महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा / MNREGA) भारत में लागू एक रोजगार गारंटी योजना है, जिसे 7 September 2005 को विधान द्वारा अधिनियमित किया गया। यह योजना प्रत्येक वित्तीय वर्ष में किसी भी ग्रामीण परिवार के उन वयस्क सदस्यों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराती है जो प्रतिदिन 220 रुपये की सांविधिक न्यूनतम मजदूरी पर सार्वजनिक कार्य-सम्बंधित अकुशल मजदूरी करने के लिए तैयार हैं। 2010-11 वित्तीय वर्ष में इस योजना के लिए केंद्र सरकार का परिव्यय 40,100 करोड़ रुपए था।[1]
इस अधिनियम को ग्रामीण लोगों की क्रय शक्ति को बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था, मुख्य रूप से ग्रामीण भारत में रहने वाले लोगों के लिए अर्ध-कौशलपूर्ण या बिना कौशलपूर्ण कार्य, चाहे वे गरीबी रेखा से नीचे हों या ना हों। नियत कार्य बल का करीब एक तिहाई महिलाओं से निर्मित है। सरकार एक कॉल सेंटर खोलने की योजना बना रही है, जिसके शुरू होने पर शुल्क मुक्त नंबर 1800-345-22-44 पर संपर्क किया जा सकता है।[2] शुरू में इसे राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (NREGA) कहा जाता था, लेकिन 2 अक्टूबर 2009 को इसका पुनः नामकरण किया गया।

राजनीतिक पृष्ठभूमि[संपादित करें]
इस अधिनियम को वाम दल-समर्थित संप्रग सरकार द्वारा लाया गया था। कई लोगों का मानना है कि इस परियोजना का वादा भारतीय आम चुनाव, २००९ में यूपीए के पुनर्विजयी होने के प्रमुख कारणों में से एक था।[उद्धरण चाहिए] बेल्जियम में जन्मे और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स में कार्यरत् अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज की इस परियोजना के पीछे एक अहम भूमिका है।[3]
योजना[संपादित करें]
यह अधिनियम, राज्य सरकारों को "मनरेगा योजनाओं" को लागू करने के निर्देश देता है। मनरेगा के तहत, केन्द्र सरकार मजदूरी की लागत, माल की लागत का 3/4 और प्रशासनिक लागत का कुछ प्रतिशत वहन करती है। राज्य सरकारें बेरोजगारी भत्ता, माल की लागत का 1/4 और राज्य परिषद की प्रशासनिक लागत को वहन करती है। चूंकि राज्य सरकारें बेरोजगारी भत्ता देती हैं, उन्हें श्रमिकों को रोजगार प्रदान करने के लिए भारी प्रोत्साहन दिया जाता है।
- हालांकि, बेरोजगारी भत्ते की राशि को निश्चित करना राज्य सरकार पर निर्भर है, जो इस शर्त के अधीन है कि यह पहले 30 दिनों के लिए न्यूनतम मजदूरी के 1/4 भाग से कम ना हो और उसके बाद न्यूनतम मजदूरी का 1/2 से कम ना हो। प्रति परिवार 100 दिनों का रोजगार (या बेरोजगारी भत्ता) सक्षम और इच्छुक श्रमिकों को हर वित्तीय वर्ष में प्रदान किया जाना चाहिए ।
प्रक्रिया[संपादित करें]
ग्रामीण परिवारों के वयस्क सदस्य, ग्राम पंचायत के पास एक तस्वीर के साथ अपना नाम, उम्र और पता जमा करते हैं। जांच के बाद पंचायत, घरों को पंजीकृत करता है और एक जॉब कार्ड प्रदान करता है। जॉब कार्ड में, पंजीकृत वयस्क सदस्य का ब्यौरा और उसकी फोटो शामिल होती है। एक पंजीकृत व्यक्ति, या तो पंचायत या कार्यक्रम अधिकारी को लिखित रूप से (निरंतर काम के कम से कम चौदह दिनों के लिए) काम करने के लिए एक आवेदन प्रस्तुत कर सकता है। आवेदन दैनिक बेरोजगारी भत्ता आवेदक को भुगतान किया जाएगा।
इस अधिनियम के तहत पुरुषों और महिलाओं के बीच किसी भी भेदभाव की अनुमति नहीं है। इसलिए, पुरुषों और महिलाओं को समान वेतन भुगतान किया जाना चाहिए। सभी वयस्क रोजगार के लिए आवेदन कर सकते हैं class="google-src-text" style="direction: ltr; text-align: left">
इतिहास और अनुदान[संपादित करें]
यह योजना 2 फ़रवरी 2006 को 200 जिलों में शुरू की गई, जिसे 2007-2008 में अन्य 130 जिलों में विस्तारित किया गया और 1 अप्रैल 2008 तक अंततः भारत के सभी 593 जिलों में इसे लागू कर दिया गया। == इतिहास आणि अनुदान == ही योजना 2 फेब्रुवारी 2006 रोजी 200 जिल्ह्यांमध्ये लॉन्च करण्यात आली होती, जी 2007-2008 मध्ये आणि 1 अप्रैल 2008 पर्यंत 130 जिल्ह्यांमध्ये विस्तारली गेली होती, ती शेवटी 5 9 3 जिल्ह्यांत अंमलात आणली गेली. 2006-2007 में परिव्यय 110 बीलियन रुपए था, जो 2009-2010 में तेज़ी से बढ़ते हुए 391 बीलियन रूपए हो गया (पिछले 2008-2009 बजट की तुलना में राशि में 140% वृद्धि)। 200 99 -2007 मध्ये 110 बिलियन रूपयांची तरतूद होती, 200 9 -2010 च्या तुलनेत (3 9-200 9 च्या अंदाजपत्रकाच्या तुलनेत 140% वाढ) ते 3 9 .1 अब्ज रुपयांवर वाढले. सबसे पहले पंचायत द्वारा एक प्रस्ताव ब्लॉक कार्यालय में दिया जाता है और फिर ब्लॉक कार्यालय निर्णय लेता है कि काम मंजूर किया जाना चाहिए या नहीं। सर्वप्रथम, ब्लॉक कार्यालयातील पंचायतकडून प्रस्ताव दिला जातो आणि मग ब्लॉक कार्यालयाचा निर्णय मंजूर करावा की नाही हे ठरवितो.
क्रियान्वयन[संपादित करें]
भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने मनरेगा के कार्यान्वयन के प्रदर्शन लेखापरीक्षा में इस अधिनियम के कार्यान्वयन में "बड़ी कमियों" को पाया है। इस योजना को फरवरी 2006 में 200 जिलों में शुरू किया गया था और अंत में 593 जिलों तक विस्तारित किया गया। 2008-09 के दौरान 4,49,40,870 ग्रामीण परिवारों को मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराया गया, जहां प्रत्येक परिवार में 48 कार्य दिवस का राष्ट्रीय औसत था।[4]
कार्य/गतिविधियां[संपादित करें]
मनरेगा ग्रामीण विकास और रोजगार के दोहरे लक्ष्य को प्राप्त करता है। मनरेगा यह उल्लेख करता है कि कार्य को ग्रामीण विकास गतिविधियों के एक विशिष्ट सेट की ओर उन्मुख होना चाहिए जैसे: जल संरक्षण और संचयन, वनीकरण, ग्रामीण संपर्क-तंत्र, बाढ़ नियंत्रण और सुरक्षा जिसमें शामिल है तटबंधों का निर्माण और मरम्मत, आदि। नए टैंक/तालाबों की खुदाई, रिसाव टैंक और छोटे बांधों के निर्माण को भी महत्व दिया जाता है। कार्यरत लोगों को भूमि समतल, वृक्षारोपण जैसे कार्य प्रदान किये जाते हैं।
जॉब कार्ड के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कैसे करें[संपादित करें]
- सबसे पहले आपको नरेगा की अधिकारित वेबसाइट nrega.nic.in पर जाना होगा।
- जिसके बाद आपके सामने होम पेज खुल जायेगा, जिसमे आपको data entry का सेक्शन पर क्लिक करना होगा।
- जिसके बाद आपके सामने राज्यों की सूची खुल जाएगी। जिसमे आपको अपने राज्य पर क्लिक करना होगा।
- उसके बाद आपकी स्क्रीन पर नया पेज खुलेगा आपको इस पेज में रजिस्ट्रेशन करना होगा।
- तथा उम्मीदवार को रजिस्ट्रेशन करने के लिए कुछ जानकारी दर्ज करनी होगी जैसे वित्तीय वर्ष, जिला, ब्लॉक, तहसील, यूजर आईडी, पासवर्ड। आपको नीचे एक कैप्चा कोड दिया होगा उस कैप्चा कोड भरे और लॉगिन के बटन पर क्लिक कर दें।
- जैसे ही आप लॉगिन के बटन पर क्लिक करते हैं आपकी स्क्रीन पर नया पेज खुल जायेगा। आपको इस पेज में “Registration & Job Card” के ऑप्शन पर क्लिक करना होगा।
- आपकी स्क्रीन पर आवेदन फॉर्म खुल जायेगा। आपको आवेदन फॉर्म में सभी विवरणों को दर्ज करना होगा। जैसे घर के मुखिया का नाम, पंजीकरण करने की तिथि, परिवार में सदस्यों की संख्या, आयु, जेंडर सभी जानकारी काफी समझदारी से दर्ज करें और save के बटन पर क्लिक कर दें।
- इसके बाद आपको एक रजिस्ट्रेशन नंबर दिया जायेगा।
- अब आपको फॉर्म में मुखिया की एक पासपोर्ट साइज फोटो अपलोड करनी होगी। और अपलोड की गयी फोटो को सेव कर दें।
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मनरेगा योजना के लाभ क्या है?[संपादित करें]
- यह योजना भारत देश की सबसे लाभकारी योजनाओ में से एक है.
- ईस योजना के तहत 100 दिन की रोजगार गेरेंटी होती है
- यह योजना ग्रामीण इलाको में रहते लोगो के लिए कृषि के आलावा एक विकल्प है.
- यह योजना के तहत बेरोजगार लोगो को अपने ही ग्राम छेत्र में रोजगार प्राप्त हो जाता है.
- ईस योजना में सिर्फ 8 घंटे ही काम करने होते है 1 घंटे का आराम भी दिया जाता है.
- इस योजना में 15 दिन के भीतर ही जॉब कार्ड बना कर दे दिया जाता है.
- धोकाधडी से बचने के लिए जॉब कार्ड बनवाना अनिवार्य होता है.
- अपने ही ग्राम पंचायत में रोजगार मिल जाने से ग्रामीण लोगो का पलायन रुक जाता है.
- ईस योजना में 1 वर्ष के भीतर सिर्फ 100 दिन का रोजगार दिया जाता है.
- ग्रामीण योजनाओ के विकास में इस योजना का बहोत ही ज्यादा महत्त्व होता है.
- ईस योजना में कामदार व्यक्ति को यदि काम करते समय यदि कोई चोट लगती है या कोई बड़ा खर्च आता है तो इसका पूरा खर्च भारत सरकार द्वारा उठाया जाता है.
- ईस योजना में जाती धर्म से उठकर सभी वर्ग के लोगो को इसका लाभ दिया जाता है.
- ईस योजना से देश के विकास में एक नई पहचान मिली है.
- इस योजना की काफी आलोचना भी हुई है और तर्क दिया गया कि यह योजना भी गरीबी उन्मूलन की अन्य योजनाओं से अधिक प्रभावी नहीं है, जहां प्रमुख अपवाद राजस्थान है[5]।
पहली आलोचना वित्तीय है। मनरेगा, दुनिया में अपनी तरह की सबसे बड़ी पहलों में से एक है[5]। वित्तीय वर्ष 2006-2007 के लिए राष्ट्रीय बजट 113 बीलियन रुपए था (लगभग यूएस$2.5bn और सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.3%) और अब पूरी तरह चालू होकर इसकी लागत 2009-2010 वित्तीय वर्ष में 391 बीलियन रुपये हैं[5]। ज्यां द्रेज व अन्य लोगों का सुझाव था कि इसका वित्त पोषण उन्नत कर प्रशासन और सुधारों के माध्यम से किया जा सकता है, जबकि अभी तक कर-जीडीपी अनुपात वास्तव में गिरता जा रहा है[5]। ऐसी आशंका है कि इस योजना की लागत जीडीपी का 5% हो जायेगी[5]।एक अन्य महत्वपूर्ण आलोचना यह है कि सार्वजनिक कार्य योजनाओं का अंतिम उत्पाद (जैसे जल संरक्षण, भूमि विकास, वनीकरण, सिंचाई प्रणाली का प्रावधान, सड़क निर्माण, या बाढ़ नियंत्रण) असुरक्षित हैं जिन पर समाज के अमीर वर्ग कब्जा कर सकते हैं[5]। मध्य प्रदेश में मनरेगा के एक निगरानी अध्ययन में दिखाया गया कि इस योजना के तहत की जा रही गतिविधियां सभी गावों में कमोबेश मानकीकृत हो गई थी, जिसमें स्थानीय परामर्श नहीं के बराबर था[5]।आगे की चिंताओं में यह तथ्य शामिल है कि स्थानीय सरकार के भ्रष्टाचार के कारण समाज के कुछ ख़ास वर्गों को बाहर रखा जाता है[5]। ऐसा भी पाया गया कि स्थानीय सरकारों ने काम में लगे व्यक्तियों की वास्तविक संख्या से अधिक नौकरी कार्डों का दावा किया ताकि आवश्यकता से अधिक फंड को हासिल किया जा सके, जिसे फिर स्थानीय अधिकारियों द्वारा गबन कर लिया जाता है[5]। जॉब कार्ड प्राप्त करने के लिए 50 रुपये तक की रिश्वत दी जाती है[5]।
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
- आम आदमी
- नौकरी की गारंटी
- राष्ट्रीय सलाहकार परिषद
- शिक्षा का अधिकार
- सूचना का अधिकार
- एनआरईजीएस (भारत)
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 21 जून 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 अक्तूबर 2010.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 26 सितंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 अक्तूबर 2010.
- ↑ http://www.sfgate.com/cgi-bin/article.cgi?f=/c/a/2008/11/28/MNVB13VKMC.DTL&type=printable
- ↑ "एनआरईजीए के तहत सभी के लिए 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराने में राज्य असफल". मूल से 26 सितंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 अक्तूबर 2010.
- ↑ अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ दिसा जोब्लोम और जॉन फेरिंग्टन (2008) भारतीय राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम: क्या यह गरीबी कम करेगा और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगा? Archived 2010-05-27 at the Wayback Machine विदेशी विकास संस्थान
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
Nrega Job Card Rajasthan
एनआरईजीएस की आधिकारिक वेब साइट
- महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा
- मनरेगा के बारे में (प्रभात खबर)
- मनरेगा के तहत नौकरी के लिए आवेदन करें
- मनरेगा (उत्तर प्रदेश)
- मनरेगा योजना जॉब कार्ड (sbntv)
- बैटल फॉर वर्क, द हिन्दू
- मनरेगा (उत्तर प्रदेश) (preranatvchannel)