रामप्रसाद सिंह

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रामप्रसाद सिंह (10 जुलाई 1933-25 दिसंबर 2014) मगही साहित्य के भारतेंदु कहे जाते हैं। इनका जन्म 10 जुलाई 1933 को तत्कालीन गया (अब अरवल जिला) में हुआ था। लम्बे समय तक मगही अकादमी, पटना के अध्यक्ष रहे रामप्रसाद जगजीवन महाविद्यालय, गया में हिन्दी के व्याख्याता थे। मगही भाषा और साहित्य के विकास के लिए इन्होंने आजीवन कार्य किया। मगही भाषा में इनकी अलग-अलग विधाओं में लगभग दो दर्जन से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हैं। पारस पल्लव, नीर-क्षीर, सरहपाद, लोहामरद, गांव के रेंगन-चेंगन, नरग-सरग धरती, बराबर के तलहट्टी में, अकबर के कसमसाहट आदि इनकी प्रमुख मगही रचनाएं हैं। मगही अकादमी के अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने कई पुस्तकों का संपादन किया। इनमें मगही साहित्य का इतिहास, मगही लोकगीत वृहत संग्रह, मगही लोक कथाएं, मुस्कान, सोरही, मगही समाज, निरंजना आदि उल्लेखनीय हैं। डा. सिंह के प्रयासों से ही नालंदा खुला विश्वविद्यालय में एमए मगही की पढ़ाई शुरू की गई। मगही भाषा और साहित्य साधना के लिए इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्रदान किया गया।

संत कवि राम सनेही दास के प्रपौत्र और जमींदारी उन्मूलन के योद्धा बेनी सिंह और माता कुलमंती देवी के संपन्न परिवार में जन्म लेकर राम प्रसाद ने फकीरी जीवन का वरन किया और मगही के भारतेन्दु तथा दधीचि नाम से सम्बोध्य हुए । संस्कृत, अंग्रेजी तथा हिंदी-मगही भाषा के विद्वान डॉ. सिंह किशोर जीवन से ही सामाजिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक संस्थानों तथा साहित्यकारों को आंदोलनात्मक, रचनात्मक तथा आर्थिक मदद कर अविस्मरणीय सेवा दी । अंग्रेजी से लेखन प्रारम्भ कर हिंदी में डट गए और अंततः मगही के लिए समर्पित हो गए ।

10 जुलाई, 1933 को बेलखरा, अरवल, बिहार में जन्मे डॉ. राम प्रसाद सिंह प्राइमरी स्कूल में शिक्षण कार्य शुरू कर विश्वविद्यालय प्रोफेसर से सेवा निवृत हुए । सेवा निवृति के उपरांत मगही अकादमी (उच्च शिक्षा विभाग, बिहार सरकार) के अध्यक्ष रहे। भाषा साहित्य के क्षेत्र में अपना व्यक्तित्व विस्तार झारखण्ड और बिहार में कर अपने कर्मो का पताका फहराने में पूर्णतः सफल रहे । इनकी रचना संसार मुख्यतः शोध और लोक साहित्य के प्रायः सभी विद्याओ का संचयन और अनुशीलन , काव्य, कथा (उपन्यास और कहानियाँ) साहित्य, निबंध और एकांकी तथा संपादन काल तक फैला है ।

अधययन काल में डॉ. सिंह डॉ. राम मनोहर लोहिया से प्रभावित हुए और 1953 से 1972 तक सक्रिय राजनीति में संलग्न रहे । 1972 ईस्वी में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से बिहार विधानसभा का चुनाव लड़कर राजनीति से सन्यास ले लिया और मातृभाषा मगही और भारतीय लोक संस्कृति की प्रतिष्ठा के लिए संघर्षरत हो गए ।

डॉ. सिंह अपनी रचनाओं के लिए साहित्य अकादमी , दिल्ली; राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना; दलित साहित्य अकादमी, नई दिल्ली; हिंदी साहित्य सम्मलेन, गया; हिंदी साहित्य संगम, दुमका; अखिल भारतीय मगही मंडल, विक्रम, पटना आदि अनेक संस्थानों से पुरस्कृत और सम्मानित किए गए । इनके निर्देशन में दर्जनों शोधार्थियों ने पी. एच. डी. की डिग्री प्राप्त किया । इनके जीवन और साहित्य पर मगध विश्वविद्यालय से पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त हुई है तथा अनेक शोधकर्ती शोधरत हैं ।

डॉ. राम प्रसाद सिंह साहित्य के क्षेत्र में ‘मगही के भारतेन्दु’ , ‘मगही के दधीचि’ , एवं ‘मगही के उन्नायक’ आदि नामों से चर्चित हुए ।

82 वर्ष की आयु में 25 दिसंबर 2014 के दिन इनका देहावसान हो गया । 24 दिसंबर 2014 को हिंदुस्तान अख़बार में दिए गए साक्षात्कार से यह साफ़ झलकता है की अंतिम क्षण तक साहित्यिक विकास के लिए कितना चिंतन और समर्पण का भाव था ।