मरियप्पन थान्गावेलु
व्यक्तिगत जानकारी | |||||||||||||
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पूरा नाम | मरियप्पन थंगावेलु | ||||||||||||
जन्म |
28 जून 1995 Periavadagampatti, सालेम जिला, तमिल नाडु, भारत | ||||||||||||
खेल | |||||||||||||
देश | भारत | ||||||||||||
खेल | एथलेटिक्स | ||||||||||||
प्रतिस्पर्धा | हाई जम्प - टी42 | ||||||||||||
उपलब्धियाँ एवं खिताब | |||||||||||||
पैरालिम्पिक फाइनल | 2016 ग्रीष्मकालीन पैरालंपिक्स: हाई जम्प (टी42) – स्वर्ण | ||||||||||||
पदक अभिलेख
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मरियप्पन थान्गावेलु (जन्म 28 जून 1995) दक्षिण भारतीय उच्च जम्पर (हाई जंपर) हैं। रियो डी जनेरियो में आयोजित 2016 ग्रीष्मकालीन पैरालम्पिक खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
प्रारंभिक जीवन
[संपादित करें]मरियप्पन का जन्म सालेम जिले एक गरीब परिवार में हुआ। मरियप्पन की मां सरोजा देवी पहले विधवा दिहाड़ी मजदूर थीं और ईंट उठाने का काम करती थीं। जब सरोजा को छाती में दर्द की बीमारी हुई तो मरियप्पन ने किसी से पांच सौ रुपए उधार लिए, और अपनी माँ से कहा कि वे सब्जियां बेचने का काम करें। तब से अकेले ही सब्जियां बेचकर सरोजा देवी ने मरियप्पन और उनके चार सहोदरों का पालन-पोषण किया। एक समय तो ऐसा भी था की कोई इस परिवार को किराए पर घर नहीं देता था। पैरालम्पिक खेल शुरू होने के समय मरियप्पन का सारा परिवार पांच रुपए महीने के किराए पर एक छोटे से घर में रहता है।
एक बस ने पांच-वर्षीय मरियप्पन को टक्कर मार दी। इस दुर्घटना में उनका एक पैर कट गया। 17 वर्ष तक अदालत के कई चक्कर काटने के बाद मरियप्पन के परिवार को 2 लाख रुपए मुआवज़ा मिला। पर इसमें से 1 लाख रुपए वकीलों की फीस में चले गए। बाके के 1 लाख रुपए सरोज अम्मा ने मरियप्पन के भविष्य के लिए एक बैंक खाते में जमा कर दिए। सरोजा देवी ने मरियप्पन के इलाज के लिए 3 लाख का ऋण लिया था जो 2016 तक चुकाया नहीं गया है।
गरीबी के वजह से मरियप्पन के बड़े भाई टी कुमार स्कूल के आगे नहीं पढ़ पाए। लेकिन मरियप्पन ने छात्रवृत्ति के बल पर ए.वी.एस. महाविद्यालय से बीबीए की डिग्री पूरी की। इसी महाविद्यालय के द्रविड़ शारीरिक शिक्षा निदेशक ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें प्रोत्साहन दिया। इसके बाद बैंगलुरू के द्रविड प्रशिक्षक सत्या नारायण ने मरियप्पन को दो साल तक हर महीने 10 हज़ार रुपए और प्रशिक्षण दिया।
खेल करियर
[संपादित करें]बचपन में मारियप्पन को वॉलीबॉल खेलना अच्छा लगता था और अपने एक पैरे के खराब हो जाने के बावजूद वे इसे खेलते रहे। एक बार इनके शिक्षक ने कहा कि वे ऊंची कूद में हाथ क्यों नहीं आजमाते। मारियप्पन को बात जंच गई और 14 साल की उम्र में इन्होंने पहली बार ऊंची कूद की प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लिया, वो भी सामान्य एथलीटों के खिलाफ। उस प्रतिस्पर्धा में वे दूसरे स्थान पर रहे।[1]
2016 पैरालंपिक
[संपादित करें]2016 में मरियप्पन के चयन पैरालम्पिक खेलों की भारतीय टीम में हो गया। वरुण सिंह भाटी ने इस स्पर्धा में कांस्य पदक ही जीत पाए। केंद्र सरकार ने मरियप्पन को 75 लाख रुपये दिए, वहीं तमिलनाडु की मुख्यमंत्री श्रीमती जयललिता ने उन्हें बतौर पुरस्कार 2 करोड़ रुपये देने की घोषणा की है।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ रियो पैरालंपिक में गोल्ड मेडल को उतना प्यार नहीं जितना ओलंपिक के रजत पदक को! Archived 2016-09-13 at the वेबैक मशीन - ichowk.in -11 सितम्बर 2016