सदस्य:Sunil dhakad

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८४ वैष्णव की वार्ता ३७

   उत्तमश्लोकदास सांचोरा 
   उत्तमश्लोकदास अपनी गाँठि ते घृत मंगाई सेवकनको परोसते तब श्रीगुंसाईजीने यह बात जानी तो श्रीगुंसाईजी उत्तमश्लोकदास पर बहुत प्रसन्न भये ओर जो इनको सेवकन में ऐसी वात्सल्यता है ओर कही उत्तमश्लोकदास! मेरे पास कछू मांगो 

तब कही महाराज! "मैं तुम्हारे पर कबहूं अप्रसन्न न होउँ. जो श्रीगुंसाईजीने कही ऐसो ही होयगो. ओर सभी को ऐसो लग्यो ये क्या मांगियो?? तब खुलासा कियो कभी सेवामें अपराध होय श्रीगुंसाईजी अप्रसन्न होय ओर अपनो मन बिगरे तो ठिकानो न रहे . यह वैष्णव सूनी प्रसन्न हुए कही बहुत पहोंचको मांग्यो

८४ वैष्णव वार्ता हरिवंश पाठक : प्रसंग १:

  एक बेर पटना कछु ब्योहार कों गये

पटना को हाकिम सों बहुत मिलाप -संबंध हतो हाकिम ने विचार कियो ये कछू मांगे तो मैं इनको देंउं. एक दिन कही मै बहुत प्रसन्न हूं, मांगे सो देहुं. तब हरिवंश जी ने कही कोई दिन कछू काम परैगो तो कहूंगो.

    ऐसे "डोल उत्सव " के दिन निकट आये तब श्रीठाकुरजीने हरिवंश पाठक को जताई : " तू डोल मोंकों न 

झुलावेगो? तब हरिवंश विचारे, दिन थोरे कासी कैसे पहोंचेगे. तब हाकिम पास जाय कह्यो आपने मांगनो कह्यो हतो तो अब मोको तीन दिनों में कासी पहोंचाय दो. तब हाकिमने घोड़े ओर मनुष्य दिये, मजलि मजलि घोडा पलटवार कराय दूसरे दिन पहोंचे. रात्रि को डोल की तैयारी करी श्रीठाकुरजीकेा झुलाय बहुत सुख भयो.

  पंद्रह दिन कासी रहके पटना हरिवंश जी आये तो हाकिमने पूछी घरमें कहा जरूरी हतो के ऐसो मांग्यो 

कछू द्रव्यादिक मांगत तो लाख रुपये रीझि के देतो पर हरिवंश जी ने घर के काम की बात कही पर अपनो धर्म गोप्य राख्यो ओर अपने छोटे बड़े उत्सव अपने घर आई करते.

८४ वैष्णव वार्ता २०

प्रभुदास जलोटा : बरस १३ के भये, ब्याह भयो

सो अर्धांगिनी महाकुपात्र आई. सो सबनसो गारी देई, वस्तु चुराई मा बाप को देई, पाछे प्रभुदास जलोटा से द्रव्य मांग्यो, न लाई सकुं तो वाको मार्यो. तो प्रभुदासने वाको मारी , तो वाने प्रभुदास से संबंध तोड्यो, चूरी फोरी, मुंडन कराय नीकसी गई.

   पाछे मर्यादामार्गीय रामदासको संग

भयो तो वह आवाहन विसर्जन करे तो याको संग छोड़ी प्रभुदास अर्धरात भाजि श्रीगोकुल जाय श्रीआचार्यजी को दंडवत् प्रणाम कियो और विनती करी महाराज! नीठ नीठ दु:संगसु छूट्यो. ता दिनते श्रीमहाप्रभुजीके संग रहे.ll