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                                                              मार्गमक्कली


मार्गमक्कली का प्रदर्शन

मार्गमक्कली एक भारतीय समूह नृत्य है जो कि केरल से शुरु हुआ था, जो सेंट थॉमस ईसाईयों द्वारा अपनाया गया था। यह नृत्य 1 वीं शताब्दी में थॉमस द प्रेषक के साथ शुरू हुआ था।

इसके इतिहास पर कई राय हैं। यह नृत्य 1 वीं शताब्दी में थॉमस द प्रेषक के साथ शुरू हुआ था। विद्वानों ने मालाबार यहूदी नृत्य और गीतों और मार्गमक्कली के संत थॉमस ईसाई नृत्य रूप में समान मूल पाया है। बहुत से लोग मानते हैं कि यह संगम काली ब्राह्मणों के एक प्रदर्शन नृत्य रूप से पैदा हुआ था।वही कुछ लोग मानते है कि यह केरल के नंबुतिरी ब्राह्मणों की एक प्रदर्शन कला, यथरा काली से अया है।

नाम का महत्व[संपादित करें]

"मार्गम" का मतलब मलयालम में पथ या रास्ता या समाधान है, लेकिन धार्मिक संदर्भ में इसे उद्धार प्राप्त करने का मार्ग कहा जाता है। ईसाई धर्म में रूपांतरण की प्रक्रिया को हाल ही तक केरल में "मार्गम कुडाल" के रूप से जाना जाता था।

ऐतिहासिक रूपरेखा[संपादित करें]

यह लोक कला सेंट थॉमस, द प्रेषक के मिशन के पास बनि थी। मूल मार्गम काली मालाबार में सेंट थॉमस के आगमन और उन्के चमत्कारों का वर्णन करती है। इन विवरणों को मार्गम काली गाने के विभिन्न पदों में शामिल किया गया है। केरल मे मार्गम काली, सेंट थॉमस की पुरानी और पवित्र परंपरा में एक महत्वपूर्ण तत्व है। इसके शुरुआती दिनों और वर्तमान की स्थिति के बीच असमानता है।मार्गकमली के इतिहास में तीन महत्वपूर्ण चरण है। पहला चरण पूर्व उपनिवेशण का था जिसमें सेंट थॉमस ईसाई विशेष अवसरों के दौरान इस अर्ध-नाटकीय रूप का प्रदर्शन किया करते थे।

सत्रहवीं शताब्दी के दौरान, एक दक्षिणी पुजारी ,इटि थॉममैन कथनर, के प्रयासों के कारण इसके शाब्दिक भाग मे उत्थान हुआ। इस अवधि के दौरान वर्तमान के चौदह पद्य संरचना को संपादित कर दिया। उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक यह कला आम व्यवहार में नहीं थी, भले ही यह कुछ स्थानों पर मौजूद थी। 

लेकिन उन्नीसवीं सदी के अंत में और बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में, यह रूप एक बार फिर लोकप्रिय हो गया। तब कुछ संरचनात्मक परिवर्तन किए गए थे। कलारिकल उन्नी आशान, इंदुमितितिल कोशेप्पू आशान, इंदुमुट्टीली कुत्तो आहान जैसे परास्नातक उनमें से कुछ थे जो इस बदलाव और उथल-पुथल के लिए जिम्मेदार थे। इस समय तक पुतिलिक उथुपू लुकोस ने १९१० में मार्गमक्कली पट्टुकल संकलित और प्रकाशित किया। १९५० से 1९७० के दशक के दौरान इसे फिर झटका लगा। यह विलुप्त होने के कगार पर थी। लेकिन १९७० के उत्तरार्ध में एक बार फिर सेंट थॉमस ईसाईयो ने इस रूप को पुनर्जीवित करने और लोकप्रिय बनाने के लिए पहल की।

प्रदर्शन[संपादित करें]

मार्गमक्कली मे एक दर्जन नर्तक पारंपरिक सफेद धोती पहने हुए एक निलावीलककु के चारों ओर गाते हैं और नृत्य करते हैं। दीपक मसीह का प्रतिनिधित्व करता है और कलाकार उनके शिष्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रदर्शन आमतौर पर दो हिस्सों में आयोजित किया जाता है और सेंट थॉमस के जीवन को बताने वाले गीतों और नृत्य का प्रदर्शन किया जाता है, नर्तक इसके बाद कृत्रिम तलवारें और ढाल के एक सामरिक प्ले के साथ एक तीव्र मोड़ लेते है। मार्गमक्कली दो छोटे हथेली के आकार के झांझों के अलावा किसी भी यंत्र का उपयोग नहीं करती है। यह मूल रूप से पुरुषों द्वारा खेला जता था, लेकिन आजकल महिलाओं ने भी नृत्य करना चालू कर दिया है।

वर्तमान[संपादित करें]

वर्तमान में केरल के राज्य युवा महोत्सव में मार्गमक्कली[1] और परिचुमतुकली दोनों ही शामिल हैं। इससे स्कूल, उप जिला, राजस्व और राज्य स्तर मे यह कला एक प्रतियोगिता बनाती हैं। मार्गमक्कली मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों में और विभिन्न प्रकार कि[2] प्रतियोगिताओं में स्कूल के बच्चों द्वारा किया जाती है। एंजेल रोज ऐ और उनकी टीम के पास केरल में स्कूल और कॉलेज स्तर पर मार्गकमली में सबसे अधिक पुरस्कार प्राप्त करने का मौजूदा शीर्षक है।

  1. https://www.keralataxis.com/kerala-culture/margam-kali/
  2. https://www.google.co.in/search?q=english+wikipedis&oq=english+wikipedis&aqs=chrome..69i57.5120j0j4&sourceid=chrome&ie=UTF-8