सदस्य:Ramrajya abhiyan

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                                             रामराज्य अभियान 


रामराज्य अभियान यहाँ में देश की विभिन्न समस्याओ को उठाता रहूंगा । उनके संभव कारणो को तलाशकर उनके हल सुझाने का प्रयास करूंगा ।हम सभी इस सत्य से भली भांति परिचित है कि देश राष्टीयभावना का अभाव हो गया है और चुनौतिया परतंत्रता से अधिक कठिन और हजारो गुना जटिल हो गई है और कोई राष्टीयता की भावना से ओतप्रोत राष्टीय छवि वाला नायक हमारे बीच नही है जो इससे हमे निकलने में मदद करे । जाहिर है हमें ही हमारी समस्याओ का हल खोजना होगा । इसके लिए राष्टीय चरित्र के निर्माण की आवश्यकता होगी । अपने इस अभियान के माध्यम से अभी तो अत्यंत विषम परिस्थिति में इसी प्रयास की कड़ी में यह यात्रा प्रारम्भ कर रहा हूँ । इस अभियान में सभी का खुले दिल से सहयोग प्राप्त होगा। यही आशा और विश्वास है। इस अभियान को नाम दिया है राम राज्य अभियान यहाँ राम से अभिप्राय धर्म से नही हमारी समृद्ध सांस्कृतिेक विरासत से है जिसमें समानता,भाईचारा,उद्दात प्रेम ,न्याय और सभी जीवो को अभय प्राप्त हो । . आपका ही गिरीश नागड़ा

आत्महत्याओ के लिए मजबूर लोग ,दोषी कौन ? -1

जिन नीतियो का अनुसरण करते हुए आज तक राष्ट््र को चलाया गया है वे न केवल गलत है बल्कि देश को अधोगामी गति में ले जाने वाली है और अभी तक वे वही कार्य कर रही है । इसमे नेताओ ,उद्योगपतियो , अधिकारियो ,के हित का एजेन्डा कार्य कर रहा है । आज सरकारी कार्य का अर्थ हो गया है जनता को परेशान करना है । प्रजातंत्र में प्रजा को तंत्र से यही तोहफा प्राप्त हुआ है । साठेतर प्राप्ति के रूप में गरीब अति गरीब हुआ है मध्यम वर्ग भी अपनी रक्षा नही कर पाया है । दूसरी और अमीर और खूब अमीर हुए है । और इनकी संख्या में भी भारी वृद्धि हुई है । देश के करोड़पति,अरबपति हो गये और जो अरबपति थे वे खरबपति हो गये है । और जो खरबपति थे वे नीलपति हो गये ।असमानता की खाई का इतना विषाक्त विस्तार हो गया है कि एक और अपने प्रियजन को करोडो के तोहफे जन्मदिन में उपहार स्वरूप दिये जाते है दूसरी और आम जनता को दो जून का भोजन जुटाना भी कठीन ,कई बार असंभव ही हो जाता है । यह कितनी पीड़ादायक बात है कि लोग परिस्थिती से घबराकर ,टूटकर परिवार सहित आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो रहे है और कर भी रहे है ।आये दिन इस तरह की खबरे देखने सुनने पॄने को मिल रही है । कहीं किसान आत्महत्या कर रहे है कही छोट़े व्यापारी ,या आमजन आत्महत्या कर रहे है । लगातार यह सिलसिला चलने के बावजूद सरकार को इसकी लेशमात्र भी चिंता नही है ,और वह चिंता करे भी क्यो उसी की नीतियो पर चलकर तो यह नौबत आई है । नेताओ के लिए लोकतंत्र का अर्थ है लोक को लूट लूटकर खाने की आजादी । आज से नही ,नेहरूजी के समय से आजतक चाहे किसी का भी राज रहा हो अन्धेर नगरी चौपट राजा का ही भाव स्वभाव बना रहा है ।इससे कुछ लोगो का भला अवश्य हुआ है परन्तु देश का बुरा ही बुरा हुआ है । बहुत बुरा हुआ है । सबसे बुरा तो यह हुआ है कि वर्तमान पी़ी में राष्टीय््र चरित्र का भाव ही खो गया है । लोग अब सोचने लगे है कि राष्ट के लिए किसी भी तरह की चिन्ता करने का यह कार्य अवतार या महापुरूषो का है और वे ही कभी अवतरण लेकर के करगें । बात चाहे शिक्षा , स्वास्थ्य की हो या फिर मंहगाई की हो अर्थात मुद्दा चाहे जो हो सभी बातो ओर मुद्दो को इस कदर जटिल और उलझन भरा बनाया जाता रहा है कि आम जन समझ ही नही पाता कहाँ कौन ,कब ,उसे कैसे छल रहा है,कैसे उसका शोषण कर रहा है ,और इस तरह से छले जाते हुए जब कोई यह पाता है कि वह अचानक रास्ते पर आ गया है और आगे के सारे रास्ते उसके मुंहपर बंद है तब वह घबराकर आत्महत्या जैसे हाहाकारी कदम उठाने के लिए विवश होता है । पुराने समय में एक रास्ता ओर हुआ करता था हथियार लेकर चम्बल में कूद जाने का । शोषित व्यक्ति हथियार उठाकर चंबल में कूद जाता था परन्तु आज तो सारे देश को ही हमारे नेताओ ने चंबल बना दिया है ।और यहाँ के घने बीहड़ और उसमें छुपे सारे सफेदपोश ड़ाकूओ को देखकर शोषित व्यक्ति की अंतिम आशाये भी अपना दम तोड़ देती है ।यहाँ उदाहरण स्वरूप एक समाचार प्रस्तुत कर रहा हॅूं इसे पॄै और विचार करे कि इस लोकतंत्र में लोक की क्या नियति निर्धारित कर दी गई है ?


इंदौर। श्री ओम सांईनाथ कार एंड रेंट लिमिटेड के रीजनल मैनेजर अतुल पिता बाबूलाल जोशी (45) निवासी शालीमार टाउनशिप ने कंपनी के ऑफिस एमजी रोड स्थित स्टर्लिग टॉवर की तीसरी मंजिल पर आत्महत्या कर ली। वे कंपनी में हुई गड़बडियों और इन्वेस्टर्स के करोड़ों रूपए वापस नहीं होने से तनाव में थे। मृत्युपूर्व आईजी व एसपी को लिखे पत्र में मौत का कारण बताते हुए परिवार को प्रताडित नहीं करने की बात कही है। सुबह 10 बजे कंपनी के मार्केटिंग मैनेजर उपेंद्र शाह ऑफिस पहुंचे तो जोशी को फंदे से लटका पाया। पास ही कीटनाशक व जहरीली गोलियों सहित खून भी फैला था। जांच में पता चला कि पहले गोलियां खाई व कीटनाशक पीने बाद हाथ की नसें काटी और फिर फांसी लगाई। सुबह आठ बजे देखा था परिवारिक सूत्रों के मुताबिक सुबह छह बजे वे वकील से मिलने का कहकर निकले थे। अपार्टमेंट के लोगों के मुताबिक ऑफिस 10 बजे बाद खुलता है, लेकिन सोमवार को जोशी सुबह आठ बजे अपार्टमेंट में देखे गए। जोशी ने अपने चेंबर में पत्र लिखा और दूसरे केबिन में आत्महत्या कर ली। देने वाले थे इनवेस्टर्स को चेक पुलिस जब पंचनामा बना रही थी, तभी इनवेस्टर्स का आना शुरू हो गया। इनवेस्टर्स जितेंद्र विज, मनोज खंडेलवाल व अन्य ने बताया कि लंबे समय से कंपनी में उनके रूपए अटके थे। पिछले हफ्ते ही जोशी ने कहा था कि सोमवार को हर हाल में उनके चेक मिलेंगे। संभवत: कंपनी से रूपयों का इंतजाम नहीं हुआ, इसलिए उन्होंने मौत को गले लगाया। कंपनी का काम और घोटाला मामले में कंपनी के अधिकारी मीडिया से बात करने से बचते रहे। इनवेस्टर्स ने बताया कि डेढ़ साल पहले कंपनी ने यहां अपना ऑफिस खोला था। श्री ओम सांईनाथ कार एंड रेंट लि. में रीजनल कंपनी के दिल्ली, पुणे, जयपुर, नागपुर सहित पूरे भारत में ऑफिस और बड़ा नेटवर्क है। कंपनी ने गोल्ड, सिल्वर, प्लेटीनम कार्ड की अलग-अलग स्कीम रखी थी। इसमें सवा लाख से तीन लाख रूपए तक का इनवेस्टमेंट था और 800 से ज्यादा इनवेस्टर्स के करोड़ों रूपए फंसे थे। इसके बदले हर माह छह से 18 हजार रू. तक का मुनाफा इनवेस्टर्स को मिलता था, लेकिन कई महीनों से देना बंद कर दिया। इसके चलते वे लंबे समय से चक्कर काट रहे थे। पॉलिसी और इनवेस्टर्स में फजीहत नजदीकी लोगों के मुताबिक कंपनी की स्कीमों में अच्छा प्रतिसाद होने से कंपनी ने उन्हें टारगेट भी दिया था। इसके चलते उन्होंने रिश्तेदारों को इनवेस्टर्स के रूप में जोड़ा था, लेकिन बाद में कंपनी की पॉलिसी बदल गई। कंपनी ने चेक के बदले ईसीएस से रूपया देने की बात कही, लेकिन नहीं दिए। 3 महीने से कंपनी के कर्मचारियों को वेतन भी नहीं मिला था। कंपनी के अंधेरे में रखने व रूपए डूबते देख उन्होंने यह कदम उठाया। प्लीज! ....रिफंड मनी पत्र में आईजी व एसपी को लिखा है कि मैं अब ज्यादा दबाव और तनाव बर्दाश्त नहीं कर सकता। कंपनी के डायरेक्टरों को बंद कर इनवेस्टर्स को उनका रूपया लौटाया जाए। मेरे परिवार व कंपनी के स्टाफ को प्रताडित न किया जाए। दिल्ली पुलिस की कार्रवाई बताया जाता है मुंबई के मुकेश उर्फ रूपेश वर्मा, उनके भाई अमित व अन्य एमडी व डायेरक्टर्स हैं। पिछले महीने कंपनी की बिगड़ती स्थिति पर दिल्ली में उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। एक इनवेस्टर्स की एफआईआर पर दिल्ली पुलिस ने वर्मा को गिरफ्तार किया था और पूछताछ के लिए यहां भी आई थी। इधर, घटना के बाद कंपनी के कर्ता-धर्ता के मोबाइल बंद थे। सीएसपी रायसिंह नरवरिया के मुताबिक दिल्ली पुलिस द्वारा पूर्व में जांच की बात सामने आई है। अंतिम संस्कार आज जोशी के माता-पिता हार्ट पेशेंट हैं। उन्हें दोपहर में सूचना दी गई। भाई प्रमोद मुंबई में व बहन बेंगलूरू में है। अंतिम संस्कार मंगलवार को किया जाएगा। आत्महत्याओ के लिए मजबूर लोग ,दोषी कौन ? *3 आज संसद और विधानसभाओ को तो इस तरह के प्रश्नो पर विचार करने का समय नही है उन्हे तो अपने वेतनभत्ते बवाने में कमाई के रास्ते निकालने ,और चिल्ला चिल्ला कर एक दूसरे को गरियाने जैसे महत्वपूर्ण कार्य है ,उन्हे कहाँ ऐसे फालतू के कामो के लिए समय और चिंता है । हमारे नेता चाहे संसद में इस पर विचार न करे परन्तु यह प्रश्न इतना महत्वपूर्णर और संवेदनशील है कि हमें हर गली ,हर चौराहे हर मंच पर इस पर चर्चा करना होगी ,और ऐसे हर प्रश्न की चर्चा करना होगी जिसका संबंध हमारें राष्ट से है हमारे अपने अस्तीत्व से है । यहां ऐसे ही प्रश्नो पर चर्चा ,विचार करने का हम प्रयास करेगें । क्योकि हमें खुद उन नीतियो को ,उन ताकतो को ,उन मुद्दो को पहचानना होगा जिनके चलते यह अंधी और विषाक्त हत्यारी खाई का निर्माण हमारे बीच हुआ है ।


                                                                             गिरीशनागड़ा
          एम एफ हुसैन ने कला के नाम पर हिन्दू देवी देवताओं के नग्न चित्र बनाकर जो घृणित

अनुचित ,निर्विवादित रूप से निंदनीय कार्य किया था उसका भारत में जो सहज स्वाभाविक विरोध हुआ और नागरिको ने जो आ्रक्रोश व्यक्त किया था उसे दक्षिणपंथी संगठनो का प्रलाप कह कर दबा दिया गया था। भारत के तमाम कलाकारो ,बुद्धिजीवियो और समूचे मीडिया ने बिना लोगो की आस्था की परवाह किये हुसैन का खूबखुलकर लगातार,बार बार पक्ष लिया और आज तक ले रहा है।शासन ने भी उनकी सुरक्षा का आवश्यकता से भी अधिक ध्यान रखा । पुलिस और प्रशासन ने अंिहंसक विरोध ,प्रदशर्न कर रहे लोगो पर निर्ममतापूर्वक लाठियां बरसाई । किसी ने भी विरोध ,प्रदशर्न कर रहे लोगो का पक्ष नही लिया ,न उनको कोई व्यापक समर्थन ही मिला। देश के तमाम मुस्लिम कलाकार,नेता,अभिनेता भी स्वाभाविक रूप से उनके समर्थन में खड़े थे । परन्तु उनमे से किसी एक ने भी हिन्दू देवी देवताओं के नग्न चित्र बनाने के लिए जबानी आलोचना तक नही की। इमाम का फतवा तो दूर की बात है । फिर भी किसी ने भी इस बात को कोई महत्व नही दिया । और हुसैन का समर्थन करते रहे । आज तक भी कर रहे है । हुसैन के स्थान पर कोई हिन्दू कलाकार होता तो यह समर्थन कदापि नही होता बल्कि परिस्थिती इसके बिल्कुल ही उल्ट होती ।खैर । दूसरी और अब कतर के नागरिक हुसैन ने एक मलयालम पत्रिका को दिए अपने साक्षात्कार में यह आरोप लगाया है कि भारत में जब वे कठिनाई में थे एक भी व्यक्ति उनके पक्ष में नही बोला । फिर भी वे भारत से प्रेम करते है । देवी देवताओं के नग्न चित्र बनाने पर उनका कहना था कि उन्हाने किसी की आस्था पर चोट पहुचाने के लिए यह कार्य नही किया बल्कि स्वस्फूर्त सहज आत्मज्ञान की पे्ररणा से बनाये थे।वाह हुसैन अब यह स्वस्फूर्त सहज आत्मज्ञान की पे्ररणा निज धर्म पर भी प्रकट करो तो ही सच्चे अर्थो में ईमानदार कलाकार माने जाओगे और तब ही दुनिया यह मानेगी कि किसी की आस्था पर चोट पहुंचाना तुम्हारा वास्तव में मकसद नही था तुम तो सच्चे अर्थो में इमानदार उच्चकलाकार हो कोईकृतघ्न और महापाखंडी नही हो । अन्यथा तो हो ही ।

         आज की फिल्मे और धरावाहिक क्या परोस रहे है क्या नही है इनका समाज के प्रति कोई दायित्व ?
                                                                                  -गिरीश नागडा 

यह विवाद पूर्व में भी कई बार उठ चुका हे कि टीवी और फिल्मो में दिखाई जाने वाली हिंसा और नकारात्मक विचारो का समाज पर कोई प्रभाव पडता है या नहीं । टीवी और फिल्मी दुनिया के अधिकांश लोग इस विचारधारा के प्रबल समर्थक है कि इसका समाज पर कोई भी प्रभाव नहीं पडता है। यह केवल मनोरंजन तक ही सीमित रहता हैं । आज यही विवाद टी, वी, कार्यक्रम और धारावाहिको को लेकर भी उतना ही प्रासंगिक हैं।क्योकि आज ॔टीवी’, फिल्मों से भी अधिक दशर्क टी आर पी वाला शक्तिशाली माघ्यम बन चुका हैं।टीवी कलाकार भी सितारे बन चुके है। इसके व्यापक प्रभाव से प्रभावित होकर बडे बडे सारे फिल्मी सितारे भी टीवी के परदे पर उतर गये है। परन्तु खेद हैकि आज टीवी ओर फिल्मो मे जमकर नकारात्मक विचारो को प्रस्तुत किया जारहा है।और इससे जुडे लगभग सारे महाबली सभी यह यह मानते है कि टीवी ओर फिल्मो का समाज पर कोई भी वास्तविक प्रभाव नही पडता है। तमाम सारे तर्क ओर ठोस उदाहरणो को वे अपवाद कहकर नकार देते है। और सबसे बडा तर्क वे उसके लिए यह देते है कि जब दुनिया में टीवी और फिल्मे नही थी तब भी समाज में अपराध और हिंसा खूब जमकर होती थी । इतिहास की तमाम बडी बडी लड़ाईयॉ टीवी और फिल्मोके न होने के बावजूद लड़ी गई ।क्या यह तर्क मान्य किया जा सकता है?क्या यह उस तरह का कुतर्क नहीं है जो अपने निहीत स्वार्थो के लिए झूठ को स्थापित कर प्रश्रय देने के लिए दिया जाता है ? वे इसे केवल काल्पनिक मनोरंजन मानते है और यही सोचकर टीवी पो्रगाम ओर धारावाहिक और फिल्मो का निर्माण करते है।परन्तु उन्हे कहा्रं होश है कि उन्होने कई परिवारो को तोडदिया है औरउनका सुखचैन छीनकर उनके जीवन मे आग लगा दी है ।अनेको र्निदोा युवाओ को अपराध के गर्त मे धकेल दिया है । आजके सभी प्रमुख टीवी चैनलो के धारावहिको मे विशोा कर पारिवारिक धरावाहिको मे परिवारो मे भयंकर भाडयंत्रकारिता चलते हुए दिखाई जा रही है।भाई भाई,सास बहू,देवरानी जेठानी,पितापु़त्र,पतिपत्नी के बीच भारी भाडकारिता चल रही है।पांच सितारा उच्चस्तरीय रहनसहन, जीवनशौली को,मध्यमवर्ग की अति आवश्यक अतिसामान्य जीवनशौली दिखाकर उसकी अनिवार्यता को उसके मानस में बैठाने का प्रयास किया जा रहा है,अवैध और विवाहेतर संबंधो कोप्रगतिशीलता की राह में सहज स्वीकार्य दिखाया जा रहा है,तमाम उच्छश्र्र्रृंखलता और हिंसा दिखाई जा रही है।अर्थात जितना भी बुरे से बुरा,गलत से गलत परोस सकते है जमकर परोस रहे है,ओर उसमे भी, उनमे प्रतिस्पर्ध्रा चल रही है कि कौन कितना नये तरीके से बुरा और अनुचित परोस सकता है,दिखा सकता है।मकसद केवल टीआरपी की दर उपर उठानी है, ताकि अधिक से अधिक और मंहगे से मंहगे विज्ञापन मिल सके ।अधिक से अधिक धन कमाया जा सके । परन्तु क्याउन्हे इस बात का जरा भी एहसास नही है कि वे समाज का और देश का कितना बडा नुकसान कर रहे है? क्या समाज और देश के प्रति उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है? हमे अगर समाज ओर राट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी का जरा सा भी एहसास है तो हम कोई भी ऐसा तर्क देना कभी पसंद नही करेंगे जो निहीत स्वार्थ के लिए गलत को सही ठहराता हो , जो समाज ओर राट को आघात पहुचाता हो।यह तो निश्चित ही दंडनीय अपराध चाहे न हो परन्तु एक सामाजिक अपराध तो है ।अब इसे दंडनीय अपराध भी बनाया जाना चाहिए । सभी समाजशास्त्री और मनोवैज्ञानिक इस बात से सहमत है कि फिल्मो और टीवी मे दिखाई जाने वाली नकारात्मक बातो का समाज पर गहन और व्यापक नकारात्मक प्रभाव पडता है। ऐसा अनैको अपराधियो ने भी बताया है कि उन्हे इस अपराध को करने की प्ररेणा फंला फिल्म या टीवी के दृश्य से मिली है।किसी विद्वान ने तो यहॉ तक कहा है कि हर अपराध के किसी न किसी कोण में यह प्रेरणा अवश्य अपना रोल जरूर निभा रही है । जबकि दूसरी और एक उदाहरण ऋिको मुखर्जी का भी है ,उन्होने ॔बावर्ची’ नामक एक अत्यंत ही सकारात्मक फिल्म बनायी थी, जिसमे एक पविर में फेले विद्वो कटुता को फिल्म का नायक मिटाकर परिवार मे पुनःप्रेम और स्नेह का संचार जाग्रत कर देता है।फिल्म में निर्देशक ने कुछ भी ऐसा नाटकीय या अविश्वसनीय घटनाक्रम भी नही रचा था,या न किसी से कोई झूठ बोला गया था। बस सकारात्मक विचारधारा का सहज चमत्कारी परिणाम दिखाया गया था।परन्तु उस सकारात्मक विचारधारा का रुपयो के लालच की वजह से आगे अनुसरण नही किया गया ।और अब नकारात्मक फिल्मो व धारावाहिको का दौर चला है जो परिवारो मे वि घोलने का कार्य कर रहा है। अब अगर वर्तमान फिल्म और धारावाहिक निर्माता अपना सामाजिक दायित्व का निर्वाह नही कर रहे है तो उन इसे उनकी मर्जी पर बिल्कुल नही छोडा जाना चाहिए ।रूपया वे अपने लिए कमा रहे है,परन्तु जहर समाज को पिला रहे है।इसकी उन्हे कतई इजाजत नही होनी चाहिए।उन्हे सख्ती से कानून बनाकर रोका जाना चाहिए । सभी सामाजिक सरोकार के वियो व कार्यो को केवल व्यवसायिक हितो के भरोसे छोडकर मनमानी करने की अनुमति कदापि नही दी जानी चाहिए ।अन्यथा यह समाज व देश के लिए बेहद घातक सिद्ध होगा।








                                         खतरनाक है यह उदासीनता 


प्रश्न सिर्फ विरोध की राजनीति का नही है प्रश्न है सत्यनिष्ठा का, प्रश्न है कि हम किस चीज के लिए क्या दांव पर लगाने जा रहे है उसे देखनासमझना अब जरूरी हो गया है । सत्य को नजरंदाज करके उसका विरोध करने से र्जोर््र भी निहीतार्थ हल हो रहे हो या अहंकारवश बांधा गया द्वेष इसमें अपनी भूमिका निभा रहा हो वहां तक तो ठीक है परन्तु इसके प्रतिकारस्चरूप क्या प्रस्थापित करने जा रहे है यह अवश्य विचार करने वाली बात है और अगर इस प्रस्थापना से उन सिद्घान्तो और मूल्यो को गहरा आघात लगता है र्जोर््र राष्ट््र के हित से जुड़े है तो यह मामला बेहद गम्भीर रूप से चिन्ताजनक और विचारणीय बन जाता है । आज अधिकांशतः लोग ऐसा सब करते हुए इस सच्चाई के प्रति अति उदासीन रूख अपनाते हुए प्रायः ही पाये जाते है हमारा मीडिया इसका शानदार उदाहरण है क्योकि आज प्रायः समूचा मीडिया इसी तरह का व्यवहार करते हुए पाया जा रहा है इसमे अहंकार वश बांधे गये द्वेष के अलावा टी.आर.पी की चाहत और ठेठ व्यवसायिकता के घुस जाने से उसका यह आम व्यवहार हो गया है एक दिन कोई गंभीर आरोप या स्टोरी को उछाला जाता है या छद्म धर्म निरपेक्षता की आड़ में निशाने साधे जाते है जिसके सच या झूठ होने का अपना राष्ट््रहित में महत्व भी होता है जिससे सामाजिक और नैतिक सरोकार जुड़े रहते है ,परन्तु अगले एक दो दिनो में मामला आश्चर्यजनक ़ंग से सिरे से ही गायब हो जाता है ,और सारे अनुतरित प्रश्न अनुतरित ही धरे रह जाते है पूछो तो दो टूक सच सामने आता है कि खेल हो चुका है । अधिक कुरेदो तो पूरी बेशर्मी से बताया जाता है कि धंधा है जनाब शुद्ध धांधा और सारे सरोकार केवल दिखावटी मुखोटे है । करोड़ो रूपयो की ये जो लागत है यह, धन ,सुख ,सम्पन्नता पाने के लिए ही है । अब चाहे वह अगले दरवाजे से आये या फिर पिछले दरवाजे से ,उसका स्वागत तो हमको करना ही है देशसेवा आदि तो सब बाते है सबसे ब़ा सच तो रूपया है । ऐसी मान्यता वाले सभी से यही कहना है कि भैया रूपये का सच भी तब तक ही है जब तक यह राष्ट है जब अगर राष्ट की अस्मिता ही खतरे मे आ गई है तो क्या यह राष्ट जीवित रह पायेगा और अगर राष्ट जीवित नही रहेगा तो क्या तुम्हारा यह रूपया रह पायेगा ,क्या कोई स्वार्थ हल हो पायेगा ?

 आज शहरी कालोनियो के स्तर तक तो अब यह बात देखने में आ रही है कि अपनी कालोनी के हित में जागरूक सि्रक्रय्र लोग इतना समझने लगे है कि पडोसी को बाहरी शक्तियो से तकलीफ हुई है और हम नही बोले तो कल हमारे साथ भी यह तकलीफ आ सकती है अब यही बात राष्ट के साथ भी इसी तरह से सच है 

बस इसी सच को जानने समझने की आज आवश्यकता है । जब जंगल में आग लगी हो तो आपका घोंसला चाहे जितना मजबूत हो ,चाहे जितने उंचे वृक्ष की उंची और मजबूत शाख पर हो और वृक्ष भी चाहे जितना मजबूत हो वह सुरक्षित नही है आज नही तो कल उसे भी सभी के साथ जलनाही होगा । उसे जलने से बचना है तो एक ही उपाय है कि वह निजी स्वार्थों व अंहकार से स्चयं को उपर उठाये और सभी से समरसता पूर्वक सांमजस्य बैठाये मिल जुल कर जंगल के खिलाफ खतरो पर,शत्रुओ की रणनीति पर विचार करे उनको समय से पूर्व पहचाने । इसी प्रकार से हमें भी झूठ को प्रस्थापित कर सच्चाई को पदच्युत करने वालो को आज पहचानने की आवश्यकता है । रामराज्य अभियान एक जागरूकता अभियान है । इसके माध्यम से ंमेरा राष्टीय चरित्रकी चेतना जगाने का प्रयास रहेगा । ंमै जानता हूं कि हम भक्त नही है हम हद दर्जे के स्वार्थी है हमारे अन्दर राष्टीयता की भावना मर चुकी है और उसका स्थानशुद्ध व्यवसायिकता ने ले लिया है ।आजकल एक जुमला खूब प्रचलन मे ंहै कि हमारे यहां हर चीज विक्रय के लिए उपलब्ध है बशतेंर सही तरीके से सही कीमत लगाई जाये ,परन्तु एक चीज है जिसकी बोली से हर कोई इन्कार कर देगा और वह बोली उसके अपने अस्तीत्व की होगी । आज प्रकारान्तर से अस्तीत्व की बोली तो सीधे सीधे नही लगाई जा रही है परन्तु झूठ को प्रस्थापित करने वाले लोगो द्वारा जाने या अनजाने में वही कार्य किया जा रहा है । हम चीजो को र्जोर््रडकर नही देख पा रहे है तमाम तरह के दांवपेंच कोलाहल निज स्वार्थो ने ऐसा धुंधलका फैला रखा है कि आम आदमी आपस में अनावश्यक रूप से उन प्रश्नो के लिए एक दूसरे से गुत्थमगुत्था हो रहा है जिनका वास्तव में अस्तीत्व ही नही है या,र्जोर््र प्रश्न क्रत्रिम रूप से चारे के रूपा में हमारे सामने फेके गये है ताकि हम इनमें ही उलझे रहे और सत्य के बाबत कोई भी विचार ही न करे ।इन्ही प्रश्नो ने आम आदमी को घेर रखा है यह प्रश्न दाल रोटी के है ,िशक्षा के है ,स्वास्थ्य के है ,बस इन्ही से आमआदमी लड़ रहा है और टूट रहा है ।आमआदमी को इसी टूटन से बचाना है और उन प्रश्नो से ,खतरो से अवगत करवाना है जो हमारे सर पर लटक रहे है ,जो वास्तव में अपना ठोस अस्तीत्व रखते है ये वे खतरे है जो लगातार देश की और ब रहे है या योजनाबद्ध तरीके से बाये जा रहे है और राष्ट्र कें रूप मे या अपने अस्तीत्व के संकट के रूप में हम उनसे उदासीन बने हुए है । इन पर आगे आने वाले दिनो में चर्चा करेगें ।.... गिरीश नागड़ा