विधि निर्माण
विधि निर्माण(Lawmaking)
विधि निर्माण का अर्थ है - क़ानून बनाने की प्रक्रिया। वस्तुतः यह प्रक्रिया शासन का आधार है। भारत में संविधान के प्रावधानों के अनुसार विधि निर्माण किया जाता है। आधुनिक लोकतंत्रों में विधि निर्माण का कार्य विधायिकाओं द्वारा किया जाता है। स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर के निकाय(विधायिकाएं) उन विषयों पर विधियाँ बनाते हैं जो उनके अधिकार क्षेत्र में आते हैं। उक्त विधियाँ इन निकायों के क्षेत्राधिकार में बाध्यकारी होती हैं। ये निकाय कभी-कभी लॉबिस्टों, दबाव समूहों और पक्षपातपूर्ण विचारों से प्रभावित हो जाते हैं परन्तु यदि व्यवस्था उचित रूप से काम कर रही है तो ये निकाय अंततः उन मतदाताओं के प्रति उत्तरदायी होते हैं जो इन्हें चुनते हैं। चूंकि बजट भी एक विधिक विषय है अतः अनेक निकायों द्वारा विधि निर्माण के ज़रिए ही तय किया जाता है कि राजकीय निधि से व्यय किस प्रकार किया जाए।
तानाशाही और निरंकुश राजतंत्रों की एक मुख्य आलोचना यह की जाती है कि इनमें शासक कलम के एक झटके से क़ानून बना सकता है। परन्तु ऐसा तो लोकतंत्र में भी संभव है जहाँ कार्यपालिका ऐसे कार्यकारी आदेश पारित कर सकती है, जो विधिक बल रखते हैं। कभी-कभी कार्यकारी विभागों द्वारा जारी किए गए नियम भी विधिक शक्ति से युक्त होते हैं। विशेषरूपेण, मुक्तिवादी इसे लोकतंत्र के विरुद्ध बताते हुए इसकी निन्दा करते हैं किन्तु यह कार्यपद्धति आधुनिक शासन की मुख्य विशेषता हो गई है क्योंकि क़ानून बनने से पूर्व होने वाली बहस में लगने वाले समय को देखते हुए इसके बिना किसी व्यवस्था की कल्पना करना कठिन है। मुक्तिवादियों के अनुसार महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि ऐसे कार्यकारी आदेश और विनियम विधायी जांच में खरे नहीं उतरते हैं, तो उन्हें लागू नहीं किया जाना चाहिए। इसीलिए ऐसी नीतियाँ बनाई गई हैं कि यदि किसी कार्यकारी आदेश की विधायी रूप से समीक्षा और पुष्टि नहीं की जाती है तो एक निश्चित अवधि के बाद वह निष्प्रभावी हो जाएगा।