सदस्य:Aishwarya Naresh/प्रयोगपृष्ठ/1

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चेति चंद

Jhulelal hindu deity

चेति चंद क्या है?[संपादित करें]

चेति चंद मूलतः सिंधी उत्सव है । सिंधी पाकिस्तान के एक प्रांत सिन्ध से उद्भव लोगों के सामाजिक जातीय समूह हैं । चेति चन्द सिंधी के लिए नववर्ष दिवस के रूप में सिंधी संरक्षक संत झूलेलाल के जन्मदिवस के उपलक्ष्य के रूप में मनाया जाता है। झूलेलाल चमत्कार के एक आदमी था और अपने चमत्कार के माध्यम से वह सवर्णों की आँखें खोलीं और सिंधी को न्याय प्रदान किया. उनके देवता को सम्मानित करने के लिए सिंधी इस दिन को मनाते हैं । चेति चंद चैत माह के चंद्रोदय के उदीयमान चेहरे के दौरान एक दिन मनाया जाता है. यह सिंधी चैत माह या चैत्र माह के पहले या दूसरे दिन हिन्दू कैलेण्डर में मनाया जाता है । इसलिए इसे चेति चांद के रूप में कहा जाता है । चेति चंद उगादि और गुढी जैसे अन्य हिन्दू त्योहारों के समान है। यह त्योहार बसंत और फसल के आगमन को निशाना बनाता है लेकिन सिंधी समुदाय में यह वर्ष 1007 में उडेरोलाल के पौराणिक जन्म को भी निशाना बनाता है. इसके बाद वे हिन्दू भगवान वरूणा से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें उत्पीड़न से बचाने के लिए सवर्णों मुस्लिम शासक का नाम शाह रखा जाए. इस दिन कई सिंधी रना साहिब को पास की एक झील में ले जाते हैं । राणा साहिब में तेल के दीपक, चीनी इलायची, फल होते हैं । पीछे पानी जार और उसमें एक नारियल है जो कपड़े के फूलों और पत्तियों से ढका हुआ है । यहां झूलेलाल की एक मूर्ति भी है ।परंपरा की संभावना दर्यपन्तिस् के साथ शुरू कर दिया । ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन युग के दौरान, प्रमुख वार्षिक मेलों (मेला) का आयोजन उडेरोलाल और ज़िन्दपिर (हैदराबाद, पाकिस्तान के पास) में किया जाता था । समकालीन समय में सिंधी समुदाय प्रमुख मेलों, दावत पार्टियों, झूलेलाल के (झलक मंच) के साथ जुलूस (विठोबा के समान विष्णु का एक अवतार), अन्य हिन्दू देवताओं, और सामाजिक नृत्य के साथ चेति चांद का त्योहार मनाता है।

चेति चंद कैसे मनाया जाता है?[संपादित करें]

Sindhu river

सिंधी इस पर्व पर जल पूजन करते हैं जिसे जीवन का अमृत माना जाता है । चालीहो साहब झूलेला के अनुयायियों द्वारा मनाया जाता है जो कहते है कि वे ४० दिन के लिए सिन्धु नदी के किनारे पर अनुष्ठान का प्रदर्शन किया । वे भगवान से प्रार्थना करते है उंहें मजबूर रूपांतरण से बचाने के लिए । मिथकों के अनुसार, यह माना जाता है कि नदी भगवान ने उंहें वादा किया है कि एक दिव्य बच्चे नसरपुर में पैदा होगा एक खतरे से अपने लोगों को बचाने के लिए । और उस दिव्य बालक को संत झूलेलाल माना जाता है। उस अवधि के लिए अनुयायियों सादगी का जीवन जीने के लिए और दाढ़ी नहीं है । वे नए कपड़े नहीं पहनते हैं । इस प्रकार सब कुछ से दूर आलीशान रखते हुए । वे वरुण की पूजा, पानी के देवता के रूप में माना जाता है और सांत्वना और मोक्ष के लिए उनकी स्तुति करते है। भारत भर में विभिन्न धर्म, समुदाय और जातियों का समावेश है इसलिए यहां अनेकता में एकता के दर्शन होते हैं। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि यहां सभी धर्मों के त्योहारों को प्रमुखता से मनाया जाता है, चाहे दिवाली हो, ईद या फिर क्रिसमस या फिर भगवान झूलेलाल जयंती।सिंधी समुदाय का त्योहार भगवान झूलेलाल का जन्मोत्सव 'चेटीचंड' के रूप में पूरे देश में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस त्योहार से जुड़ी हुई वैसे तो कई किवंदतियां हैं परंतु प्रमुख यह है कि चूंकि सिंधी समुदाय व्यापारिक वर्ग रहा है सो ये व्यापार के लिए जब जलमार्ग से गुजरते थे तो कई विपदाओं का सामना करना पड़ता था। जैसे समुद्री तूफान, जीव-जंतु, चट्‍टानें व समुद्री दस्यु गिरोह जो लूटपाट मचा कर व्यापारियों का सारा माल लूट लेते थे। इसलिए इनके यात्रा के लिए जाते समय ही महिलाएं वरुण देवता की स्तुति करती थीं व तरह-तरह की मन्नते मांगती थीं। चूंकि भगवान झूलेलाल जल के देवता हैं अत: यह सिंधी लोग के आराध्य देव माने जाते हैं। जब पुरुष वर्ग सकुशल घर लौट आता था तब चेटीचंड को उत्सव के रूप में मनाया जाता था। मन्नतें मांगी जाती थी और भंडारा किया जाता था। पार्टीशन के बाद जब सिंधी समुदाय भारत में आया तब सभी तितर-बितर हो गए। तब सन् 1952 में प्रोफेसर राम पंजवानी ने सिंधी लोगों को एकजुट करने के लिए अथक प्रयास किए। वे हर उस जगह गए जहां सिंधी लोग रह रहे थे। उनके प्रयास से दोबारा भगवान झूलेलाल का पर्व धूमधाम से मनाया जाने लगा जिसके लिए पूरा समुदाय उनका आभारी है।

इतिहास[संपादित करें]

Soil lamp (ମାଟି ଦୀପ) (2)
चेटीचंड महोत्सव के बारे में बताया जाता है कि सिंध प्रदेश के ठट्ठा नामक नगर में एक मिरखशाह नामक राजा का राज्य था जो हिन्दुओं पर अत्याचार करता था। वह हिन्दुओं पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डालता था। एक बार उसने धर्म परिवर्तन के लिए सात दिन की मोहलत दी।तब कुछ लोग परेशान होकर सिंधु नदी के किनारे आ गए और भूखे-प्यासे रहकर वरूण देवता की उपासना करने लगे। तब प्रभु का हृदय पसीज गया और वे मछली पर दिव्य पुरुष के रूप में अवतरित हुए। भगवान ने सभी भक्तों से कहा कि तुम लोग निडर होकर जाओ मैं तुम्हारी सहायता के लिए नसरपुर में अपने भक्त रतनराय के घर माता देवकी के गर्भ से जन्म लूंगा। बड़े होने पर जब राजा का अत्याचार नहीं घटा तो वरूण देव ने अपने प्रभाव से उसे शरण लेने मजबूर कर दिया। तब से सभी मिल-जुलकर रहने लगे।

भगवान झूलेलाल का जिन मंत्रों से इनका आह्वान किया जाता है उन्हें लाल साईं जा पंजिड़ा कहते हैं। वर्ष में एक बार सतत चालीस दिन इनकी अर्चना की जाती है जिसे 'लाल साईं जो चाली हो' कहते हैं। इन्हें ज्योतिस्वरूप माना जाता है अत: झूलेलाल मंदिर में अखंड ज्योति जलती रहती है, शताब्दियों से यह सिलसिला चला आ रहा है।

निष्कर्ष[संपादित करें]

सिंधी समाज द्वारा चेटीचंड धूमधाम के साथ मनाया जाता है। वर्ष भर में जिनकी मन्नत पूरी हुई हो, वे आज के दिन भगवान झूलेलालजी का शुक्राना जरूर अदा करते हैं। साथ ही नई मन्नतों का सिलसिला भी इसी दिन से शुरू हो जाता है।इस दिन केवल मन्नत मांगना ही काफी नहीं, बल्कि भगवान झूलेलाल द्वारा बताए मार्ग पर चलने का भी प्रण लेना चाहिए। भगवान झूलेलाल ने दमनकारी मिर्ख बादशाह का दमन नहीं किया था, केवल मान-मर्दन किया था यानी कि सिर्फ बुराई से नफरत करो, बुरे से नहीं।चेटीचंड महोत्सव पर कई स्थानों पर भव्य मेले भरते हैं और शोभायात्रा निकाली जाती है। पूरे विश्व में चैत्र मास की चंद्र तिथि पर भगवान झूलेलाल की जयंती बड़े उत्साह, श्रद्धा एवं उमंग के साथ मनाई जाती है।