वाक्पट
सवाक फिल्म (स+वाक+फिल्म = आवाज के साथ फिल्म) या वाक्पट या बोलपट एक ऐसा चलचित्र होता है जिसमें किसी मूक फिल्म के विपरीत, छवि के साथ आवाज भी फिल्म पर अंकित होती है। दूसरे शब्दों में सवाक फिल्म वह चलचित्र होता है जिसमें छवि और ध्वनि दोनों समक्रमिक रूप से प्रकट होती हैं। इतिहास में किसी सवाक फिल्म का प्रथम सार्वजनिक प्रदर्शन 1900 में पेरिस में हुआ था, लेकिन इस प्रणाली को वाणिज्यिक रूप से एक व्यावहारिक रूप प्रदान करने में कई दशकों का समय लगा।
इतिहास
[संपादित करें]वाक्पट (Talky या Sound film) का प्रारंभ सन् 1926 में हुआ जब सबसे पहले न्यूयार्क में डॉन ह्वाँ (Don Juan) नामक फिल्म का ध्वनि के साथ प्रदर्शन हुआ था। इस फिल्म के लिए ध्वनि पृथक् ग्रामोफोन रेकार्ड पर आलेखित थी और इस रेकार्ड को चलचित्र दिखाते समय साथ-साथ बजाया जाता था जिससे चलचित्र के साथ ही ध्वनि भी सुनाई पड़े।
आजकल चलचित्रों में ध्वनि का अंकन भी फिल्म के ही एक किनारे पर होता है। ध्वनि अंकन प्रारंभ में तो फोटोग्राफी द्वारा ही होता था परंतु आधुनिक काल में अधिक झुकाव चुंबकीय आलेखन की ओर है। फोटोग्राफी द्वारा ध्वनि अंकन के लिए दो विधियाँ प्रयुक्त हुई हैं। इनमें से एक विधि है परिवर्ती क्षेत्रफल विधि (Variable area method) तथा दूसरी विधि है परिवर्ती घनत्व विधि (Variable density method)। इन दोनों ही विधियों का आधारभूत सिद्धांत समान है, अर्थात् ध्वनि के अनुरूप परिवर्ती छायांकन चलचित्र फिल्म के एक किनारे पर होता है। आजकल अधिक प्रचलन परिवर्ती क्षेत्रफल विधि का है।
परिवर्ती क्षेत्रफल विधि से जिस ध्वनि का आलेखन करना है उसको माइक्रोफोन की सहायता से विद्युच्चुंबकीय तरंगों में परिवर्तित कर देते हैं। इन विद्युच्चुंबकीय तंरगों को प्रवर्धक (amplifier) की सहायता से प्रवर्धित करते हैं। प्रवर्धन के अतिरिक्त यहीं पर ध्वनि के अनेक अन्य लक्षणों (characteristics) का, जैसे तीव्रता आदि, नियंत्रण किया जाता है। इसके बाद ध्वनि के विद्युच्चुंबकीय संकेतों को एक धारामापी (galvanometer) पर देते हैं जिससे धारामापी का दर्पण इधर उधर दोलन करता है। दर्पण पर किसी स्थिर तीव्रतावाले प्रकाशस्रोत का प्रकाश एक प्रकाशिक व्यवस्था द्वारा केंद्रित किया जाता है। दर्पण से परावर्तित होने पर यह प्रकाश एक अन्य प्रकाशिक संयंत्र से होता हुआ फिल्म की पट्टी पर पड़ता है और यहाँ उसका छायांकन होता है। माइक्रोफोन पर पड़नेवाली ध्वनि की आवृत्ति और तीव्रता के अनुरूप विद्युच्चुंबकीय संकेत जब धारामापी पर पड़ते हैं, तो इसके दर्पण के भी दोलन इस ध्वनि परिवर्तन से संबंधित होते हैं। दर्पण के दोलन के कारण प्रकाश, जो इस दर्पण से परावर्तित होता है तथा प्रकाशिक संयंत्रों से गुजरता हुआ फिल्म पर पड़ता है, भिन्न भिन्न क्षेत्रफल में छायांकन करता है। यहाँ क्षेत्रफल में परिवर्तन माइक्रोफोन पर पड़नेवाली ध्वनि के ही कारण होता है, अत: यह परिवर्तन उस ध्वनि के संगत भी होता है। यहाँ ध्वनि छायांकन में कालिमा (blackness) की मात्रा सर्वत्र समान रहती है, केवल काले क्षेत्रफल की तीव्रता में परिवर्तन होता है, अत: इस विधि को परिवर्ती क्षेत्रफल विधि कहते हैं।
परिवर्ती घनत्व विधि से स्थिर तीव्रतावाले प्रकाशस्रोत का प्रकाश एक ऐसे प्रकाश वाल्व पर पड़ता है जो दिए गए संकेतों के अनुरूप कम या अधिक प्रकाश पारगमित करता है। इस वाल्व पर माइक्रोफोन द्वारा उत्पन्न तथा प्रवर्धक द्वारा प्रवर्धित संकेत दिए जाते हैं। फलस्वरूप इस वाल्व से निकलनेवाले प्रकाश की तीव्रता माइक्रोफोन पर पड़नेवाली ध्वनि के अनुरूप परिवर्तित होती रहती है। जब यह प्रकाश फिल्म पर छायांकन करता है, तब यद्यपि छायांकन का क्षेत्रफल समान रहता है, तथापि इसके कालेपन के घनत्व में परिवर्तन होता है, अत: इस विधि को परिवर्ती घनत्व विधि कहते हैं।
ध्वनि पुनरुत्पादन का सिद्धांत, ध्वनि आलेखन का लगभग उल्टा है। फिल्म की पट्टी, जिसपर ध्वनि का आलेखन छाया के रूप में है एक ड्रम के ऊपर से गुजरती है। इस ड्रम का कार्य केवल फिल्म की गति की संभव अनियमितताओं को दूर करना है। स्थिर तीव्रता के प्रकाशस्रोत से निकलनेवाला प्रकाश प्रकाशिक संयंत्र द्वारा केंद्रित होकर एक संकीर्ण रेखाछिद्र से होता हुआ फिल्म के ध्वनिछायांकित भाग पर पड़ता है। इससे होकर गुजरनेवाले प्रकाश की तीव्रता में ध्वनिआलेखित भाग के कालेपन के अनुरूप परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन स्पष्टतया माइक्रोफोन पर पड़नेवाली ध्वनि के अनुरूप होगा। इस प्रकार परिवर्ती तीव्रता का प्रकाश एक प्रकाश-विद्युत्-सेल, या फोटोसल पर पड़ता है। इस फोटोसेल के परिपथ में एक विद्युद्वारा उत्पन्न होती है जिसमें फोटोसेल पर आपतित प्रकाश की तीव्रता के अनुरूप परिवर्तन होता है। इस परिवर्ती विद्युद्वारा से फोटोसेल के परिपथ में जो विद्युच्चुंबकीय संकेत उत्पन्न होते हैं, उन्हें प्रवर्धक द्वारा प्रवर्धित किया जाता है तथा बाद में उन संकेतों को एक लाउडस्पीकर पर देते हैं, जो पर्दे के पीछे रखा रहता है। इन प्रवर्धित संकेतों के कारण लाउडस्पीकर से जो ध्वनि उत्पन्न होती है वह उस ध्वनि के ही अनुरूप होती है जो माइक्रोफोन पर पड़ रही थी।
चुंबकीय ध्वनिआलेखन और पुनरुत्पादन
[संपादित करें]उपर्युक्त छायांकन की विधि में ध्वनि का पुनरुत्पादन बहुत उच्च कोटि का नहीं होता। यद्यपि इस विधि से जो आलेखन, चलचित्र स्टूडियो में होता हैं, वह तब भी अधिक उच्च कोटि का हो सकता है, तथापि चलचित्र प्रदर्शनगृहों में ध्वनि का पुनरुत्पादन उतनी उच्च कोटि का नहीं हो सकता। पुनरुत्पादित ध्वनि में आवृत्ति की उच्चतम सीमा प्राय: 7,000 ही हो पाती थी। परंतु इस विधि का एक बड़ा लाभ यह था कि प्रकाशिक छायांकन होने के कारण इसे फिल्म की पट्टी पर चित्र छापने के साथ ही छापा जा सकता था।
प्रकाशविधि की कठिनाइयाँ दूर करने के लिए वैज्ञानिकों ने चुंबकीय ध्वनि आलेख एवं पुनरुत्पादन विधि का सहारा लिया। इस विधि का सिद्धांत टेप रेकार्डर के सिद्धांत जैसा ही है। जिस ध्वनि का आलेखन करना होता है उसको सर्वप्रथम एक माइक्रोफोन की सहायता से विद्युच्चुंबकीय तरंगों में परिवर्तित करके एक प्रवर्धक द्वारा प्रवर्धित करते हैं। तत्पश्चात् इन प्रवर्धित संकेतों को एक विद्युच्चुंबक के कुंडल में भेजते हैं। इस कुंडल में धारा का मान प्राप्त संकेतों के अनुसार परिवर्तित होता है तथा इस धारा के मान के अनुसार विद्युच्चुंबक की चुंबकीय तीव्रता में भी परिवर्तन होता है। इस विद्युच्चुंबक के दोनों ध्रुवों के बीच की दूरी अत्यंत कम होती है, अत: उनके बीच चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता बहुत अधिक होती है और इसके कुंडलों में प्रवाहित होनेवाली धारा में परिवर्तन से क्षेत्र की तीव्रता में अधिक परिवर्तन भी होता है। इस विद्युत् चुंबक के अत्यंत निकट से एक टेप गुजरता है, जिसपर किसी चुंबकीय पदार्थ, जैसे लौह ऑक्साइड (iron oxide), का लेप चढ़ा रहता है।
विद्युत् चुंबक के सम्मुख से गुजरते समय इस टेप पर लेपित चुंबकीय पदार्थ के चुंबकीय गुणों में परिवर्तन होता है, जो विद्युच्चुंबक के चुंबकत्व में परिवर्तन के अनुरूप होता है और चूँकि विद्युच्चुंबक के चुंबकत्व में परिवर्तन माइक्रोफोन पर पड़नेवाली ध्वनि के अनुरूप होता है, अत: टेप के चुंबकीय गुणों में परिवर्तन भी माइक्रोफोन पर पड़नेवाली ध्वनि के अनुरूप होता है। इस विधि से टेप पर ध्वनि का चुंबकीय आलेखन हो जाता है।
पुरुत्पादन के लिए जब यही टेप किसी विद्युच्चुंबक के सम्मुख चलाया जाता है, तब उसके कुडलों में प्रवाहित होनेवाली धारा में तदनुरूप परिवर्तन होता है। धारा का यह परिवर्तन एक प्रवर्धक द्वारा प्रवर्धित करके लाउडस्पीकर पर देने से ध्वनि का पुनरुत्पादन होता है। फिल्म पर इस विधि से आलेखन के लिए आवश्यक है कि फिल्म के एक किनारे पर किसी चुंबकीय पदार्थ का लेप हो। साथ ही प्रदर्शन गृह में पुनरुत्पादन के लिए प्रकाशस्त्रोत एवं फोटोसेल के स्थान पर चुंबकीय हेड की आवश्यकता होगी।
स्टीरीयोफोनिक साउंड
[संपादित करें]आधुनिक समय में अनेक चलचित्रों के प्रदर्शन का आकार साधारण चित्र से भिन्न होता है। सिनेमास्कोप, सिनेरामा, विस्टाविजन आदि नामों से प्रचलित विधियों में प्रदर्शित चित्र की चौड़ाई बहुत अधिक होती है। इस विधि के साथ यदि ऊपर वर्णित ध्वनि-पुनरुत्पादन-विधि का उपयोग किया जाए, जिसमें एक ही लाउडस्पीकर का उपयोग किया जाता है, तो एक कठिनाई यह उत्पन्न होती है कि पर्दे पर ध्वनि का स्रोत चाहे या दाएँ सिरे पर, या बाएँ सिरे पर, या बीच में कहीं भी हो, ध्वनि सदैव एक सी स्थान से आती हुई प्रतीत होगी, जहाँ लाउडस्पीकर रखा है। यदि इस विधि में कई लाउडस्पीकर समांतर में लगाए जाएँ, जो पूरे पर्दे की चौड़ाई में वितरित हों तब भी पूरे पर्दे पर से समान ध्वनि आएगी जबकि बोलनेवाला कहीं एक ही स्थान पर होगा। इस कठिनाई को दूर करने के लिए स्टीरीयोफोनिक ध्वनि यंत्र का उपयोग किया जाता है।
इस विधि में ध्वनि आलेखन के समय विभिन्न स्थलों पर रखे हुए कई माइक्रोफोन का उपयोग किया जाता है, जिनकी संख्या प्राय: चार से सात तक होती है। प्रत्येक माइक्रोफोन से उत्पन्न संकेतों को पृथक् पृथक् प्रवर्धित करते हैं तथा उन्हें आलेखन पट्टी पर अलग अलग आलेखित करते हैं। इस प्रकार ध्वनि आलेखन कई ट्रैंकों (tracks) पर होता है और इसे बहुत ट्रैक रेकार्डिग (Multi track recording) कहते हैं। पुनरुत्पादन के समय भी अलग अलग चुंबकीय हेड से अलग अलग ट्रैक के आलेखन को विद्युच्चुंबकीय संकेतों में परिवर्तित करते हैं फिर उन्हें पृथक् पृथक् प्रवर्धकों से प्रवर्धित करते हैं। अंत में इन संकेतों को अलग अलग लाउडस्पीकरों पर देते हैं। प्रत्येक लाउडस्पीकर इस प्रकार रखा जाता है कि उसकी स्थिति संगत माइक्रोफोन की स्थिति के अनुरूप हो। उदाहरण के लिए, यदि ध्वनि आलेखन के समय एक माइक्रोफोन स्टेज के एक दम बाएँ कोने पर रखा है, तो उस ध्वनि के पुनरुत्पादित करनेवाला लाउडस्पीकर भी पर्दे के पीछे एक दम बाएँ रखा जाएगा। इसी प्रकार अन्य लाउडस्पीकर भी संगत माइक्रोफोनों के अनुसार वितरित होंगे। अब कल्पना कीजिए कि ध्वनि आलेखन के समय स्टेज के बाएँ सिरे पर ध्वनि उत्पन्न होती है, तब वहाँ रखे माइक्रोफोन में ध्वनि की तीव्रता सब से अधिक होगी तथा क्रमश: दूर होते गए माइक्रोफोन में तीव्रता क्रमश: कम होती जाएगी। चूँकि आलेखन और पुनरुत्पादन काल में सबसे बाईं ओर रखे लाउडस्पीकर से तीव्रतम ध्वनि उत्पन्न होगी और क्रमश: दूर के लाउडस्पीकर क्रमश: हलकी ध्वनि उत्पन्न करेंगे। अतएव फलस्वरूप दर्शक को ध्वनि पर्दें की बाईं ओर से आती प्रतीत होगी। इसी प्रकार ध्वनि आलेखन काल में स्टेज के जिस भाग में ध्वनि उत्पन्न होगी, उसके निकटतम रखे हुए माइक्रोफोन में संकेत तीव्रतम होगा तथा पुनरुत्पादन काल में उसी के संगत लाउडस्पीकर से महत्तम ध्वनि उत्पन्न करेगा। अत: ध्वनि भी चित्र के उसी भाग से आती प्रतीत होगी, जहाँ ध्वनि उत्पन्न होती जान पड़ती है। जितने ही अधिक तथा स्पष्ट ट्रैक होंगे उतना ही वास्तविक ध्वनि पुनरुत्पादन होगा। परंतु व्यय एवं व्यावहारिक कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए प्रायोगिक रूप में सात ट्रैक तक उपयोग में आते हैं।
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- Film Sound History well-organized bibliography of online articles and resources; part of the FilmSound website
- Hollywood Goes for Sound charts showing transition to sound production by Hollywood studios, 1928–1929; part of the Terra Media website
- Progressive Silent Film List (PSFL)/Early Sound Films comprehensive and detailed listing of first generation of sound films from around the world; part of the Silent Era website
- Recording Technology History extensive chronology of developments, including subsites, by Steven E. Schoenherr; see, in particular, Motion Picture Sound
- A Selected Bibliography of Sound and Music for Moving Pictures compiled by Miguel Mera, Royal College of Music, London; part of the School of Sound website
- The Silent Film Bookshelf links to crucial primary and secondary source documents, a number of which cover the era of transition to sound
- Sound Stage—The History of Motion Picture Sound informative illustrated survey; part of the American WideScreen Museum website
ऐतिहासिक प्रपत्र
[संपादित करें]- "The Art of Sound" May 1929 essay by filmmaker and critic René Clair
- "Asynchronism as a Principle of Sound Film" 1934 essay by filmmaker and theorist Vsevolod Pudovkin
- "Dialogue and Sound" essay by film historian and critic Siegfried Kracauer; first published in his book Theory of Film: The Redemption of Physical Reality (1960)
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- Handbook for Projectionists technical manual covering all major U.S. systems; issued by RCA Photophone, 1930
- "Historical Development of Sound Films" chronology by sound-film pioneer E. I. Sponable; first published in Journal of the Society of Motion Picture Engineers, April/May 1947
- "Madam, Will You Talk?" article on the history of Bell Laboratories' early research into sound film, by Stanley Watkins, Western Electric engineer; first published in Bell Laboratories Record, August 1946
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- "Sound in Films" essay by director Alberto Cavalcanti; first published in Films, November 1939
- "Theory of the Film: Sound" 1945 essay by film theorist and critic Béla Balázs
- "What Radio Has Meant to Talking Movies" prescient essay by Universal sound engineer Charles Feldstead; first published in Radio News, April 1931
ऐतिहासिक फिल्में
[संपादित करें]- Ben Bernie and All the Lads excerpts from ca. 1924 Phonofilm sound film; on The Red Hot Jazz Archive website
- A Few Minutes with Eddie Cantor 1924 Phonofilm sound film; on Archive.org
- Gus Visser and His Singing Duck 1925 Theodore Case sound film; on YouTube
- President Coolidge, Taken on the White House Lawn 1924 Phonofilm sound film; on Archive.org
सन्दर्भ
वाक्पट Archived 2020-06-13 at the वेबैक मशीन