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वीर सोमेश्वर

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वीर सोमेश्वर (कन्नड़: ವೀರ ಸೋಮೇಶ್ವರ) (1234–1263) होयसल राजवंश के राजा थे।[1] तमिल देश के मामलों में वीर नरसिंह द्वितीय की व्यस्तता के कारण उत्तरी क्षेत्रों की उपेक्षा हुई और उन्हें तुंगभद्रा नदी के दक्षिण में सेउना के आक्रमणों का सामना करना पड़ा।

तमिल राज्य की राजनीति में प्रभाव

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सन् 1225–1250 के दौरान होयसल ने चोलों और पाण्ड्यों पर पूर्ण प्रभाव जमाकर दक्षिण दक्कन पर अपना वर्चस्व मजबूत किया। सोमेश्वर को वास्तव में तमिल राज्य के राजाओं द्वारा मामादी ("मामा") की उपाधि दी गई थी। मगदई मंडलम पर सन् 1236 में वीर सोमेश्वर ने विजय प्राप्त की। उन्होंने चोल राजेंद्र तृतीय के साथ गठबंधन किया, लेकिन जब चोल राजा ने सन् 1238 में पाण्ड्य क्षेत्र पर आक्रमण करने की कोशिश की तो उन्होंने पाण्ड्यों से मित्रता कर ली। बाद में राजेंद्र चोल तृतीय को हराने के बाद, वीर सोमेश्वर ने फिर से पांड्यों के खिलाफ चोलों के पक्ष में लड़ाई लड़ी।

सन् 1235 ई॰ के बाद, सोमेश्वर ने श्रीरंगम से 5 मील उत्तर में दक्षिणी शहर कन्ननूर में अपनी राजधानी स्थापित की और इसका नाम विक्रमपुर रखा। सन् 1236-37 ई॰ में उन्होंने श्रीरंगम द्वीप पर जम्बुकेश्वरम मंदिर में कई छोटे मंदिर स्थापित किए, जिन्हें वल्ललीश्वर, पदुमलीश्वर, वीर नरसिंहेश्वर और सोमलेश्वर कहा जाता है। इनका नाम उनके करीबी परिवार के सदस्यों के नाम पर रखा गया। कन्ननूर में भोजेश्वर पोसलीश्वर मंदिर की स्थापना उन्होंने ही की थी और उन्होंने कन्नड़ में अपने शिलालेखों पर मालापरोलुगंडा (मालेपाओं के बीच भगवान, यानी पश्चिमी घाट पर पहाड़ी जनजातियों) के रूप में तैयार करवाये। यह होयसल परिवार की उपाधि थी जिसे उनके आरंभ से ही मोटे कन्नड़ अक्षरों में लिखा जाता था।[2][3]

सन्दर्भ

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  1. Sen, Sailendra (2013). A Textbook of Medieval Indian History. Primus Books. pp. 58–60. ISBN 978-9-38060-734-4.
  2. Ayyar, P. V. Jagadisa (1982). South Indian Shrines: Illustrated (अंग्रेज़ी भाषा में). Asian Educational Services. ISBN 978-81-206-0151-2.
  3. Yadava, S. D. S. (2006). Followers of Krishna: Yadavas of India (अंग्रेज़ी भाषा में). Lancer Publishers. ISBN 978-81-7062-216-1.