यतो धर्म ततो जय
यतो धर्मः ततो जयः (या, यतो धर्मस्ततो जयः) एक संस्कृत श्लोक है। यह भारत के सर्वोच्च न्यायालय का ध्येय वाक्य है। यह महाभारत में कुल तेरह बार आता है और इसका मतलब है "जहाँ धर्म है वहाँ जय (जीत) है।"[1][2] यह वाक्य भारत के सर्वोच्च न्यायालय का ध्येयवाक्य भी है।
अर्थ
[संपादित करें]इस ध्येयवाक्य का अर्थ महाभारत के उस श्लोक (संस्कृत: यतः कृष्णस्ततो धर्मो यतो धर्मस्ततो जयः) से आता है जब कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन युधिष्ठिर के अकर्मण्यता को दूर कर रहें थे।[3] वे उस समय कहते हैं, "विजय सदा धर्म के पक्ष में रहती है, एवं जहाँ श्रीकृष्ण हैं वहाँ विजय है". [4] गांधारी भी अपने पुत्रों के मृत्यु के बाद समान उद्गार कहती है।[5]
अन्य स्थानों पर प्रयोग
[संपादित करें]बृहन्मुंबई महानगरपालिका का भी ध्येय-वाक्य ‘यतो धर्मस्ततो जयः’ है और उसके भवन पर यह वाक्य उत्कीर्ण है। कूचबिहार रियासत (पश्चिम बंगाल) का भी ध्येय-वाक्य ‘यतो धर्मस्ततो जयः’ है। भगिनी निवेदिता (1867-1911) द्वारा राष्ट्रीय ध्वज का जो प्रारूप तैयार किया गया था, उसमें वज्र और ‘वन्देमातरम’ के साथ ‘यतो धर्मस्ततो जयः’— यह वाक्य भी अंकित था। जयपुर के अलबर्ट हॉल म्यूजियम की भित्ति पर भी बड़े गर्व से उत्कीर्ण किया गया है : ‘यतो धर्मस्ततो जयः’ I
यह भी देखें
[संपादित करें]| विकिसूक्ति पर धर्म से सम्बन्धित उद्धरण हैं। |
- धर्म
- कर्म
- सत्यमेव जयते (सत्य की ही जय होती है।)
- धर्मो रक्षति रक्षितः
संदर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Why Justices Broke the Code of Silence - Mumbai Mirror -". Mumbai Mirror. 12 जून 2018 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 24 May 2018.
- ↑ Joseph, Kurian (2017). "यतो धर्मस्ततो जयः". Nyayapravah. XVI (63): 7.
- ↑ Hiltebeitel, Alf (2011). Dharma: Its Early History in Law, Religion, and Narrative (अंग्रेज़ी भाषा में). Oxford University Press, USA. p. 545547. ISBN 9780195394238.
- ↑ Sharma, Rambilas (1999). Bhāratīya saṃskr̥ti aura Hindī-pradeśa. Kitabghar Prakashan. p. 352. ISBN 9788170164388.
- ↑ "Mahabharata and the message it conveys to Protect Dharma". www.speakingtree.in. 12 जून 2018 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 21 सितंबर 2018.