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सदस्य:Rakshitaramesh1840260/प्रयोगपृष्ठ

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सरस्वती वीणा

सरस्वती वीणा[संपादित करें]

संगीत - इस शब्द को सुनते ही हमारे मन में एक तरह की अनोखी खुशी पैदा होती है। प्राचीन काल से ही संगीत भारतीय संस्कृति का महत्त्वपूर्ण अंग रहा है और यहॉं अनेक प्रकार के वाद्य यंत्र प्रयोग किए गए हैं। इनमें से एक मुख्य वाद्य यंत्र है 'वीणा', जिसके अनेक रूप आज दिखाई देते हैं। उदाहरण के लिए, हिंदुस्तानी संगीत में रुद्र वीणा और विचित्र वीणा का प्रयोग होता है जबकि कर्नाटक संगीत में सरस्वती वीणा और चित्र वीणा का प्रयोग होता है। सामन्यत:, आज के संदर्भ में 'वीणा' शब्द सरस्वती वीणा के ओर ही संकेत करता है।

इतिहास[संपादित करें]

इतिहासकारों के अनुसार प्रागैतिहासिक काल में भी वीणा नामक वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता था हालांकि उसका रूप और निर्माण आज के वीणाओं से बहुत ही अलग था। उस समय इस यंत्र को केवल धार्मिक समारोहों पर आवश्यक माना जाता था, लेकिन धीरे-धीरे लोग इसे मनोरंजन के लिए भी बजाने लगे।

माना जाता है कि वीणा का उद्भव शिकारियों के धनुष से हुआ था। धनुष में अनेक तार लगाए गए, बाद में ध्वनि की आवाज़ को बढ़ाने के लिए यंत्र के रूप को भी बदला गया। जैसे-जैसे इसके निर्माण के तरीके बदलते गए, इसके रूप के अनुसार, इसे अनेक विशिष्ट नाम भी दिए जाने लगे। यही कारण है कि आज भी हमारे देश में अनेक तरह के यंत्रों को वीणा कहा जाता है।[1]

आज का रूप[संपादित करें]

सरस्वती वीणा के जिस रूप को आज देखा जा सकता है, वह लगभग ३०० वर्ष पहले गोविंद दीक्षितर नामक संगीतकार द्वारा बनाया गया था। वे तंजावूर के महराज रघुनाथ नायक के दरबार में मंत्री थे। इसलिए उन्होंने अपने यंत्र को 'रघुनाथ वीणा' का नाम दिया था। इसी रघुनाथ वीणा को आज सरस्वती वीणा कहा जाता है क्योंकि राजा रवि वर्मा के चित्रण में देवी सरस्वती इसी प्रकार के वीणा को धारण करती हैं।[2]

निर्माण[संपादित करें]

सरस्वती वीणा को कटहल के पेड़ की लकड़ी से बनाया जाता है। कुल ७ तार होते हैं। मध्य भाग के मोम के ऊपर पीतल के छोटे टुकड़े रखे जाते हैं।

एक वाद्य यंत्र के निर्माण में ही कई दिन लग जाते हैं क्योंकि यह पूरी तरह हाथों से ही बनाया जाता है। इस काम को करने के लिए सुरों का ज्ञान होना आवश्यक है। अगर पीतल के टुकड़ों के स्थानन में थोड़ा भी बदलाव हो जाता है, तो सुर बदल जाते हैं। आज केवल उन परिवारों के लोग इस कला को जानते हैं जो सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी इसी काम को करते आए हैं। दुख की बात यह है कि ये लोग ज़्यादातर गरीबी में ही जीते हैं। इसलिए, आज इस काम को करने वाले घटते जा रहे हैं।[3]

बजाने के तरीके[संपादित करें]

इस वाद्य को बाऍं गोद पर रखकर दोनों हाथों के उंगलियों से बजाया जाता है। जिस प्रकार हिन्दुस्तानी संगीत में गाने-बजाने के अनेक घराने होते हैं, उसी प्रकार वीणा बजाने के अनेक तरीके होते हैं, जिन्हें 'बाणी' कहा जाता है। मुख्य रूप से चार बाणी हैं - मैसूर, तंजावूर, आन्ध्रा और कारैकुडी। इन बाणियों में बाऍं और दाऍं हाथों की तकनीकों में सूक्ष्म अंतर होते हैं।[4]

संगीतकार[संपादित करें]

निम्नलिखित आज के कुछ प्रसिद्ध वीणा वादक हैं।

  • डॉ जयंती कुमरेश
  • राजेश वैद्या
  • निर्मला राजशेखर
  • अश्विन आनंद
  • सुमा सुधीन्द्र
  • राम वर्मा
  • रमणा बालचंद्रन

संब्ंधित आलेख[संपादित करें]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. "Saraswati veena", Wikipedia (अंग्रेज़ी में), 2019-08-31, अभिगमन तिथि 2019-09-10
  2. "Musical Wonders of India". www.darbar.org. अभिगमन तिथि 2019-09-10.
  3. "Details - India Instruments". www.india-instruments.com. अभिगमन तिथि 2019-09-10.
  4. "Details - India Instruments". www.india-instruments.com. अभिगमन तिथि 2019-09-10.