सदस्य:N. shree vidya
अड़ीमुराई[संपादित करें]
अड़ीमुराई भारत के सबसे पुराने मर्शिअल आर्ट्स मे से एक है। तमिलनाडु राज्य मे जन्मी यह युद्ध कला आज के दिन में न केवल तमिलनाडु मे ,बल्कि श्रीलंका के उत्तरी भागों मे भी इस कला का अभ्यास किया जाता है। इस युद्ध कला को वर्मक्कलै , अड़ीमुराई, कुथुवारिसै ,कुस्ती, बीमानमुराई और नन्द के नाम से भी बुलाया जाता है। कहा जाता है की इस कला को योगियों ने चोरों और डाकूओं से बचने के लिए इस की रचना की थी ।इस कला मे महारत प्राप्त कर ने केलिए इंसान को एकाग्रता और निपुणता की आवश्यकता हैं।अड़ीमुराई को युद्ध कलाओं का विज्ञान माना जाता है। इस कला पर दक्षिन भारत के मशहूर निर्देशक आर .एस. दुरई .सेंथिल कुमार ने भी "पत्तासू " नामक एक सिनेमा बनाई थी ,जिसका रिलीस २२ नवंबर २०२२ को पुरे भारत मे हुआ था । इस सिनेमा मै अभिनेता धनूष दोहरी भूमिका निभाते हुवे नज़र आते हैं ।
इतिहास[संपादित करें]
अड़ीमुराई शब्द तमिल भाषा से ली गई है जिसमे 'अड़ी ‘ का मतलब वार करना और 'मुराई' का अर्थ है तरीका ।कहा जाता है की ये कला तमिलनाडु के दक्षिण भाग तिरुनेलवेली , कन्याकुमारी से जन्मा है। ऐसा मन जाता है की दुनिया भर के आदि सारे युद्ध कलाएं जैसे कराटे , ताइक्वांडो आदि इस कला से जन्मे है। माना जाता है की चोला और पड़िया राज्यों मे इस कला का एक गैर घातक रूप था जिसका नाम था अदीठादि था और सन ४०० बी सी ई के संगम ग्रन्थ में भी इस का उल्लेख किया गया है और इस के अलग अलग प्रकार के तरीकों के बारे मे भी बताया गया है।
अज्ज के समय मे अड़ीमुरै को बाकि तमिल युद्ध कल्लों के साथ सीखाया जाता है और यहाँ एक ही युद्ध कला है जिसके द्वारा वर्मम और आदि गुप्त तरीकों को सीखा जा सकता है।
इस कला के जानकारियों को उस समय मे ताड़ के पत्रों मे लिखा जाता था, किन्तु इस अनमोल कला को उस समय के अधिकांश लोगों ने उन के आर्थिक लाभ के लिए विदेशियों को यह ज्ञान बेच दिया और बचे- कूचे भाड़ , बारिश और आदि प्राकृतिक आपदाओं के कारन नष्ट हो गया था । अभी जो छोटी मात्रा की जानकारी भारत मे बची है वो इस बड़ी सी पूंजी की केवल एक छोटा सा भाग है।
प्रक्रिया[संपादित करें]
अड़ीमुरई एक ऐसी युद्ध कला है जो नंगे पैर प्रहार और बचाव पर जोर देती है। ये कला आत्मरक्षा पे ज़्यादा महत्व दे ता है, जिसमे वार ,लात मरना और शरीर के ताले आदि वर्मा बिन्दों पर आधारित है।
इस कला मे माहिर होने के लिए एक इंसान को ईमानदार , कला के प्रती समर्पण और उत्साह होना बहुत ज़रूरी हैं। इस कला में निपुणता प्राप्त करने केलिए लग भाग १२ साल लग जाते हैं। ये काला की वर्मकल्लै विद्या , वर्मा एलेक्क्यु और वासी योग का मिश्रण है और इस कला को विज्ञानं सिद्ध औषदि भी मानी जाती है। इस कला में निपुण गुरुओं को अहसान कहकर बुलाया जाता है।
अदिमुराई के 'अहसान अक्सर अपने छात्रों को इस कला के युद्ध दांव पैच सीखा देते है जिस के बाद छात्र खुद के नए अनोखी शिलियान उस के अंदर ले आते है, जो उनके शक्ति और कमजोरियों के अनुसार होता है। इस काला को काफी गुप्त रूप से संभाला गया है ,जिस की विद्या को केवल चण्ड चूने लोगों को सिखाई जाती है। चोला और पंड्या राज्यों के समय में सिलम्बम ( युद्ध भूमि में इस्तेमाल की गई एक कला ) और अदीताडी ( आदिमुराई का ही एक खेल ) काफी प्रसिद्ध एवं अपने उच्च स्थर में थी । इस समय के दौरान यह सरे अलग-अलग कला और खेल आपस में एक दूसरे के तरीक़ों को बाँट कर अपने इस कला को और निपुण बना रहे थे ।
प्रशिक्षण केंद्र[संपादित करें]
आज के समय में तमिलनाडु के कुछ प्रमुख प्रशिक्षण केंद्र हैं :-
- इण्डियन वर्मा आदिमुराई अकादेमी इंटरनेशनल ,चेन्नई
- थिरुमूलर वरमलज्ञ इंस्टिट्यूट ,कोइम्बटोरे
- मांजा वर्मक्कलै, मदुरै
- मांजा वर्मक्कलै चेन्नई और आदि ।
केरल राज्य में कुछ प्रमुख परसिखान केंद्र है :-
- बुद्धा कलारी त्रिवेंद्रम
- मारुति कलारी त्रिवेंद्रम
- अस्वा केरला कलारी संगम, त्रिवेंद्रम
- आत्मा रक्षा तंत्र कोल्लम और आदी ।
संदर्भ :-[संपादित करें]
- ↑ "Adimurai", Wikipedia (अंग्रेज़ी में), 2023-07-31, अभिगमन तिथि 2023-10-24
- ↑ "Adimurai - The Mother of All Martial Arts". Eat My News. अभिगमन तिथि 2023-10-24.