मधुमेह
मधुमेह वर्गीकरण एवं बाह्य साधन | |
मधुमेह के लिए यूनिवर्सल ब्लू सर्कल का प्रतीक | |
आईसीडी-१० | E10.–E14. |
आईसीडी-९ | 250 |
मेडलाइन प्लस | 001214 |
ईमेडिसिन | med/546 emerg/134 |
मधुमेह चयापचय संबंधी बीमारियों का एक समूह है जिसमें लंबे समय तक रक्त में शर्करा का स्तर उच्च होता है।[1] उच्च रक्त शर्करा के लक्षणों में अक्सर पेशाब आना होता है, प्यास की बढ़ोतरी होती है, और भूख में वृद्धि होती है। यदि अनुपचारित छोड़ दिया जाता है, मधुमेह कई जटिलताओं का कारण बन सकता है। तीव्र जटिलताओं में मधुमेह केटोएसिडोसिस, नॉनकेटोटिक हाइपरोस्मोलर कोमा, या मौत शामिल हो सकती है।[2] गंभीर दीर्घकालिक जटिलताओं में हृदय रोग, स्ट्रोक, क्रोनिक किडनी की विफलता, पैर अल्सर और आंखों को नुकसान शामिल है।
मधुमेह के कारण है या तो अग्न्याशय पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं करता या शरीर की कोशिकायें इंसुलिन को ठीक से जवाब नहीं करती। [3] मधुमेह के चार मुख्य प्रकार हैं:
- टाइप 1 डीएम पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन करने के लिए अग्न्याशय की विफलता का परिणाम है। इस रूप को पहले "इंसुलिन-आश्रित मधुमेह मेलाईटस" (आईडीडीएम) या "किशोर मधुमेह" के रूप में जाना जाता था। इसका कारण अज्ञात है
- टाइप 2 डीएम इंसुलिन प्रतिरोध से शुरू होता है, एक हालत जिसमें कोशिका इंसुलिन को ठीक से जवाब देने में विफल होती है। जैसे-जैसे रोग की प्रगति होती है, इंसुलिन की कमी भी विकसित हो सकती है।[4] इस फॉर्म को पहले "गैर इंसुलिन-आश्रित मधुमेह मेलेतुस" (एनआईडीडीएम) या "वयस्क-शुरुआत मधुमेह" के रूप में जाना जाता था। इसका सबसे आम कारण अत्यधिक शरीर का वजन होना और पर्याप्त व्यायाम न करना है।
- गर्भावधि मधुमेह इसका तीसरा मुख्य रूप है और तब होता है जब मधुमेह के पिछले इतिहास के बिना गर्भवती महिलाओं को उच्च रक्त शर्करा के स्तर का विकास होता है।और पढ़े Archived 2023-12-27 at the वेबैक मशीन
- सेकेंडरी डायबिटीज इस प्रकार की डायबिटीज इलाज करने मात्र से ही सही हो सकती है।
कारण व भेद
[संपादित करें]आयुर्वेद के अनुसार प्रमेह २० प्रकार के होते हैं जिसमे से १० प्रकार कफ की विकृति से , ६ पित्त की विकृति से एवम वात दोष की विकृति से उत्पन्न होते हैं । जुवेनाइल डायबिटीस ( juvenile diabetes ) या बच्चों में पाई जाने वाली जन्मजात प्रमेह का कारण माता - पिता द्वारा किये गये निषिद्ध कर्मों का परिणाम भी हो सकती है , यह वर्णन भी आयुर्वेद के ग्रंथों में पाया जाता है । परंतु प्रमेह का मुख्य कारण है- दैनिक जीवन शैली में व्यायाम की कमी और गुरु , स्निग्ध और कवर्ध भोजन का आवश्यकता से अधिक सेवन । [5] उत्पत्ति के आधार पर यह रोग दो प्रकार का होता है- सहज प्रमेह ( बिना किसी बाहरी कारण के उत्पन्न हो ) तथा अपथ्यनिमित्तज ( ग़लत खानपान के कारण उत्पन्न)। आयुर्वेद के अनुसार यह एक त्रिदोषज व्याधि है जिसके वातज , पित्तज या कँफज प्रमेह आदि भेद होते है । आम तौर पर इसे दोष की प्रधानता के अनुसार यह कफज़ , पित्तज , वातज , कफपित्तज , वातकफज , पित्तवातज भी हो सकता है । इसके अलावा यह रोग तीनों दोषों के प्रादुर्भाव से उत्पन्न वात - पित्त - कफज भी हो सकता है ।[5]
सुश्रुत के अनुसार दोष की प्रधानता इस रोग की अभिवृद्धि की निर्धारक हैं । कफ प्रधान दोष में रोगी को अधिक नींद का आना , भूख का ना लगना , अपच , वमन , खाँसी और बहती नाक का होना , ये सभी लक्षण दिखाई पड़ते हैं । पित्तज दोष में पेशाब में जलन , शरीर में ताप , अधिक प्यास लगना , अम्लता , चक्कर आना , अनिद्रा , हृदय में जलन जबकि वातज में ऊपर की ओर वात का वेग , शरीर में कंपन , शुष्कता , हृदय में जकड़न , श्वास लेने में कष्ट का अनुभव इत्यादि लक्षण पाए जाते है ।[5]
संकेत और लक्षण
[संपादित करें]मधुमेह के लक्षण
[संपादित करें]मधुमेह के सबसे आम संकेतो में शामिल है :
- बहुत ज्यादा और बार बार प्यास लगना
- बार बार पेशाब आना
- लगातार भूख लगना
- दृष्टी धुंधली होना
- प्यास में वृद्धि
- अत्यधिक भूख
- अनायास वजन कम होना
- चिड़चिड़ापन और अन्य मनोदशा कमजोरी और थकान को बदलते हैं
- अकारण थकावट महसूस होना
- अकारण वजन कम होना
- घाव ठीक न होना या देर से घाव ठीक होना
- बार बार पेशाब या रक्त में संक्रमण होना
- खुजली या त्वचा रोग
- सिरदर्द
- धुंधला दिखना
कृपया ध्यान दे :
- Type 1 Diabetes में लक्षणों का विकास काफी तेजी से (हफ्तों या महीनो) हो सकता है। मधुमेह के प्रकार
प्रकार १ इस मधुमेह को नवजात मधुमेह ऐसी संज्ञा दी गई है। पहला प्रकार है टाइप 1 डायबिटीज़ जो बचपन से होती है जबकि दूसरा प्रकार है टाइप 2 डायबिटीज़ जो अधिकतर वयस्कों में पाया जाता है।टाइप 1 डायबिटीज़ में इन्सुलिन शरीर में अत्यंत कम तैयार होता है या बिल्कुल भी तैयार नहीं होता है।नवजात मधुमेह उत्तर युरोप में फिनलंड, स्कॉटलंड, स्कॅन्डेनेव्हिया, मध्य पूर्व के देश और एशिया में बडे़ पैमाने पर है। इस मधुमेह को'इन्शुलिन आवश्यक मधुमेह' एेसा भी कहा जाता है कारण इन मरीजों को हररोज इन्सुलिन के इंजेक्शन लेना पडता है।पहले प्रकार के मधुमेह की और एक आवृत्ती है। इन मरीजों में शक्कर का औसत लगभग औसत के अधिक और कम होता रहता है। ऐसे मरीजों को एक या दो प्रकार के इन्सुलिन इक्कठा करके उनकी रक्तशर्करा नियंत्रित करनी पड़ती है।
प्रकार २
- Type 2 Diabetes में लक्षणों का विकास बहुत धीरे-धीरे होता है और लक्षण काफी कम हो सकते है।
मधुमेह का प्रबंधन : निदान, उपचार और संभावित उपाय
मधुमेह, जिसे आमतौर पर डायबिटीज़ के नाम से जाना जाता है, एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर में रक्त शर्करा स्तर असामान्य रूप से बढ़ जाता है। यह एक गंभीर और चिंताजनक समस्या है जो न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया भर में लोगों को प्रभावित कर रही है। मधुमेह का प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण होता है।
वैज्ञानिक शोध
[संपादित करें]मेटाबॉलिक सिंड्रोम कांफ्रेंस , लंदन में प्रकाशित शोध पत्र
विषयः पौधों पर आधारित भोजन से डायबिटीज से छुटकारा ( Diabeties Reversal by Plant Based Diet )
उद्देश्य
लक्ष्यः विश्व में डायबिटीज रोग का प्रभाव बड़ी तेजी से बढ़ रहा है । इस शोध का लक्ष्य यह ज्ञात करना है कि दवाइयों को न लेकर और किसी विशेष पौधे पर आधारित डाइट लेकर , क्या डायबिटीज रोगियों के रक्त में ग्लूकोज के बढ़े स्तर को सामान्य किया जा सकता है ।
अध्ययन के निष्कर्ष
परिणामः अध्ययन की रिपोर्ट में 84 प्रतिशत रोगियों के रक्त में ग्लूकोज का स्तर नियंत्रित पाया गया और 16 प्रतिशत रोगियों के रक्त में ग्लूकोज का स्तर आंशिक रूप से नियंत्रित पाया गया । नियंत्रित ग्लूकोज स्तर वाले रोगी 3 दिनों में निर्धारित डाइट के साथ बिना दवाओं और या इंसुलिन के भी रक्त में ग्लूकोज की स्वस्थ एवं सही मात्रा प्राप्त कर सकते हैं । आंशिक रूप से नियंत्रित स्तरों वाले रोगी इंसुलिन की पूर्वनिर्धारित मात्रा में 50 प्रतिशत की कमी करके रक्त में ग्लूकोज का स्तर स्वस्थ एवं सही कर सकते हैं ।
टाइप -2 डायबिटीज के रोगियों के रिपोर्ट ने रक्त में ग्लूकोज का स्वस्थ स्तर बनाए रखने वाली सभी रोगियों में 100 प्रतिशत परिणाम प्राप्त किया । जबकि टाइप -1 डायबिटीज रोगियों में 57 प्रतिशत ने उचित डाइट एवं बिना दवाओं के द्वारा रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित किया । इसके अलावा 43 प्रतिशत रोगियों ने उपयुक्त डाइट एवं इंसुलिन में कमी करके रक्त में ग्लूकोज के स्तर को सही किया । इंसुलिन पर निर्भर समूह में 59 प्रतिशत रोगी उनकी इंसुलिन की आवश्यकता को पूरी तरह छोड़ने में सफल रहे और 41 प्रतिशत इसकी जरूरत को कम - से - कम 50 प्रतिशत तक लाने में कामयाब रहे । इन 3 दिनों में प्रति व्यक्ति के वजन में औसतन 1.14 किलो की कमी के आधार पर 55 रोगियों ने अपना वजन कम किया । साथ ही उन्हें थकान और कमजोरी से भी सांकेतिक तौर पर राहत मिली । शरीर में ऊर्जा के संचार एवं पोषक तत्त्वों की प्रतिपूर्ति हेतु पौधों पर आधारित यह डाइट फायदेमंद साबित हुई ।[6]
आयुर्वेदिक चिकित्सा
[संपादित करें]आयुर्वेद में मधुमेह को अग्नि के कम काम करने की वजह से पैदा हुई बीमारी माना जाता है । जिससे ब्लड शुगर लेवल बढ़ने लगता है । आयुर्वेद में इस बीमारी का इलाज चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में भी बताया गया है । मधुमेह की वजह से कई अन्य बीमारियां भी जन्म ले सकती हैं । ऐसे में आयुर्वेद में कई ऐसी दवाईयां और प्रक्रियाएं हैं जो मधुमेह को नियंत्रित कर सकती हैं और इनके साइड इफेक्ट्स भी नहीं होते हैं ।[7] इंटरनेशनल आयुर्वेदिक मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार आयुर्वेदिक दवाओं, खानपान और जीवन शैली में बदलाव से महज 14 दिन के भीतर डायबटीज को नियंत्रित किया जा सकता है।[8] शोध के दौरान मरीज को पारंपरिक के साथ-साथ आधुनिक आयुर्वेदिक दवाएं दी गईं। इसके साथ ही उनके खानपान और जीवन शेली में भी बदलाव किये गए। इसके कारण महज 14 दिन में मरीज का सुगर लेवल खाली पेट 254एमजी/डीएल से घटकर 124 एमजी/डीएल और नास्ते के बाद नाश्ते के बाद 413 से घटकर 154 एमजी/डीएल रह गया। इन सभी पैरामीटर से शुगर में कमी के प्रभावी संकेत मिलते हैं। [8]
मरीज को जो दवाएं दी गईं, उनमें बीजीआर-34, आरोग्यवर्धनी वटी, चंद्रप्रभावटी के साथ-साथ अन्य आयुर्वेदिक दवाएं शामिल थीं। इनमें बीजीआर-34 एक आधुनिक आयुर्वेदिक दवा है, जिसे सीएसआइआर से जुड़े लखनऊ स्थित नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट और सेंट्रल इंस्टीट्यूट आफ मेडिसिनिल एंड एरोमैटिक प्लांट्स ने संयुक्त रूप से विकसित किया है। बीजीआर-34 में शामिल दारुहरिद्रा, गिलोय, विजयसार, गुड़मार, मेथी एवं मजिष्ठा में ऐसे तत्व हैं जो रक्त में सुगर के लेवल को कम करते हैं। प्रकाशित शोधपत्र में इस दिशा में और अधिक अध्ययन की जरूरत बताई गई है ताकि डायबटीज के प्रबंधन में औषधियों व जीवनशैली में बदलाव की भूमिका के ज्यादा से ज्यादा वैज्ञानिक आंकड़े उपलब्ध हो सके।[8]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "About diabetes". World Health Organization. मूल से 31 मार्च 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 April 2014.
- ↑ Kitabchi, AE; Umpierrez, GE; Miles, JM; Fisher, JN (Jul 2009). "Hyperglycemic crises in adult patients with diabetes". Diabetes Care. 32 (7): 1335–43. PMID 19564476. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0149-5992. डीओआइ:10.2337/dc09-9032. पी॰एम॰सी॰ 2699725.
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के एक से अधिक मान दिए गए हैं (मदद) - ↑ Shoback, edited by David G. Gardner, Dolores (2011). "Chapter 17". Greenspan's basic & clinical endocrinology (9th संस्करण). New York: McGraw-Hill Medical. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-07-162243-8.सीएस1 रखरखाव: फालतू पाठ: authors list (link)
- ↑ RSSDI textbook of diabetes mellitus (Rev. 2nd संस्करण). New Delhi: Jaypee Brothers Medical Publishers. 2012. पृ॰ 235. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789350254899. मूल से 4 मार्च 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 मार्च 2017.
- ↑ अ आ इ Kumar, Dr Ajay (2019-03-15). मधुमेह चिकित्सा: Diabetes Management (अंग्रेज़ी में). Dr. Ajay Kumar.
- ↑ Roy, Biswaroop Chowdhury (2020-06-24). "22". Diabetes Se Mukti (डायबिटीज से मुक्ति ). ALPHA ED. पपृ॰ 72–73. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5278-398-4.
- ↑ लाइव, एबीपी (2023-11-14). "आयुर्वेद, होम्योपैथी या फिर अंग्रेजी दवाइयां.. डायबिटीज के इलाज में सबसे ज्यादा क्या कारगर है?". www.abplive.com. अभिगमन तिथि 2024-05-27.
- ↑ अ आ इ "डायबटीज के इलाज में वैज्ञानिक मापदंडों पर खरा उतरा आयुर्वेद, इंटरनेशनल आयुर्वेदिक मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ शोध - Ayurveda meets scientific standards in treatment of diabetes research published". Jagran. अभिगमन तिथि 2024-05-27.