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वार्ता:कोच्चेरील रामन नारायणन

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कोच्चेरील रामन नारायणन को लेकर की गयी व्यक्तिगत विचार से जुडे वाक्य जो लेख के बाद अन्कित थे

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K. R. Narayanan Profile के.आर. नारायणन की सफलता की कहानी बहुत ही शानदार और आदर्श है. यूं तो एक दलित का राष्ट्रपति बनना किसी दंतकथा का नया संस्करण नहीं है बल्कि यह सामाजिक-राजनीतिक बदलाव की एक कहानी है। माना जाता है कि के.आर. नारायणन को शीर्ष पद सौंपना दरअसल भारतीय नेतृत्व वर्ग द्वारा बदलते यथार्थ की स्वीकृति थी साथ ही इसमें नारायणन जी की खुद की मेहनत भी छुपी है. के. आर. नारायणन जी जिस समय राष्ट्रपति चुने गए उस समय दलितों के उत्थान के लिए कार्य अपने चरम पर थे और मंडल आयोग जैसी समितियों ने दलित वर्ग के उत्थान के रास्तें खोल दिए थे. लेकिन हां, जो सफर के.आर. नारयणन जी ने तय किया उसमें उनकी खुद की भी मेहनत छुपी है जिसे नकारा नहीं जा सकता.

K. R. Narayanan Biography स्वतंत्र भारत के अब तक के दसवें और पहले दलित राष्ट्रपति के.आर नारायणन का पूरा नाम कोच्चेरील रामन नारायणन था. सरकारी दस्तावेजों के हिसाब से इनका जन्म 27 अक्टूबर, 1920 को केरल के एक छोटे से गांव पेरुमथॉनम उझावूर, त्रावणकोर में हुआ था. हालांकि इनकी वास्तविक जन्म तिथि विवादों के घेरे में है. कहा जाता है कि इनके चाचा ने स्कूल में दाखिला दिलाते समय अनुमान के तौर पर यह तिथि लिखवा दी थी. के.आर नारायणन भारतीय पद्धति के माने हुए आयुर्वेदाचार्य थे जिनके पूर्वज पारवान जाति से सम्बन्धित थे और उनका व्यवसाय नारियल तोड़ना था.

के.आर. नारायणन के चार भाई-बहन थे. इनकी बड़ी बहन गौरी एक होमियोपैथ हैं और इन्होंने शादी नहीं की. इनके छोटे भाई भास्करन ने भी विवाह नहीं किया, जो कि पेशे से अध्यापक हैं. उझावूर को आज भी श्री के. आर. नारायणन की जन्मभूमि के लिए ही जाना जाता है. श्री नारायणन का परिवार बेहद गरीबी और तंगहाली के हालातों में जीवन व्यतीत कर रहा था. लेकिन उनके पिता शिक्षा के महत्व को भली प्रकार समझते थे. इसीलिए जैसे-तैसे उन्होंने अपने बच्चों की पढ़ाई को जारी रखा. के.आर नारायणन की आरंभिक शिक्षा उझावूर के अवर प्राथमिक विद्यालय में ही शुरू हुई. के.आर नारयणन को 15 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाना पड़ता था. उस समय शिक्षा-शुल्क बेहद साधारण था, लेकिन पारिवारिक कठिनाइयों के कारण उसे देने में भी उन्हें समस्या होती थी. के.आर. नारायणन को अकसर कक्षा के बाहर खड़े होकर कक्षा में पढ़ाए जा रहे पाठ को सुनना पड़ता था, क्योंकि शिक्षा शुल्क न देने के कारण इन्हें कक्षा से बाहर निकाल दिया जाता था. इनके पास पुस्तकें ख़रीदने के लिए भी धन नहीं होता था. ऐसे में के.आर. नारायणन अन्य छात्रों से पुस्तकें मांगकर उनकी नक़ल उतारकर अपना काम चलाते थे. नारायणन ने सेंट मेरी हाई स्कूल से 1936-37 में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की. छात्रवृत्ति के सहारे श्री नारायणन ने इंटरमीडिएट की परीक्षा कोट्टायम के सी. एम. एस. स्कूल से उत्तीर्ण की. इसके बाद इन्होंने कला (ऑनर्स) में स्नातक स्तर की परीक्षा पास की. फिर अंग्रेज़ी साहित्य में त्रावणकोर विश्वविद्यालय (वर्तमान का केरल विश्वविद्यालय) से 1943 में स्नातकोत्तर परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की. के.आर. नारायणन से पूर्व त्रावणकोर विश्वविद्यालय में किसी भी दलित छात्र ने प्रथम स्थान नहीं प्राप्त किया था.

के.आर. नारायणन का व्यक्तित्व के.आर. नारायणन एक गंभीर व्यक्तित्व वाले इंसान थे. उनका जन्म एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था जिस कारण उन्होंने बचपन से ही परेशानियों से निपटना सीख लिया था. आर्थिक समस्याओं से जूझते हुए उनके भीतर धैर्य और संयम के भाव भी पैदा हो गए थे. वह एक कुशल राजनेता होने के साथ-साथ एक अच्छे अर्थशास्त्री भी थे.

K. R. Narayanan Political Profile: के.आर. नारायणन का राजनैतिक सफर जब इनका परिवार विकट परेशानियों का सामना कर रहा था, तब 1944-45 में श्री नारायणन ने बतौर पत्रकार ‘द हिन्दू’ और ‘द टाइम्स ऑफ इण्डिया’ में कार्य किया. 10 अप्रैल, 1945 को पत्रकारिता का धर्म निभाते हुए इन्होंने मुम्बई में महात्मा गांधी का साक्षात्कार लिया. इसके बाद वह 1945 में ही इंग्लैण्ड चले गए और ‘लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स’ में राजनीति विज्ञान का अध्ययन किया. के.आर.नारायणन ने बी. एस. सी. इकोनामिक्स (ऑनर्स) की डिग्री और राजनीति विज्ञान में विशिष्टता हासिल की. उनकी मेहनत और लगन को देखते हुए जे. आर. डी. टाटा ने छात्रवृत्ति प्रदान करके के.आर. नारायणन की सहायता की. श्री नारायणन इण्डिया लीग में भी सक्रिय रहे. के.आर.नारायणन, के. एन. मुंशी द्वारा प्रकाशित किए जाने वाले ‘द सोशल वेलफेयर’ नामक वीकली समाचार पत्र के लंदन स्थित संवाददाता भी रहे. के.आर. नारायणन का राजनीति में प्रवेश इन्दिरा गांधी के द्वारा संभव हो पाया. वह लगातार तीन लोकसभा चुनावों में ओट्टापलल (केरल) की सीट पर विजयी होकर लोकसभा पहुंचे. कांग्रेसी सांसद बनने के बाद वह राजीव गांधी सरकार के केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में सम्मिलित किए गए. एक मंत्री के रूप में इन्होंने योजना, विदेश मामले तथा विज्ञान एवं तकनीकी विभागों का कार्यभार सम्भाला. 1989-91 में जब कांग्रेस सत्ता से बाहर थी, तब श्री नारायणन विपक्षी सांसद की भूमिका में रहे. 1991 में जब पुन: कांग्रेस सत्ता में लौटी तो इन्हें कैबिनेट में सम्मिलित नहीं किया गया.

श्री नारायणन 21 अगस्त, 1992 को डॉ॰ शंकर दयाल शर्मा के राष्ट्रपतित्व काल में उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए. इनका नाम प्राथमिक रूप से वी. पी. सिंह ने अनुमोदित किया था. उसके बाद जनता पार्टी संसदीय नेतृत्व और वाम मोर्चे ने भी इन्हें अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया. पी. वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने भी इन्हें उम्मीदवार के रूप में हरी झंडी दिखा दी. इस प्रकार उपराष्ट्रपति पद हेतु वह सर्वसम्मति से उम्मीदवार बनाए गए. वाम मोर्चे के बारे में नारायणन ने स्पष्टीकरण दिया कि वह कभी भी साम्यवाद के कट्टर समर्थक अथवा विरोधी नहीं रहे. वाम मोर्चा और उनमें वैचारिक अन्तर होने के बाद भी वाम मोर्चा ने, उपराष्ट्रपति चुनाव और बाद में राष्ट्रपति चुनाव में के.आर. नारायणन को समर्थन दिया. 17 जुलाई, 1997 को अपने प्रतिद्वंदी पूर्व चुनाव आयुक्त टी.एन.शेषण को हराते हुए के.आर. नारायणन ने राष्ट्रपति पद को प्राप्त किया. इस चुनाव में नारायणन को 95% मत हासिल हुए. शिव सेना के अतिरिक्त सभी दलों ने नारायणन के पक्ष में मतदान किया. इससे पूर्व कोई भी दलित राष्ट्रपति नहीं बना था.

K. R. Narayanan's Awards: के.आर. नारायणन को दिए गए सम्मान के.आर. नारायणन ने कुछ पुस्तकें भी लिखीं, जिनमें ‘इण्डिया एण्ड अमेरिका एस्सेस इन अंडरस्टैडिंग’, ‘इमेजेस एण्ड इनसाइट्स’ और ‘नॉन अलाइमेंट इन कन्टैम्परेरी इंटरनेशनल रिलेशंस’ उल्लेखनीय हैं. इन्हें राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार प्राप्त हुए थे. 1998 में इन्हें द अपील ऑफ़ कॉनसाइंस फाउंडेशन, न्यूयार्क द्वारा ‘वर्ल्ड स्टेट्समैन अवार्ड’ दिया गया. टोलेडो विश्वविद्यालय, अमेरिका ने इन्हें ‘डॉक्टर ऑफ साइंस’ की तथा ऑस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय ने ‘डॉक्टर ऑफ लॉस’ की उपाधि दी. इसी प्रकार से राजनीति विज्ञान में इन्हें डॉक्टरेट की उपाधि तुर्की और सेन कार्लोस विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान की गई.

Death of K. R. Narayanan: के.आर. नारायणन का निधन निमोनिया की बीमारी के कारण के.आर. नारायणन के गुर्दों ने काम करना बंद कर दिया था. जिस कारण 9 नवम्बर, 2005 को आर्मी रिसर्च एण्ड रैफरल हॉस्पिटल, नई दिल्ली में उनका निधन हो गया.

के.आर. नारायणन एक अच्छे राजनेता और राष्ट्रपति तो थे ही इसके अलावा वह एक अच्छे इंसान भी थे जिन्हें राष्ट्र प्रेम, विशिष्ट नैतिक मनोबल तथा साहस के लिए सदैव याद किया जाएगा.