मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी
मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी | |
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मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी, चिकित्साशास्त्र के विद्यार्थी जीवन में | |
जन्म |
30 जुलाई 1886 मद्रास प्रेसिडेन्सी के पुद्दुकोट्टै रियासत में |
मौत |
22 जुलाई 1968 | (उम्र 81 वर्ष)
प्रसिद्धि का कारण | समाजसुधारक, महिला अधिकार कार्यकर्ता और लेखिका |
जीवनसाथी | सेन्दरा रेड्डी |
बच्चे | एस कृष्णमूर्ति (भाई), एस राममोहन |
पुरस्कार | पद्मभूषण (1956) |
डॉक्टर मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी (30 जुलाई 1886 -- २२ जुलाई, १९६८) भारत की पहली महिला विधायक एवं समाजसेविका थीं। वे ही लड़कों के स्कूल में प्रवेश लेने वालीं भारत की पहली महिला थीं। इसके आलावा मुत्तुलक्ष्मी ही देश पहली महिला डॉक्टर (मेडिकल ग्रेजुएट) भी थीं। मुत्तुलक्ष्मी जीवन भर महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़तीं रहीं और भारत की आजादी की लड़ाई में भी उन्होंने बढ़-चढ़कर सहयोग दिया।
मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी ने मंदिरों से देवदासी प्रथा के उन्मूलन, बाल विवाह रोकथाम कानून और महिलाओं और बच्चों की तस्करी रोकने के लिए कानून बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साथ ही विवाह के लिए लड़कियों की सहमति की आयु को बढ़ाकर 14 करने वाला विधेयक भी लेकर आईं।
सन १९५६ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया।
जीवनवृत्त
[संपादित करें]मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी का जन्म 30 जुलाई 1886 को तमिलनाडु (तब मद्रास) के पुद्दुकोट्टै में हुआ था। उनके पिता नारायण स्वामी अय्यर महाराजा कॉलेज में प्रोफेसर थे और उनकी मां चंद्रामाई देवदासी समुदाय से थीं। मुत्तुलक्ष्मी को भी बचपन से ही पढ़ने के लिए काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। मैट्रिक तक उनके पिता और कुछ शिक्षकों ने उन्हें घर पर ही पढ़ाया। वे परीक्षा में सर्वाधिक अंक अर्जित करके प्रथम स्थान पर रहीं। मुत्तुलक्ष्मी की मां चंद्रामाई ने समाज के तानों के बावजूद उन्हें पढ़ने के लिए भेजा। उन्होंने भी मां-बाप को निराश नहीं किया और देश की पहली महिला डॉक्टर बनीं।
अपनी मेडिकल ट्रेनिंग के दौरान ही एक बार मुत्तुलक्ष्मी को कांग्रेस नेता और स्वतन्त्रता सेनानी सरोजिनी नायडू से मिलने का मौका मिला। बस यहीं से उन्होंने महिलाओं के अधिकारों और देश की आजादी के लिए लड़ने की कसम खा ली। यहां तक कि उन्हें इंग्लैंड जाकर आगे पढ़ने का मौका भी मिला लेकिन उन्होंने इसे छोड़कर 'विमेंस इंडियन असोसिएशन' के लिए काम करना ज्यादा जरूरी समझा।
जिस दौर में मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी बड़ी हो रही थीं, उस समय बाल विवाह का चलन आम था, लेकिन उन्होंने इसका विरोध किया और विवाह के लिए तय न्यूनतम आयु को बढ़ाने की मांग की। इसके साथ ही उन्होंने बच्चियों के साथ होने वाले उत्पीड़न के खिलाफ भी आवाज बुलंद की।
मुत्तु को सन् 1927 में मद्रास लेजिस्लेटिव काउंसिल से देश की पहली महिला विधायक बनने का गौरव भी हासिल हुआ। उन्हें समाज और औरतों के लिए किए गए अपने काम के लिए काउन्सिल में जगह दी गई थी। छोटी बहन की मृत्यु कैंसर से होने के बाद उन्हें गहरा सदमा लगा, जिसके बाद उन्होंने 1954 में अड्यार कैंसर इंस्टीट्यूट की स्थापना की। वर्तमान समय में यह दुनिया के सबसे बड़े कैंसर अस्पतालों में से एक है, जहां हर वर्ष हजारों कैंसर रोगियों का इलाज होता है।[1]
देवदासी प्रथा को खत्म करने के लिए मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी ने कट्टर समूहों से विरोध का सामना किया। मुत्तुलक्ष्मी ने मद्रास विधान परिषद के समक्ष प्रस्ताव पेश करते हुए कहा था कि देवदासी प्रथा सदी का सबसे खराब रूप है और ये एक धार्मिक अपराध है, जिसको जड़ से समाप्त करना चाहिए। मद्रास विधान परिषद ने सर्वसम्मति से उनका समर्थन किया और केंद्र सरकार से इसकी सिफारिश भी की।
वर्ष 1968 में 81 वर्ष की आयु में डॉक्टर रेड्डी का निधन हो गया।