श्री आँगन नरसंहार

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श्री आँगन नरसंहार
श्री आँगन नरसंहार is located in बांग्लादेश
श्री आँगन नरसंहार
श्री आँगन, फरीदपुर
स्थान फरीदपुर, पूर्वी पाकिस्तान
निर्देशांक 23°36′N 89°49′E / 23.60°N 89.82°E / 23.60; 89.82निर्देशांक: 23°36′N 89°49′E / 23.60°N 89.82°E / 23.60; 89.82
तिथि २१ अप्रैल १९७१ (UTC+6:00)
लक्ष्य बंगाली हिंदू
मृत्यु
अपराधी पाकिस्तान सेना

श्री आँगन नरसंहार २१ अप्रैल १९७१ मे बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान पूर्वी पाकिस्तान के फरीदपुर मे स्थित श्री आँगन आश्रम मे बंगाली हिंदू साधुओं का नरसंहार था। उस दिन पाकिस्तानी सैनिकों ने ८ हिंदू साधुओं की हत्या कर दी थी।[1]

पृष्ठभूमि[संपादित करें]

श्री आँगन आश्रम बांग्लादेश के फरीदपुर शहर के गोलचमाट इलाके मे स्थित वैष्णव संप्रदाय के महानाम उपसम्प्रदाय का एक आश्रम है।

हत्याकांड[संपादित करें]

२१ अप्रैल को, पाकिस्तानी सेना फरीदपुर में पहुचे। ढाका से वे गोलूनडो घाट पर पद्मा नदी पार कर फरीदपुर की ओर बढ़े। [2] [3] शाम के आस-पास जैसे ही वे फरीदपुर में प्रवेश कर रहे थे, वे गोलचमाट इलाके से गुजर रहे थे। उसी समय उनके बिहारी सहयोगी ने उन्हें श्री श्री आँगन आश्रम के पास रोक कर उसपर हमला करने का इशारा दिया। पाकिस्तानी सेना ने आश्रम को घेर लिया और बिहारी सहयोगियों और रजाकारों की मदद से आश्रम के परिसर में प्रवेश किया। उनके आने की खबर पर, कुछ निवासी साधु मठ से भाग गए। लेकिन ९ प्रमुख साधुओं ने आश्रम छोड़ने से इनकार कर दिया। उस समय मंदिर के प्रार्थना कक्ष में कीर्तन चल रहा था। कीर्तन में “जय जगतबंधु हरी! जय जय जगतबंधु हरी!" का उच्चारण हो रहा था । ऐसा कहा जाता है कि पाकिस्तानी सैनिकों ने मंत्रों को "जय बंगबंधु" के रूप में गलत समझा और बिहारी सहयोगियों ने उन्हें भी आश्वस्त किया कि भिक्षु शेख मुजीबुर रहमान की जीत के लिए जप कर रहे थे। [4]

पाकिस्तानी सैनिकों ने तुरंत ही मंदिर के प्रार्थना कक्ष मे जबरन अंदर घुसा और अंदर बैठे साधुओं को खीचके मंदिर के बाहर चालता के पेड़ के नीचे लाए।[2] उनमे से एक साधु, नबकुमार ब्रह्मचारी, वहाँ से भागकर सीढ़ियों के नीचे एक कक्ष के अंदर छुप गया था। बाकी ८ साधुओं को पाकिस्तानी सैनिकों के सामने एक पंक्ति मे खड़ा कर दिया था। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, एक-एक कर १२ गोलियां चलाई गई थी। गोली लगते वक्त वे साधु "जय जगतबंधु हरी!" चिल्लाकर अपने प्राण त्याग दिए।[1]

पाकिस्तानी सैनिकों और बिहारी सहयोगियों ने आश्रम से कीमती सामान और ज़ेवर लूट ली। [5] अगली सुबह, फरीदपुर नगर पालिका के ट्रक से लाशों को ले जाया गया। [5] २६ अप्रैल को, पाकिस्तानी सेना ने डायनामाइट का उपयोग करके मंदिर के शिखर को नष्ट कर दिया। [5]

परिणाम[संपादित करें]

पाकिस्तानी सेना के पहले ही दिन नृशंस हत्याओं की खबरों ने फरीदपुर के हिंदू नागरिकों में दहशत पैदा कर दी। [6] उनमें से कई लोग ग्रामीण इलाकों के लिए शहर छोड़ गए। दो जीवित साधुओं, अमर बंधु और हरिप्रिया ब्रह्मचारी, ने भगवान जगतबंधु के पवित्र अवशेष को बरामद किया और उन्हें एक सन्दूकषी के अंदर रखकर भारत ले गए। [7]

इतिहासकार रबींद्रनाथ त्रिवेदी के अनुसार, कैप्टन जमशेद, जिसने नरसंहार और मंदिर के विनाश की कमान संभाली थी, १६ दिसंबर १९७१ को पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण से कुछ दिन पहले भगवान जगतबंधु सुंदर की वेदी के सामने आत्महत्या कर ली थी। [8] सूत्रों के अनुसार कैप्टन जमशेद को साहियोगियों ने श्री आँगन आश्रम के परिसर के भीतर शिव मंदिर के तालाब के पास दफनाया था। [8] स्वतंत्रता सेनानी प्रबोध कुमार सरकार की गवाही के अनुसार, कैप्टन जमशेद अपनी मृत्यु से पहले अपने मानसिक संतुलन खो दिए थे। [8] बांग्लादेश की मुक्ति के बाद सब साधु वापस लौट आए। उन्होंने पवित्र अवशेष को बहाल किया और क्षतिग्रस्त मंदिर का पुनर्निर्माण किया। [9]

शहिद स्मारक[संपादित करें]

१९९६ में आश्रम प्राधिकरण द्वारा श्री आँगन के परिसर में एक स्मारक बनाया गया था। ८ मृतक साधुओं के लिए आठ काली पट्टियाँ उठाई गईं। सजीले टुकड़े में एक वर्ग आधार के साथ छंटित शुंडाकार स्तंभ का आकार है, जिसकी ऊंचाई ४० वर्ग सेंटीमीटर और ९५ सेंटीमीटर है। [10]

श्रीश्री महानम अंगन, कोलकाता, भारत में एक स्मारक भी बनाया गया है। यहां हम उत्कीर्ण मार्बलों के 8 टुकड़ों में लिखे गए 8 भिक्षुओं के नाम देख सकते हैं।

संदर्भ[संपादित करें]

  1. Khan, Abu Saeed (2013). মুক্তিযুদ্ধে ফরিদপুর (Bengali में). Dhaka: Sahitya Bikash. पपृ॰ 149–150. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9848320857.
  2. "Innocent devotees could not escape the wrath of Pak army". Dhaka: Bangladesh Sangbad Sangstha. 6 December 2009. मूल से 4 फ़रवरी 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 February 2015.
  3. "Innocent devotees could not escape wrath of Pak army". Dhaka: Bangladesh Sangbad Sangstha. 29 November 2014. मूल से 4 फ़रवरी 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 February 2015.
  4. Khan, Abu Saeed (2013). মুক্তিযুদ্ধে ফরিদপুর (Bengali में). Dhaka: Sahitya Bikash. पपृ॰ 149–150. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9848320857.
  5. "ফরিদপুর শ্রীঅঙ্গনের ৮ সাধু হত্যা দিবস সোমবার". sorejominbarta.com (Bengali में). 21 April 2014. अभिगमन तिथि 3 February 2015.[मृत कड़ियाँ]
  6. "Innocent devotees could not escape the wrath of Pak army". Dhaka: Bangladesh Sangbad Sangstha. 6 December 2009. मूल से 4 फ़रवरी 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 February 2015.
  7. "Innocent devotees could not escape wrath of Pak army". Dhaka: Bangladesh Sangbad Sangstha. 29 November 2014. मूल से 4 फ़रवरी 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 February 2015.
  8. Trivedi, Rabindranath (28 May 2007). "April 1971: 'Recalling Massacres of Those Days in Faridpur'". Asian Tribune. Hallstavik: World Institute For Asian Studies. 12 (1017). मूल से 4 फ़रवरी 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 February 2015.
  9. "Innocent devotees could not escape wrath of Pak army". Dhaka: Bangladesh Sangbad Sangstha. 29 November 2014. मूल से 4 फ़रवरी 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 February 2015.
  10. Khan, Abu Saeed (2013). মুক্তিযুদ্ধে ফরিদপুর (Bengali में). Dhaka: Sahitya Bikash. पृ॰ 180. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9848320857.