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रसरत्नसमुच्चय

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रसरत्नसमुच्चय रस चिकित्सा का सर्वांगपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें रसों के उत्तम उपयोग तथा पारद-लोह के अनेक संस्कारों का उत्तम वर्णन है। यह वाग्भट की रचना है।

रसशास्त्र के मौलिक रसग्रन्थों में रसरत्नसमुच्चय का स्थान सर्वोच्च है। इसमें पाये जाने वाले स्वर्ण, रजत आदि का निर्माण तथा विविध रोगों को दूर करने के लिये उत्तमोत्तम रस तथा कल्प अपनी सादृश्यता नहीं रखते। यह ग्रन्थ जितना उच्च है उतना ही गूढ़ और व्यावहारिकता में कठिन भी है।[1]

अध्यायों के नाम

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संरचना एवं वर्णित विषय

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  • प्रथम से तृतीय अध्याय में- पारद गन्धकादि आठ उपरसों की हिमाचल आदि में उत्पत्ति, उनके भेद, शोधन, मारण तथा गुण एवं उपयोग का वर्णन है।
  • चतुर्थ अध्याय में - वैक्रान्तादि रत्नों के भेद, नाम, शोधन, मारण मुण एवं रोगानुसार प्रयोग का वर्णन है।
  • पंचम अध्याय में - शुद्ध लोह, स्वर्ण, रजत, ताम्र, लोह (यानी मुण्ड, तीक्ष्ण, कान्त); पूर्ति लोह आदि (नाग-बंग आदि) तथा मिश्रित लौह (पीतल, कांसा, बर्तलोहादि) की उत्पत्ति-भेद गुणदोष, शोध न मारण एवं प्रयोग आदि का वर्णन है।
  • षष्ठ अध्याय में - शिष्योपायन, रसविद्या, गुरू का लक्षण, शिष्य एवं परिचारिकों (औषधालय के कर्मकर) का गुण, रसशाला तथा रसमण्डप का निर्माण, रसलिंग की स्थापना, पूजा प्रकार तथा ध्यान, शिष्य-दीक्षा, दान की विधि, कालिनी लक्षण एवं होमविधि का वर्णन है।
  • सप्तम अध्याय में - रसशाला का निर्माण, उपरस, महारस, अष्टलौह तथा उपकरण-पूजा-विधि, पद्महस्त वैद्यादिकों का लक्षण एवं रसशास्त्रीय पदार्थो का वर्णन और परिचारकों का लक्षण वर्णित है।
  • अष्टम तथा नवम अध्याय में- क्रमश: परिभाषा निरूपण, दोलायन्त्र, विद्याधरयन्त्र, घटयन्त्र तथा पाताल-यन्त्र (पातनयन्त्र) आदि का वर्णन है।
  • दशम अध्याय में- अनेक प्रकार की मूषा, पुट तथा अम्लवर्ग, विषवर्ग, दुग्धवर्ग रक्तादिवर्ग एवं शोधक गणादिकों का वर्णन है।
  • एकादश अध्याय में - मान परिभाषा, पारद के अठारह संस्कार तथा अनेक प्रकार के बन्धनों का विस्तार से वर्णन है।
  • बारहवें से पच्चीसवें अध्याय में- शरीर में होनेवाले सब रोंगों (ज्वर, कास, श्वास, क्षय, हिक्का आदि) विद्राधिचिकित्सा, शालाक्यादि एवं गर्भधारण के विविध प्रयोग, मासानुमासिकक गर्भ रक्षण का योग, दीर्घजीवी पुत्र के लिए शंकरोक्त दैव व्यापाश्रय चिकित्सा, वन्ध्या कर्कोटकी योग गर्भिणी रोग तथा गर्भधारण के बाद प्रथम मास से प्रसव काल तक गर्भ रक्षण के विविध उपायों एवं अन्य विषयों का वर्णन किया गया है।
  • छब्बीसवें अध्याय में - जरा रोग निदान, चिकित्सा, मासिक रसायन, षड्मासिक रसायन, पाक्षिक रसायन, अष्ट मासिक रसायन, त्रिवार्षिक रसायन, सहस्त्र वर्षायुस्कर रसायन, त्रिफला रसायन तथा कान्ताभ्रकक आदि रसायन का वर्णन है।
  • सत्ताइसवें अध्याय में- वाजीकरण रसों का वर्णन है तथा स्तम्भन शक्तिवर्धक रसयोगों का वर्णन है।
  • अठाइसवें अध्याय में- लौह स्वर्ण, रजतत तथा ताम्रादि के अनेक कल्पों का वर्णन है।
  • उनतीसवें अध्याय में- विषों की उत्पत्ति, उसके भेद, गुण-दोष एवं अनेक रोंगो पर विष के कल्पों का वर्णन है।
  • तीसवें अध्याय में - रस-मारण, रस-जारण तथा रस (पारद) के विविध रोंगों को नाश करने के लिए विविध कल्पों का वर्णन हुआ है।

कुछ प्रमुख विषय

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न क्रमेण विना शास्त्रं न शास्त्रेण विना क्रमः ।
शास्त्रं क्रमयुतं ज्ञात्वा यः करोति स सिद्धिभाक् ॥ रस-६.२ ॥
  • वैज्ञानिक व्याख्या का दर्शन
  • दो तरह के खनिज (२/१४९)
  • खनिज का रंग और उसकी प्रकृति ('अर्थशास्त्र' २-३०)
  • खनिज ताम्र का रंग
  • कुछ रसायनों के गुणधर्म (कैल्सियम कार्बोनेट आदि) (३/१३०-१३१)
  • पारद का आसवन (३/१४४)
तद् अब्धिक्षारसंशुद्धं तस्माच्छुद्धिर्न हीष्यते ॥ रस-३.१४४ ॥
  • संक्षारण की व्याख्या (रसार्णव ७/९७)
  • लौ का रंग (रसार्णव ४/५१)
  • तीन प्रकार के लौह (५/६९)
  • दो प्रकार के टिन (वंग) (५/१५३-१५४)
खुरकं मिश्रकं चेति द्विविधं वंगमुच्यते ।
खुरं तत्र गुणैः श्रेष्ठं मिश्रकं न हितं मतम् ॥ रस-५.१५३ ॥
द्रुतद्रावं महाभारं छेदे कृष्णं समुज्ज्वलम् ।
पूतिगन्धं बहिः कृष्णं शुद्धं सीसमतोऽन्यथा ॥ रस-५.१७० ॥
तीक्ष्णशब्दं मृदु स्निग्धमीषच्छ्यामलशुभ्रकम् ।
निर्मलं दाहरक्तं च षोढा कांस्यं प्रशस्यते ॥ रस-५.२०५ ॥
  • रसशाला और उसमें कार्य करने वाले लोगों की दशा

सन्दर्भ

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  1. रसरत्नसमुच्चय Archived 2018-06-12 at the वेबैक मशीन (दो शब्द ; धर्मानन्द शर्मा , रसरत्नसमुच्चय के हिन्दी टीकाकार)

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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