सदस्य:Vishalbhadri1738/WEP 2018-19
मधुमिता बिष्ट[संपादित करें]
परिचय[संपादित करें]
मधुमिता बिष्ट का जनम अक्टूबर ५, १९६४ को हुआ था। वह एक भूतपूर्व बैडमिंटन खिलाड़ी थी और वह उत्तराखंड राज्य में पैदा हुई जो असली में जलपाईगुड़ी नामक गांव से हैं जो पश्चिम बंगाल में है। उन्होंने बैडमिंटन में राष्ट्रीय सिंगल पूरे नौ बार जीता है और बैडमिंटन डबल्स उन्होंने आठ बार जीता है और मिक्स्ड डबल्स उन्होंने पुरे बारा बार जीता है. १९८२ में उन्हें भारत सर्कार से अर्जुन पुरस्कार मिला थाऔर २००६ में उन्हें पद्मश्री का पुरस्कार भी मिला था सर्कार के तरफ से। मधुमिता बिष्ट जब ६ साल की थी, वह तब बैडमिंटन खेल में जूनियर चैंपियनशिप में हिस्सा लेकर उसमे लगातार आठ बार जीती हैं। इसके आलावा, उन्होंने १९७७ से ९ बार डबल्स का शिखर जीता है और १२ बार मिक्स्ड डबल्स का शिखर जीता है और इसके बाद उनका व्यवसाय तीन साल तक आगे बड़ा। १९८२ में मधुमिता ने एशियाई गेम्स में बैडमिंटन में पीतल का पदक जीता था और वह भारत के पीतल जीतने वाली टीम की भाग भी थी । इसके अलावा मधुमिता ने भारत को बार्सिलोना ओलंपिक्स १९९२ में प्रतिनिधित्व किया।
योगदान[संपादित करें]
उन्होंने भारत को वर्ल्ड कप और उबेर कप गेम्स में भी कई बार प्रतिनिधित्व किया है बैडमिंटन में। मधुमिता ने तौलौसे ओपन में ट्रिपल क्राउन का शीर्षक भी जीता है और उन्हें ुस्सर के ओपन आर्गनाइज्ड गेम्स में दूसरे संख्या पर डाला था क्यूंकि उनका खेल बहुत अच्छा था। १९९२ में मधुमिता बिष्ट को दुनिया के बैडमिंटन खिलाडियों में से २९थ बेस्ट प्लैयेर ऑफ़ द वर्ल्ड का शीर्षक दिया गया था और उस साल का सबसे बड़ा खेल का खबर यह था की वल्र्ड नंबर २९ मधुमिता बिष्ट ने वर्ल्ड नंबर २ कुसुमा सरवंता को इन्डोनेशियाई ओपन के दुसरे राउंड के खेल में हरा दिया। आगे जाते जाते उन्होंने कई डबल्स के शीर्षक जीता जिसमे से उनके साथी बदलते रहे उनके पुरे खेल के जीवन के समय पर लेकिन ये उन्हें जीतने से रोक नहीं पाया क्यूंकि उनके जीवन में मधुमिता ने १२ डबल्स टाइटल्स जीते हैं। उन्होंने ये शीर्षक अपने कई साथियों के सात जीता है, जिनमें से उन्होंने अमित घीया, विनोद कुमार, मल्लिका बरुआ, सनत मिश्रा, सुधा पद्मनाभन, सिंधु, विन्सेंट लोबो, प.वि.वि लक्ष्मी के साथ जीता है और एक बार उन्होंने अपने पति के साथ भी जीता है जिनका नाम विक्रम सिंह बिष्ट है। २००२ में उन्होंने खेलना बंद कद दिया और बैडमिंटन से निवृत्ति ले ली। मधुमिता बिष्ट को बैडमिंटन के खेल के लिए पद्मश्र्री पुरस्कार २००६ में मिला था और उसके पहले उन्हें अर्जुन पुरस्कार भी मिला था अपने योगदान के लिए। अगर अभी भी कोई उनसे इसके बारे में पूछता है तोह वह ये कहती हैं की जब वह १० साल की थीं, उन्होंने तब ही से बैडमिंटन का रैकेट हाथ में पकड़ना शुरू किया था और तब से ही खेलने का उन्हें बहुत शौक था। उनके पिता जी भी उन्हें बहुत प्रोत्साहित करते थे ताकि वे जल्दी सीख सके और जल्दी इस खेल में ऊपर पहुँच सके। उनके पिता जी उनके जूतों के फीते तक बांधते थे और हर खेल के पहले मधुमिता के पिता जी उन्हें एक तेल का मालिश देते थे ताकि उनका खेल बेहतर हो जाए और ताकि वह कभी हार ना माने। मधुमिता को हमेशा यह सोच में आता है की इस दुनिया में ऐसे बहुत सारे बच्चे हैं जिनके सपने कभी पूरे नहीं हो सके क्यूंकि उनके माता-पिता को उनका सपना अच्छा नहीं लगता था और ये सोचकर उन्हें ख़ुशी होती थी क्यूंकि उनके पिताजी ने उन्हें खेलने ही नहीं दिया, बल्कि उनके इस सपने का एक सहारा बनकर उनकी बहुत मदद भी की ताकि वह इसमें सफल हो सके। इसके बाद उनकी शादी विक्रम सिंह बिष्ट के साथ हुई थी जो एक बैडमिंटन प्लेयर थे। शादी के बाद उन्होंने मधुमिता को खेलने से कभी नहीं रोका क्यूंकि वह भी बैडमिंटन ही खेलते थे और उन्होंने एक साथ डबल्स के खेल में मैडल जीता है। १९९३ में उन्हें एक बच्चा हुआ और उसका नाम था हर्षवर्धन। प्रकाश पादुकोणे मधुमिता को खत लिखते थे यह बताते हुए की वह उनकी बहुत इज़्ज़त करते है क्यूंकि वह घर पे भी इतना काम करती थी और फिर खेल में भी इतना काम करती थी और इतना अच्छा खेलती थी की भारत को प्रतिनिधित्व करती थी पूरे विस्वा में। इस काम की वजह से उन्हें उतना नुक्सान नहीं हुआ क्यूंकि उनके पति बहुत सहायक थे। मधुमिता सिंह बिष्ट भारतीय बैडमिंटन टीम की हेड कोच हैं। सारे खिलाडियों के अपने कोच हैं पर वे सब मधुमिता के पास ही आते हैं जब उनको कुछ तकलीफ होती है या उन्हें कुछ बोलना होता है, इसी लिए सभी को मधुमिता से बहुत प्यार है। उम्र उनकी ५० के ऊपर है फिर भी वह बहुत उत्साही हैं और अब भी बहुत खेल कूद करती हैं और अभी भी उनमें बहुत जान बची है की वह भाग दौड़ कर सके और अभी भी बैडमिंटन खेल सके। उन्होंने बहुत सारे त्याग किये हैं अपने खेल के जीवन के लिए जैसे उन्होंने १० साल के लिए बच्चे नहीं पैदा किये ताकि वह खेल सके और भारत को ऊँचे जगहों को ले जा सके और अपने आप को भी ऊपर ले जा सके।
व्यक्तिगत जीवन[संपादित करें]
उन्होंने दोस्तों के साथ और परिवार के साथ बहार जाना और घूमना सब बंद कर दिया ताकि वह अपने खेल पे ध्यान दे सकें और इसकी वजह से वह बहार जाना ही भूल गईं पर इससे उन्हें कोई ऐतराज़ नहीं है क्यूंकि वह केहि है की इससे उनका जीवन अच्छा गया है और उन्हें किसी बात की दुःख नहीं है बल्कि बहुत ख़ुशी है की उन्होंने ऐसा जीवन जिया है। वह यह कहती है की उन्होंने इस बात की बहुत ख़ुशी है की उनके सारे शीर्षक और उनके सारे मैडल उन्होंने उनके खुद के हाटों से लिया है और उनके खुद के बल पर पाया है नाकि किसी और के और इस चीज़ की वजह से उन्हें इस ज़िन्दगी को जीकर कोई ऐतराज़ नहीं है। जब उन्होंने ने रिटायर करने का फेसला किया था, भारत सर्कार ने उन्हें इंडियन रेलवेज का हेड कोच बना दिया था ताकि वो वहां सीखा सके और इसके बाद मधुमिता ने अपने पति विक्रम सिंह बिष्ट के साथ एक कोचिंग सेंटर खोल दिया जिसका नाम है एम् वि बिष्ट अकादमी। मधुमिता यह कहती हैं की जिस तरह का अंतर्राष्ट्रीय अनावरण अभी है, उनके ज़माने में ऐसा नहीं था और उन्हें बहुत मुश्किल से गुज़ारना पड़ा था ताकि वह अपने देश के लिए अंतर्राष्ट्रीय मैदान और मंच पे खेल सके। उन्होंने ३ महीने तक एक प्रायोजक ढूंढ़ने की बहुत कोशिश की लेकिन कोई नहीं मिला और बिना प्रायोजक के अंतर्राष्ट्रीय मंच पे खेलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था उस ज़माने में क्यूंकि पैसे बहुत देने थे और उनके पास उतना नहीं था तोह उन्हें एक प्रायोजक की बहुत ज़रूरत थी। २७ साल खेलने के बाद मधुमिता बिष्ट ने यह फैसला लिया था की उन्हें रिटायर करना चाहिए और उसका समय आ गया है। एम् वि बिष्ट अकादमी में वह सब है जिसकी ज़रूरत है एक बैडमिंटन प्लेयर को ताकि वह एक बहुत अच्छा खिलाडी बन सके और यहाँ दाखिला होने से ज़िन्दगी में बहुत कुछ सीखने को मिलता है और सबसे ज़रूरी बात यह सीखने को मिलती है की अपने सेहत का ख्याल रखना बहुत ज़रूरी है नहीं तोह जीवन में कुछ नहीं किया जा सकता है। मधुमिता बिष्ट का यह कहना है की "अगर आप को यह लगता है की आप कुछ कर सकते हैं, तोह आप वह ज़रूर करेंगे क्यूंकि हमको यह उपहार दिया गया है ताकि हम अपने जीवन में वो कर सकें जो हमें करना है।" मधुमिता का यह मानना है की हर आदमी और औरत इस उपहार का उपयोग करना सीखेंगे और कुछ कर दिखाएंगे।