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श्री दामोदरलाल तिवारी[संपादित करें]
पृष्ठभूमि[संपादित करें]
विद्यर्थी काल से ही ब्रजभाषा से रचनात्मक संबंध बनाये श्री दामोदर लाल तिवारी का जन्म भरतपुर जिले के दीर्घपुरी (डीग) में हुआ था। उस स्थान पर भगवान श्री कृष्ण को गाय चराने के लिये जबरदस्ती लाया गया, तभी से उस जगह का नाम लठावन के नाम से भी जाना जाता है। एक प्रसिद्ध कवि केहते है कि "कौन से पुर्व कर्म किये है जो ब्रज मे जन्म लेकर ब्रजवासी बने"। इसी वतावरण मे श्री तिवारी जी ने अपने सृजन के पंख पसारे। इन्होने छंद से लेकर अतुकांत छंद से समसामेक समस्याऔ पर अपनी लेखनी चलाना शुरु किया। तिवारी जी का जन्म ४ दिसंबर १९३३ में श्रीमती ज्ञानवती देवी की कोख से हुआ।
परिवार[संपादित करें]
श्री दामोदरलाल तिवारी जी के पिता श्री जहारिया राम जी थे जो बहुत ही गरीब परिवार से थे और माता श्रीमती ज्ञानवती देवी थी। इन्हे ज्यादातर लोग 'बाऊ जी' के नाम से बुलाते थे। यह अपने परीवार के साथ मिल-झुलकर रहते थे। तिवारी जी का विवाह सन् १९५२ मे श्रीमती जनक दुलारी के साथ हुआ। शादी के बाद इनके दो बेटे और दो बटियों का जन्म हुआ। इनकी बेटी का नाम शशी है और दो बेटे महेश और गौरी-शंकर है। शशी कि शादी जयपुर के एक अच्छे चिकित्सक विनोद से हुई थी। बडे बेटे महेश की शादी मिथ्लेश के साथ और छोटे बेटे गौरी-शन्कर कि शादी कृष्णा के साथ हुई थी। छोटे बेटे को बन्टी के नाम से बुलया जाता है। तिवारी जी की पत्नी ने १६ जून १९८६ को अचानक से इस दुनिया से विदा ले ली। उसके बाद तिवारी जी को बहुत बडा झटका लगा। इनकी बडी बेटी नाम बीना था, जो तबियत खराब होने के कारण स्वर्ग सिधार गयी थी। भावुक ह्रदय श्री तिवारी जी को इस समय बहुत बडा बजृपातृ हुआ। एक साथ दो-दो असहनीय आघात हुआ। इन चोटो से इनके कवि ह्र्दय पर भारी प्रभाव पडा।
शिक्षा[संपादित करें]
इन्होने प्ररम्भिक शिक्षा डीग मे ही प्राप्त की थी। एक समय एसा भी आया जिसमे वह खुद मजदूरी करके अपनी फीस भरते थे और पाठशाला की किताबे भी खरीदते थे। इस तरह से इन्होने अपनी शिक्षा चालू रखी। तिवारी जी पडाई में बहुत ही होनहार थे। इन्होने एम ए और फिर बी एड की उपधि भी प्रप्त की।
साहित्य जीवन[संपादित करें]
तिवारी जी की पत्नि और बेटी के देहान्त के बाद इनकी पीर आंसुओं के साथ लेखनी से बहने लगी। परंपरागत टकसाली छंद मे श्री तिवारी जी दिन-रात लिखने मे जुटे रहे। बृजभाषा गध्य रचना सामान्य रूप से व्यंग-विनोद, हास्य-परिहास, चुट्कुले, कहानी, संस्मरण, में अपना विशेष महत्व रखता हैं। इनका मानना था की काव्य और संगीत सुगमत से मिलकर होता हैं। तिवारी जी अपनी लोकभाषा और लोकशैली के लिये प्रसिद्ध हैं। भाषा के सरल रूप और बोल-चाल की भाषा को अच्छी तरह से प्रयोग करते रहे है। विदेशी शब्दो का प्रयोग करने में भी पीछे नही हटे। इसिलिये हम तिवारी जी को लोक कवि कहते हैं। इन्होने ब्रज माधुरी कथा संकलन तैयार किया हैं जिसने परंपरावादी छंद से विविद विषयो को समेटा हैं। कुछ दिन आप अस्वस्थ रहे और जल्दि ही अपनी लेखनी को सही दिशा मे लेकर आये। दामोदर लाल तिवारी जी नए शिक्ष्ण कर्य मे अपना प्रमुख योगदान दिया है। भरतपुर राज घराने से इनके मधुर संबन्ध रहे। हमेशा सच्चाई के साथ रहे और सच्चाई के लिये लडते रहे। तिवारी जी 'सादा जीवन उच्च विचार' वाले व्यक्ति थे । शिक्षा के क्षेत्र मे युवाऔ के भविश्य के लिये इन्होने अपना बहुत योगदान दिया हैं, जो आगे चलकर एक मील क पत्थर साबित हुआ। इस दौरान इन्होने कई कविताऔ को भी लिखा था। इनकी ज्यदातर कवितायें ब्रजभाषा मे ही प्रकाशित हुई है। ब्रजभाषा ऐसी बोली है जिसमे प्रेम अलग ही झलकता हैं।
सावन में ससुरार गये जब एसौ बूरौ खायौ,परीक्षा काल में परीक्षार्थी की बजरंग बली से आनुनय-बिनय इनकी प्रमुख कविताऔ में से मानी जाती हैं।
पुरस्कार व सम्मान[संपादित करें]
राजस्थान सरकार में इनकी अध्यापक के पद पर नियुक्ति हुई और बाद में पद-उन्नत्ति से प्रधानाध्यापक बने। राजस्थान सरकार से इन्हे कई पुरस्कार और उप्लब्धिया भी प्राप्त हुई हैं। अंत में इनकी प्रधानाध्यपक के पद से सेवानिवृति हुई। इस दौरान इन्होने अपनी लेखनी से लोगों को सामाजिक समस्याऔ और राष्ट्रिय समस्याऔ से अवगत कराया। तिवारी जी ने आकाशवाणी पर भी जन समस्याऔ से अवगत कराते रहे। इन्हे अपनी उपलब्धियो के कारण "ब्रजलोक कवि श्री दामोदर लाल तिवारी" के नाम से नवाजा गया। यह राजस्थन ब्रजभाषा अकादेमी के सदस्य भी रहे है। इनका देहंत २००१ में बीमारी के कारण हुआ।