संकट प्रबंधन

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संकट प्रबंधन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक संगठन किसी मुख्य अप्रत्याशित घटना से निपटता है, जिससे उस संगठन, उसके शेयरधारकों, या आम जनता को नुकसान पहुंचने का खतरा रहता हो. संकट की अधिकांश परिभाषाओं में तीन तत्व आम हैं: (क) संगठन के लिए एक खतरा, (ख) आश्चर्य का तत्व, एवं (ग) अल्प निर्णयावधि .[1] वेनेट तर्क देते हैं कि "संकट बदलाव की एक प्रक्रिया है, जिसमें पुरानी प्रणाली बरकरार नहीं रह सकती है।"[2] अतः चौथी परिभाषित गुणवत्ता परिवर्तन की आवश्यकता है। यदि परिवर्तन की आवश्यकता न हो, तो उस प्रसंग का वर्णन एक असफलता या घटना के रूप में सटीक तरीके से किया जा सकता है।

जोखिम प्रबंधन, जिसमें संभाव्य खतरों का आकलन और उन खतरों से बचने का सर्वोत्तम तरीकों की खोज शामिल है, के विपरीत संकट प्रबंधन में खतरा आ जाने पर उससे निपटना शामिल है। यह किसी गंभीर परिस्थिति को पहचानने, आकलन करने, समझने और जूझने के लिए ज़रूरी कौशल और तकनीकों सहित प्रबंधन के व्यापक सन्दर्भ के तहत एक अनुशासन है, ख़ास तौर पर इसके पहली बार घटने के क्षण से लेकर संभलने की प्रक्रिया शुरू होने तक.

परिचय[संपादित करें]

संकट प्रबंधन में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • संकट की वास्तविकता और अवधारणा, दोनों पर प्रतिक्रिया का तरीक़ा.
  • जिन परिदृश्यों में एक संकट गठित होता है, उसे परिभाषित करने के लिए मेट्रिक्स की स्थापना करना और तदनुसार आवश्यक प्रतिक्रिया तंत्र की गति तीव्रतर करना.
  • आपातकालीन प्रबंधन परिदृश्य की प्रतिक्रिया चरण के तहत होने वाले संवाद.

किसी व्यवसाय या संगठन के संकट प्रबंधन के तरीक़ों को संकट प्रबंधन योजना कहा जाता है।

संकट प्रबंधन को कभी-कभी दुर्घटना प्रबंधन के रूप में संदर्भित किया जाता है, हालांकि पीटर पावर सरीखे कई उद्योग विशेषज्ञ यह तर्क देते हैं कि संकट प्रबंधन शब्द अधिक सटीक है। [3]

संगठनों की विश्वसनीयता एवं प्रतिष्ठा पर संकट प्रबंधन के दौरान उनकी प्रतिक्रिया की अवधारणा का गहरा प्रभाव रहता है। एक समयबद्ध तरीके से संकट से निबटने में शामिल संगठन एवं संवाद व्यवसाय के लिए एक चुनौती होता है। एक सफल संकट संवाद प्रक्रिया में योगदान देने के लिए समूचे पदानुक्रम में खुला एवं नियमित संवाद होना लाज़मी है।

आपातकाल प्रबंधन एवं व्यवसाय निरंतरता प्रबंधन जैसे संबंधित शब्द क्रमशः त्वरित लेकिन अल्पकालीन "प्राथमिक उपचार" की तरह की प्रतिक्रिया (मसलन आग बुझाना) एवं दीर्घकालीन उपचार एवं बहाली चरणों (मसलन कार्यवाही को किसी दूसरे स्थान पर ले जाना) पर जोर डालते हैं। संकट भी जोखिम प्रबंधन का ही एक पहलू है। हालांकि यह कहना सच नहीं होगा कि चूंकि सर्वनाश के जोखिम को पूर्ण रूप से कम करना कभी संभव नहीं हो सकता इसीलिए संकट प्रबंधन जोखिम प्रबंधन की विफलता का प्रतिनिधित्व करता है।

संकट के प्रकार[संपादित करें]

संकट प्रबंधन की प्रक्रिया के दौरान यह महत्वपूर्ण है कि संकट के प्रकार जान लिए जाएं, क्योंकि विभिन्न संकटों में भिन्न-भिन्न संकट प्रबंधन रणनीति की आवश्यकता होती है।[4] संभाव्य संकट असंख्य हैं लेकिन उनके समूह बनाए जा सकते हैं।[4]

लर्बिंगर ने संकटों के सात प्रकार का वर्गीकरण किया है[5]

  1. प्राकृतिक आपदा
  2. प्रौद्योगिकी संकट
  3. टकराव
  4. द्रोह
  5. विषम प्रबंधन मूल्य का संकट
  6. धोखे का संकट
  7. प्रबंधन कदाचार का संकट

प्राकृतिक संकट[संपादित करें]

प्राकृतिक संकट - प्राकृतिक आपदाओं को आम तौर पर "ईश्वर का कहर" माना जाता है - भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, आंधी-तूफ़ान, बाढ़, भूस्खलन, ज्वार लहर, चक्रवाती तूफ़ान एवं सूखा आदि ऐसी पर्यावरणी घटनाएं हैं जो जीवन, संपदा, एवं स्वयं पर्यावरण के लिए खतरा हैं।

उदाहरण: वर्ष 2004 का हिंद महासागर भूकंप (सुनामी)

प्रौद्योगिकी संकट[संपादित करें]

प्रौद्योगिकी संकट विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के मानव अनुप्रयोग के कारण पैदा होता है। जब प्रोद्योगिकी जटिल रूप ले लेती है और युग्मित होती है और प्रणाली में पूर्णतया कोई गड़बड़ी हो गयी हो (प्रोद्योगिकीय ब्रेकडाउन) तो प्रद्योगिकी दुर्घटनाएं होना अवश्यंभावी है। कुछ प्रोद्योगिकी संकट तब उत्पन्न होते हैं जब मानवीय भूल अवरोधों (मानवीय ब्रेकडाउन) का कारण बनता है।[4] लोग प्रोद्योगेकीय आपदा के लिए दोष मढ़ने को तैयार रहते हैं क्योंकि प्रोद्योगिकी मानवीय हेरफेर का विषय है जबकि वे प्राकृतिक आपदा के लिए किसी को ज़िम्मेदार नहीं ठहराते. जब कोई दुर्घटना महत्वपूर्ण पर्यावरण क्षति का कारण बनता है तो उस संकट को महाविनाश के रूप में वर्गीकृत करते हैं।[4] नमूनों में सॉफ्टवेयर विफलता, आद्योगिक दुर्घटनाएं, एवं तेल फैलाव शामिल हैं।[4][5]

उदाहरण: चेर्नोबिल (Chernobyl) आपदा, एक्सोन वाल्डेज़ (Exxon Valdez) तेल फैलाव

टकराव संकट[संपादित करें]

टकराव संकट तब उत्पन्न होता है जब असंतुष्ट व्यक्ति/या समूह अपनी मांगों और अपेक्षाओं को मनवाने के लिए व्यवसायों, सरकार एवं विभिन्न हित समूहों से लड़ते हैं। वहिष्कार टकराव संकट का आम प्रकार है एवं धरना, बैठना, प्राधिकारियों को अंतिम चेतावनी देना, इमारत की नाकाबंदी या कब्ज़ा एवं पुलिस का विरोध या उसकी अवज्ञा करना अन्यान्य प्रकार हैं।

उदाहरण: रेनबो (Rainbow)/पुश (PUSH) [मानवता की सेवा करने के लिए एकत्रित लोग] द्वारा नाइक (Nike) का वहिष्कार

द्रोह संकट[संपादित करें]

जब विरोधी लोग या उपद्रवी व्यक्ति संभवतः अस्थिरता या विध्वंस फैलाने के उद्देश्य से किसी कंपनी, देश, या आर्थिक प्रणाली से लाभ उठाने या उसके प्रति अपना विरोधभाव या क्रोध जताने के लिए आपराधिक उपायों या अन्यान्य चरम दांव-पेंच का इस्तेमाल करते हैं, तो संगठन को द्रोह संकट का सामना करना पड़ता है। ऐसे संकट के नमूनों के तौर पर उत्पाद छेड़छाड़, अपहरण, दुर्भावनापूर्ण अफवाहें, आतंकवाद एवं जासूसी शामिल हैं।[5][4]

उदाहरण: 1982 की शिकागो टाइलेनोल हत्याएं

संगठनात्मक दुष्कर्म का संकट[संपादित करें]

यह संकट तब उत्पन्न होता है जब प्रबंधन बिने पर्याप्त सावधानी के एवं यह जानते हुए भी कोई कार्रवाई करती है कि इससे शेयर धारकों को नुकसान पहुंचेगा या उनके लिए जोखिम की स्थिति पैदा होगी.[4] लर्बिंगर ने संगठनात्मक दुष्कर्मों के तीन भिन्न प्रकार वर्गीकृत किये हैं: विषम प्रबंधन मूल्य का संकट, धोखे का संकट एवं प्रबंधन के कदाचार का संकट.[5]

विषम प्रबंधन मूल्यों का संकट[संपादित करें]

विषम प्रबंधन मूल्यों का संकट तब पैदा होता है जब प्रबंधक अल्पकालिक आर्थिक लाभ का पक्ष लेते हैं और निवेशकों के अलावा शेयर धारकों एवं व्यापक सामाजिक मूल्यों की अवहेलना करते हैं। एकतरफा मूल्यों की यह स्थिति प्रतिष्ठित व्यवसाय की जड़ों में बसा हुआ है जो शेयरधारकों के हितों पर ध्यान देता है एवं ग्राहकों, कर्मचारियों एवं समुदाय जैसे अन्यान्य शेयरधारकों के हितों को देखता है।

उदहारण: सियर्स (Sears) द्वारा ग्राहकों के विश्वास का त्याग[तथ्य वांछित]

धोखे का संकट[संपादित करें]

धोखे का संकट तब पैदा होता है जब प्रबंधन ग्राहकों से अपने व्यवहार में स्वयं अपने एवं अपने उत्पाद के बारे में सूचनाएं छिपाती है या उसे गलत ढंग से पेश करती है।

उदाहरण: डॉ कॉर्निंग (Dow corning) का सिलिकॉन-जेल स्तन प्रत्यारोपण

प्रबंधन कदाचार का संकट[संपादित करें]

कुछ संकट न सिर्फ विषम मूल्यों एवं धोखे से बल्कि सोची-समझी अनीति एवं अवैधता से भी पैदा होती हैं।

उदाहरण: मार्था स्टीवर्ट (Martha Stewart) जालसाज़ी का मामला

कार्यस्थल की हिंसा[संपादित करें]

यह संकट तब पैदा होती है जब कोई कर्मचारी या भूतपूर्व कर्मचारी संगठनात्मक आधार पर अन्य कर्मचारियों के खिलाफ हिंसा करता है।

उदाहरण: ड्यूपौंट (DuPont) का लाइक्रा[तथ्य वांछित]

अफवाहें[संपादित करें]

किसी संगठन या उसके उत्पाद के बारे में गलत जानकारी संगठन की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाते हुए संकट की स्थिति पैदा करती है। जैसे कि किसी संगठन का संबंध किसी कट्टरपंथी समूह से होने की बात फैलाना या उसके उत्पाद के बारे में यह फैलाना कि वे दूषित हैं।

उदहारण: प्रॉक्टर एण्ड गैम्बल (Procter&Gamble) का लोगो विवाद

संकट प्रबंधन से जुड़े मॉडल एवं सिद्धांत[संपादित करें]

संकट प्रबंधन मॉडल[संपादित करें]

किसी संकट को सफलतापूर्वक विफल करने के लिए उसके घटने से पहले यह समझ ज़रूरी है कि किसी संकट से कैसे निबटना है। गोंज़ालेज़-हेरेरो एण्ड प्रैट ने संकट प्रबंधन मॉडल प्रक्रिया के चार-चरण बनाए हैं, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं: प्रबंधन मुद्दे, निवारण-योजना, संकट एवं संकटोपरांत (गोंज़ालेज़-हेरेरो एण्ड प्रैट, 1995). यह परिभाषित करना एक कला है कि असल में संकट क्या है या हो सकता है एवं यह कैसे उत्पन्न होता या हो सकता है।

प्रबंधन संकट योजना[संपादित करें]

कोई भी कॉर्पोरेशन यह नहीं चाहता है कि कोई भी स्थिति उनके व्यवसाय के लिए महत्वपूर्ण बाधा का कारण बने, ख़ास तौर पर वह जो व्यापक मीडिया कवरेज को बढ़ावा दे. सार्वजनिक जांच का परिणाम नकारात्मक वित्तीय, राजनीतिक, कानूनी एवं सरकारी प्रभाव हो सकता है। संकट प्रबंधन योजना किसी संकट से निबटने की सर्वोत्तम प्रतिक्रिया उपलब्ध कराती हैं।<vijay ="12Manage">"Rigor and Relevance in Management". 12Manage.com. http://www.12manage.com/methods_crisis_management_advice.html. अभिगमन तिथि: 11 अक्टूबर 2007. </ref>

आकस्मिक योजना[संपादित करें]

संकट प्रबंधन योजना के हिस्से के रूप में अग्रिम आकस्मिक योजना तैयार करना किसी संगठन के संकट से निबटने के लिए सही तरीके से तैयार होने की तरफ पहला क़दम है। संकट प्रबंधन टीमें एक ड्रिल के रूप में इस्तेमाल करने के लिए एक झूठा परिदृश्य विकसित कर किसी संकट योजना का अभ्यास कर सकते हैं। इस योजना में स्पष्टतः यह निर्धारित करना चाहिए कि संकट के बारे में सार्वजनिक रूप से बातचीत केवल नामित व्यक्ति ही कर सकते हैं, यथा कंपनी के प्रवक्ता या संकट टीम सदस्य. किसी संकट के घटित होने के बाद पहला घंटा सबसे महत्वपूर्ण है, इसलिए गति और कुशलता के साथ काम करना ज़रूरी है एवं योजना को यह इंगित करना चाहिए कि प्रत्येक कार्य को कितनी तीव्रता से किया जाना चाहिए. बाहरी और साथ ही आतंरिक बयान देने की तैयारी करते समय सूचना एकदम सटीक होनी चाहिए. गलत या हेरफेर वाली सूचनाएं देने से उसके व्यर्थ होने के आसार रहते हैं और इससे स्थिति और बदतर हो सकती हैं। आकस्मिक योजना में सूचना एवं दिशानिर्देश होने चाहिएं, जिससे निर्णय करने वालों को न सिर्फ प्रत्येक निर्णय के अल्पकालिक परिणामों पर बल्कि उनके दीर्घकालिक प्रभावों पर भी विचार करने में मदद मिलेगी.

व्यवसाय निरंतरता योजना[संपादित करें]

जब कोई संकट निस्संदेह तौर पर किसी संगठन के लिए महत्वपूर्ण विघटन का कारण बनता है, एक व्यवसाय निरंतरता योजना इस विघटन को कम करने में मददगार हो सकती है। सर्वप्रथम, संगठनात्मक कार्य चलाने के लिए आवश्यक नाज़ुक कार्यों एवं प्रक्रियाओं को पहचानना अतिआवश्यक है। फिर किसी एक कार्य/प्रक्रिया के अंत या विफल होने की स्थिति में प्रत्येक नाज़ुक कार्य एवं/या प्रक्रिया की अपनी एक निजी आकस्मिक योजना होनी चाहिए. अपेक्षित कार्रवाइयों के अभ्यास द्वारा इन आकस्मिक योजनाओं के परिक्षण से सभी समागत लोगों को संकट की संभावना के प्रति अधिक जागरूक एवं संवेदनशील बनने में मदद मिलेगी. परिणामस्वरूप, वास्तविक संकट के समय में दल के सदस्य अधिक त्वरित एवं प्रभावी कार्रवाई कर सकेंगे.[6]

संरचनात्मक-कार्यात्मक प्रणाली सिद्धांत[संपादित करें]

संकट के समय में किसी संगठन को सूचना उपलब्ध कराना प्रभावी संकट प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण है। संरचनात्मक-कार्यात्मक प्रणाली सिद्धांत संगठनात्मक संचार का गठन करने वाले सूचना तंत्रों एवं कमानों के स्तरों की जटिलताओं से संबंधित है। संरचनात्मक-कार्यात्मक सिद्धांत सदस्यों एवं "लिंक" द्वारा निर्मित "नेटवर्क" के रूप में संगठन के सूचना प्रवाह को पहचानता है। संगठन प्रवाह के ढांचे में सूचनाओं को नेटवर्क कहा जाता है।[7]

नवीनता के प्रसार का सिद्धांत[संपादित करें]

नवीनता के प्रसार का सिद्धांत सूचना का साझा करने में प्रयुक्त एक और सिद्धांत है। एवरेट रॉजर्स (Everett Rogers) द्वारा विकसित यह सिद्धांत बताता है कि कैसे एक अवधि के दौरान कुछ चैनलों के माध्यम से नवीनता का प्रसार एवं संचार किया जाता है। संचार द्वारा नवीनता का प्रसार तब होता है जब कोई व्यक्ति एक नए विचार को किसी अन्य व्यक्ति या बहुत से अन्यान्य व्यक्तियों को बताता है। अपने सबसे बुनियादी रूप में इस प्रक्रिया के अंतर्गत निम्नलिखित शामिल हैं : (1) एन नवीनता, (2) अभिग्रहण का एक व्यक्ति या उसकी अन्य ईकाई जिसके पास नवीनता का ज्ञान या उसके प्रयोग का अनुभव हो, (3) अन्य व्यक्ति या अन्य इकाई जिसे अब तक नवीनता का कोई ज्ञान न हो, एवं (4) दोनों इकाइयों को जोड़ने वाला एक संचार चैनल. एक संचार चैनल वह साधन है जिसके द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक सन्देश पहुंचाते हैं।

संकट प्रबंधन में क्षमा-याचना की भूमिका[संपादित करें]

संकट प्रबंधन में क्षमा याचना की भूमिका बहस का विषय रही है एवं कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि क्षमा याचना से कानूनी पचड़ों में पड़ने की सम्भावना के रास्ते खुल जाते हैं। "हालांकि कुछ साक्ष्य संकेत देते हैं कि संकट की ज़िम्मेदारी लेते हुए संगठन के प्रति लोगों के विचारों को आकार देने में कम खर्चीली दो रणनीतियां मुआवजा और सहानुभूति उतनी ही प्रभावी हैं जितनी कि क्षमायाचना, क्योंकि ये दो रणनीतियां पीड़ितों की ज़रूरतों पर ध्यान देती हैं। सहानुभूति द्वारा पीड़ितों के प्रति चिंता जताई जाती है जबकि मुआवजा पीड़ितों को मुश्किलों से उबरने के लिए कुछ मदद मुहैया करता है।[8]

सफल संकट प्रबंधन के उदाहरण[संपादित करें]

टाइलेनोल (Tylenol) (जॉन्सन एण्ड जॉन्सन (Johnson and Johnson))[संपादित करें]

1982 के अंत में एक हत्यारे ने दूकान की सेल्फ पर रखे कुछ टाइलेनोल (Tylenol) कैप्सूलों में 65 मिलीग्राम साइनाइड मिला दिया जिससे सात लागों की मृत्यु हो गयी जिनमें से तीन एक ही परिवार के सदस्य थे। जॉन्सन एण्ड जॉन्सन (Johnson & Johnson) ने चर्चा कर $100 मिलियन की लागत पर 31 मिलियन कैप्सूलों को नष्ट कर दिया. मिलनसार सीईओ (CEO) जेम्स बर्क टेलिविज़न विज्ञापनों और समाचार सम्मेलनों में नज़र आये और ग्राहकों को कंपनी की कार्रवाइयों की सूचना दी. छेड़छाड़ प्रतिरोधी पैकेजिंग तेज़ी से शुरू की गयी और टाइलेनोल (Tylenol) की बिक्री पुनः लगभग संकट पूर्व स्तर तक लौट आई.[9]

1986 में जॉन्सन एण्ड जॉन्सन (Johnson & Johnson) ऐसे ही एक और संकट के घेरे में आ गया जब 8 फ़रवरी को न्यू यॉर्क की एक महिला का साइनाइड में सने कैप्सूल खाने से मृत्यु हो गई। जॉन्सन एण्ड जॉन्सन (Johnson & Johnson) तैयार था। इस संकट से तेज़ी से और सुचारू रूप से निबटते हुए उसने तुरंत और अनिश्चित काल के लिए टाइलेनोल के टेलीविज़न विज्ञापनों को रद्द कर दिया, उपभोक्ताओं के प्रश्नों का जवाब देने के लिए एक टोल-फ्री टेलीफोन हॉट लाइन चालू की एवं जो ग्राहक टाइलेनोल कैप्सूल खरीद चुके थे, उन्हें पैसे वापस किये या उन्हें उसके बदले दूसरी दवाइयां दी. सप्ताहांत में जब एक दूकान में दूषित टाइलेनोल की एक और बोतल पायी गई, तो निर्माताओं को लोगों को कैप्सूल आकार में कोई दवा लेने से मना करते हुए एक राष्ट्रव्यापी चेतावनी जारी करने में महज़ एक मिनट का वक़्त लगा.[10]

ओड्वाला फूड्स (Odwalla Foods)[संपादित करें]

जब ओड्वाला (Odwalla) के एपल जूस को ई.कोली संक्रमण फैलाने का एक कारण माना गया, तो कंपनी ने अपने बाज़ार मूल्य का एक तिहाई गंवा दिया. अक्टूबर 1996 में वाशिंगटन राज्य, कैलिफोर्निया, कोलोरैडो एवं ब्रिटिश कोलंबिया में अपास्चुरीकृत एपल जूस में ई.कोली जीवाणु का अंश पाया गया, जिसे प्राकृतिक जूस निर्माता ओड्वाला इंक द्वारा तैयार किया गया था। एक शिशु की मृत्यु सहित उनचास मामले सामने आये थे। 24 घंटों के भीतर ओड्वाला ने एफडीए (FDA) तथा वाशिंगटन राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श किया; दैनिक प्रेस ब्रीफिंग का कार्यक्रम चालू किया; वापस लेने की घोषणा करते हुए प्रेस विज्ञप्तियां जारी की गयीं; पश्चाताप, संवेदना एवं क्षमायाचना अभिव्यक्त किया, एवं अपने उत्पाद से क्षतिग्रस्त लोगों की जिम्मेवारी ली; ई.कोली विषाक्तता के लक्षणों का ब्यौरा लिया; एवं समझाया कि दूषित उत्पादों के साथ ग्राहकों को क्या करना चाहिए. फिर ओड्वाला ने सलाहकारों की मदद से प्रभावी थर्मल प्रक्रियाओं की स्थापना की, जिससे उत्पादों को वापस शुरू करने पर उनके जायके को कोई नुकसान नहीं पहुंचता. इन सभी चरणों की सूचना मीडिया के साथ करीबी संपर्क रखते हुए एवं अखबारों में पूरे पन्नों का विज्ञापन डाल कर दी गई।[11]

मैटेल (Mattel)[संपादित करें]

खिलौना निर्माता मैटेल इंक. (Mattel Inc.), को 28 से भी ज्यादा उत्पादों को बाज़ार से वापस लेना पड़ा एवं 2007 की गर्मियों में चीन से निर्यात में हो रही समस्याओं के बीच दो हफ़्तों में दो उत्पादों की बाज़ार से वापसी का सामना करना पड़ा. कंपनी ने अपने सन्देश को लोगों तक पहुंचाने की हरसंभव कोशिश की और उपभोक्ताओं और खुदरा विक्रेताओं का विश्वास हासिल किया। हालात से परेशान रहने के बावजूद उन्होंने कंपनी की प्रतिक्रया की सराहना की. मैटेल में सुबह 7 बजे के ठीक बाद ही संघीय अधिकारियों द्वारा उत्पाद वापसी की घोषणा की गयी। यह 16 लोगों का एक जन संपर्क अधिकारी दल था, जिसे 40 सबसे बड़े मीडिया गृहों में संवाददाताओं को बुलाने के लिए निर्दिष्ट किया गया था। उन्होंने प्रत्येक को अपने उत्पाद वापसी के बारे में प्रेस विज्ञप्ति के लिए अपना ई-मेल देखने को कहा तथा उन्हें अधिकारियों के साथ एक टेलीकॉन्फरेंस के लिए आमंत्रित किया तथा मैटेल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के साथ फ़ोन पर वार्तालाप अथवा टीवी कार्यक्रम का समय निर्धारित किया। मैटेल के सीईओ (CEO) रॉबर्ट एकार्ट ने अगस्त में एक मंगलवार के दिन 14 टीवी साक्षात्कार दिए एवं 20 पत्रकारों से अलग-अलग फोन पर बातचीत की. सप्ताहांत तक मैटेल ने सिर्फ अमेरिका में ही 300 से अधिक मीडिया पूछताछ का जवाब दिया.[12]

पेप्सी (Pepsi)[संपादित करें]

पेप्सी कॉर्पोरेशन (Pepsi Corporation) को 1993 में एक संकट का सामना करना पड़ा था, जो खाद्य पेप्सी के डिब्बे में सूई पाए जाने के दावों के साथ शुरू हुआ। पेप्सी ने दुकानों से आग्रह किया कि वे अपने ताक़ों पर से उत्पाद न हटायें यदि उनपर डिब्बे हों एवं हालात का जायज़ा किया गया। इससे एक गिरफ्तारी हुई जिसे पेप्सी ने सार्वजनिक किया एवं उसके बाद अपनी पहली न्यूज़ रिलीज़ जारी की, जिसमें - यह प्रदर्शित करने के लिए कि उनके कारखानों के भीतर इस तरह की छेड़-छाड़ असंभव थी - निर्माण प्रक्रिया को दर्शाया गया। एक दूसरे वीडियो न्यूज़ रिलीज़ में उस आदमी की गिरफ्तारी दिखाई गयी। एक तीसरे न्यूज़ रिलीज़ में उपयोगी वस्तुओं की एक दुकान में निगरानी दिखाई गई जहां एक महिला को उत्पाद के साथ छेड़-छाड़ की वही घटना दोहराते हुए पकड़ा गया। साथ ही साथ संकट के समय कंपनी एफडीए (FDA) के साथ मिलकर सार्वजनिक रूप से भी कार्य कर रही थी। कॉर्पोरेशन हर समय जनता के लिए पूरी तरह से खुला था और पेप्सी (Pepsi) के हर कर्मचारी को हर एक ब्योरे की जानकारी थी।[उद्धरण चाहिए] इससे संकट के पूरे दौर में सार्वजनिक संचार प्रभावी बना रहा. संकट से उबरने के बाद, कॉर्पोरेशन ने विशेष अभियानों की एक श्रृंखला चलाई जो कॉर्पोरेशन का समर्थन करने के लिए लोगों का शुक्रिया अदा करने एवं भावी मुआवज़े के लिए कूपन देने के लिए बनाया गया था। इस मामले ने, अन्य संकटों से कैसे निपटना है इसकी एक रूपरेखा तैयार की.[13][उद्धरण चाहिए]

संकट प्रबंधन से सीखे गए सबक[संपादित करें]

शेयरधारकों के मूल्य पर हठात आई घोर आपदा का प्रभाव[संपादित करें]

किसी संगठन के शेयर मूल्य पर हठात आई घोर आपदा के प्रभाव पर किये गए अध्ययनों में सबसे पहले प्रकाश में आया अध्ययन डॉ॰ रोरी नाईट एवं डॉ डिबोरा प्रेटी द्वारा पूरा किया गया था (1995, टेम्पलटन कॉलेज, यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड - सेडगेविक समूह द्वारा गठित). इस अध्ययन में हठात आई घोर आपदा के अनुभव वाले संगठन के शेयर मूल्यों (पश्च प्रभाव) का विस्तृत विश्लेषण किया गया था। इस अध्ययन ने उन संगठनों की पहचान की जो न केवल हठात आई घोर आपदा से उबरे बल्कि पूर्व-आपदा शेयर मूल्यों से भी आगे बढ़ निकले, (रिकवरर्स), एवं उन संगठनों की भी पहचान की जो शेयर मूल्यों पर वापस नहीं लौट पाए, (नॉन-रिकवरर्स). रिकवररों के लिए शेयर धारक मूल्य पर औसत संचयी प्रभाव उनके मूल शेयर मूल्य से 5% अधिक था। अतः इस स्तर तक शेयरधारक मूल्य पर कुल प्रभाव असल में सकारात्मक था। नॉन रिकवरर्स हठात आई घोर आपदा के बाद 5 से 50 दिनों के बीच कमोबेश अपरिवर्तित रहे, लेकिन उसके एक साल बाद तक उनके शेयर मूल्य पर तकरीबन 15% का शुद्ध नकारात्मक संचयी प्रभाव झेलना पड़ा.

इस अध्ययन के प्रमुख निष्कर्षों में से एक है कि "हठात आई घोर आपदा के परिणामों का प्रभावी प्रबंधन हठात आई घोर आपदा के प्रभाव से बीमा बचाव की बजाय एक अधिक महत्वपूर्ण कारक के रूप में सामने आएगा.

चूंकि इस रिपोर्ट के तकनीकी तत्व हैं, संकट प्रबंधन के मूल्य में शामिल होने के इच्छुक वरिष्ठ प्रबंधन के लिए इसकी पुरज़ोर सिफारिश की जाती है।[उद्धरण चाहिए]

भोपाल[संपादित करें]

भोपाल आपदा, जिसमें संकट के पहले, उसके दौरान और उसके बाद कमज़ोर संचार के कारण हज़ारों जाने चली गईं, संकट प्रबंधन योजनाओं में अंतः सांस्कृतिक संचार को शामिल करने के महत्त्व का एक उदाहरण प्रस्तुत करता है। अमेरिकी विश्विद्यालय के व्यापार पर्यावरण डाटाबेस केस स्टडीज़ (1997) के अनुसार स्थानीय निवासी इस बारे में निश्चित नहीं थे कि यूनियन कार्बाइड संयंत्र के संभावित खतरों की चेतावनी से कैसे जूझा जाय. केवल अंग्रेजी में छपे ऑपरेटिंग मैनुअल कुप्रबंधन का एक चरम उदाहरण लेकिन जानकारी के प्रसार की प्रणालीगत बाधाओं का सूचक है। यूनियन कार्बाइड (Union Carbide) की घटना (2006) के निजी कालक्रम के अनुसार संकट के एक दिन बाद यूनियन कार्बाइड का वरिष्ठ प्रबंधन दल भारत पहुंचा लेकिन वे राहत प्रयासों में मदद करने में असमर्थ रहे क्योंकि उन्हें भारत सरकार द्वारा गृह बंदी बना लिया गया था। प्रतीकात्मक हस्तक्षेप प्रति उत्पादक हो सकते हैं; संकट प्रबंधन रणनीति वरिष्ठ प्रबंधन को अधिक सुविचारित निर्णय लेने में मदद कर सकते हैं कि वे आपदा परिदृश्य से कैसे जूझें. भोपाल की घटना बहु-राष्ट्रीय संचालनों के नियमित व्यवहारिक प्रबंधन मानकों की परेशानियों एवं आरोप मंडन का उदाहरण है, जो अक्सर स्पष्ट प्रबंधन योजना की कमी का नतीजा होता है।[14]

फोर्ड एण्ड फायरस्टोन टायर एण्ड रबड़ कंपनी (Ford and Firestone Tire and Rubber Company)[संपादित करें]

फोर्ड-फायरस्टोन टायर एण्ड रबड़ कंपनी विवाद अगस्त 2000 में सामने आया। उन दावों कि उनके 15-इंच वाइल्डरनेस एटी (AT), रेडियल एटीएक्स (ATX) एवं एटीएक्स II (ATX II) टायर व्यापारों का टायर कोर से विच्छेद हो रहा था - जो भयानक बर्बादी की ओर ले जाता - के जावाब में ब्रिजस्टोन/फायरस्टोन ने 6.5 मिलियन टायर वापस ले लिए. ये टायर ज़्यादातर दुनिया के सबसे अधिक बिकने वाले एसयूवी (SUV) फोर्ड एक्स्प्लोरर पर इस्तेमाल किये जाते थे।[15]

संकट विशेषज्ञों के अनुसार इन दोनों कंपनियों ने जल्द ही तीन बड़ी भूलें की. पहली, उन्होंने उपभोक्ताओं पर यह दोष मढ़ दिया कि वे अपने टायरों में ठीक तरह से हवा नहीं भर रहे थे। उसके बाद वे एक-दूसरे पर ख़राब टायरों एवं ख़राब वाहन डिजाइन के लिए दोषारोपण करने लगे. और फिर उन्होंने समस्या समाधान के लिए अपनी कार्रवाइयों के बारे में बहुत कम बातचीत की, जिसने 100 से ज्यादा जानें ली - जब तक उन्हें कांग्रेस के समक्ष प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए बुला न लिया गया।[16]

एक्सोन (Exxon)[संपादित करें]

24 मार्च 1989 को एक्सोन कॉर्पोरेशन (Exxon Corporation) का एक टैंकर अलास्का के प्रिंस विलियम साउंड (Prince William Sound) में भूग्रस्त हो गया। एक्सोन वाल्डेज़ ने वाल्डेज़ से पानी में कच्चे तेल के बेहिसाब गैलन गिरा दिए जिससे हज़ारों मछलियां, मुर्गियां एवं समुद्री ऊदबिलाव मारे गए। समुद्री तट के हज़ारों मील प्रदूषित हो गए एवं सैमन मछलियों के अंडे तितर बितर हो गए; असंख्य मछुआरे, ख़ास तौर पर मूल अमेरिकियों ने अपनी आजीविका गंवा दी. इसके विपरीत एक्सोन ने मीडिया और जनता से बातचीत में तत्परता नहीं दिखाई; सीईओ (CEO) लॉरेंस रॉल जन संपर्क प्रयासों का सक्रिय हिस्सा नहीं बने एवं असल में वे जनता का सामना करने से कतरा गए; कंपनी की न तो कोई संचार योजना थी और न ही कोई संचार दल जो घटना को संभाल पाती - दरअसल कंपनी ने घटना के चार साल बाद सन 1993 तक किसी जन संपर्क प्रबंधक को नियुक्त ही नहीं किया था; एक्सोन ने अपना मीडिया केंद्र वाल्डेज़ में स्थापित किया जो बेहद छोटा एवं मीडिया के आक्रमणों का सामना करने के लिए काफी दूर अवस्थित था; एवं कंपनी ने जनता के साथ रक्षात्मक रुख अख्तियार किया, यहां तक कि कभी कभी तट रक्षकों आदि जैसे अन्य समूहों पर भी आरोप मढ़े. घटना के दिनों में भी इसी तरह की प्रतिक्रियाएं हुई थी।[17]

सार्वजनिक क्षेत्र का संकट प्रबंधन[संपादित करें]

कॉर्पोरेट अमेरिका ऐसा अकेला समुदाय नहीं है जो संकट के जोखिमों के प्रति संवेदनशील है। चाहे एक स्कूल शूटिंग हो, एक सार्वजनिक स्वस्थ्य संकट या आतंकवादी हमला जो लोगों को एक निर्वाचित अधिकारी के स्थायी, शांत नेतृत्व में सुकून की तलाश में छोड़ देती है, समाज का कोई भी वर्ग इस संकट से प्रतिरक्षित नहीं है। विभिन्न विषयों में वास्तविकता के जवाब में संकट प्रबंधन नीतियां, रणनीति एवं प्रथाएं विकसित एवं अनुकूलित की गयी हैं।

स्कूल और संकट प्रबंधन[संपादित करें]

कोलंबाइन हाई स्कूल हत्याकांड, 11 सितम्बर के 2001 हमले एवं वर्जिनिया टेक हत्याकांड सहित कॉलेज परिसर में गोलीबारी के बाद सभी स्तर के शैक्षणिक संस्थान अब संकट प्रबंधन पर ध्यान दे रहे हैं।[18]

यूनिवर्सिटी ऑफ अरकांसास फॉर मेडिकल साइन्सेज़ (UAMS) एवं अरकांसास चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल रिसर्च इंस्टीट्युट (ACHRI) द्वारा आयोजित एक राष्ट्रीय अध्ययन में दर्शाया गया है कि बहुत से सार्वजनिक विद्यालय जिलों में आपातकालीन एवं आपदा योजनाओं की भारी कमी है (विद्यालय हिंसा संसाधन केंद्र, 2003). इसके जवाब में रिसोर्स सेंटर ने विद्यालयों की मदद करने के लिए संसाधनों के एक व्यापक सेट की स्थापना की है जो संकट प्रबंधन योजनाओं का विकास है।[उद्धरण चाहिए]

संकट प्रबंधन योजना के अंतर्गत घटनाओं का एक वृहत विविधता है, जिसमें से कुछेक नाम हैं - बम की धमकी, बच्चों का शोषण, प्राकृतिक आपदा, आत्महत्या, नशीली दवाएं एवं गिरोह की गतिविधियां.[19] इसी तरह से ये योजनायें जानकारी की ज़रुरत वाले अभिभावकों, मीडिया एवं कानून प्रवर्तन अधिकारियों सहित सभी दर्शकों को संबोधित करने का उद्देश्य लिए हुए है।[20]

सरकार और संकट प्रबंधन[संपादित करें]

ऐतिहासिक तौर पर सरकार ने - स्थानीय, राज्य एवं राष्ट्रीय - सभी स्तरों पर संकट प्रबंधन में एक बड़ी भूमिका निभाई है। वास्तव में, कई राजनीतिक दार्शनिकों ने इसे सरकार की प्राथमिक भूमिकाओं में से एक माना है। स्थानीय स्तर पर दमकल एवं पुलिस विभाग सरीखी आपातकालीन सेवायें एवं संघीय स्तर पर यूनाईटेड स्टेट्स नेशनल गार्ड संकट के हालातों में अभिन्न भूमिका निभाते हैं।

संकट की प्रतिक्रिया के चरण के दौरान संचार को समन्वित करने के लिए गृह सुरक्षा विभाग के तहत अमेरिकी फेडरल एमरजेंसी मैनेजमेंट एजेंसी (एफईएमए (FEMA)) नेशनल रेसपौन्स प्लान (एनआरपी (NRP)) का प्रशासन करती है। इस योजना का मक़सद जब कई दल गतिशील हों, तो कमान की एक श्रृंखला बना कर एवं एक आम भाषा उपलब्ध करा कर जनता एवं निजी प्रतिक्रियाओं को एकीकृत करना है। यह परिसर में ही होता है ताकि घटनाओं को निम्नतम बुनियादी संगठनात्मक स्तर पर नियंत्रित किया जा सके. एनआरपी (NRP) घरेलू घटना प्रबंधन में निजी क्षेत्रों को मुख्य साझेदार के रूप में देखती है, ख़ास तौर पर महत्वपूर्ण बुनियादी ढ़ांचे की सुरक्षा एवं बहाली के क्षेत्र में.[21]

एनआरपी (NRP) राष्ट्रीय घटना प्रबंधन प्रणाली का एक साथी है जो कारण, आकार या जटिलता की परवाह किये बिना घटना प्रबंधन के लिए अधिक सामान्य टेम्पलेट के रूप में कार्य करता है।[21]

एफईएमए (FEMA) आपातकालीन प्रबंधन संस्थान के मार्फ़त राष्ट्रीय प्रतिक्रिया योजना (National response plan) पर निःशुल्क वेब-आधारित प्रशिक्षण प्रदान करता है।[22]

कॉमन अलर्टिंग प्रोटोकॉल (सीएपी (CAP)) एक अपेक्षाकृत हालिया मेकेनिस्म है जो विभिन्न माध्यमों एवं प्रणालियों तक संकट संचार की सुविधा मुहैया करता है। सीएपी (CAP) भौगोलिक एवं भाषाई विविधता वाले दर्शकों को दृश्य-श्रव्य माध्यमों द्वारा एक नियमित आपातकालीन अलर्ट प्रारूप निर्मित करने में मदद करता है।[उद्धरण चाहिए]

निर्वाचित अधिकारीगण एवं संकट प्रबंधन[संपादित करें]

ऐतिहासिक तौर पर राजनीति एवं संकट साथ-साथ चलते रहे हैं। संकट का वर्णन करते हुए राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कहा है, "हम खतरे के संकेतों के बीच रहते हैं, चिंता के बादल भविष्य पर मंडरा रहे हैं; हर सुबह अखबार के साथ एक नयी आपदा की आशंका गहराई रहती है।"[उद्धरण चाहिए]

संकट प्रबंधन समकालीन शासन व्यवस्था की एक परिभाषित विशेषता बन चुकी है। संकट के समय समुदाय एवं संगठन के सदस्य अपने जननेताओं से मंडरा रहे संकट का प्रभाव कमतर करने की उम्मीद करते हैं, जबकि आलोचक एवं नौकरशाही प्रतिद्वंदी इस मुहूर्त को तत्कालीन शासकों एवं उनकी नीतियों पर आरोप मढ़ने के लिए इस्तेमाल करते हैं। इस चरम वातावरण में नीति निर्माताओं को किसी भी तरह सामान्यता की एक भावना स्थापित करनी चाहिए एवं संकट के अनुभव से सामूहिक सबक लेना चाहिए.[23]

संकट के कगार पर नेताओं को सामना कर रहे रणनीतिक चुनौतियों से, राजनीतिक जोखिम एवं अवसरों की मुठभेड़ से, अपनी गलतियों से, बचे जाने वाले नुकसानों से एवं संकट से परे अख्तियार किये जाने वाले रास्तों से निपटना चाहिए. 24 - घंटे चलने वाले समाचार चैनलों एवं इंटरनेट की समझ-बूझ के साथ नितनवीन प्रौद्योगिकी को अपनी अंगुली की नोक पर रखने वाले लगातार बढ़ रहे दर्शकों के प्रादुर्भाव के साथ प्रबंधन की आवश्यकता और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।[23]

जननेताओं की विशेष जिम्मेवारी है कि वे संकट के दुष्प्रभावों से समाज की रक्षा करें. संकट प्रबंधन के विशेषज्ञों की राय है कि जो नेता यह ज़िम्मेदारी गंभीरता से लेते हैं, उन्हें संकट के सभी चरणों - उद्भवन चरण, शुरुआत, एवं प्रभाव - पर चिंता करनी होगी. संकट नेतृत्व में चार महत्वपूर्ण कार्य सम्मिलित हैं: भांपना, निर्णय लेना, अर्थ निकालना, सामाप्त करना, एवं सबक सीखना.[23]

संकट नेतृत्व के पांच पहलुओं के संक्षिप्त वर्णन में निम्नलिखित शामिल हैं:[24]

  1. निर्णय लेने में भांपने की प्रक्रिया शास्त्रीय स्थिति का आकलन करने के क़दम के रूप में माना जाता है।
  2. निर्णय लेना किसी निर्णय तक पहुंचने के साथ-साथ उनके कार्यान्वयन तक की प्रक्रिया है।
  3. अर्थ निकालने का सन्दर्भ राजनीतिक संचार के रूप में संकट प्रबंधन से है।
  4. किसी संकट की समाप्ति तभी संभव है यदि जननेता सटीक तरीके से जवाबदेही के सवालों को संभालते हैं।
  5. सबक का तात्पर्य संकट से वास्तव में शिक्षा ग्रहण करने से है। लेखकों की राय में संकट अक्सर बेहतरी या बदतरी की तरफ सुधार के लिए अवसरों के दरवाज़े खोलता है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

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  2. वेनेट, एस. जे. (2003). हाई रिलायबिलिटी ऑर्गनाइज़ेशन में जोखिम संचार: निर्णयन में एपीएचआईएस पीपीक्यू (APHIS PPQ) द्वारा जोखिम के अंतर्वेशन. ऐन आर्बर, एमआई: यूएमआई प्रोक्वेस्ट इन फोरमेशन एण्ड लर्निंग (MI: UMI Proquest Information and Learning).
  3. "Incident or crisis? Why the debate?". http://www.continuitycentral.com/feature0447.htm. 
  4. Coombs, W. T. (1999). Ongoing crisis communication: Planning, managing, and responding. Thousand Oaks, CA: Sage. 
  5. Lerbinger, O. (1997). The crisis manager: Facing risk and responsibility. Mahwah, NJ: Erlbaum. 
  6. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; 12Manage नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  7. Infante, D.; Rancer, A., & Womack, D. (1997). Building communication theory (3rd सं॰). Prospect Heights, IL: Waveland Press. 
  8. Coombs, W. T. (2007). Ongoing Crisis Communication: Planning, Managing, and Responding (2nd सं॰). Thousand Oaks, CA: Sage. 
  9. Dezenhall, E. (17 मार्च 2004). USA Today http://www.usatoday.com/news/opinion/editorials/2004-03-17-dezenhall_x.html. अभिगमन तिथि 8 अक्टूबर 2007. गायब अथवा खाली |title= (मदद)सीएस1 रखरखाव: तिथि और वर्ष (link)
  10. Rudolph, B. (24 फरवरी 1986). "Coping with catastrophe". Time. मूल से 27 अक्तूबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 अक्टूबर 2007.सीएस1 रखरखाव: तिथि और वर्ष (link)
  11. Dwyer, S. (मई, 1998). ""Hudson, we have a problem!" - Hudson Food's inability to handle a crisis management program". Prepared Foods. मूल से 12 अक्तूबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 अप्रैल 2009. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
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  13. "The Pepsi Product Tampering Scandal of 1993". मूल से 23 मार्च 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 सितंबर 2009.
  14. Shrivastava, P. (1987). Bhopal: Anatomy of a Crisis. Ballinger Publishing Company. 
  15. Ackman, D. (2001). Forbes http://www.forbes.com/2001/06/20/tireindex.htm. अभिगमन तिथि 14 अक्टूबर 2007. गायब अथवा खाली |title= (मदद)[मृत कड़ियाँ]
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  19. "Crisis management". Kansas City Public Schools. 2007. http://www.kckps.org/crisis/. 
  20. "Resource guide for crisis management in Virginia schools" (PDF). Virginia Department of Education. 2002. http://www.pen.k12.va.us/VDOE/Instruction/crisis-guide.pdf. अभिगमन तिथि: 15 अक्टूबर 2007. 
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  22. "Emergency Management Institute Home Page". http://www.training.fema.gov/. 
  23. Boin, A.; P. Hart and E. Stern (2005). The politics of crisis management: Public leadership under pressure. New York: Cambridge University Press. 
  24. Hellsloot, I. (2007). "Review of "The politics of crisis management: Public leadership under pressure" by A. Boin, P. Hart, E. Stern and B. Sundelius". Journal of Contingencies and Crisis Management. 15 (3): 168–169. डीओआइ:10.1111/j.1468-5973.2007.00519.x.

आगे पढ़ें[संपादित करें]

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  • Borodzicz, Edward P. (2005). Risk, Crisis and Security Management. West Sussex, England: John Wiley and Sons Ltd. 
  • Coombs, W. T. (2006). Code Red in the Boardroom: Crisis Management as Organizational DNA. Westport, CT: Praeger. 
  • Office of Security and Risk Management Services (अक्टूबर 2007). "Crisis Management Workbook". Fairfax County Public Schools. http://www.fcps.edu/fts/safety-security/publications/cmw.pdf. 
  • Dezenhall, E. (2003). Nail 'em!: Confronting high-profile attacks on celebrities & businesses. Amherst, New York: Prometheus Books. 
  • Dezenhall, E.; Weber, J. (2007). Damage control: Why everything you know about crisis management is wrong. Portfolio Hardcover. 
  • Erickson, Paul A. (2006). Emergency Response Planning for Corporate and Municipal Managers (2nd सं॰). Burlington, MA: Elsevier, Inc.. 
  • Fink, S. (2007). Crisis management: Planning for the inevitable. Backinprint.com. 
  • Mitroff, Ian I.; Gus Anagnos (2000). Managing Crises Before They Happen: What Every Executive Needs to Know About Crisis Management. New York: AMACOM. 
  • Mitroff, Ian I. (2003). Crisis Leadership: Planning for the Unthinkable. New York: John Wiley. 
  • Mitroff, Ian I. (2005). Why Some Companies Emerge Stronger And Better From a Crisis: Seven Essential Lessons For Surviving Disaster. New York: AMACOM. 
  • "संग्रहीत प्रति". Public Relations Review. 35 (1). मूल से 17 जून 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2010. contains a collection of articles on crisis management.
  • Department of Homeland Security, Federal Emergency Management Agency (सितंबर 2007). "National Response Plan". http://www.dhs.gov/xprepresp/committees/editorial_0566.shtm. 
  • Smith, Larry; Dan Millar, PhD (2002). Before Crisis Hits: Building a Strategic Crisis Plan. Washington, DC: AACC Community College Press. 
  • Smith, Larry; Dan Millar, PhD (2002). Crisis Management and Communication; How to Gain and Maintain Control (2nd सं॰). San Francisco, CA: International Association of Business Communicators. 
  • Ulmer, R. R.; Sellnow, T. L., & Seeger, M. W. (2006). Effective crisis communication: Moving from crisis to opportunity. Thousand Oaks, CA: Sage Publications. 

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]