सती प्रभावती

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सती प्रभावती गुनौर के राजा की रानी थी।[1][2][3] रानी प्रभावती के रूप, लावण्य और गुणों में उनके समान उस समय बहोत कम ही रूपवान ऐसी थीं। उनकी सुन्दरता की ख्याति पर मुग्ध होकर निकटस्थ यवनाधिपति ने गुन्नौर पर चढ़ाई की। रानी बड़ी वीरता से लढी। बहुत-से राजपूत और यवन सैनिक मारे गये। जब थोड़ी-सी सेना शेष रह गयी, रानी गुन्नौर किले से नर्मदा किले में चली गयी । गुन्नोर पर यवनों का आधिपत्य स्थापित हो गया। यवनसेना ने उनका पीछा किया। रानी ने किले के फाटक बंद करवा लिये। बहुत से राजपूत मारे गये । यवनाधिपति ने रानी को पत्र लिखा कि तुम आत्मसमर्पण कर दो। उसने यह भी लिखा था कि तुम, मेरे साथ विवाह कर लो, मैं राज्य छोड़ दूँगा और दास की तरह रहूँगा। रानी पत्र पाकर क्रोध से जल उठी, पर अन्य उपायों से रक्षा न होती देख कर उसने कूटनीति से उस दुष्ट को उचित शिक्षा देनी चाही । रानी ने उसे लिखा 'कि में विवाह करने के लिये तैयार हूँ, किन्तु विवाह योग्य पोशाक आपके पास तैयार नहीं है। मैं पोशाक भेजती हूँ, आप उसी को पहनकर पधारें।' दुष्ट यवन शादी की पोशाक पहन कर महल में पहुँचा। रानी का दिव्य रूप देखकर बह दुष्ट चिल्ला उठा - 'यह तो अप्सरा है।' रानी उसे देखती रही। रानी ने उस नीच से कहा - "खाँ साहेब ! अब आपकी अन्त की घड़ी आ पहुँची है। मेरे बदले मृत्युदेवी से विवाह हो रहा है। आपकी कामान्धता से सतीत्व-रत्न की रक्षा के लिये इसके अतिरिक्त ओर उपाय ही नहीं था कि आपकी मृत्यु के लिये विष से रँगी पोशाक भेजती।”[3]

इतना कहकर उस सती ने ईश्वर का नाम लिया और फिर नर्मदा नदी की पवित्र लहरीयों में कूदकर अपने प्राण त्याग दिये। यवन भी वहीं पर तड़प-तड़प कर मर गया । प्रभावती के सतीत्व की प्रभा से गुनौर राज्य का कोनाकोना आलोकित हो उठा। उसका जीवन धन्य था।[3]

संस्कृत साहित्य में भी सती प्रभावती की कथा पर यह श्लोक प्रसिद्ध है -

प्रभावती महाराज्ञी वीरा परमसुन्दरी ।

कामुकं म्लेच्छराजं तं विवाह विधिनाऽवधीत् ॥[4]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. Chaudhary, Brig Dr Bhuwnesh (2021-11-29). BHARAT-NIRMAN MEIN NARIYON KA YOGDAN: BHARAT-NIRMAN MEIN NARIYON KA YOGDAN: The Contribution of Women in India's Development by Brig. Dr. Bhuwnesh Chaudhary. Prabhat Prakashan. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5521-192-7.
  2. Jain, Meera (2009-01-01). Bharat Ki Veeranganayen: Bestseller Book by Meera Jain: Bharat Ki Veeranganayen. Prabhat Prakashan. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-85828-64-0.
  3. Vayed, Mahalchand. Bharatiya Virangana Pratham Bhag. 1. पपृ॰ 128–130. अभिगमन तिथि 2017-01-15.
  4. Ishwar Ashram Trust. Veerangana Vaibhava Pandit Raj Gopal Shastri. पृ॰ 130. अभिगमन तिथि 2017-10-05.