"प्राण": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
छो Bot: अंगराग परिवर्तन
छो Bot: Migrating 25 interwiki links, now provided by Wikidata on d:q506229 (translate me)
पंक्ति 27: पंक्ति 27:


[[श्रेणी:शब्दार्थ]]
[[श्रेणी:शब्दार्थ]]

[[bg:Прана]]
[[ca:Prana]]
[[cs:Prána]]
[[de:Prana]]
[[en:Prana]]
[[es:Prana]]
[[fr:Prana]]
[[hy:Պրանա]]
[[it:Prana]]
[[ja:プラーナ]]
[[lt:Prana]]
[[mr:प्राण]]
[[nl:Prana (hindoeïsme)]]
[[pl:Prana]]
[[pt:Prana]]
[[ro:Prana]]
[[ru:Прана]]
[[simple:Prana]]
[[sk:Prána]]
[[sl:Prana]]
[[sr:Прана]]
[[sv:Prana]]
[[tr:Prana]]
[[uk:Прана]]
[[zh:氣 (印度醫學)]]

17:33, 8 मार्च 2013 का अवतरण

प्राण शरीर के भीतर की जीवनाधार वायु, श्वास।

उदाहरण

  • राम के वियोग में महाराज दशरथ ने प्राण त्याग दिये।

मूल

प्राण से तात्पर्य है वह जीवनी शक्ति, जिसके कारण किसी जन्तु अथवा वनस्पति को जीवित कहा जा सकता है। जो साँस लेता हो, जिसमें आन्तरिक वृद्धि होती हो, चयापचय क्रिया होती हो, जो प्रजनन द्वारा अपनी संतति को बढ़ा सके उसे प्राणवान माना जाता है और प्राणी कहा जाता है। प्राण शक्ति का नाश होने से जीव मृत हो जाता है। जब किसी प्राक्रित पदार्थ मे विकास लक्छित हो,तो समझा जाना चाहिए कि इसमे प्राण-त्तत्व विद्यमान है/

प्राण - प्राण वह जीवन शक्ति है जिससे कोई मनुष्य, जंतु अथवा वनस्पति जिन्दा रहती है. वह जो साँस लेता है उससे वृद्धि होती है, प्रजनन आदि क्रिया होती हैं उसे प्राण कहते हैं. हिन्दू योग एवम दर्शन ग्रंथों में मुख्य प्राण पांच बताए गए हैं. इसके आलावा उपप्राण भी पाँच बताये गए हैं. पाँच प्राणों के नाम इस प्रकार हैं. १. प्राण २. अपान ३. समान ४. उदान ५. व्यान. प्राण का जन्म- यह प्राण क्या है यह कहाँ से आया, यह कैसे पैदा हुआ? जब जल और पृथ्वी तत्त्व, गंध और रस साथ मिलकर एक आकार ले लेते हैं तो बीज बन जाता है. इस अवस्था में ज्ञान निष्क्रिय अवस्था में रहता है. अग्नि और वायु तत्त्व सुप्तावस्था में रहते हैं.बीज में जब ज्ञान क्रियाशील हो जाता है तो ज्ञान के क्रियाशील होते ही biochemicalजैव रसायनिक क्रिया प्रारंभ हो जाती है बीज में ऊर्जा (गर्मी) पैदा हो जाती है और बीज फूलने लगता है अथवा उसकी वृद्धि होने लगती है. इस गर्मी को बनाये रखने के लिए बीज में वायु का संचरण और फैलाव होने लगता है. इस वायु का संचरण और फैलाव को प्राण कहते हैं. इस प्रकार बीज शरीर का आकार लेता है जिसके लिए प्राण आवश्यक है. जब शरीर में ज्ञान अक्रिय हो जाता है तो प्राण रुक जाते हैं क्योंकि शरीर का विकास समाप्त हो जाता है इसलिए गर्मी की आवश्यकता नहीं रहती, शरीर की गर्मी खत्म (70Fन्यूनतम तक हो जाती) है. शरीर की गर्मी खत्म होने से अंग कार्य करना बंद कार देते हैं. इसे ORGANSअंगों का निष्क्रियता को प्राप्त होना DRकहा जाता है. कभी कभी ताप १०८ फ़ के कारण ज्ञान को धारण करने वाला ज्ञान शरीर छोड़ देता है और शरीर में प्राण क्रिया रुक जाती है. सन्दर्भ-प्रो बसन्त प्रभात जोशी का आलेख

संबंधित शब्द

हिंदी में

अन्य भारतीय भाषाओं में निकटतम शब्द