सदस्य वार्ता:Machunguang/प्रयोगपृष्ठ

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रंगभूमि (1924-1925) उपन्यास ऐसी ही कृति है। नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन तथा स्त्री दुदर्शा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है। परतंत्र भारत की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक समस्याओं के बीच राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण यह उपन्यास लेखक के राष्ट्रीय दृष्टिकोण को बहुत ऊँचा उठाता है। देश की नवीन आवश्यकताओं, आशाओं की पूर्ति के लिए संकीणर्ता और वासनाओं से ऊपर उठकर नि:स्वार्थ भाव से देश सेवा की आवश्यकता उन दिनों सिद्दत से महसूस की जा रही थी। रंगभूमि की पूरी कथा इन्हीं भावनाओं और विचारों में विचरती है। कथा का नायक सूरदास का पूरा जीवनक्रम, यहाँ तक कि उसकी मृत्यु भी राष्ट्रनायक की छवि लगती है। पूरी कथा गाँधी दर्शन, निष्काम कर्म और सत्य के अवलंबन को रेखांकित करती है। यह संग्रहणीय पुस्तक कई अर्थों में भारतीय साहित्य की धरोहर है। कहानी में सूरदास के अलावा सोफी, विनय, जॉन सेवक, प्रभु सेवक का किरदार भी अहम है। सोफी मिसेज जॉन सेवक, ताहिर अली, रानी, डाक्टर गांगुली, क्लार्क, राजा साहब, इंदु, ईश्वर सेवक, राजा महेंद्र कुमार सिंह, नायकरामघीसू, बजगंरी, जमुनी, जाह्नवी, ठाकुरदीन, भैरों जैसे कईं किरदार हैं।

कथावस्तु <ref name="">6. प्रेमचंद और उनका युग- लेखक रामविलाश शर्मा एम. ए, पी. एच. डी, प्रकाशक महेरचन्द मुन्शीराम प्रकाशक तथा पुस्तक विक्रेता १० वी फेज बाजार दिल्ली 142748 <ref [बनारस के समीप पांडेपुर गाँव में जाटव जाती का अंधा भिखारी सूरदास रहता था। उसके पास पूर्वजों की दस बीघा जमीं थी। जानसेवक ईसाई वहाँ सिगरेट का कारखाना खोलना चाहता था। सूरदास वह जमीन नहीं बेजना चाहता था, इसलिए जनसेवक ने बनारस के कलेक्टर अंग्रेज क्लार्क का अपनी पुत्री सोफिया के प्रति आसकित का लाभ उठाकर वह जमीन लेनी चाही। पर सोफिया ने कलेक्टर से यह आदेश करा लिया की जमीन किसी को न दी जाये। सोफिया की सहपाठिनी इन्दु का विवाह राजा महेंद्रकुमार सिंह के साथ हुआ जो बनारस म्यूनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन थे। राजा महेंद्रकुमार सिंह ने गवर्नर से मिलकर सूरदास की जमीन जानसेवकको देने का आदेश करा दिया और क्लार्क का स्थानान्तरण करा दिया गया। सूरदास की जमीन पर कारखाना और कारखाना के मजदूरों की बस्ती के लिए पांडेपुर खली कराया जाने लगा। सूरदास ने अपनी झोपड़ी के सामने सत्याग्रह आरम्भ कर दिया । सूरदास की सहायता के लिए इन्द्रदत्त, सोफिया और विनय आ गये। गोलियाँ चली इन्द्रदत्त शहीद हुए। सूरदास को भी गोली लगी। विनय ने स्वयं को गोली मरकर जनता को शान्त किया। सूरदास की मूर्ति उसकी कुटिया के सामने लगायी गयी। राजा महेंद्रकुमार सिंह मूर्ति हटाने आये , पर उसके निचे दबकर मर गये। इस प्रकार सूरदास जित गया और राजा साहब हर गये।