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सोहराय पर्व[संपादित करें]

सोहराय पर्व भारत के कुछ राज्यों में जैसे की झारखण्ड,पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में मनाया जाता है। झारखण्ड की कुछ जनजातियाँ जैसे सांथाल, मुंडा और कुछ खास झारखण्ड वासी सदन इस पर्व को बड़ी धूम धाम से मानाते है। आदिवासियों के लिए ये एक बहुत बड़ा महापर्व है। दिवाली की जग मग के बाद घर की औरतें दीवारों को मिट्टी से लिपति है यानि की चुना करती हैं। सर्दियों की फसल के समय लोग पशु की पूजा करते हैं और उसे धन के देवी के रूप में पूजते हुए और धन्यवाद करते हुए खुशियाँ मानाते हैं। ये पर्व अक्टूबर और नवंबर के महीने में मनाया जाता हैं [1][2]

कला

औरतें दीवारों पर चित्र कला करती हैं , साफ़ सफाई के बाद उसपर फूल, फल, मोर, चिड़िया आदि इन सब की डिज़ाइन बनाती हैं। इस कला को सोहराय पर्व के नाम पर ही परंपरागत रूप से सोहराय कला भी कहा जाता है. सांथाल जाती के लोगो के लिए पौराणिक कथा के अनुसार माना जाता है कि इस दिन मारंग बुरु (पहाड़ो के देवता), जहर आयो (जंगल के देवता ) और सांथाल के सबसे पूर्वज धरती पर आते है अपने भाइयों से मिलने. दीवारों पर बनाये गए चित्र सौभाग्य का संकेत देते है। एकरंगा और रंग बिरंगे चित्रों से दीवारे चमकती है. माना जाता है कि ये एक मातृसत्तात्मक परंपरा है और बेटियाँ अपनी माँ से ये ज़रूर सिकती हैं। प्राकृतिक रंगो को काली माटी, चरक माटी, दूधी माटी, लाल माटी, पीला माटी से मिलाकर कला के लिए इस्तेमाल किया जाता है। कलाकार दातुन या कपड़ो से फाहे बनाकर दीवारों को रंगते हैं. ये चित्र कला इसको गुफा में बनायीं गयी पैटर्न और शैलियों कि तरह लगती हैं जो हजारीबाग जिले के सतपहर में पायी जाती है।अब गुफा से हैट कर ये घरो में भी पायी जाती है [3][4]

त्योहार

गौ पूजा

मंझी मुखिया एक दिन तय करता है। सोहराय पर्व का पहले से कोई निर्धारित समय नहीं होता। यह गाँव वालो की खुशियों के लिए मनाया जाता है। भाता कृषि प्रधान देश है और ये किसानों के लिए बहुत ज़रूरी है। बहने और बहु के लिए बहुत ख़ुशी का पल होता है नयी-नयी शादी के बाद। पांच दिन तक चलने वाले इस पर्व में बहुत सारे रसम और रिवाज़ होते है। हर दिन अलग अलग गीत गाये जाते है। पहले दिन पंडित के द्वारा मुर्गे की बलि के बाद सिर्फ घर के पुरुष जाकर मुर्गी खा कर उत्सव करते है और मुखिया के द्वारा पर्व के सुरवात की घोषणा की जाती है। दूसरे दिन भगवान का आशीर्वाद लेकर पुरुष गायों को चराने ले जाते है और औरतें घर में सफाई करके चित्र कला करती है। प्रसाद बनाया जाता है। रात को पशु-शेड में दिया जलाकर पूजा करके बलि चढ़ती है। पशु या गाय के रात को वापिस आने पर उसके सिंह पर तेल लगाया जाता है और धान की माला बनाकर माथे पर पहनाई जाती है। पूजा करके लोग प्रसाद खाते है और गाय उस दिन आराम करती है। तीसरे दिन खेत से धान लेकर गाय के सिंह में बाँधा जाता है, फिर लोग उसे पूजा के बाद ढोल के साथ बहार ले जाते है। वह पशु (गाय) को खेलने और मनोरंजन के लिए ले जाते हैं। चौथे दिन महिलायें भी पुरुषों के साथ मिलकर मनोरंजन का हिस्सा बनती हैं और ये पर्व का आखरी दिन होता है [5][6]

लोक नृत्य

वर्तमान योजना

झारखण्ड सरकार ने सोहराय संस्कृति को कला को समर्थन देने के लिए रांची (झारखण्ड कि राजधानी ) और जमशेदपूर जैसे शहरों में दीवारों (सरकारी सिमा ) पर इस कला का प्रदर्शन करके आदिवासियों का प्रोत्साहन बढ़ाया है। इस कला को खत्म होने से रोकने का इससे अच्छा तरीका नहीं हो सकता [7]

  1. vishesh, aalekh. "विशेष लेख : सोहराय पर्व सभ्यता और संस्कृति का है प्रतीक". प्रभात खबर. प्रभात खबर. अभिगमन तिथि २८।०८।२०१९. |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  2. Indrajit, Roy Choudhury. "Sohrai". Indrosphere. अभिगमन तिथि २९।०८।२०१९. पाठ " Festival & Art " की उपेक्षा की गयी (मदद); |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  3. "sari santhal". अभिगमन तिथि २९।०८।२०१९. |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  4. Indrajit, Roy Choudhury. "Sohrai". Indrosphere. अभिगमन तिथि २८।०८।२०१९. पाठ " Festival & Art " की उपेक्षा की गयी (मदद); |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  5. Neha, Vashistha. "SOHRAI: THE TRADITIONAL HARVEST ART OF JHARKHAND". SHURUA(R)T. अभिगमन तिथि २९।०८।२०१९. |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  6. Indrajit, Roy Choudhury. "Sohrai". Indrosphere. अभिगमन तिथि २८।०८।२०१९. पाठ " Festival & Art " की उपेक्षा की गयी (मदद); |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  7. Indrajit, Roy Choudhury. "Sohrai". Indrosphere. अभिगमन तिथि २८।०८।२०१९. पाठ " Festival & Art " की उपेक्षा की गयी (मदद); |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)