सदस्य:Bhavesh1810321/प्रयोगपृष्ठ

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परिचय[संपादित करें]

यह जैन समुदाय के सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। जैन समुदाय में इस त्योहार का बड़ा महत्व माना जाता है। यह त्योहार जुलाई के महीने में शुरू होता है और हर साल अक्टूबर के महीने में समाप्त होता है। आमतौर पर यह चार महीने तक चलता है। ये चार महीने जैन के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं। इन चार महीनों के दौरान कही लोग उपवास करते हैं और वे धरम के रास्ते पर चलते हैं। वे अपना समय ध्यान और पूजा में बिताते हैं। वे अच्छे कर्म करते हैं और दान - धर्म भी करते हैं। बच्चा, बूढ़ा, पुरुष, महिला और बाकी सभी इस दौरान कई तपसिया करते हैं। यह कहा जाता है कि इस अवधि के दौरान कई जीव हैं जो मर जाते हैं और उनकी रक्षा के लिए, भगवान महावीर ने कई कठिनाइयों का सामना किया था। यही कारण है कि हम इस त्योहार को भव्य रूप से मनाते हैं ताकि हम जीवों को बचा सकें । जैसा कि सभी जानते हैं कि जैन अहिंसा परमो धर्म के सिद्धांत का पालन करता है। इस अवधि के दौरान जैनों को प्याज, आलू, लहसुन और भूमिगत उगने वाली किसी भी सब्जी को खाने की अनुमति नहीं है। लेकिन कई लोग किसी कारणवश इसका अनुसरण नहीं करते हैं ।

जैन चातुर्मास पर्व[संपादित करें]

जैन धर्म में चातुर्मास सामूहिक वर्षायोग या चौमासा के रूप में भी जाना जाता है। भगवान महावीर ने चातुर्मास को इसिणां पसत्था कहा है। इस साल जैन चातुर्मास 16 जुलाई से प्रारंभ होने जा रहा है। इसी माह की 28 तारीख को रोहिणी व्रत भी पड़ेगा। हम सभी जानते हैं कि जैन साधु-संत जनकल्याण और धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए पूरे वर्ष एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करते रहते हैं। अहिंसा और जीवों पर दया को ही जैन धर्म का आधार माना गया है। ऐसे में जैन मुनि इस चातुर्मास में एक जगह रुककर लोगों को सत्य, अहिंसा और ब्रम्हचर्य आदि विषयों पर सद्ज्ञान देते हैं। यह त्योहार जुलाई के महीने में शुरू होता है और हर साल अक्टूबर के महीने में समाप्त होता है। आमतौर पर यह चार महीने तक चलता है। ये चार महीने जैन के लिए सबसे महत्वपूर्ण अवधि कही जाती हैं। जैन धर्म पूर्णतः अहिंसा पर आधारित है। जैन धर्म में जीवों के प्रति शून्य हिंसा पर जोर दिया जाता है। जैन धर्म के अनुसार बारिश के मौसम में कई प्रकार के कीड़े, सूक्ष्म जीव जो आंखों से दिखाई नहीं देते वह सर्वाधिक सक्रिय हो जाते हैं। ऐसे में मनुष्य के अधिक चलने-उठने के कारण इन जीवों को नुकसान पहुंच सकता है।

पर्युषण महापर्व[संपादित करें]

इसी चातुर्मास के दौरान 8 दिवसीय पर्युषण महापर्व भी पड़ता है, जो इस बार 27 अगस्त से प्रारंभ होकर 2 सितंबर तक चलेगा। जैन धर्म से जुड़े श्वेताम्बर संप्रदाय से जुड़ा पर्यूषण पर्व 8 दिन तक चलता है। इसके बाद दिगंबर संप्रदाय वाले 10 दिन तक पर्यूषण मनाते हैं। जिसे 'दसलक्षण धर्म' कहा जाता है। पर्यूषण का अर्थ है "एक साथ रहना और एक साथ आना"। यह ऐसा समय है जब जैन अध्ययन और उपवास का संकल्प लेते हैं। आठ दिवसीय त्योहार के दौरान, मंदिर मार्गी कल्प स्तोत्र का पाठ करते हैं, जिसमें पांचवें दिन महावीर के जन्म के खंड का पाठ शामिल होता है। परुषण के पांचवें दिन हम महावीर जनम वाचंन मनाते हैं क्योंकि इस दिन भगवान महावीर की माता त्रिशला देवी ने 14 सपने देखे थे। वे चौदह सपने हाथी, बैल, शेर, देवी लक्ष्मी, फूल माला, उज्ज्वल पूर्णिमा, सूर्य, ध्वज, कलश , कमल से भरी झील, सफेद समुद्र, आकाशीय विमान, रत्नों का ढेर और निर्धूम अग्नि हैं । इन सपनों ने संकेत दिया कि जो बच्चा पैदा होने वाला है वह मजबूत, साहसी और सद्गुणों से भरा होगा। वह बहुत धार्मिक होगा और एक महान राजा या आध्यात्मिक नेता बनेगा। वह धार्मिक व्यवस्था को सुधारने और बहाल करने और ब्रह्मांड के सभी प्राणियों को मोक्ष प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन करेगा।

संवत्सरी[संपादित करें]

पर्यूषण का अंतिम दिन एक शुभ दिन होता है जिसे संवत्सरी के नाम से जाना जाता है। यह वह दिन है जब लगभग हर जैन उपवास करते हैं और पूजा और भक्ति में शामिल होते हैं। सभी मंदिरों को भव्य रूप से सजाया जाता है और भगवान की मूर्तियां की आंगी की जाती हैं। एक अनुष्ठान होता है, जहाँ अनुष्ठान में भाग लेने वाले सभी लोग मन, वचन और काया से उन सभी जीवों से क्षमा माँगते हैं जिन्हें उनके द्वारा नुकसान पहुँचाया गया था। उस दिन लोग न केवल जीवों से बल्कि अन्य लोगों से मिच्छामि दुक्कडम् केहते हुए क्षमा मांगते हैं। जिसका अर्थ है, "अगर मैंने आपको किसी भी तरह से, जाने-अनजाने में, विचार, शब्द या कार्रवाई में नाराज किया है, तो मैं आपकी माफी चाहता हूं।"

तपस्या[संपादित करें]

इस अवधि के दौरान लोग कई तपस्या करते हैं जैसे कि उपवास, एकाशना, बियाशना और आदी तप । अब हम प्रत्येक तप के महत्व को जानेंगे । उपवास - इस तप में लोग पूरे दिन भूके रहते हैं। इस तप के दौरान फल या दूध खाने-पीने की अनुमति नहीं है। इस प्रक्रिया के दौरान जैन लोगों को गर्म पानी पीने की अनुमति होती है औ`र सूर्यास्त के बाद पानी नहीं पीने दिया जाता है और जब वे बिना पानी पिए उपवास करते हैं तो उसे चौविहार उपवास कहा जाता है। एकाशना और बियाशना - यह एक तप है जहाँ लोग दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं और सीमित खाद्य पदार्थों के साथ। उन्हें 45 मिनट के भीतर अपना भोजन खत्म करना होता है और सूर्यास्त से पहले गर्म पानी पी सकते हैं । बियाशना में दो बार भोजन किया जाता है, उन्ही नियमों का पालन करते हुऐं । अम्बिल-यह तप सबसे महत्वपूर्ण है जहाँ लोग दिन में एक बार भोजन करते हैं लेकिन, इस भोजन की ख़ासियत यह है कि इसमें नमक और घी का प्रयोग नहीं करते है।

नियमों[संपादित करें]

चातुर्मास में तप-साधना आदि के साथ कुछ नियमों का पालन भी करना होता है। जैसे पूरी अवधि में सभी सुख-सुविधाओं का त्याग करते हुए दिन में सिर्फ एक बार भी ही घर में बना भोजन करना होता है। इस पूरी अवधि में क्रोध, झूठ, ईर्ष्या, अभिमान आदि से बचना होता है। चातुर्मास के दौरान मौन साधना का विशेष महत्व है, इसलिए अधिक से अधिक मौन रखना होता है। तमाम तरह की भौतिक सुख-सुविधाओं का त्याग करते हुए सादा जीवन जीना, उच्च विचार की राह पर चलना होता है। इन चार महीनों हरी सब्ज्यिों का सेवन मना होता है।

निष्कर्ष[संपादित करें]

जीवों को परेशानी ना हो और जैन साधुओं के कम से कम हिंसा हो इसलिए चातुर्मास में चार महीने एक ही जगह रहकर धर्म कल्याण के कार्य किए जाते हैं। इस दौरान जैन साधु किसी एक जगह ठहरकर तप, प्रवचन तथा जिनवाणी के प्रचार-प्रसार को महत्त्व देते हैं। “मिच्छामि दुक्कडम्”