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मिलारेपा

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मिलारेपा (तिब्बती: རྗེ་བཙུན་མི་ལ་རས་པ, Wylie: rje btsun mi la ras pa) (1052 ई. – 1135 ई.) तिब्बत के सबसे प्रसिद्ध योगियों तथा कवियों में से एक थे। यह युवा जीवन में हत्यारे जाने गए, जो बाद में बदल गए और बौद्ध धर्म के अनुयायी बने। यह मार्पा लोत्सावा के शिष्य बने और कग्यु संप्रदाय के महान व्यक्तियों में जाने गए। इन्होंने कैलास पर्वत को भी पार किया था।

मिलारेपा की प्रसिद्ध मूर्ति, न्यानांग फेलग्येलिंग मठ, तिब्बत
बौद्ध धर्म

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प्रारंभिक जीवन

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मिला रस्पा (थोस्पा गाह्) का जन्म 1052 ई. में भाद्रपद के पच्चीसवें दिन पर हुआ था। मिला उनका परिवारिक नाम था। उनका जन्म तिब्बत के मंड्युल गुडथड प्रान्त के क्याडाचा में हुआ था। पिता मिला शेसरब् ग्यलछन और माता ञड्छा कर्ग्यन थीं। एक छोटी बहन पेतागोन्किद् चार साल बाद पैदा हुई। मिला परिवार अपने क्षेत्र में अत्यधिक संपन्न था। [1]

इनके सात वर्ष की आयु में पिता वसीयत लिखकर चाचा और बुआ को सौंपकर मृत्यु को प्राप्त हुए। इसके बाद चाचा और बुआ ने इनकी सारी संपत्ति पर अधिकार कर लिया और माँ-पुत्र और पुत्री को अत्यधिक कष्ट पहुंचाया गया। ग्रीष्मकाल में जब कृषि कार्य होता था तो चाचा का नौकर बनना पड़ता। शीतकाल में जब ऊन से सम्बंधित कार्य प्रगति पर होता था तो बुआ का नौकर बनना पड़ता। इनका भोजन कुत्ते के भोजन से भी बदतर था और कार्य गधे से भी कहीं अधिक। इनके पंद्रह साल का होने पर मां ने वसीयतनामे के अनुसार संपत्ति वापस मांगी तो भरी सभा में चाचा ने मां-बेटे को पीटा। [2]

इससे अत्यन्त पीड़ित होकर मां ने इन्हें काला जादू सीखने और प्रतिशोध लेने को कहा। चाचा-बुआ और अन्य पड़ोसियों का सर्वनाश न करने पर मां ने आत्महत्या की चेतावनी दी।[3] मिलारेपा ने काला जादू सीखा और उसके प्रयोग से चाचा के घर पर विवाहोत्सव में एकत्रित परिवार, संबधियों और पड़ोसियों समेत पैंतीस लोगों को मार डाला। पूरे गांव की खड़ी फसल को ओला-वृष्टि से नष्ट भी कर दिया।[4]

इसके बाद मिलारेपा को पाप का भार महसूस हुआ और बहुत पश्चाताप हुआ।[5]

गुरू से मिलन

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मिलारेपा ने गुरू की खोज शुरू की और मर्पा लोचावा के बारे में सुनकर लोडग् नामक स्थान पर डोवोलुड् विहार गए। मर्पा भारतीय महासिद्ध नरोपा के प्रत्यक्ष शिष्य थे।[6]

गुरू ने उनकी अनेक प्रकार से परीक्षा ली जिसमें मकान बनाना, फिर तुड़वाना, दोबारा तिबारा बनवाना और तुड़वा देना था।[7] इससे मिलारेपा की पाप-शुद्धि हुई और गुरू मर्पा ने उन्हें शिष्य बनाया।[8]

आध्यात्मिक साधना

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मिलारेपा ने ग्यारह महीने तक लोडग तग्ञ की गुफा में एकांत में साधना की। इसकी समाप्ति पर उन्होंने अपना पहला गीत गाया था। इस तरह गुरू के पास कुछ वर्ष साघना करने के बाद उन्होंने अपने गांव वापस जाने की आज्ञा ली।[9]आठ साल बाद अपने गांव और घर पहुंचने पर उन्हें पता चला कि मां का निधन हो चुका है और बहन भिखारिन बनकर कहीं चली गई है[10] इससे मिलारेपा को संसार की सारहीनता का तीव्र बोध हुआ। घर त्यागकर उन्होंने पास की एक गुफा में उग्र तपस्या की।[11]इसके परिणाम स्वरूप इच्छानुसार काया परिवर्तन और आकाश-गमन सिद्धियों का प्रयोग करने में समर्थ हुए। मिलारेपा को आकाश-गमन करते हुए गांव के लोगों ने भी देखा। इससे प्रसिद्धि होने पर उन्होंने स्थान बदल दिया और गुरू मर्पा के बताए स्थान छुअर गुफा में तपस्या करने लगे।[12]

निर्वाण

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चौरासी वर्ष की आयु में 1134 ई. माघ महीने में चतुर्दशी को योगी मिलारेपा ने शरीर त्याग किया। इस समय आकाश में इंद्रधनुष दिखने जैसी दुर्लभ घटना भी हुई।[13] इन्होंने अपने जीवन काल में एक हजार गीतों की रचना की जो 'मिलोरेपा के सहस्र गीत' नाम से प्रचलित हैं।[14]

चित्र संकलन

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फिल्में और वीडियो

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सन्दर्भ

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  1. अनुवादक रमेशचन्द्र, नेगी (2012). भट्टारक मिलारस्पा का जीवन वृतांत (द्वितीय संस्करण). वाराणसी: केन्द्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय, सारनाथ. पृ॰ 26.
  2. भट्टारक मिलारस्पा का जीवन वृतांत, पन्ना 29-32
  3. भट्टारक मिलारस्पा का जीवन वृतांत, पन्ना 38-39
  4. भट्टारक मिलारस्पा का जीवन वृतांत, पन्ना 45,55
  5. भट्टारक मिलारस्पा का जीवन वृतांत, पन्ना 61
  6. भट्टारक मिलारस्पा का जीवन वृतांत, पन्ना 68
  7. भट्टारक मिलारस्पा का जीवन वृतांत, पन्ना 72,73,75
  8. भट्टारक मिलारस्पा का जीवन वृतांत, पन्ना 107
  9. भट्टारक मिलारस्पा का जीवन वृतांत, पन्ना 140
  10. भट्टारक मिलारस्पा का जीवन वृतांत, पन्ना 150
  11. भट्टारक मिलारस्पा का जीवन वृतांत, पन्ना 151
  12. भट्टारक मिलारस्पा का जीवन वृतांत, पन्ना 184,185
  13. भट्टारक मिलारस्पा का जीवन वृतांत, पन्ना 244
  14. भट्टारक मिलारस्पा का जीवन वृतांत, पन्ना 40

बाहरी कड़ियाँ

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