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अनुनाद सिंह (चर्चा | योगदान) |
अनुनाद सिंह (चर्चा | योगदान) |
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==कथा==
राजा हरिश्चंद्र अपनी सौ रानियों के बावजूद निस्संतान था। उसने वरुण देवता की उपासना की कि अगर मुझे पुत्र प्राप्ति हो तो पहला पुत्र आपको समर्पित करूंगा। उसे एक पुत्र की प्राप्ति हो गई, जिसका नाम रोहित रखा गया। लेकिन राजा ने जैसे ही पुत्र को सदेह देखा, उसकी नीयत में खोट आ गई। वह किसी न किसी बहाने रोहित को वरुण देवता को सौंपने की बात टालता रहा। पिता कहीं उसे सचमुच वरुण देव को नहीं अर्पित कर दें, इस डर से रोहित जंगल में भाग गया और हरिश्चन्द्र ने अपना प्रण पूरा नहीं किया, इसलिए वरुण ने उसे
भाग्यवश जंगल में इधर-उधर घूमते रोहित को अजीगर्त नामक एक गरीब ब्राह्माण के पास ले आई। उससे रोहित ने अपनी कहानी कही। अजीगर्त के तीन बेटे थे - शुन:पुच्छ, शुन:लांगूल और शुन:शेप। शुन:शेप मंझला पुत्र था और बचपन से ही बहुत समझदार और विवेकवान था। अजीगर्त ने लालच में आकर रोहित से कहा कि सौ गायों के बदले वह अपने एक पुत्र को बेचने को तैयार है। उस पुत्र को वह अपने बदले वरुण देवता को सौंप कर अपनी जान बचा सकता है। दूसरी ओर शुन:शेप ने सोचा, छोटा भाई मां का लाड़ला है, बड़ा भाई पिता का लाड़ला है, यदि मैं चला जाऊं तो दोनों में से किसी को कोई अफसोस नहीं होगा। इसलिए वह खुद ही रोहित के साथ जाने को तैयार हो गया। वरुण देव भी कोई कम लोभी नहीं थे। वे यह सोच कर प्रसन्न हो गए कि मुझे अपने अनुष्ठान के लिए क्षत्रिय बालक के बदले ब्राह्माण बालक मिल रहा है जो श्रेष्ठतर है।
[[यज्ञ]] में नर बलि की तैयारी शुरू हुई, चार पुरोहितों को बुलाया गया। अब शुन:शेप को बलि स्तंभ से बांधना था। लेकिन इसके लिए उन चारों में से कोई तैयार नहीं हुआ, क्योंकि शुन:शेप [[
==बाहरी कड़ियाँ==
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