सदस्य:Fairen Freddy/प्रयोगपृष्ठ/1

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

भुजलिया[संपादित करें]

=== भुजलिया मध्य प्रदेश के छिन्दवारा शहर मे मनाया जाता है । यह पर्व छिन्दवरा मै लग-भग ५० वषो से मनाया जा रहा है। यह पर्व वहा के लोगो कि सन्स्क्रिति को दर्शता है । यह पर्व ३ दिनो तक सावन के माह मे मनाया जाता है । ऐतिहासिक चल समारोह को देखने के लिये लोग जमा हो जाते है । रचनाकार योद्धा कि वैश-भुशा धारन करते है और नतक अपनी कला चल समारोह के दोरान प्र्स्तुत करते है। भुजलिया पर्व हमारे भारत कि सस्क्र्ति और सभ्यता को दर्शाता है। बहुत से आदिवासी समुह अपनी अनेक कला का प्रर्दशन करते है। यह पर्व हमारी एकता को भी दर्शाता है क्योकि इस पर्व मे अनेक समुदायो के लोग भाग लेते है। मुसलिम समुदाय के लोग भी इस चल समारोह मे भाग लेते है। यह पर्व हमारी एकता का प्रतिक है। मेरे विचार से भारत के सभी राज्यो को छिन्दवारा से बहुत कुछ सिखना चाहिए । क्योकि वास्त्व मे इस प्रकार के पर्वो को मनाने से हमारा राज्य एव पुरा भारत तरक्कि कर पाएगा । गेहु को गमलो मे लगाकर बहा दिया जाता है। यह परपरा गेहु कि बडती उतपाद को दर्शाने के लिए किया जाता है। म.प्र भारत के लग-भग ४० प्रतिशत आदिवासि समुह का घर बनता है। भुजलिया भुजोलि के नाम से भी जाना जाता है। भुजलिया पर्व के दिन सभी घारो मे अच्छे- अच्छे पकवान बनाए जाते है। चल समारोह के दोरान सभी महिलाए गीत गाती है जो कि ज़्यादातर गम्गा मा कि स्तुती के गीत होते है। इस पर्व मे जो गमलो मे पोधे लगाए जाते है उन्हे देवी का रूप माना जाता है। भुजलिया पर्व नागपम्च्मि के दिन मनाया जाता है। इस पर्व मे अनेक युवक , युवती बडे हि चाव से भाग लेते है। यह पर्व वास्त्व मे भील समुदाय का पर्व है। इस पर्व के दोरन गाव एम्व शहर के आस-पास के इलाको मे मेले लगते है जो छोटो से बडो तक सभी के लिए एक आकरशन है। यह पर्व छ्त्तिसगड , बुन्देलखम्ड और मालवा मे मनाया जाता है। भुजलिया नागपम्चमि के दिन मनाया जाता है। बुन्देलखड मे बीजो के अम्कुरण को भोजाली और मालवा मे जवारा कहा जाता है। कुछ जगहो पर बीजो को पत्ति के कप मे या 'चुरकुस' मे डालकर [जो एक कोन के आकार मे होता है] बास कि लकडियो से बाधा जाता है। महिलाए भुजलिया को अपने सिर पर लेकर नदियो तक ले जाति है और फिर उन्हे उन्हि नदियो मे बहा देती है। बुदेलकखन्ड मे सभी लोग अपने मिन्नो और शुभ चिन्तको को गेहु देते है। ये एक दुसरे के प्र्ति आदर भाव दिखाने के लिये किया जाता है। छिन्दवाडा मे सभी महिलाए एक साथ एक्न्न होकर भोजन कि तैयारी करती है। महिलाए एक दुसरे को भोजाली के नाम से पुकार ती है। और फिर छिन्दवाडा तो शुरु से हि अपनी विविधता एम्व त्योहारो के लिए प्रसिद्ध है। भुजलिया, पोला, मेघनाथ और हरिज्योति छिन्दवाडा के सुप्रसिद्ध त्योहार है। वास्तविक भुजलिया के एक सप्ताह पहले, यानी नागपम्चमी के दिन लोग चना, गेहु या चावल के बीज मिट्टी के बर्तनो मे बोते है और हरे रम्ग के रूप मे विकसित होने के लिए खाद भी डाली जाति है। लोग बहुतायत मे आगामी फसल होने के उद्देश्य के दृश्य के साथ इन बीजो को हर रोज पानी देते है। इस पर्व के दोरान मा गम्गा कि स्तुति कि जाति है। इस त्योहार मे गम्गा मा को पूर्ण महत्तव दिया जाता है। इस पर्व पर ' जय गम्गा माता ' एन्व 'ग्यान गम्गा' जैसे गीत गाय जाते है। जो दाने पोधए बनकर बडे होते है , महिलाए उनकि पूजा करती है। यह पर्व भोजली देवी के सम्मान मे मनाया जाता है। और उनके सेवा गीत भी गाए जाते है। सावन कि पूर्णिमा तक इन्मे २ से ३ इच तक के पोधे निकल आते है। रक्षाबन्धन कि पुजा मे इनको भी पुजा जाता है। और धान के कुछ पोधे भाई को दिए जाते है। भोजलि नई फसल का प्रतिक है। और इसे रक्षाबन्धन के दूसरे दिन विसर्जित किया जाता है। नदि , तालाब और सागर मे भोजली को विसर्जित कर अच्छि फसल कि कामना कि जाति है। इस अवसर पर गाए जाने वाले गीतो को भोजली गीत कहा जाता है। पर्व के दोरान मिन्नो को बधाई दि जाति है और ये मिन्नता जीवन भर निभाई जाति है।