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मनोहारी सिंह

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मनोहारी सिंह
अन्य नाममनोहारी दा या मनोहारी दादा
जन्म08 मार्च 1931
कोलकाता
मूलस्थानभारतीय गोरखा
निधन13 जुलाई 2010(2010-07-13) (उम्र 79 वर्ष)
मुम्बई
विधायेंDuo Composition, शास्त्रीय
पेशासंगीत निदेशक, संगीत प्रबन्धक, सेक्सोफोनवादक
वाद्ययंत्रअल्टो सेक्सोफोन, Soprano Saxophone, Tenor Saxophone, Trumpet, फ्लूट, Piccolo, Clarinet, Mandolin, Pan Flute, Harmonium, बांसुरी, रिकॉर्डर
सक्रियता वर्ष1942-2010

मनोहारी सिंह (8 मार्च 1931 – 13 जुलाई 2010) एक भारतीय संगीत निदेशक और सेक्सोफोनवादकथे[1] वे राहुल देव वर्मन के मुख्य संगीत प्रबन्धक (arranger) थे। उन्होने वसुदेव चक्रवर्ती के साथ संगीतकार के रूप में मिलकर काम किया और इस युगल को बसु-मनोहारी के नाम से जाना जाता है।

मनोहारी दादा 'जा रे, जा रे उड़ जा रे पंछी', 'बहारों के देस जा रे’ (माया), ‘तुम्हे याद होगा कभी हम मिले थे’ (सट्टा बाजार),‘अजी रूठकर अब कहाँ जाइयेगा’, और ‘ बेदर्दी बालमा तुझको मेरा मन याद करता है’ (आरजू), ‘अछा जी मैं हारी चलो मान जाओ ना’ (काला पानी),‘रुक जा ओ जाने वाली रुक जा’ (कन्हैया), ‘आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हर जुबान परा (ब्रहमचारी), ‘शोख नजर की बिजलियाँ, दिल पे मेरे गिराए जा’ (वो कौन थी), ‘है दुनिया उसी की ,जमाना उसी का’ (काश्मीर की कली)’, ‘हुजूरे वाला, जो हो इजाजत‘ (ये रात फिर न आएगी), ‘गाता रहे मेरा दिल' और ‘तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं’(गाईड), ‘जाग दिले-दीवाना, रुत जागी वसले यार की’ (ऊंचे लोग), ‘जाता हूँ मैं मुझे अब न बुलाना’ (दादी मां), ‘रात अकेली है’ (ज्वेल थीफ), ‘रूप तेरा मस्ताना’ (आराधना), और आर.डी. बर्मन के तो लगभग सारे संगीत में कहीं वादक तो कहीं अरेंजर तो कहीं किसी और रूप में मौजूद हैं ही।

मनोहारी दादा पश्चिमी बंगाल के हुगली जिले में संगीतकारों के एक घर में पैदा हुए थे। 1941 में उनके दादा नेपाल से आकर कलकत्ता में बस गए थे। वे ट्रम्पेट वादक के तौर पर ब्रिटिश सेना की बैंड के सदस्य के रूप में यहाँ लाए गए थे। कुछ दिनों बाद मनोहारी सिंह के पिता भीम बहादुर सिंह भी यहीं आ गए और कलकत्ता में ही पुलिस बैंड में बतौर बैगपाइप और क्लार्नेट-वादक नौकरी पा गए। उनके मामा क्लैरिनेट बजाते थे। उनके चाचा और मामा उस समय के कोलकाता के बाटानगर की बाटा शू कम्पनी के ब्रास बैंड में हिस्सेदारी किया करते थे।

उनके चाचा ने उस ब्रास बैंड के संचालक जोसेफ़ न्यूमैन से उन्हें मिलवाया था और १९४२ में ३ रुपये हफ़्ते की तनख्वाह पर नौकरी मिल गयी थी। १९४५ में जोसेफ़ न्यूमैन, एच.एम.वी. में सम्मिलित हो गए और उन्हें बाटानगर का ब्रास बैंड छोड़ना पड़ा था। न्यूमैन ने मनोहारी दा की संगीत प्रतिभा पर भरोसा किया क्योंकि उन्हें विश्वास था कि अधिक अभ्यास से वो बेहतर होते जाएंगे और वैसा ही हुआ भी। न्यूमैन के माध्यम से ही मनोहारी दादा की मुलाकात बड़े बर्मन साहब से हुई थी। जोसेफ़ न्यूमैन कई संगीत निर्देशकों जैसे कमल दासगुप्ता, एस.डी. बर्मन, तिमिर बरन और पंडित रविशंकर के लिए संगीत प्रबन्ध (अरेंज) करते थे और मनोहारी दा उनकी नोटेशंस बजाते थे। नाईट-क्लबों में बजाने की इच्छा ने उन्हें सैक्सोफोन बजाना सीखने को प्रेरित किया था। बाद में कई बड़े संगीतकारों जैसे बेनी गुडमैन और आर्टीसियो के साथ काम भी किया था।

वहीं ग्रैंड होटल कलकत्ता में कई बैंड्स के साथ काम कर चुके तेग बहादुर (ख्यात संगीतकार लुई बैंक्स के पिता) एक शानदार ट्रम्पेट प्लेयर थे जहां वे जॉर्जी बैंक्स के नाम से बजाया करते थे और दूसरे चाचा बॉबी बैंक्स थे। इन सब के कारण नाईट-क्लबों में बजाने की उनकी इच्छा ज़ोर पकड़ती गई। कलकते में यह संगीत का एक ऐसा दौर था कि यहाँ के होटलों और नाईट क्लब्स में बड़े नामी कलाकार काम कर रहे थे। मनोहरी भी कलकत्ता सिम्फनी आर्केस्ट्रा के साथ जुड़े रहने के अलावा एक नाईट क्लब ‘फिर्पो’ के साथ 1958 तक काम करते रहे। यह वही समय था जब संगीतकार नौशाद ने मनोहरी और उनके साथ बासू चक्रवर्ती को एक कार्यक्रम में बजाते देखा और संगीतकार सलिल चैधरी को सलाह दी कि इन दोनों कलाकारों को मुम्बई ले आएं।

1958 में सलिल दा उन्हें मुम्बई ले गए। सलिल दा के पास उस समय बहुत काम न था, अतः उन्होंने संगीतकार एस.डी.बर्मन से मिलवाया। बर्मन दा ने उन्हें फिल्म ‘सितारों से आगे’ में पहला मौका दिया । बर्मन दा से पहली मुलाकात के समय ही मनोहारी दा की उनके बेटे आर.डी.बर्मन उर्फ पंचम से भी मुलाकात हो गई। जिस समय सलिल दा मनोहारी को लेकर बाम्बे लैब पहुंचे जहां ‘सितारों से आगे’ की रिकार्डिंग हो रही थी, तो वहां पंचम, जयदेव, और लक्ष्मीकांत भी मौजूद थे। लक्ष्मीकान्त उस समय बतौर साजिन्दा मेंडोलिन बजाते थे और जयदेव बर्मन दा के सहायक थे। मनोहारी की यहाँ से जो मैत्री और स्नेह का सम्बन्ध बना वह आजीवन बना रहा। मनोहारी सिंह ने लगभग सारे बड़े संगीतकारों के साथ काम किया।

13 जुलाई 2010 को जब मनोहारी दा की मृत्यु हुई उस समय उनकी उम्र 79 वर्ष की थी। विशेष बात यह है कि जब तक जीवित रहे कभी बजाना नहीं छोड़ा। 2003 की फिल्म ‘चलते-चलते’ के लिए भी बजाया तो 2004 की फिल्म ‘वीर जारा’ में भी बजाया। मृत्यु से कुछ दिन पहले ही उन्होंने संगीतकार शंकर-जयकिशन की स्मृति में आयोजित एक कार्यक्रम में बाकायदा परफार्मेंस दिया था। [2]

सन्दर्भ

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  1. "मनोहारी दादा के सेक्साफोन ने कैसे अमर किया सैकड़ों गानों को". Archived from the original on 25 जनवरी 2021. Retrieved 7 अक्तूबर 2020. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= (help)
  2. "मनोहारी दादा". Archived from the original on 9 अक्तूबर 2020. Retrieved 7 अक्तूबर 2020. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= and |archive-date= (help)