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एमाइल दुर्खीम[संपादित करें]

एमाइल दुर्खीम फ्रेंच समाजशास्त्री थे। उन्होने डब्ल्यू ई बी बी बोइस, कार्ल मार्क्स और मैक्स वेबर के साथ मिलकर औपचारिक रूप से आधुनिक सामाजिक विज्ञान का अकादमिक अनुशासन की स्थपना की थी।

उन्का जन्म १५ अप्रैल १८५८ को लोरेन में एपिनल में हुआ था। उनके माता- पिता मेलेनी (इस्दोर) और मोइस दुर्खीम। उनके पूर्वजों फ्रेंच यहूदी थे। उन्के पिता, दादा और परदादा रब्बी थे। उनका अधिकांश काम यह दिखाने के लिए समर्पित था कि धार्मिक घटनाएं दैवीय कारणों के बजाय सामाजिक कारणों से बनी हैं। इस के वजह से उनका संबंध परिवार के साथ बुरा था।

पहला विश्व युद्ध उनके जीवन काल में हुआ था। इस का उन्के जीवन में बहुत बडा असर पडा।

इकोले में अपने विश्वविद्यालय के अध्ययन के दौरान, दुर्खीम दो नव-कैंटियन विद्वानों, चार्ल्स बर्नार्ड रेनौवियर और एमिले बोउटौक्स से प्रभावित हुए थे। उन्होने इन से तर्कवाद, नैतिकता का वैज्ञानिक अध्ययन, विरोधी उपयोगितावाद और धर्मनिरपेक्ष शिक्षा के सिद्धांतों को अपनाय। उनकी कार्यप्रणाली वैज्ञानिक विधि के समर्थक नुमा डेनिस फस्टेल डी कोलांग्स से प्रभावित थी।

समाज के रूप में, दुर्खीम ने नोट किया कि कई संभावित मार्ग हैं जो सामाजिक एकीकरण और समाज के विघटन के टूटने का कारण बन सकते हैं। दो सबसे महत्वपूर्ण कारण एनोमी और श्रम के मजबूर विभाजन हैं, लोगों में समन्वय की कमी और आत्महत्या है। एनोमी के मतलब के बारेमे दुर्खीम ने विवरण दिया है। उनके हिसाब से एनोमी एक एसी स्थिति है जब बहुत तेज़ी से जनसंख्या बडती है और समूहों के बीच पारस्परिक विचार-विमर्श कम हो जाता है। इस स्थिति में समझ (आदर्श, मूलियों, आदि) टूटती है। श्रम के मजबूर विभाजन से उन का यह अर्थ है कि, मालिक जिस के पास सत्ता है, वोह मजदूर से सिर्फ़ इस लिये काम करात है कि वह पैसे कमा सके। मजदूर दिया हुअ काम कर सकता है या नही इस के बारे में नहीं सोचता। जो लोग इस स्थिति में है वह नाकुश होतें है और समाज को बदल ने की कोशिश करते हैं। इससे अराजकता फैलता है।

उनके अनुसार जुर्म अनिवार्य हैं। वह कहते हैं कि जुर्म से बदलाव के लिए रास्ता बनता है। सोक्रेटस ने भी जुर्म किया था। उनका अपराद यानी, उनके विचारों की आज़ादी। उनके इस अपराद ने मानवता को सोचने का एक नया और अनोका तरीका दिया। इसीलिए जुर्म सामाजिक जीवन का मौलिक स्थिति है। उनका यह सोच क्रांतिकारी विचार था।

आत्महत्या के बारे में भी उनका सोच अनोका है। उनके समय में प्रोटेस्टेंट्स और कैथोलिकों की संख्या अधिक थी। उनहोने इन दो समूहों का उदाहरण लेते हुए कहतें है कि, कैथोलिकों में नियंत्रण अधिक होता है। इसी लिए उन में आत्महत्या की संख्या कम होता है। दुर्खीम के अनुसार, कैथोलिक समाज में एकीकरण के सामान्य स्तर हैं जबकि प्रोटेस्टेंट समाज के निम्न स्तर हैं। वह आत्महत्या को समाज के साथ संबंध और व्यवहार के नज़रिये से देखतें है न की इनसान की व्यक्तिगत भावनाओं और उमंगे के नज़रिये से। वह मानाते थे कि आत्महत्या सामाजिक विचलन का एक उदाहरण है। सामाजिक विचलन सामाजिक रूप से स्थापित मानदंडों का कोई उल्लंघन है। उन्हो ने आत्महत्या का चार अलग श्रेणियां बनायी है: अहंकारी, परोपकारी, अनौपचारिक और घातक।

उन्होंने लगता था कि धर्म सहकर्मी और एकजुटता का स्रोत था। इसी लिए वह धर्म का मूल पता लगाना चाहते थे। इस के अलाव वोह धर्मों के बीच आम विभाजक ढूंढना चाहते थे। वह अलौकिक और भगवान के बारे में बात नहीं करतें है। उन्के हिसाब से एक धर्म पवित्र चीजों के सापेक्ष मान्यताओं और प्रथाओं की एक एकीकृत प्रणाली है, यानी, चीजें अलग-अलग और वर्जित-विश्वास और प्रथाओं को सेट करती हैं जो चर्च नामक एक अकेले नैतिक समुदाय में एकजुट होती हैं, और जो लोग पालन करते हैं।