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पुनःसंयोजक डी.एन.ए. प्रौद्योगिकी[संपादित करें]

Cloning

परिचय[संपादित करें]

न्यूक्लिक अम्ल को प्रत्यक्ष रूप से परिवर्तित करते हुए जीव की आनुवंशिक सामग्री में ऐच्छिक रूपांतरण करने को आनुवंशिक अभियांत्रिकी या जीन क्लोनिंग अथवा जीन परिचालन कहा जाता है तथा ऐसा तो अनेक विधियों द्वारा किया जाता है। जिन्हें संयुक्त रूप में रीकॉम्बिनेण्ट डी.एन.ए. टेक्नोलॉजी या पुनःसंयोजक डी.एन.ए. प्रौद्योगिक के नाम से जाना जाता है। पुनःसंयोजक डी.एन.ए. प्रौद्योगिकी से जैविकी के अनुप्रयुक्त पहलुओं एवं शोध के नवक्षेत्र का आरम्भ हुआ है। इसीलिए यह जैव-प्रौद्योगिकी का वह भाग है जो गत वर्षों से आकर्षण बढ़ाता आ रहा है। यह आनुवंशिकी अभियान्त्रिकी के अन्तर्गत आता है, जिसमें किसी जीन को कोशिका से अलग करके उसमें उपस्थित न्यूक्लियोटाइड के क्रम की जानकारी प्राप्त करते हैं तथा फिर कृत्रिम रूप से न्यूक्लियोटाइड का संश्लेषण करके उसी क्रम में व्यवस्थित करके कृत्रिम डी.एन.ए के अणु का निर्माण करते हैं। वह क्रिया जिसके अन्तर्गत किसी मनचाही डी.एन.ए का कृत्रिम रूप से निर्माण करते हैं, डी.एन.ए रीकॉम्बिनेण्ट तकनीक कहलाती है। सभी जीवधारियों में डी.एन.ए मुख्य जेनेटिक पदार्थ के रूप में पाया जाता है।[1]

अर्थ एवं इतिहास[संपादित करें]

पुनः संयोजक डीएनए का विचार सबसे पहले पीटर लोबबान द्वारा प्रस्तावित किया गया था। सफल उत्पादन और पुनर्मूल्यांकन डीएनए की इंट्रासेल्यूलर प्रतिकृति का वर्णन करने वाले पहले प्रकाशन 1972 और 1973 में यूसीएसएफ और स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में दिखाई दिए। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने 1974 में पुनः संयोजक डीएनए पर अमेरिकी पेटेंट के लिए आवेदन किया, जिसमें आविष्कारकों को हर्बर्ट डब्ल्यू बॉयर (कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर), सैन फ्रांसिस्को और स्टेनली एन कोहेन (स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर) के रूप में सूचीबद्ध किया गया; इस पेटेंट को 1980 में सम्मानित किया गया था। रीकॉम्बीनेंट डीएनए तकनीक का उपयोग करके उत्पन्न पहली लाइसेंस प्राप्त दवा मानव इंसुलिन थी, जिसे जेनेंटेक द्वारा विकसित किया गया था और एली लिली और कंपनी द्वारा लाइसेंस प्राप्त था। स्मिथ तथा नथन्स ने एक नये एन्जाइम की खोज की जिसे रेस्ट्रिक्शन एण्डीन्यूक्लिएज कहते हैं। ये एन्जाइम एक रासायनिक कैंची के रूप में कार्य करते हैं तथा डी.एन.ए को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट देते हैं । इस तरह के दो विभिन्न डी.एन.ए के टुकड़ों को संयोजित करने से जो DNA बनता है, उसे रीकॉम्बिनेण्ट डी.एन.ए कहते हैं तथा इस तरह का डी.एन.ए बनाने के लिए जो विधि प्रयुक्त होती है, उसे रीकॉम्बिनेण्ट डी.एन.ए टेक्नोलॉजी कहते हैं । यह जेनेटिक इंजीनियरिंग का प्रमुख साधन माना जाता है। रीकॉम्बिनेण्ट डी.एन.ए वास्तव में एक भिन्न जीव समुदाय के डी.एन.ए तथा एक कैरियर डी.एन.ए के परस्पर कोवैलेण्ट लिंकेज के द्वारा निर्मित होता है। इस तकनीक के द्वारा किसी एक जीव के ऐच्छिक डी.एन.ए खण्ड में लेकर दूसरे जीव के डी.एन.ए के साथ शरीर के बाहर (परखनली में) संकरण कराया जाता है और इसे किसी दूसरे इच्छित जीव में पहुँचा दिया जाता है, जिससे नये प्रकार का डी.एन.ए प्राप्त हो जाता है। अर्थात् इस तकनीक द्वारा नये गुणों के पैदा किया जाता है। इस तकनीक में संकरण से प्राप्त नये डी.एन.ए के पुनर्योजन डी.एन.ए (रीकॉम्बिनेण्ट डी.एन.ए) कहते हैं इस तकनीक के जीन क्लोनिंग भी कहते हैं, इस तकनीक का आविष्कार सन् 1972 में किया गया इस तकनीक का विस्तृत वर्णन आगे दिया जा रहा है।[2]

विशेषताएँ[संपादित करें]

वास्तव में पुनर्योगज डी. एन. ए. एक भिन्न जीव समुदाय के डी.एन.ए तथा एक वाहक डी.एन.ए के सहसंयोजन के फलस्वरूप प्राप्त होते हैं और यह विधि पुनर्योगज डी. एन. ए. तकनीकी कहलाती है । अलग जीव समुदाय से प्राप्त डी.एन.ए बाहरी डी.एन.ए कहलाता है तथा वाहक डी.एन.ए को वेक्टर कहते हैं ।इस तकनीकी द्वारा एण्डोन्यूक्लिएजेज एन्जाइम की उपस्थिति में यूकैरियोटक कोशिका के डी.एन.ए अथवा बाहरी डी.एन.ए को छोटे-छोटे टुकडों में काटा जा सकता है । इसके बाद इन टुकड़ों को वेक्टर डी.एन.ए के साथ जोड़कर ई. कोलाई (E. Coli) जीवाणु में असीमित मात्रा में वृद्धि अथवा क्लीनिंग के लिए प्रेरित करते हैं। किसी जीवधारी के डी.एन.ए से जीन्स को अलग करके किसी असम्बन्धित जीव में प्रवेश कराया जा सकता है तथा इनमें इच्छानुसार आनुवंशिकी परिवर्तन किए जा सकते हैं। इन परिवर्तनों में से सबसे महत्वपूर्ण तकनीक रिकम्बीनेशन डी.एन.ए मानी जाती है जिसके द्वारा एक डी.एन.ए अणु को बंधित स्थानों से अलग करके उसके विशेष खण्ड को अलग करके एक अन्य डी.एन.ए में बाधित स्थान पर जोड़ा जाता है।

उपयोग[संपादित करें]

पुनर्मूल्यांकन डीएनए व्यापक रूप से जैव प्रौद्योगिकी, चिकित्सा और अनुसंधान में प्रयोग किया जाता है। रीकॉम्बिनेण्ट प्रोटीन और डीएनए प्रौद्योगिकी के उपयोग से होने वाले अन्य उत्पाद अनिवार्य रूप से हर पश्चिमी फार्मेसी, डॉक्टर या पशुचिकित्सा कार्यालय, चिकित्सा परीक्षण प्रयोगशाला, और जैविक अनुसंधान प्रयोगशाला में पाए जाते हैं। पुनर्योजन संयोजक डीएनए के कई अतिरिक्त व्यावहारिक अनुप्रयोग उद्योग, खाद्य उत्पादन, मानव और पशु चिकित्सा दवा, कृषि, और जैव इंजीनियरिंग में पाए जाते हैं।[3] पुनः संयोजक डीएनए अणुओं और पुनः संयोजक प्रोटीन को आमतौर पर खतरनाक नहीं माना जाता है। हालांकि, कुछ जीवों के बारे में चिंता बनी रहती है जो पुनः संयोजक डीएनए व्यक्त करते हैं, खासकर जब वे प्रयोगशाला छोड़ते हैं और पर्यावरण या खाद्य श्रृंखला में पेश किए जाते हैं।

सन्दर्भ्[संपादित करें]