विक्टोरिया नं॰ 203 (1972 फ़िल्म)
विक्टोरिया नं॰ 203 | |
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विक्टोरिया नं॰ 203 का पोस्टर | |
निर्देशक | ब्रिज |
लेखक | एहसान रिज़्वी (संवाद) |
पटकथा | के॰ ए॰ नारायण |
निर्माता | ब्रिज |
अभिनेता |
अशोक कुमार, प्राण, सायरा बानो, नवीन निश्चल |
संगीतकार | कल्याणजी-आनंदजी |
प्रदर्शन तिथियाँ |
8 दिसंबर, 1972 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
विक्टोरिया नं॰ 203 1972 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। इसे ब्रिज सदाना ने निर्देशित और निर्मित किया है। फ़िल्म में अशोक कुमार, प्राण, सायरा बानो और नवीन निश्चल हैं। बाकी कलाकारों में रंजीत, अनवर हुसैन और अनूप कुमार शामिल हैं।
संगीत कल्याणजी-आनंदजी का है। यह फ़िल्म टिकट खिड़की पर सफल रही थी।[1] इसके तेलुगू, तमिल और बंगाली में रीमेक बन चुके हैं। जबकि ब्रिज के बेटे कमल सदाना ने 2007 में इसी नाम से इसको हिन्दी में पुनर्निर्मित किया है।
संक्षेप
[संपादित करें]सेठ दुर्गादास एक अमीर व्यापारी है। उनका बेटा कुमार (नवीन निश्चल) और समाज उनक बहुत सम्मान करते हैं। परन्तु असल में, दुर्गादास तस्करी का गिरोह चलाता है। समाज के एक भरोसेमंद सदस्य के रूप में उसे सारी जानकारी मिलती रहती है। जबकि उसका गिरोह अपनी योजनाओं को अंजाम देता है। हालांकि, ऐसी ही एक डकैती के दौरान गिरोह का एक सदस्य लालची हो जाता है और हीरे लेकर भाग जाता है। दुर्गादास हीरे वापस लाने और उस गद्दार को मारने के लिए एक और आदमी को भेजता है। गद्दार मारा जाता है लेकिन हत्यारा भी हीरे लेकर भाग जाता है। क्रोधित दुर्गादास अब इस गद्दार को मारने और हीरे वापस लाने के लिए कुछ गुर्गों को भेजता है। गुर्गे गद्दार को घेर लेते हैं और मार देते हैं, लेकिन उनमें से एक हीरे को विक्टोरिया नं॰ 203 (एक प्रकार का टांगा) में छुपा देता है।
वहीं कहीं और दो दिलवाले वृद्ध बदमाश, राजा (अशोक कुमार) और राणा (प्राण) को रिहा किया जाता है। राणा का एक छोटा बेटा था जिसे एक पार्क से अगवा कर लिया गया था। आज तक, राणा को नहीं पता कि उसका अपहरण किसने किया या उसका बेटा जीवित भी है या नहीं। अब दोनों अपनी बाकी की जिंदगी अच्छे और सम्मानित लोगों के रूप में बिताना चाहते हैं। जल्द ही, उन्हें विक्टोरिया के बारे में पता चलता है और उन्हें एहसास होता है कि किसी को भी गायब हीरे नहीं मिले हैं। विक्टोरिया के ड्राइवर की बड़ी बेटी रेखा (सायरा बानो) दिन के समय पुरुष बनकर सवारियों को बिठा कर पैसे कमाती है। एक दिन, राजा और राणा उसका पीछा करते हुए एक आदमी के घर जाते हैं। उन्हें नहीं पता कि वह दुर्गादास का गुर्गा है। रेखा को उसे लुभाते हुए देखकर वे चौंक जाते हैं। लेकिन जब वह (रंजीत) उसका बलात्कार करने की कोशिश करता है, तो दोनों उसे बचा लेते हैं। इससे पहले कि वे उससे कुछ जान पाते, उसे गोली मार दी जाती है। विक्टोरिया ड्राइवर की कहानी जानने के बाद, दोनों एक अच्छा काम करने का फैसला करते हैं। वे रेखा को पूरी सच्चाई बताते हैं, लेकिन विक्टोरिया को तोड़ने के बाद भी कुछ नहीं मिलता। इस बीच, रेखा कुमार से प्यार करने लगती है। वह एक अमीर महिला के रूप में उसे आकर्षित करने की कोशिश करती है। हालांकि, कुमार सच्चाई जान जाता है और उसके पिता के बारे में जानने के बावजूद उससे शादी करने का फैसला करता है।
मुख्य कलाकार
[संपादित करें]- अशोक कुमार — राजा
- प्राण — राणा
- सायरा बानो — रेखा
- नवीन निश्चल — कुमार
- अनवर हुसैन — सेठ दुर्गादास
- रंजीत — लुटेरा
- अनूप कुमार — हवलदार मुरली
- जानकीदास — मारवाड़ी
- एम बी शेट्टी — शेट्टी
- चमन पुरी — रेखा के पिता
- हेलेन — कैमियो
संगीत
[संपादित करें]सभी गीत वर्मा मलिक एवं इन्दीवर द्वारा लिखित; सारा संगीत कल्याणजी-आनंदजी द्वारा रचित।
क्र॰ | शीर्षक | गायक | अवधि |
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1. | "दो बेचारे बिना सहारे" | किशोर कुमार, महेन्द्र कपूर | 4:46 |
2. | "तू ना मिले तो हम जोगी बन जायेंगे" | किशोर कुमार | 3:39 |
3. | "देखा मैंने देखा" | किशोर कुमार | 4:21 |
4. | "थोड़ा सा ठहरो" | लता मंगेशकर | 4:09 |
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "आखिर क्यों कामयाब नहीं हो पाए नवीन निश्चल!". न्यूज़ 18. 18 मार्च 2016. अभिगमन तिथि 18 अगस्त 2024.