युआन मेइ

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युआन मेइ

युआन मेइ (१७१६ ई०-१७९७ ई० ; चीनी : 袁枚 pinyin: Yuán Méi) चीन के कवि, साहित्यिक, आलोचक एवं निबंधकार थे।

परिचय[संपादित करें]

युआन मेइ चिएन तांग (आधुनिक हांग चाओ) के निवासी थे। १७३९ ई॰ में ये यिंग शिह की उपाधि के लिये हान लिन एकेडेमी में भर्ती किए गए। मंचू भाषा की परीक्षा में असफल होने के कारण इन्हें एकेडेमी से मुक्त कर दिया गया। इसके पश्चात् ये १७४२ ई० से १७४८ तक किआंग सु प्रांत के विभिन्न चार जिलों में मजिस्ट्रेट रहे।

सन् १७४९ में उन्होंने सरकारी नौकरी से निवृत्ति प्राप्त की और नानकिंग के निकट अपने नवीन प्राप्त किए बगीचे सुइ युआन में प्रतिष्ठा के साथ रह अपना ध्यान साहित्य एवं गहन अध्ययन पर केंद्रित किया। लेखक के रूप में उनका जीवन अत्यंत सफल था। जनता उनकी रचनाओं का समादर करती थी। उनकी रचनाएँ केवल चीन में ही प्रख्यात नहीं रहीं, उन्होंने कुछ कोरियाई विद्वानों का भी ध्यान आकृष्ट किया। अपने जीवन के अंतिम भाग में उन्होंने विस्तृत रूप से चीन के दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व के प्रांतों में यात्राएँ कीं।

युआन नई साहित्यिक आलोचना के संस्थापक एवं नेता थे। काव्य में उस सदाचारवाद एवं नियम निष्ठावाद का विरोध करते हुए, जिसकी उस युग में सत्ता स्थापित थी, युआन ने काव्य में प्रकृतिवाद एवं अध्यात्मवाद (सिंग लिंग) की वकालत की। नैतिक उद्देश्य एवं लेखक के स्वरूप की अवहेलना करते हुए काव्य में भावनाओं की सीधी अभिव्यक्ति ही उनके अध्यात्मवाद का तात्पर्य था। अतएव महान काव्य मौलिक रूप से कवि की अपनी भावना, प्रतिभा, एवं व्यक्तित्व पर आधारित होता है। यदि कोई किसी क्षण प्रसन्नता एवं प्रेरणा की तीव्रता अनुभव करता है तो उसे उसकी अभिव्यक्ति सीधे तौर से करनी चाहिए, चाहे नैतिक दृष्टि में अनुभूति ही सर्जनात्मक साहित्य के लिये प्रधान तत्व है। विधा सापेक्षतत्व एवं नैतिकता अप्रमुख तत्व है, क्योंकि ये भावनाओं की सीधी अभिव्यक्ति के लिये बाधक हैं।

दूसरे विषयों के प्रति भी उनकी द्दष्टि उदारतापूर्ण थी। उन्होंने चीन के अभिजात ज्ञान, परंपरा एवं इतिहास की सत्ता के प्रति आलोचनात्मक विचारों का प्रदर्शन किया। उन्होंने इस विचार का समर्थन किया कि स्त्रियों को शिक्षा की सुविधा देनी चाहिए और उन्हें साहित्यिक कार्यक्रमों में भाग लेना चाहिए। अपने ऊपर की गई रूढ़िवादी विद्वानों की कटु आलोचनाओं एवं तीव्र धमकियों की अवहेलना करते हुए उन्होंने अनेक नारियों को अपनी शिष्याओं के रूप में स्वीकार किया, उन्हें कविता लिखने के लिये प्रोत्साहित किया और उनकी रचनाएँ प्रकाशित कीं। उनमें से कुछ प्रसिद्ध कवयित्रियाँ हुई।

उनके सबसे अधिक पूर्ण संग्रह में करीब करीब १५० स्तवन हैं जिनमें कविताएँ, निबंध एवं स्वतंत्र रचनाएँ सम्मिलित हैं। पाकशास्त्र पर उनके मनोरंजक व्याख्यान चीन में विस्तृत रूप से पढ़े जाते हैं और पश्चिम की अनेक भाषाओं में इनके अनुवाद भी हो चुके हैं।

सन्दर्भ ग्रन्थ[संपादित करें]

  • सियाओ त्सांग शां फांग शिह् वेन चि या, कलेक्टेड पोएमस् एंड राइटिंग्स ऑव दि लिटिल त्सांग हिल लाइब्रेरी, सु पु पियाओ एडीशन, (शंघाई १९३६);
  • युआन मेई, इटींथा सेन्चुरी चाइनीज पोएट वाई अपन वैली, (लंदन, १९५६)।