रत्न परीक्षा

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रत्न परीक्षा रत्नों के परीक्षण का एक प्राचीन विज्ञान है। [1] [2] इसका उपयोग प्राचीन काल में मोती, हीरे और सभी महत्वपूर्ण रत्नों के व्यापार को नियंत्रित करने के लिए किया जाता था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में के अनुसार यह कार्य कोषाध्यक्ष द्वारा किया जाता था। [3] अर्थशास्त्र में रत्नों को महारत्न और उपरत्न में वर्गीकृत किया गया है।

इतिहास[संपादित करें]

रत्नपरीक्षा का उल्लेख अनेक ग्रन्थों में मिलता है। रत्न परीक्षा का उल्लेख कौटिल्य के अर्थशास्त्र (323-299 ईसा पूर्व) में मिलता है। [4] कामसूत्र के वात्स्यायन में रूप-रत्न-परीक्षा का उल्लेख है। इस पद्धति का अध्ययन मध्यकाल के दौरान कर्नाटक के राजकुमारों द्वारा भी किया गया था। [5]

'रत्नपरीक्षा'' नाम से अनेक ग्रन्थों की रचना हुई। इस नाम के एक ग्रन्थ के लेखक बुद्ध भट्ट हैं। मध्यकाल के एक अन्य लेखक ठक्कर फेरू का भी उल्लेख मिलता है, जिन्हें एक बार फिर इस विषय पर काम करने का श्रेय दिया जाता है। इसमें वैद्यराज श्री राधा कृष्ण नवेटिया का उल्लेख है जो रत्न चिकित्सा के उपयोग में आने वाली एक प्रकार की शराब तैयार करने के लिए रत्न परीक्षण का उपयोग करते हैं। [6]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

संदर्भ[संपादित करें]

  1. Mubarak 1978
  2. Asiatic Society 1848
  3. Mookerji 1990
  4. Mookerji 1990, पृष्ठ 363
  5. Social Life in Medieval Karnataka, Jyotsna Kamat
  6. Johari 1996