भारत में ग़रीबी


भारत में गरीबी बहुत व्यापक है किन्तु बहुत तेजी से कम हो रही है। अनुमान है कि विश्व की सम्पूर्ण गरीब आबादी का तीसरा हिस्सा भारत में है। 2010 में विश्व बैंक ने सूचना दी कि भारत के 32.7% लोग रोज़ना की US$ 2.15 की अंतर्राष्ट्रीय ग़रीबी रेखा के नीचे रहते हैं और 68.7% लोग रोज़ना की US$ 2 से कम में गुज़ारा करते हैं।[1]
योजना आयोग के साल 2009-2010 के गरीबी आंकड़े कहते हैं कि पिछले पांच साल के दौरान देश में गरीबी 37.2 फीसदी से घटकर 29.8 फीसदी पर आ गई है।
यानि अब शहर में 28 रुपए 65 पैसे प्रतिदिन और गाँवों में 22 रुपये 42 पैसे खर्च करने वाले को गरीब नहीं कहा जा सकता. नए फार्मूले के अनुसार शहरों में महीने में 859 रुपए 60 पैसे और ग्रामीण क्षेत्रों में 672 रुपए 80 पैसे से अधिक खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है, अथवा 2011-2012 में ग्रामीण क्षेत्र में 816 रुपये और शहर में 1000 रुपये निर्धारित की गई।
योजना आयोग ने गरीबी मापने की विधि की समीक्षा करने के लिए जून 2012 में सी. रंगराजन की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया जिसने अपनी रिपोर्ट जून 2014 में प्रस्तुत की।
इस विशेषज्ञ समूह में अखिल भारतीय स्तर पर 2011-2012 में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ₹972 प्रति व्यक्ति प्रति माह व्यय तथा शहरी क्षेत्रों के लिए 1407 रुपए प्रति व्यक्ति प्रति माह व्यय को गरीबी रेखा का आधार माना है।
रंगराजन की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञ समूह के अनुसार भारत में वर्ष 2011-2012 में गरीबी का अनुपात 29.5% था। जबकि तेंदुलकर समिति के अनुसार यह अनुपात 21.9% था।
इससे एक बार फिर उस विवाद को हवा मिल सकती है जो योजना आयोग द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर किए गए हलफनामे के बाद शुरू हुआ था। इसमें आयोग ने 2004-05 में गरीबी रेखा 32 रुपये प्रतिदिन तय किए जाने का उल्लेख किया था।
विश्लेषकों का कहना है कि योजना आयोग की ओर से निर्धारित किए गए ये आंकड़े भ्रामक हैं और ऐसा लगता है कि आयोग का मक़सद ग़रीबों की संख्या को घटाना है ताकि कम लोगों को सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का फ़ायदा देना पड़े.
भारत में ग़रीबों की संख्या पर विभिन्न अनुमान हैं। आधिकारिक आंकड़ों की मानें, तो भारत की 37 प्रतिशत आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे है। जबकि एक दूसरे अनुमान के मुताबिक़ ये आंकड़ा 77 प्रतिशत हो सकता है।
भारत में महंगाई दर में लगातार बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।
कई विश्लेषकों का कहना है कि ऐसे में मासिक कमाई पर ग़रीबी रेखा के आंकड़ें तय करना जायज़ नहीं है।
साल 2011 मई में विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में सामने आया था कि ग़रीबी से लड़ने के लिए भारत सरकार के प्रयास पर्याप्त साबित नहीं हो पा रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया था कि भ्रष्टाचार और प्रभावहीन प्रबंधन की वजह से ग़रीबों के लिए बनी सरकारी योजनाएं सफल नहीं हो पाई हैं।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "India – New Global Poverty Estimates". World Bank. Archived from the original on 25 नवंबर 2017. Retrieved 15 मार्च 2014.
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इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- 10 वर्षों में भारत ने इंडोनेशिया के बराबर आबादी को गरीबी के दलदल से निकाला (२२सितम्बर २०१८)
- Is this the best news for India in over a decade? (२२सितम्बर २०१८)
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