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Edrea 1840641
नाम पुट्टराज गवाई
जन्म तिथि ३ मार्च १९१४
जन्म स्थान हावेरी, कर्नाटक
शिक्षा तथा पेशा
पेशा गायक, वादक, लेखक

पुट्टराज गवाई[संपादित करें]

पंडित पुट्टराज गवाई जी का जन्म ३ मार्च १९१४ को कर्नाटक के हावेरी जिले मे हुआ था। वे हिंदुस्तानी शास्त्रीय परंपरा में एक भारतीय संगीतकार थे। उन्होने कन्नड़, संस्कृत और हिंदी में ८० से अधिक किताबें लिखीं है। वे वीणा, तबला, मृदंगम, वायलिन जैसे कई वाद्ययंत्र बजाने की क्षमता के लिए प्रसिद्ध हैं। वे अपने भक्ति संगीत (भजन) के लिए भी प्रसिद्ध है। २०१० मे उनको भारत के तीसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया था।[1]

प्रारंभिक जीवन[संपादित करें]

पुट्टराज गवाई का जन्म कर्नाटक के हावेरी जिले के हंगल तालुक में एक गरीब कन्नड़ लिंगायत परिवार मे हुआ था। उनके माता-पिता रेवैया वेंकटपुरमात और सिद्धम्मा थे। उन्होंने बहुत ही कम उम्र में अपनी आंखों की दृष्टि खो दी थी। जब वे १० महीने के थे, तब उन्होंने अपने पिताजी को खो दिया। बाद मे उनके मामा चंद्रशेखरैया ने उनका पालन-पोषण किया।

संगीत और नाटक[संपादित करें]

गवाई की संगीत के ओर रुचि देखते हुए उनके मामा ने उन्हें गणयोगी पंचाक्षार गवई द्वारा संचालित वीरेश्वर पुण्यश्रम में डाला। उनके मार्गदर्शन में उन्होंने कर्नाटकी और हिंदुस्तानी संगीत में महारत हासिल की। उन्होंने हारमोनियम, तबला, वायलिन और १० अन्य संगीत वाद्ययंत्रों में महारत हासिल की थी। वे अपने वचनों के लिए जाना जाता है। उन्होंने नाटक संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए नाटक कंपनी की स्थापना की। उनका पहला नाटक श्री शिवयोगी सिद्धरामा था। उनका संगीत विद्यालय समाज के सभी जातियों और वर्गों के विकलांग लोगों को संगीत सिखाने के लिए समर्पित था। उन्होने श्री वीरेश्वर पुण्याश्रम अंधों, अनाथों और गरीब बच्चों के उत्थान के लिए स्थापित किया था। उन्होंने १००० से अधिक नेत्रहीन लोगों को संगीत सिखाया है। उनके कुछ प्रसिद्ध छात्र: चंद्रशेखर पुराणिकमठ, एस बल्लेश, वीरेश्वर माद्री, राजगुरु गुरुस्वामी कलिकेरी, वेंकटेश कुमार थे।[2]

साहित्य[संपादित करें]

उन्होने १२ वीं शताब्दी के भक्ति आंदोलन के कई 'शरणाओ' के जीवन के बारे मे लिखा है और उसके साथ साथ ८० से अधिक पुस्तके आध्यात्मिकता, धर्म, इतिहास के बारे मे लिखी हैं। उन्होंने कन्नड़, हिंदी और संस्कृत में किताबें लिखी हैं। उनके कुछ महत्वपूर्ण साहित्यिक रचनाएँ नीचे दिये हुए हैं।

संगीत पर किताबें[संपादित करें]

  • संगीत शास्त्र ज्ञान
  • तबला शिक्षा
  • गुरुसुधा भाग १ और २
  • ताल पंचाक्षर

कन्नड़ में किताबें[संपादित करें]

  • अक्कमहादेवी पुराण
  • हवेरी शिवबासव पुराण
  • अंकलागी अदावी सिद्धेश्वर पुराण
  • हुचला गुरु सिद्धेश्वरा पुराण

संस्कृत में पुस्तकें[संपादित करें]

  • श्रीमत कुमार गीता
  • कुमारेश्वर काव्य
  • श्री लिंग सूक्त

हिंदी में किताबें[संपादित करें]

  • बसवा पुराण
  • सिद्ध लिंग विजया
  • सिद्धान्त शिखामणि आदि

मृत्यु[संपादित करें]

१७ सितंबर २०१० को वीरेश्वरा पुण्यश्रम, गदग, कर्नाटक में उनका निधन हो गया। उन्हें सम्मानजनक सरकारी सम्मान के साथ वीरशैव परंपराओं के अनुसार आश्रम में दफनाया गया था। १८ सितंबर २०१९ को गदग में उनके अंतिम संस्कार में १० लाख से अधिक लोगो ने भाग लिया था।

पुरस्कार[संपादित करें]

पंडित पुट्टराज गवाई जी को उनके संगीत, साहित्य और सामाजिक सेवा में योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। उनके कुछ महत्वपूर्ण पुरस्कार नीचे दिये हुए हैं।

  • १९६१ - हिंदी में "बसवा पुराण" के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार
  • १९७० - कर्नाटक राज्योत्सव प्रशस्ति
  • १९७५ - कर्नाटक विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि
  • १९९८ - नादोजा प्रशस्ति
  • १९९८ - केंद्र संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
  • २००० - भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार (विकलांगों की बेहतरी के लिए)
  • २००२ - बसवश्री पुरस्कार
  • २००७ - मध्य प्रदेश सरकार द्वारा कालिदास सम्मान
  • २०१० - पद्म भूषण


संदर्भ[संपादित करें]

  1. https://www.veethi.com/india-people/puttaraj_gawai-profile-451-24.htm
  2. http://archimage.co.in/entries/general/about-pandit-puttaraj-gawai