वार्ता:परमार भोज

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लेखन संबंधी नीतियाँ

भोज की दान-कीर्ति[संपादित करें]

बल्लाल सेन द्वारा रचित भोजप्रबन्ध राजपूत नरेश भोज द्वारा विद्वानों और कवियों के सम्मान एवं उन्हे पुरस्कार स्वरूप दिये गये दान की कथाओं से भरा पड़ा है। विल्हण ने अपने विक्रमाङ्कदेवचरित् में लिखा है कि, अन्य नरेशों की तुलना राजा भोज से नहीं की जा सकती। इसके अलावा उस समय राजा भोज का यश इतना फैला हुआ था कि अन्य प्रान्तों के विद्वान् अपने यहाँ के नरेशों की विद्वत्ता और दान शीलता दिखलाने के लिये राजा भोज से ही उनकी तुलना किया करते थे। राजतरङ्गिणी में लिखा है कि उस समय विद्वान् और विद्वानों के आश्रयदाता क्षीतिराज ( क्षितपति ) और भोजराज ये दोनों ही अपने दान की अधिकता से संसार में प्रसिद्ध थे। विल्हण ने भी अपने विक्रमांकदेवचरित् में क्षितिपति की तुलना भोजराज से ही की है। उसमें लिखा है कि लोहरा का राजा वीर क्षीतपती भी राजा भोज के ही समान गुणी था। सन्दर्भ

विजयेन्द्र कुमार माथुर 1990, पृ॰ ३१९.
राजा भोज. श्रीयुत विश्वेश्वरनाथ रेउ. पृ. 1.इलाहाबाद.हिंदुस्थानी एकेडेमी, यु. पी.1932.
राजा भोज. श्रीयुत विश्वेश्वरनाथ रेउ. पृ. 125.इलाहाबाद.हिंदुस्थानी एकेडेमी, यु. पी.1932.
एपिग्राफिया इंडिका.भाग.१.पृ.२३५. श्लो.१७.
राजा भोज. श्रीयुत विश्वेश्वरनाथ रेउ. पृ. 125.इलाहाबाद.हिंदुस्थानी एकेडेमी, यु. पी.1932.
राजा भोज. श्रीयुत विश्वेश्वरनाथ रेउ.इलाहाबाद.हिंदुस्थानी एकेडेमी, यु. पी.1932.
धारा देवी तथा भोज.मध्यप्रदेश संदेश.4 अप्रैल 1970.पृ.१३
एपिग्राफिया इंडिका. भाग.१. पृ.२३६.श्लो.२०.
राजा भोज. श्रीयुत विश्वेश्वरनाथ रेउ.इलाहाबाद.हिंदुस्थानी एकेडेमी, यु. पी.1932.
राजा भोज. श्रीयुत विश्वेश्वरनाथ रेउ. पृ.235.इलाहाबाद.हिंदुस्थानी एकेडेमी, यु. पी.1932.
"Samarangana Sutradhara of Bhojadeva: An Ancient Treatise on Architecture in Two Volumes)". मूल से 14 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 अगस्त 2015.
Pārva madhyakālina Bhārata kā rūjannitika evani sāmskrtika itihāsa.Bhanwarlal Nathuram Luniya 1968.
The Concept of Yantra in the SamarangaNasutradhara of Bhoja Archived 2017-12-01 at the Wayback Machine (Indian Journal of history of Science, 19(2);118-124(1984)
Gurjara vīra-vīrāṅganāeṃ.Bhāratīya itihāsa kā śānadāra adhyāya.p.40.Gaṇapati Siṃha.Cau. Vīrabhāna Baṛhānā.1986
राजा भोज. श्रीयुत विश्वेश्वरनाथ रेउ. पृ.106. इलाहाबाद. हिंदुस्थानी एकेडेमी