सदस्य वार्ता:Girish nagda

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नीचे की वार्ता यूनिकोड हिन्दी में नहीं है। इसे किसी फॉण्ट-परिवर्तक की सहायता से कोई यूनिकोड में बदल कर यहाँ रख दे तो 'गिरीश नागदा' जी की बात सबके समझ में आ सके।-- अनुनाद सिंहवार्ता ०२:५१, १४ नवंबर २००९ (UTC)

यहाँ पर रखा गया टेक्स्ट 'कृतिदेव' में था जिसे यूनिकोड में रखकर यहाँ रख रहा हूं।- -- अनुनाद सिंहवार्ता ०७:२८, १४ नवंबर २००९ (UTC)


                                                                   चिकित्सा की चिकित्सा

सच है कि चिकित्सा विज्ञान ने बेहद तकनीकि विकास किया है । नयी दवाये, नई विधिया ,नईमशीने औरजगह जगहचमचमाते नये नये अस्पताल भी खुल गये है परन्तु सब कुछ आम और यहॉ तक की मध्यमवर्ग के लिए भी बहुत महंंगा है और उसकी पहुच से बाहर है आज अगर किसी व्यक्ति को कोई बडी बिमारी पकड लेती है तोउसका घर खाली हो जाता है कर्ज भी करना पढता है मकान,जमीन, जायजाद बेचने को मजबूर होना पडता है और कोई चारा भी नही रहता है इसीलिए कहते है कि भगवान दुश्मन को भी अस्पताल की सीिढया न चढाये। तमाम विकास के बावजूद हमने इस क्षे़त्र में कुछ भी नही किया है । बल्कि इस बारे मे कुछ सोचा भी नही है ।

हमारे डाक्टरो का व्यवहार बेहद अमानवीय रूप से व्यवसायिक हेै । वे खुलकर कहते हैस्वीकार करते है, कि पढाई मे करोड-करोड रूपया खर्च करने के बाद यह डिग्री मिली है । इतना लगाया है तो यह कम से कम ब्याज सहित दुगना तो वसूल करेगे ही ।

और डाक्टरो के यह हाल है कि इतनी मंहगी डिग्री लेने के बावजूद पेशेवर योग्यता और निपुणता की औचक जांचकी जाये तो अधिकांश डाक्टर अपनी डिग्री की योग्यता पर खरे नही उतरेगें । अपनी विशेज्ञता के बावजूद जांच परीक्षण और चिकित्सा के लिएदवा लिखते हुए चिकित्सा करते हुए,,आपरेशन करते हुए,न सिर्फ भयंकर गिल्तया करते है बल्कि बेहद चौकाने वाली लापरवाही करते हुए पाये जाते है ।आदमी तो डाक्टर के पास जाता है उसे भगवान समझकर परन्तु डाक्टर के लिए वह मा़त्र एकग्राहक, शिकार बनकर रह जाता है ।और उसे बेददीZ से लूटा नोचा जाताहै । इस सारे मामले को और डाक्टरो केा पथभ्रश्ट करने के लिए दवा कम्पनियो ने आग में घी का काम किया है । उदा.के तौर पर एकनई दवाकम्पनी ने कुछ साल पूर्व अपना एकटानिक सायरप प्रो्रडक्ट लांच किया।उसके फार्मूले मे बेतुका अनावश्यक संयोजन था और खतरनाक बात यह थी कि उसमे स्टेराईड मिलाया गया था ।उसकी एक हजारशीशिया लिखने वाले डाक्टर को रंगीन टीवी का तोहफा दिया जाना था ।यह उस समय की बात है जब रंगीनटीवी बडी बात हुआ करता था आजकल कारपोरेZट के जमाने में तो यह गिफट विदेश यात्रापैकेज टूर तक विस्तार पा गया है ।उसदवा कम्पनी के प्रतिनिधि ने एक बाल रोगविशेशज्ञ को यह आफर सेम्पल दिया ।और उस डा.ने अगले पन्द्रह दिन मे आने वाले अपने हर बाल रोगी को चाहे उसे किसी भी तरह की बिमारी हो उसे अनिवार्य रूप से यह टानिक लिखा और अपना लक्ष्य प्राप्त किया ।अब उससे किस बच्चे को क्या साईड इफेक्ट हुए होगे और हो सकता है वे उन साईडइफेक्टो को जीवन भर भेागे जिसके तहत शारीरिक मानसिक विकास अवरूद्ध हो सकता है या शरीर बेहदमोटा हो सकता है याजीवन भर की विकलांगता भी हो सकती है इस सबसे उन्हे क्या लेनादेना ।उन्हे तो उनका टीवी मिल गया ।यह सब चिकित्सा क्षेत्र मे फैली हुई आज आम बिमारी है ।इससे छुटकारा पाने के लिए समय समय पर डाक्टरो की गुणवता की जांच होती रहनीचाहिए ।चिकित्सा पेशे का स्वास्थ ठीक रखने के लिए इसमे भ्रश्टाचारमुक्त छापामार जांच कीपरम्परा भी विकसित की जानी चाहिए ।

         आज सर्जरी के लिए एक सर्जन लाखेा रूपये एक आपरेशन के लेता है यह नैतिक रूप से सरासर अनुचित ही नही अपराध भी है ।कोई व्यक्ति जो अपने तकनीकि ज्ञान से कोई अन्य कार्य करता है वह भी अपने कार्य का डाक्टर ही तो होता है परन्तु वह सौ दो सौ रूपयेमे अपना कर्तव्य निभाता है जबकि सर्जन लाखो रूपये लेता है यह कहॉ का न्याय है र्षोर्षो गरीब और मध्यम वर्ग क्या करेगा र्षोर्षोइस बाबत किसी ने कुछ सोचने का कभी प्रयास भीनही किया है ।

इन सब बुराइयो से निजात पाने के लिए सर्वोतम उपाय है कि चिकित्सा जगत का राश्ट्ीयकरण कर दिया जाए ।सारी चिकित्सा सेवा सरकार की देखरेख में हो ।अगर यह प्रजातंत्र है तो यह होना ही चाहिए । डा.गिरीश नागड़ा

भारतीय रेल प्रजातांत्रिक कितनी ? गिरीश नागड़ा[संपादित करें]

भारतीय रेल प्रजातांत्रिक कितनी ? गिरीश नागड़ा मेरा आज इन्दौर से हावडा जाना बेहद जरूरी है और मेरे पास रिजर्वेशन नही है सामान्य बोगी जिसे जनरल भी कहा जाता है उसमें पैर रखने की भी जगह नही है प्रथम श्रेणी वातानुकूलित में या हवाई यात्रा करना मेरे बस में नही है एक पैर पर शोचालय मे खडे होकर इतनी लंबी यात्रा के अनुकूल स्वास्थ्य नही है फिर मै क्या करुंगा ? क्या करुंगा अपनी यात्रा रद्द करने के अलावा मेरे पास और कोई विकल्प ही नही है वही मै करुंगा । और बेहद जरूरी कार्य के न कर पाने की हानि उठाउंगा और शर्मिन्दगी झेलूंगा बस इसके अलावा और क्या कर सकता हूॅ ? मै सोचता हूं कि मेरी भी प्रथम श्रेणी की सरकारी नौकरी होती तो मै भी मुफ्त के पास पर ए सी मे आराम से सफर कर पाता । अगर समूची ट््रेन सामान्य बोगी की होती तो मुझे किसी न किसी बोगी में पैर रखने की जगह तो मिल ही जाती और मै इस हानि और शर्मिन्दगी से भी बच जाता । मेंरे जैसे जाने कितने ही लोग है जो इस परिस्थिति से प्रतिदिन दो चार होकर परेशान और विवश होते है और उनके पास भी मेरी तरह से कोई विकल्प नही होता है । कहते है प्रजातंत्र में सबसे अधिक विकल्प मौजूद होते है परन्तु भारत मे हम देखते है कि आम प्रजा के लिए ही कहीं कोई विकल्प नही होता जो जैसा है यही उनका भाग्य है या कहे दुर्भाग्य है और इसी विवशता के साथ उन्हे निर्वाह करना है। ऐसा क्यो है यह तंत्र को गंभीरता के साथ सोचना चाहिए। रेल्वे मे भी ऐसा ही है रेलमंत्री को भी इस वि य में सोचना चाहिए कि आम जनता की सामान्य बोगी की यात्रा को सुखद और सुविधापूर्ण बनाने के बारे में आज तक कभी विचार क्यो नही किया गया?

भारत मे शासन चाहे किसी भी दल का हो किसी भी रेलमंत्री ने आज तक आम जनता के बारे में कभी सोचा ही नही न ही कभी उनकी कोई परवाह की है। प्रश्न यह है कि आम जनता की सामान्य बोगी की यात्रा का आज तक कभी विचार क्यो नही किया गया क्यो आम जनता की यात्रा की इतनी गंभीर उपेक्षा की गई ? दस प्रतिशत रेल का स्थान नब्बे प्रतिशत आम जनता के लिए क्यो रखा जाता है और नब्बे प्रतिशत स्थान दस प्रतिशत खास लोगो के लिए क्यो रखा जाता हैे ? और अस्सी प्रतिशत रेले खास रेल्वे स्टेशनो के लिए और बीस प्रतिशत रेले अस्सी प्रतिशत स्टेशनो के लिए क्यो तय है ? सारा ध्यान राजधानी दुरन्तो आदि ए सी गाडियो पर और बडें बडे रेल्वे स्टेशनो पर ही क्यो केन्द्रित रहता है ? क्या प्रजातंत्र में प्रजा की यात्रा को कट साध्य मुश्किलो भरा बनाकर मोटी तन्खाह वाले खास एंव धनवानो की सुखद यात्रा के लिए प्रजा के पैसो से ट्रेने चलाना उचित है ? सच पूछा जाये तो प्रजातंत्र मे शासन के द्वारा संचालित एवं सार्वजनिक उपयोग के किसी भी मामले में आम को नजर अंदाज कर खास को महत्ता देना उस सेवा का पूरी तरह से दुरूपयोग करना कहा जायेगा बल्कि यह तो प्रजातंत्र मे आम प्रजा के अधिकारो पर डाका डालने जैसा मामला है रेल्वे के मामले में शासन यही तो कर रहा है इस मामले में न्यायालय को भी संज्ञान अवश्य ही लेना चाहिए । आज सभी जानते है कि आम रेल यात्रा कितनी अधिक कठीन हो गई है उसमे स्थान पाना तो किसी चमत्कार से कम नही होता । ए सी एवं प्रथम श्रेणी की टे्रन चलाना तो बहुत ही गलत बात है ही परन्तु ट्रेन में प्रथम श्रेणी और ए सी की एक भी बोगी रखना भी पूरी तरह से अनुचित है यह पूरी तरह से बंद होना चाहिए । कैसे कब और क्यो राजधानी और दुरन्तो जैसी टे्रने रेल्वे में शामिल कर ली गई और किसी भी नेता या दल के भी द्वारा इस सरओम डकैती के प्रयास का विरोध तक नही किया गया आश्चर्यजनक और दुखद है । विकास हो और सबको आरामदायक सुख सुविधा मिले यह तो अच्छी बात है परन्तु आम और बहुसंख्यक जनता को कट में रखकर उनकी छाती पर खडे होकर तो इसकी अनुमति कदापि नही दी जा सकती । जब तक आप आम जनता की आम प्राथमिक यात्रा को कट रहित एवं सरल नही कर देते तब तक टे्रन सहित शासन के द्वारा संचालित एवं सार्वजनिक उपयोग के किसी भी मामले में आम को नजर अंदाज कर खास को महत्ता देना उस सेवा की पूरी तरह से डकैती करना ही कहा जायेगा । जब तक आम जनता के सम्पूर्ण संबधित कट हल नही हो तब तक प्रजातंत्र मे यह प्रजा के साथ यह अन्याय अपराध ही माना जाकर प्रतिबंधित रहना चाहिए। दूसरी और यह मानकर क्यो चला जा रहा है कि यात्रा का अधिकार और सुविधा की केवल शहर के लोगो को ही आवश्यकता है जबकि सत्तर प्रतिशत जनता गांवो में ही निवास करती है गांधीजी ने भी कहा है कि भारत की आत्मा गांव में बसती है फिर उनको क्यो इस कदर नजर अंदाज किया गया और लगातार किया जा रहा है । तमाम नेता ताकतवर लोग और मीडिया शहरो मे निवास करता है और वह गांव में तब ही पहुंचता है जब चुनाव होता है या कोई बडी दुर्घटना होती है तो फिर गांवो की आवाज कौन उठायेगा ? होना यह चाहिए कि गांवो की सुविधाओ मे कटौती करने के स्थान पर गांवो को अतिरिक्त रियायत और सुविधा देना चाहिए ताकि गांवो में रहने वालो को कुछ अनुकुलता प्राप्त हो और गांव से पलायन की गति कुछ कम हो । जबकि आज रियायतो के नाम पर गांवो के साथ उन्हे नजरदांज कर सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। होना यह चाहिए कि हर गांव को पैसेजर टे्रन के साथ साथ कम से कम एक एक एक्सपे्रस ट्रेन का स्टापेज अवश्य दिया जाना चाहिए । गांव के मामले में स्टापेज के साथ आय के गणित को कदापि नही जोडा जाना चाहिए। हमारा उद्देश्य गांवो को रियायत देकर गांव के साथ शहर की दूरी को कम करना होना चाहिए ।गांव समूचे देश का पालन करते है इसका उन्हे ईनाम मिलना चाहिए जबकि रेल्वे एवं शासन प्रशासन गांवो को सजा देने की नीति पर चल रहे है जो पूरी तरह से गलत है । रेल्वे को अपनी भूलसुधार के लिए कुछ आधारभूत सुझाव यहां प्रस्तुत है जिन पर अमल कर रेल्वे अपने चेहरे को प्रजातंत्र के कुछ निकट ला सकता है 1 रेल्वे से कमाई के गणित को दूर रखा जाये जनहित एवं जन सुविधा का ही प्राथमिकता के साथ ध्यान रखा जाना चाहिए 2 भारतीय रेल को केवल आम लोगो के लिए पूरी तरह से आरक्षित कर दिया जाना चाहिए 3 रेलो में केवल तीन ही विभाजन हो वह भी दूरी के हिसाब से हो एक अत्यंत छोटी यात्रा जिसमे सौ किलोमीटर तक की छोटी यात्रा करने वाले अप डाउन करने वाले स्थान उपलब्ध होने पर बैठकर या फिर खडे होकर यात्रा कर सके छोटी यात्रा के लिए कुर्सीयान अर्थात तीन सौ किलोमीटर तक की यात्रा जिसमे बैठने की व्यवस्था उपलब्ध कराई जाये तीसरी लंबी यात्रा के लिए शयनयान तीन सौ किलोमीटर से अधिक की यात्रा जिसमे यात्री को शयन करने की सुविधा उपलब्ध कराई जाए। 4 कोई भी कर्मचारी अधिकारी मुफ्तयात्रा न करे 5 सभी यात्रियो के साथ सम्मानजनक एवं समान व्यवहार किया जाए । 6 ट्रेन में उतरने और च़ने के लिए अलग अलग द्वार निर्धारित हो 7 हर बोगी में एक व्यक्ति की डयूटी हो वह ही टिकिट दे यात्रियो को स्थान बताए और उनकी मदद भी करे । आश्यकता होने पर डाक्टर पुलिस या टे्रन के चालक से सम्पर्क करे । 8 ट्रेनो में यात्रा का किराया कम से कम होना चाहिए । 9 गांव से शहर या शहर से गांव की टिकिट पर भारी रियायत दी जाना चाहिए । 10 रात दस बजे के बाद उतरने वाले यात्रियो को रेल्वे स्टेशन पर रात्री विश्राम /शयन करने की विश्रामघर में सुविधा होनी चाहिए । 11 रेल्वे स्टेशनो पर सुरक्षा शोचालय पानी पेयजल साफसफाई चाय नाश्ता भोजन चिकित्सा आदि की प्र्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए वर्तमान में रेल्वे स्टेशनो पर गुंडो का राज रहता है सुरक्षाबल उनसे दोस्ती और वसूली में विश्वास रखता है। साफ सफाई बिल्कुल नही रहती है।और खाने पीने के जो भी खाद्य एवं पेय पदार्थ वहां बेचे जाते है वे एकदम घटिया और मंहगें होते है । इस सब पर न किसी की निगाह होती है न ही नियंत्रण दिखाई देता है यह सब भी देखा जाना चाहिए और इसके लिए स्टेशन मास्टर को जिम्मेदार बनाया व ठहराया जाना चाहिए । 12 वर्तमान में हमारे ट्रेक पचास किमी प्रति घंटे के हिसाब से बने हुए है और हमारी ट्रेनो की औसत रफ्तार भी यही है हम दुनिया की नकल न भी करे तो भी यह रफ्तार सौ किमी की करने का प्रंयास होना चाहिए । 13 वर्तमान समय मे इतनी संचार क्रांति के बावजूद रेलो के आने व जाने का बिल्कुल सही समय बताने की कोई व्यवस्था नही है जबकि यह कोई बहुत कठीन नही है और इसके लिए लापरवाही ही जिम्मेदार है । इसे ठीक करना चाहिए । 14 रेल्वे में शिकायत की व्यवस्था होने के बावजूद जनता उसका कोई उपयोग नही कर पाती क्योकि शिकायत करने वाले को स्टेशन मास्टर के दफ्तर में जाना पडता है और वहां उसे शिकायत रजिस्टर देने के पहले अनैक सवालो का जवाब देना होता है और फिर शिकायत न करने के लिए समझाया या डराया जाता है कि उसे चक्कर लगाना होगे परेशान होना होगा आदि । अब इसकी जगह एक टोल फ्री नम्बर टिकिट पर अंकित होना चाहिए जिस पर चौबिस घांटे वह अपनी शिकायत दर्ज कर सके ।

अन्नाटीम को चुनाव अवश्य ही लड़ना ही चाहिए[संपादित करें]

अन्नाटीम को चुनाव अवश्य ही लड़ना ही चाहिए क्या अन्नाटीम केवल अपने इस आन्दोलन के बल पर कुछ सार्थक जुटा सकेगी इसका जवाब होगा कदापि नहीं क्योकि अन्ना टीम ने जो मार्ग चुना है उससे समूचा देश उनकी ईमानदार प्रतिबधता का कायल और समर्थक अवश्य हो गया है और प्रजातंत्र में जनशक्ति ही सर्वोच्च शक्ति भी अवश्य है परन्तु इस सर्वोच्च शक्ति की कुछ बहुत सीमित भूमिका है यह बात समझना बेहद जरूरी है यह जनशक्ति सडको पर विशाल जुलुस तो निकाल सकती है ,सडको पर नारे तो लगा सकती है परन्तु इसके अलावा सडको पर आपनी शक्ति के प्रर्दशन से व्यवस्था की यथास्थिति मे कोई आमूलचुल परिवर्तन नही कर सकती प्रजातन्त्र मे उसकी जो सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है वह सड़को पर नही बल्कि मतदान केन्द्र पर है यहाँ वह अपने वोट से आपनी पसन्द की सरकार बना सकती है और यह एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक संयोग है कि आज अन्नाटीम जनशक्ति की पहली पसंद है उसकी ईमानदारी और राष्ट्रभक्ति पर जनता को पूरा भरोसा है लेकिन खेद है कि अन्ना टीम राजनीति में नहीं है उसे राजनीति से सख्त परहेज है आज अन्ना टीम के लिए इस सर्वोच्च शक्ति की इस सबसे अधिकतम महत्वपूर्ण भूमिका का कोई भी उपयोग नहीं है जनशक्ति की पहली दो भूमिकाऐ केवल धुंध कोलाहल और झाग तो अवश्य पैदा कर सकती है परन्तु इसके बल पर कोई ठोस परिवर्तन नही कर सकती है प्रजातंत्र में ठोस परिवर्तन केवल चुनी हुई सरकार ही कर सकती है और यह एक अकाट्य सत्य है इसके अलावा बाकि सब धोखा है और इस बात को अन्नाटीम भी जितनी जल्दी समझ ले और स्वीकार कर ले तो परिवर्तन के इस अभियान को ठोस आधार मिल जायेगा और यह जनशक्ति का अभूतपूर्व समर्थन देश के सच्चे काम आ जायेगाऔर लेखे लग जायेगा अन्नाटीम को इस बात से संकोच हो सकता है कि आन्दोलन के प्रारम्भ से ही एक कुटिल रणनीति के तहत निहीत स्वार्थीतत्वो द्वारा समय समय पर यह कहा जाता रहा है कि अन्नाटीम का छुपा हुआ राजनैतिक एजेंडा है और इस बात का उच्चारण एक गंदे आरोप की तरह से किया जाता रहा है और अगर अन्नाटीम चुनाव मैदान में कूद जाती है तो उनकी बात उनके शब्दों में उनके आरोप सही साबित हो जायेगे लेकिन राजनीति मे कोई बुराई नही है बुराई है भ्रष्ट और गन्दी राजनीति मे चन्द बेईमान राजनेताओ के अलावा कोई भी अन्नाटीम के इस निर्णय को गलत नही ठहराएगा बल्कि देशभर मे इसका भरपूर स्वागत होगा और बिलकुल यह कहा जायेगा कि यह तो अति आवश्यक कदम था

अन्ना टीम चुनाव लड़कर सत्ता में आती है जो सुनिश्चित है तो पहली बार देश की सत्ता पूर्णतया ईमानदार लोगो हाथो में होगी देश के शीर्ष पर ऐसे लोग होंगे जो सच्चे मन से इस देश का चेहरा बदलना चाहते है और उन्हें देशहित के निर्णय को अमल में लाने के लिए किसी का मुँह देखने की आवश्यकता नहीं होगी बल्कि वह देशहित के तमाम निर्णय खुद अविलम्ब लागू कर सकेगी इसके लिए तमाम सुधिजनो को अन्नाटीम को सहमत करने का प्रयास करना चाहिए अगर अन्नाटीम चुनाव लड़ने के मेरे सुझाव से सहमत हो जाती है तो उसे कुछ चीजो के बारे में निर्णय कर कुछ बातो को तय और साफ करना होगा क्योकि लार्ड एक्टन के कथन में एक व्यवहारिक सच्चाई है कि सत्ता व्यक्ति को भ्रष्ट बनाती है यह एक चुम्बकीय बुराई है और सत्ता प्राप्त होते ही इस बुराई का चुम्बकीय आकर्षण अपनी और खीचने का हर सम्भव प्रयास शुरू कर देता है इसके आकर्षण से आकर्षित होने से इंकार करने वालो को यह तकलीफ भी देता है परन्तु अन्नाटीम को हर कदम पर इससे बचने ,सावधान रहने की आवश्यकता होगी इसके अलावा कोई चाहे तो भी भ्रष्टाचारमें लिप्त न हो सके ऐसी ठोस आयोजना पूर्व में ही कर उसके हर बिंदु का सम्पूर्ण पारदर्शिता के साथ अपने घोषणा पत्र में खुलासेवार जिक्र करना आवश्यक होगा इस कदम पर अति सावधानी पूर्वक कठोर अमल इसलिए भी आवश्यक है की आज हम कोर कमेटी के नैतिक चरित्र के प्रति तो आश्वस्त है परन्तु जब चुनावी राजनीति में भाग लिया जायेगा तो लाखो लोग इसमे जुड़ेगें और चुनाव जीत कर उनके हाथो में अधिकारों की शक्ति होगी वह किसी भी तरह से गलत हाथो में न पहुंचे और पहुंचती भी है तो वह चाहे तो भी कोई गलत कार्य न कर सके ऐसी ठोस आयोजना आज ही करना आवश्यक है इसलिए यह सारी सतर्कता बेहद आवश्यक है एक और सतर्कता बेहद आवश्यक है उसका जिक्र बाद मे समय आने पर करेगे