सदस्य:Dyuti.dutta

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बौद्ध गांव[संपादित करें]

ग्राम या गाँव छोटी-छोटी मानव बस्तियों को कहते हैं जिनकी जनसंख्या कुछ सौ से लेकर कुछ हजार के बीच होती है। प्राय: गाँवों के लोग कृषि या कोई अन्य परम्परागत काम करते हैं। गाँवों में घर प्राय: बहुत पास-पास व अव्यवस्थित होते हैं। [1]

संक्षिप्त परिचय[संपादित करें]

बौद्ध धर्म में कई प्रकार की परंपराओं, मान्यताओं और आध्यात्मिक प्रथाओं को शामिल किया गया है जो मुख्य रूप से महात्मा बुद्ध के मूल शिक्षाओं पर आधारित हैं और जिसके परिणामस्वरूप दर्शन की व्याख्या की गई है। बौद्ध धर्म की उत्पत्ति प्राचीन भारत में एक श्रमण परंपरा के रूप में 6 वीं और 4 वीं शताब्दी के बीच हुई थी, और वह एशिया के अधिकांश हिस्सों में फैल गई।[2] बौद्ध एवं जैन कृषि प्रणाली की झलक और आत्म-शासित गांव समुदायों के संदर्भ मे ज्ञान हमें 5वीं शताब्दी बीसी के जैन और बौद्ध ग्रंथों के माध्यम से मिल सकतीं हैं।

भौतिक विशेषताऐं[संपादित करें]

बौद्ध जतका के अनुसार, औसत गांव में लगभग एक हज़ार परिवारें हुआ करतीं थीं और बस्तियां एक दूसरे के काफ़ी करीब होतीं थीं। गांवों में हमेशा एक गेट या ग्राम-द्वार होता था। इसके अलावा गांव के अंदर घुसने से फल के बगीचे आते थें और उसके बाद गांव का खेती क्षेत्र होता था जिसे ग्राम-क्षेत्र कहलाया जाता था। बाड़, जाल, और मैदान के पहरेदार कीटों, जानवरों और पक्षियों से फसलों की रक्षा किया करते थे। जब भी आवश्यक्ता पड़ती थी, जंगलों की सफ़ाई कर ग्राम-क्षेत्र को बढ़ाया जाता था। इस कृषि क्षेत्र से आगे गांव का चरागाह होता था, जिसकी भूमी हुमेशा आम जनता मे बटी जाती थी।

ग्रामीण अधिकारी[संपादित करें]

बौद्ध जतका मे 'गोपलका' का उल्लेख किया गया है, जिसका अर्थ है भेड़ों का रक्षक। उनमे 'गाम','निगम','कुल' और 'नागरिक' के बारे में भी बात की गयी है। गांव के खेती वाले क्षेत्र मे लोगों की अपनी खुद की ज़मीन हुआ करती थी। क्षेत्रों की सीमा अच्छी तरह से, एक योजनाबद्ध तरीके से बनायी जाती थी। ऐसा प्रतीत होता है कि सहकारी सिंचाई और जल चैनलों की एक प्रणाली उन ज़मीनों को विभाजित किया करती थी। इसके अलावा, यह भी देखा गया है कि सिंचाई चैनल गांव के समुदाय द्वारा रखे जाया करते थे। सीमाओं की पंक्तियां वास्तव में जल की चैनल हुआ करतीं थीं और प्रधान रक्शक की देखरेख में पानी की आपूर्ति को विनियमित किया जाता था।

Thai - Vessantara Jataka, Chapter 5 (Jujaka) - Walters 35250 - A T Front

संसाधन वितरण[संपादित करें]

गांव के मैदानों और जंगलों के मामलों में सांप्रदायिक अवधारणा और भी स्पष्ट थी। गायों को घास चराने का अधिकार एवं गिरे हुए लकड़ी को उठाकर ले जाने का अधिकार अनियंत्रित था और इस विषय मे ग्रामवासियों को पूरी स्वतन्त्रता प्रप्त थी। कोई भी व्यक्ति सामूहिक ज़मीन अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता था, चाहे खरीदकर या विरासत मे। चरागाह और वानिकी के इन अधिकारों से ग्राम मे बहुत महत्व जुड़ा हुआ था। यहां तक ​​कि जब राजा ने कुछ पुजारियों को, या कुछ अन्य गणमान्य व्यक्तियों को गांव की थोड़ी ज़मीन दी थी, वो भी गलत माना गया था, क्योंकि असल में यह गांव की भूमि पर नि:शुल्क अधिकार का सम्मान नहीं था।

इसके अलावा, जैन ग्रंथों में घोस, खेत, खरवत, ग्राम, पल्ली, पत्तन, संवाह, उगार, मट्टम्बा आदि जैसे बस्तियों का भी उल्लेख है।

[3]

  1. https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%B5
  2. https://en.wikipedia.org/wiki/Buddhism
  3. https://www.epw.in/system/files/pdf/1959_11/10/rural_sociology_in_india.pdf