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मुचिलोटु भगवती[संपादित करें]

मुचिलोटु भगवती

मुचिलोटु भगवती उत्तरी मालबार के वाणिया जाति के लोगों की संरक्षिका देवी हैं।[1] मुचिलोटु भगवती को ईझाला भगवती और मनञळम्मा के रूप में भी पूजा जाता हैं।

दांतकथाएं[संपादित करें]

पौराणिक कथओं के आधार पर, मुचिलोटु भगवती का उत्पत्ति सम्बंधी अनेक कथाएं हैं, जो पेरिंगेल्लू गाँव के निकट स्थित तालिपरम्ब के पास स्थित माणियोत्तु ग्राम की ब्राह्मण महिला थी।[2] इन कथाओं के सम्बन्ध में विभिन्न अनुयायी होते।

प्रमुख कथा यह है की उसके अध्यायन के समापन के बाद और शादी से पहले, "पेरिंगेल्लूर मूथा गुरुक्कल" (एक ब्राह्मण, पेरिंगेल्लुर के वृद्ध गुरु) और उनके शिष्यों ने वेदीप विषयों पर उस महिला के अधिकार पर चुनौती दी। उसकी बुद्धि के कारण ईर्ष्या के बहकाव में आई, उन्होंने उस महिला से पूछा कि सबसे बड़ा दर्द और सबसे बड़ी आनंद क्या हैं, तो उसने जवाब दिया कि उनके अनुसार, सबसे बड़ा दर्द प्रसव के दर्द और सबसे बड़ी आनंद प्रेम-समयं हैं।[3] गुरुक्कल ने यह दावा किया कि जिसने कभी प्रेम-समयं नहीं किया और प्रसव नहीं किया, वह इसे नहीं जान सकती और उसकी कुँवारपन का सवाल उठाया। उसके घर से निकालने के बाद, वह शिव की शरण में गई और जल्द ही उसके द्वारा आत्महत्या करने का निर्णय लिया। उसने आगे से भरे कोयले के बिस्तर पर खड़ी होकर, एक वाणिया से नारियल का तेल उसके ऊपर डालने को कहा। फिर उसन भगवान शिव के आशीर्वाद से एक देवी के रूप में वापस धरती पर आना स्वीकार किया। धरती में घूमते समय उसने मुचिलोटु पदनायर के घर में विश्राम किया, जो मुचिलोटु जाति का वाणिया और कोलथिरी राजा के एक सैन्य थे।

मुचिलोटु पदनायर की पत्नी को पूजानीय मुचिलोटु भगवती का स्वारूप वेल से पानी भरते हुए देखा गया। इसके बाद, बस लड़की के जल भरे तेल के पात्र ने उड़ान भरने शुरू कर दिया।अगले दिन मुचिलोटु पदनायर ने देखा कि उनके घर के सामने खड़ा ताड़ का पेड़ सूख गया था। माना जाता है कि देवी ने मुचिलोटु भगवती का स्वारूप मुचिलोटु पदनायर को दिखाया, जब उन्होंने पेड़ काटने का निर्णय लिया। फिर उसके कारणवर ने भी देखा कि विर्जन कि आत्मा को भगवान शिव ने उसमें वापस भेज दिया है। उन्होंने देवी को घर के पश्चिमी कक्ष में एक चांदी की संदूक में रखा। इस तरीके से मुचिलोटु भगवती वाणियन और उनके समुदाय के अन्य लोग भगवती की पूजा शुरू कर दी। इस प्रकार भगवती को 'मुचिलोटु भगवती' के रूप में जाना जाने लगा।

स्वरूप[संपादित करें]

देवी मुचिलोटु भगवती ब्रह्मांड की शोभा का प्रतीक हैं।[4] उसकी शिरा पर उज्ज्वल नीला रंग, आकाश, पृत्वी, और समुद्र के तत्वों का संयोजन करता है, जिससे वह अद्वितीय और अमृतस्वारूप होती है। उसके शरीर में चंद्रमा, सूर्य, और तारों की छायाएँ महसूस की जा सकती हैं, जो उसकी दिव्यता और ज्ञान की प्रतिष्ठा को प्रकट करती हैं। उसके आट हाथों में दीपक, खड़ग, शंख, चक्र सहित विभिन्न अस्त्रों का प्रतीक होते हैं, जो उसकी शक्ति, साहस, और सजीवता को प्रकट करते हैं। उसकी आँखों में ज्ञान की ज्यों कींची है, जो अज्ञान को हराने में मदद करती है। उसके पास अनंत और भगवान कर्कोटक का प्रतीक शंख और चक्र हैं, जो अच्छे और बुरे शक्तियों को नाश करते हैं। उसकी मणि माला और रत्न हार संपत्ति और आनंद की प्रतीक है, जो उसकी प्रेमभीक्षा को दर्शाते हैं। उसकी पीठ पर स्वर्णिम चंदन की गंध, पुष्पों से सजीव वातावरण महसूस कराती है, जो शांति, संतुलन और सुख की प्रतीक है। इस प्रकार, देवी मुचिलोटु भगवती का रूप अनंत कल्याणकारी और प्रेरणादायक है, जो सदैव अपने भक्तों को संजीवनी और समृद्धि की प्राप्ति में मार्गदर्शन प्रदान करती है।

मुचिलोटु भगवती चेहरे का श्रृंगार

दो प्रकार की कथायँ है: (1) पौराणिक कथा (2) तोट्टम पाट्ट

वस्त्र[संपादित करें]

आभूषण- अरिम्पुमाल, एऴियरं

चेहरे का श्रृंगार- प्रक्के लिखावट

शिर- वट्टमुड़ी

वाणिया समुदाय[संपादित करें]

केरल के उत्तरी भाग में वाणिया समुदाय मुचिलोटु भगवती की पूजा करता है। वाणिया समुदाय में नौ मुख्य समूह हैं, और वे खुद को "ओम्बथिल्लम्मे"। इन नौ समूहों में पेरूम्काव (मुख्य मंदिर और पठिनेत्तु कावु (देश के क्षेत्रों की प्रतिष्ठा करने वाले अठारह मंदिर) जिसे उच्च स्थितियों भी हैं। ओम्बथिल्लेम्मा में से, तच्चोरेन का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसमें नरूर और पल्लिक्करा में दो मंदिर हैं और मुम्मून में तीन अन्य मंदिर वाणिया समुदाय के आध्यात्मिक और संस्कृतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

मुचिलोटु मंदिर[संपादित करें]

कासरगोड़ से पानूर तक 18 प्रमुख मुचिलोटु मंदिर हैं। उनमें से "आदि मुचिलोटु" करिवेल्लूर में सबसे महत्वपूर्ण है।

1. करिवेल्लूर - उत्भवस्थानं

2. पेरुदण- कासरगोड़

मुचिलोट भगवती मंदिर, नम्ब्रम

3. तृक्करिपूर

4. कोरोम - पय्यनूर

5. कोठिल - पळयंगाडी

6. कविणिशेरी - चेरुकुन्न

7. वलपठण - पुतियतेरु

8. नम्ब्रम - नणियूर (मय्यिल)


बाहरी संदर्भ[संपादित करें]

Muchilottu bhagavathi से सम्बंधित मीडिया Wikimedia Commons पर

1.Muchilottu Bhagavathi (8).jpg

2.Muchilottu Bhagavathy Theyyam.jpeg

3.Nampram sree muchilottu Bhagavathy Temple Gate.jpg

संदर्भ[संपादित करें]

  1. "Muchilot Bhagavathi", Wikipedia (अंग्रेज़ी में), 2023-09-07, अभिगमन तिथि 2023-10-23
  2. "Muchilot Bhagavathi Theyyam | THEYYAKKOLAM". web.archive.org. 2013-11-01. अभिगमन तिथि 2023-10-23.
  3. "Karipody Thirur Muchilot , Muchilot Bhagavathi". web.archive.org. 2016-03-04. अभिगमन तिथि 2023-10-23.
  4. "മുച്ചിലോട്ടു ഭഗവതി (തെയ്യം)", വിക്കിപീഡിയ (मलयालम में), 2023-10-12, अभिगमन तिथि 2023-10-23