना छोड़ देंगें क्योंकि अब तो आपके कर्मों का हिसाब तत्काल हो जायेगा तो दंड भी तत्काल मिल जायेगा फिर आपलोग इतनी ऊँची - ऊँची चढ़ाई करके तत्तकाल दंड प्राप्त करने के लिए तो नहीं जायेगें मंदिर सामूहिक रूप से एक पास मौजूद होकर दंडित होना तो कदापि आप लोंगों को नहीं पंसद होगा तो क्यों जायेंगें मस्जिद में अब बात है आपके द्वारा परमात्मा को चढ़ावे से संम्बन्धित तो आप लोगों को क्या लगता है कि ईश्वर अधेंरे में हैं इसलिए मोमबत्ती जलाते हैं कि ईश्वर रास्ते में कहीं भटक न जायें या जब आप उन्हें भोग लगाते हैं तभी वे भोजन पाते हैं नहीं तो भूखे ही सो जाते हैं आपलोग स्वयं निद्रा में सोये हुए हैं और घंण्टा बजाकर ईश्वर को जगाने का प्रयास करते हैं ये धार्मिक स्थल व्यापारिक प्रतिष्ठानों में तब्दील हो चुके हैं ।
आपलोग बस अपने कर्म सुधार लीजिए फिर कहीं आपको जाने की जरूरत नहीं होगी है परमात्मा के होने की और आपके ऊपर प्रसन्न होने की अनुभूति होती रहेगी आप लोगों को ।
(13)
आचरण शैतान के बातें भगवान की
कर्म दुर्योधन की तरह करतें हैं छ्ल कपट सकुनि की तरह करने में माहिर हैं और हृदय में आचरण रावण के बसाये हैं मिथ्या प्रपंच मन्थरा की तरह करने में बहुत आनन्द प्राप्त होता है अपने इन कर्मों को सुन्दर स्वेत गेरुहा भगवा पीतांबर रंग के वस्त्रों से ढक भी लेते हैं इतना सब करने के बाद भी जब सुकून प्राप्त नहीं हुआ तो भगवान् श्री कृष्ण को अपना नातेदार भगवान् राम को अपना वंसज भगवान् परशुराम को अपना खानदानी भी बता दिया समस्त समाज के समझ धर्मात्माओं वा लोगों ने किन्तु हमारे भगवान् श्रीकृष्ण ने तो अपने ही नातेदार शिशुपाल का सर भरी सभा में काट दिया था उपरोक्त कर्मों के कारण भगवान् राम ने रावण को उसके परिवार सहित समय से पहले यम लोक पहुंचा दिया था उपरोक्त कर्मों के कारण भगवान परशुराम ने भी क्षत्रियों को समय से पहले पृथ्वी से मुक्त कर दिया था उपरोक्त कर्मों के ही कारण हम अपने विचारों से आप लोंगो को डराना नहीं अपितु बचाना चाहते हैं उपरोक्त कर्मों से ।
(14)
फर्जी धर्मगुरु
1- सतचरित्र से रिक्त वाले व्यक्ति ।
2- धन का आवश्यकता से अत्याधिक संग्रहण करने वाले व्यक्ति ।
3- अपने स्वयं के कुकर्म को छिपाकर दूसरे लोगों के कुकर्मों को बिना प्रमाण के प्रकाशित करने वाले व्यक्ति ।
4- स्वयं की नजर स्वयं के शरीर स्वयं के मन पर नियंत्रण नहीं रख पाने वाले व्यक्ति ।
5- अपने भाई बंधुओं की संपत्ति भूमि पर पूर्णतया अन्याय पूर्णरूप से अधिकार रखने वाले व्यक्ति ।
6- आईना देखकर टीका चंदन का लेप करने वाले व्यक्ति ।
7- अत्यधिक बन ठन कर चलने वाले व्यक्ति ।
8 - धूम्रपान करने वाले व्यक्ति ।
उपरोक्त प्रकार के व्यक्तियों से भागवत, रामायण, सत्यनारायण कथा वेदों का ज्ञान लेने से बेहतर है की आप लोग बाजार से अपने अपने धर्मग्रन्थ खरीद कर स्वयं पढ़कर ज्ञान अर्जित कर लीजिएगा
अपितु उपरोक्त प्रकार के व्यक्तियों से ज्ञान लेने से अत्यधिक बेहतर है आपका अज्ञानी ही रहना ।
(15)
मान सम्मान संस्कार खोने के बाद
जिन व्यक्तियों के पास मान सम्मान इज्जत प्रतिष्ठा नहीं होती है वे व्यक्ति सोचते हैं कि हम किसी की भी बेज्जती कर सकते हैं कोई हमारा क्या बिगाड़ सकता है फिर हमको क्या मतलब मान सम्मान इज्जत प्रतिष्ठा से हमारा भगवान तो सिर्फ धन है ऐसे व्यक्ति अपने आपको बुद्धिमान समझकर अपनी कमजोरी को अपना हथियार बनाकर उन भले लोगों पर हमला करते हैं जो लोग मान सम्मान इज्जत प्रतिष्ठा को अपना सर्वस्व एवं जिवन समझते हैं कुछ समय अन्तराल बाद मेरे ईशवर ऐसे व्यक्तियों को पहले अत्यधिक इज्जदार बनाते हैं अनेको अनेक बार अत्यधिक मान सम्मान से सम्मानित करवाते हैं उसके बाद इन व्यक्तियों को जिस पल उस मान सम्मान इज्जत प्रतिष्ठ का बोध हो जाता है या लगाव हो जाता है तब उसी क्षण इन व्यक्तियों से मान सम्मान इज्जत प्रतिष्ठा वापस ले लेते हैं तब जाकर इस प्रकार के व्यक्ति बहुत अच्छे से समझ जाते कि हाँ मान सम्मान इज्जत प्रतिष्ठा के समक्ष हम और हमारे धन की कोई विषाद ही नहीं रह जाती है।
(16)
जब हमारा ज्ञानकोष खाली हो जाता है
जब हमारा ज्ञान कोष खाली हो जाता है जब हमारी तार्किक क्षमता शून्य हो जाती है या जब हम को यह महसूस होने लगता है की अधिक समय तक सवालों का जवाब देते रहने से हमारे कुकर्म स्वयं हमारे ही मुख से निकलना प्रारंभ कर देंगे
तब हम हताश होकर कहते हैं कि हम मूर्खों से बात नहीं करते हैं आप तर्क नहीं कुतर्क कर रहे हैं कुतर्कों का जवाब हम नहीं देते हैं आप मुर्ख हैं।
(17)
सत्य के रंग में रंग कर तो देखिये
हम अपने विचारों को स्वयं अपने आचरण में उतारने के उपरान्त ही आप लोगों की नजरों तक पहुँचाते हैं क्योंकि हमारे अन्दर बाहर में कोई अन्तर नहीं है आप लोग भी सत्य के रंग में रंग कर तो देखिए संसार के समस्त रंग रंगहीन नजर आयेगें ईश्वरी कृपा के अतिरिक्त कुछ नजर ही नहीं आयेगा और जो नजर भी आयेगा वह सब भेद रहित ही नजर आएगा आप लोगों को वर्तमान समय के परिदृश्य के उद्देश्य से रूबरू करवाने का ही विचार है हमारा आप लोगों के कोमल हृदय को आहत करने का किंचित मात्र भी उद्देश्य नहीं है हमारा किन्तु हम तो एक साधारण इन्सान हैं ज्ञानी तो हम हैं नहीं अधिक भाषाओं का भी हमको ज्ञान नहीं है किन्तु किसी के छ्ल कपट रहितभाव को किसी के अदृश्य छल कपट सहितभाव को व मौन को पढ़ना तो हमको बाखूबी आता है मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारा चर्च और बौद्ध दर्शन करने से जो आप लोगों प्राप्ति होती है बस वही प्राप्ती हमको अपने विचार लिखकर आप तक पहुंचाने में होती है ।
(18)
भगवान ने स्वयं अपने छल कपट कर्म का भुगतान किया है
भगवान् विष्णु ने अपने भक्त नारद मुनि से छल किया नारद मुनि का वानर का मुख बनाकर स्वयं राजकुमार रूप धारण कर राजकुमारी को वरण कर अपने साथ ले गये थे ।
जिस कारण नारद मुनि को पत्नी का वियोग प्राप्त हुआ ।
भगवान ने अपने इस छल कपट पूर्णकर्म का भुगतान
किया रामावतार में ।
वनवास के समय सीताजी को रावण ने ब्राम्हण का रूप धारण कर अपने साथ हरण कर ले गया था ।
जिस कारण से भगवान राम को पत्नी का वियोग प्राप्त हुआ था ।
सुग्रीव के भाई बाली का वध भगवान ने छल पूर्वक किया था किया था ।
उस छल कपट पूर्णकर्म का भुगतान भगवान ने कृष्णा अवतार में किया ।
बहेलिया के द्वारा मारे गए तीर से अपने प्राण त्यागे ।
भगवान ने जब अपने छल कपट पूर्ण कर्मों का भुगतान स्वयं किया है तो फिर आप लोग छल कपट पूर्णकर्म करने के उपरांत यह किंचितमात्र भी मत सोचियेगा की हम हवन यज्ञ दान धर्म भोज करवा करके अपने कर्मों से बच के निकल जायेंगे ।
(19)
सत्य वाणी ही ईश्वर की वाणी है
जब आप असत्य भाषण बोलते हैं तो आपका प्रथम तर्क होता है कि हमसे श्रेष्ठ लोग जब असत्य बोल रहे हैं तो क्या हम नहीं बोल सकते जब आप मदिरापान करते हैं तो आप का प्रथम तर्क होता है कि जब हमसे श्रेष्ठ लोग मदिरापान कर रहे हैं तो क्या हम नहीं कर सकते जब आप छल कपट करते हैं तो आप का प्रथम तर्क होता है जब हमसे श्रेष्ठ लोग छल कपट कर रहे हैं तो क्या हम नहीं कर सकते इन श्रेष्ठ लोगों की श्रेष्ठता के भ्रम जाल से जितनी जल्दी हो सके बाहर निकल आइये क्योंकि श्रेष्ठ लोग श्रेष्ठता का चोला धारण कर कुकर्मों के अंतिम पायदान पर खड़े हैं जहां पर ना सत्य है ना धर्म है ना मजहब है ना कोई संप्रदाय है ना शर्म है ना संस्कार हैं ना मर्यादा और ना कोई स्वाभिमान है इधर-उधर इनके बिखरे हुए परिवार हैं श्रेष्ठ तो आपके धर्म मजहब संप्रदाय के पवित्र ग्रंथ हैं जिनमें उपरोक्त प्रकार की श्रेष्ठता का किंचित मात्र भी ना कोई प्रमाण है जब आपके धर्म मजहब संप्रदाय के पवित्र ग्रंथ श्रेष्ठ हो सकते हैं तो फिर आप क्यों नहीं श्रेष्ठ हो सकते हैं हम तो बस यही कहेंगे कि यदि नकल ही करनी है तो असल की कीजिये नकल की नकल करके क्या पायेंगे आप ।
(20)
यज्ञ का प्रदुर्भाव
अभी तक ऐसा कोई अनुष्ठान या यज्ञ एवं हवन कुंड का प्रदुर्भाव नहीं हुआ है जिसमें आपके द्वारा किया गया समस्त छल कपट मिथ्या प्रपंच अच्छम्य अपराध को अपने अंदर समाहित या भस्म करने की क्षमता रखता हो कर्मों के मूल भुगतान के समय आप चाहे जितने बड़े ज्ञानवान हों चाहे जितने बड़े सामर्थवान हो उस समय आपकी समस्त क्षमता सून्य हो जाएगी कर्मों का मूल भुगतान तो आपको स्वयं ही करना होगा यदि आप ईश्वर के कृपा पात्र हैं तो ईश्वर आपके द्वारा किये गये अच्छम्य अपराध का भुगतान तत्काल ही कर देंगें जिससे आपका पाप पुण्य बराबर हो जाएगा जिस कारण आप कुकर्मों के चक्रवृद्धि ब्याज से बच जायेगें ।
(21)
अतिरिक्त धन के चक्कर में कदापि न पड़ें
अधिक से अधिक अतिरिक्त धन के भँवर में पड़कर आप धनवान तो हो गये होंगे किन्तु ईश्वर द्वारा प्रदान की गयी अनमोल धरोहर सतचरित्र ईमानदारी मानवता सत्य वचनों से आप रिक्त भी हो गये होंगे अब इस रिक्त की पूर्ति के हेतु आप धर्म धुरंधरों के संपर्क में आयेंगे धर्मधुरंधर आपको धन से रिक्त कर देंगे और यदि आप सावधान न रहें तो धर्म से भी रिक्त हो जायेंगे कुछ समय बितने के बाद आपको एहसास अवश्य हो जायेगा कि कर्मों का भुगतान प्रारंभ हो गया है इसलिए जो धन गया है वह असल था धरोहर और धर्म का चक्रवृद्धि ब्याज के रूप में भुगतान हुआ है बाकी जिवन अभी शेष भी है आपलोग अतिरिक्त के भँवर में पड़कर समय से पहले क्यों रिक्त और मुक्त होना चाहते हैं जबकि आप लोगों की योग्यता के अनुसार या प्रारब्ध के अनुसार ईश्वर ने आपके लिए धन की समुचित व्यवास्था की हुई है जिसमें आप बेहतर जिंदगी जी सकते हैं ।
(22)
या कविता के पाठ, भाषा, भाव या क्रम को व्यवस्थित करके तथा आवश्यकतानुसार उसमें संशोधन, परिवर्तन या परिवर्धन करके उसे सार्वजनिक प्रयोग अथवा प्रकाशन के योग्य बना देना। लेख और पुस्तक के संपादन में भाषा, भाव तथा क्रम के साथ साथ उसमें आए हुए तथ्य एवं पाठ का भी संशोधन और परिष्कार किया जाता है। इस परिष्करण की क्रिया में उचित शीर्षक या उपशीर्षक, देकर, अध्याय का क्रम ठीक करके, व्याकरण की दृष्टि से भाषा सुधार कर, शैली और प्रभाव का सामंजस्य स्थापित करके, नाम, घटना, तिथि और प्रसंग का उचित योग देकर, आवश्यकतानुसार विषय, शब्द, वाक्य या उदाहरण बढ़ाकर, उद्धरण जोड़कर, नीचे पादटिप्पणी देकर सुबोध व्याख्या भी जोड़ दी जा सकती है।
सामयिक घटना या विषय पर अग्रलेख तथा संपादकीय लिखना, विभिन्न प्रकार के समाचारों पर उनकी तुलनात्मक महत्ता के अनुसार उनपर विभिन्न आकार प्रकार के शीर्षक (हेडलाइन, फ़्लैश, बैनर) देना, अश्लील, अपमानजनक तथा आपत्तिजनक बातें न लिखते हुए सत्यता, ओज, स्पष्टवादिता, निर्भीकता तथा निष्पक्षता के साथ अन्याय का विरोध करना, जनता की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करना, जनता का पथप्रदर्शन करना और लोकमत निर्माण करना दैनिक पत्र के संपादन के अंतर्गत आता है। साप्ताहिक पत्रों में अन्य सब बातें तो दैनिक पत्र जैसी ही होती हैं किंतु उसमें विचारपूर्ण निबंध, कहानियाँ, विवरण, विवेचन आदि सूचनात्मक, पठनीय और मननीय सामग्री भी रहती है। अत: उसके लेखों, साप्ताहिक समाचारों, अन्य मनोरंजक सामग्रियों तथा बालक, महिला आदि विशेष वर्गों के लिए संकलित सामग्री का चुनाव और संपादन उन विशेष वर्गों की योग्यता और अवस्था का ध्यान रखते हुए लोकशील की दृष्टि से करना पड़ता है। इसी प्रकार वाचकों द्वारा प्रेषित प्रश्नों के उत्तर भी लोकशील तथा तथ्य की दृष्टि से परीक्षित करके समाविष्ट करना आवश्यक होता है।
मासिक या सावधिक पत्र मुख्यत: विचारपत्र होते हैं जिनमें गंभीर तथा शोधपूर्ण लेखों की अधिकता होती है। इनमें आए लेखों का संपादन लेख या पुस्तक के समान होता है। विवादग्रस्त विषयों पर विभिन्न पक्षों से प्राप्त लेखों का इस प्रकार परीक्षण कर लिया जाता है कि उनमें न तो किसी भी प्रकार किसी व्यक्ति, समुदाय, समाज अथवा ग्रंथ पर किसी प्रकार का व्यंग्यात्मक का आक्रोशपूर्ण आक्षेप हो और न कहीं अपशब्दों या अश्लील (अमंगल, ब्रीडाजनक तथा ग्राम्य) शब्दों का प्रयोग हो। ऐसे पत्रों में विभिन्न शैलियों में आकर्षक रचनाकौशलों के साथ लिखे हुए पठनीय, मननीय, मनोरंजक, ज्ञानविस्तारक, विचारोत्तेजक और प्रेरणाशील लेखों का संग्रह करना, उसके साथ आवश्यक संपादकीय टिप्पणी देना, स्पष्टीकरण के लिए पादटिप्पणी, परिचय अथवा व्याख्या आदि जोड़ना और आए हुए लेखों को बोधगम्य तथा स्पष्ट करने के लिए अनावश्यक अंश निकाल देना, आवश्यक अंश जोड़ना, आदि से अंत तक शैली के निर्वाह के लिए भाषा ठीक करना, जिस विशेष कौशल से लेखक ने लिखा हो उस कौशल की प्रकृति के अनुसार भाषा और शैली को व्यवस्थित करना, यदि लेखक ने उचित कौशल का प्रयोग न किया हो तो उचित कौशल के अनुसार लेख को बदल देना, भाषा में प्रयुक्त किए हुए शब्दों और वाक्यों का रूप शुद्ध करना या लेख का प्रभाव बनाए रखने अथवा उसे अधिक प्रभावशील बनाने के लिए शब्दों और वाक्यों का संयोजन करना आदि क्रियाएँ संपादन के अंतर्गत आती हैं।
कविता या काव्य के संपादन में छंद, यति, गति, प्रभाव, मात्रा, शब्दों के उचित योजना, अलंकारों का उचित और प्रभावकारी योग, भाव के अनुसार शब्दों का संयोजन, प्रभाव तथा शैली का निर्वाह, तथा रूढ़ोक्तियों के उचित प्रयोग आदि बातों का विशेष ध्यान रखा जाता है। तात्पर्य यह है कि संपादन के द्वारा किसी भी लेख, पुस्तक या पत्र की सामग्री को उचित अनुपात, रूप, शैली और भाषा में इस प्रकार ढाल दिया जाता है कि वह जिस प्रकार के पाठकों के लिए उद्दिष्ट हो उन्हें वह प्रभावित कर सके, उनकी समझ में आ सके और उनके भावों, विचारों तथा भाषाबोध को परिमार्जित, सशक्त, प्रेरित और प्रबुद्ध कर सके तथा लेखकों का भी पथप्रदर्शन कर सके।
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
- सम्पादक
- श्रव्य सम्पादन (Audio editing)
- फिल्म सम्पादन (Film's editing)
- विडियो सम्पादन (Video editing)
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
- American Copy Editors Society
- "Black day for the blue pencil"- The Guardian, August 6, 2005 by Blake Morrison
- Editorial Freelancers Association (USA)
- Society for Editors and Proofreaders (UK)
- Technical Editing special interest group (SIG) of the Society for Technical Communication (STC)
- Writer Beware of Independent Editors and Manuscript Assessment Services