सदस्य:Pawanmall

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मेरे बारे में विस्तारपूर्वक जानिए[संपादित करें]

मैं उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले का रहने वाला एक साधारण व्यक्ति हूँ जिसे हमेशा ही खुश रहना पसंद हैं. वैसे तो मुझे कभी गुस्सा नहीं आता लकिन जब भी मुझे कभी गुस्सा आया हैं कुछ बड़ी गड़बड़ ही हुई हैं. जहाँ तक मुझे याद हैं कुछ दिन पहले जब मुझे गुस्सा आया था तो मेरी वजह से एक बच्चे को जाना पड़ा था जहा पे मैं काम करता हूँ. वैसे तो मुझे पता हैं की मैं अपने आपको किसी भी महाल में ढाल सकता हूँ लेकिन कई बार ऐसे माहौल भी आते हैं जब मुझपे अपना ही बस नहीं चलता हैं लेकिन जहा तक सवाल मेरे गुस्से का हैं वो तो न के बराबर ही हैं..जहाँ तक मुझे याद हैं मैंने कभी किसी को मारा हो या किसी पे हाथ उठाया हो...

वैसे तो अब हम लोग दिल्ली में रहने लग गए हैं या ये कहू की मेरा पूरा बचपन ही दीली में ही गुजरा हैं. मैं और मेरा परिवार यहाँ पे पिछले २० सालो से रह रहा हैं. वैसे तो दिल्ली बहुत ही अछि जगह हैं रहने के लिए लेकिन मुझे अपना गाँव ही बहुत अच्छी जगह लगती हैं, शायद इसकी वजह ये भी हो सकती हैं की मेरे अन्दर भी वही "किसान" थे उनके पिताजी भी किसान थे और उनका सारा जीवन ही अपनी मात्रभूमि में बिता जहाँ पे उनके पूर्वजो का भी जीवन बिता.......कई बार मैं सोचने पर मजबूर हो जाता हूँ की मेरे पिताजी ने गाँव क्यों छोडा, उन्होंने क्यों इतनी प्यारी जगह का त्याग किया, क्यों उन्होंने अपनी मात्रभूमि से अलग होने का फैसला किया, क्यों उन्हें ऐसा लगा की उनकी जगह गाँव में नहीं बल्कि शहर में हैं, आखिर क्यों उन्होंने दीली जैसे लगातार जागने वाली सिटी में रहने का फैसला किया,,,,,,आखिर क्यों !!!!! खैर छोड़ो उनकी अपनी कोई मजबूरी रही होगी, क्या पता इन्सान के सामने कई हालत ऐसे भी आ जाते हैं की उन्हें अपनी किसी प्यारी चीज के बदले कुछ और चुनना पड़ता ही हैं, मेरे पिताजी के सामने भी कुछ ऐसे ही हालत आये होंगे जिनका उन्होंने डट के सामना किया...मुझे गर्व हैं की वो मेरे पिताजी हैं अगर मैं उनकी जगह होता तो शायद ही गाँव छोड़ने का फैसला कर पाता...

वैसे गोरखपुर जैसा दीखता हैं वैसा ही हैं बिल्कुल देहाती वेश-भूषा वाले देहात के लोग जिन्हें देख कर मेरा भी मन करता हैं की काश मैं भी वह रह कर खेती करता, गायो को चराता, दिन भर कड़ी धुप में अपना मेहनत का पसीना बहाता और मेरे द्वारा उगाये गयी सब्जियों, फसलो आदि को बड़े चाव से खाता या अपनी जीविका हेतु उसका उचित उपयोग करता........ लेकिन किस्मत को शायद कुछ और मंजूर था, शायद मेरी जगह गाँव में न होकर शहर में ही थी और शायद इसी वजह से मैं यहाँ हूँ .... लेकिन मुझे जब भी मौका मिला हैं या मिलेगा मैंने अपने प्यारे से गाँव अमहियाँ (मल्ल टोला, थाना : झंगहा, जिला गोरखपुर) गया हूँ और जाऊंगा. क्योंकि वही मेरे प्राण बसे हैं वहा की माटी की सुगंध मुझे खुभ भाति हैं वह के पेड़-पौधे, वहां की हर वो चीज जो सिर्फ वहा ही हैं मुझे बहुत ही आकर्षित करती हैं. वहा पे सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र तो वहा की "गोर्रा नदी" हैं जिसे देख कर मन को बहुत ही सुखद अनुभव होता हैं. जब मैं छोटा था तो पहली बार मैं उस नदी के किनारे अपने बड़े भाई के साथ गया था और मुझे बहुत ही मज़ा आया था, शायद इसलिए की मैंने पहली बार कोई नदी इतने पास से और वहां चल रही ठंडी ठंडी हवा को इतने पास से महसूस किया था......

जारी..............................................