भरवाड

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द्वारका, गुजरात से भरवाड़ समुदाय का एक सदस्य, पारंपरिक पगड़ी पहने हुए।

भरवाड़ जिसे गोपालक जाति के रूप में भी जाना जाता है,[1] भारत के सिर्फ गुजरात और बहुत ही कम महाराष्ट्र में पाई जाने वाली एक पशुपालक जाति है।

इतिहास[संपादित करें]

According Book to, Gazeettar Of Baroda state (1920),https://books.google.co.in/books?

गुजरात के ज्यादातर इतिहास के मुताबिक भरवाड़ मूल गोकुल मथुरा के गोप ग्वाले ही थे. जो श्री कृष्ण के साथ गुजरात आए थे. समग्र भरवाड़ समाज की गुरुगादी और पवित्र स्थान जो श्री कृष्ण समय 5000 साल पुराना मंदिर है वो साक्षी पूर्ण है की जो ग्वाले गुजरात आए वही भरवाड़ है. वह ग्वालीनाथ महादेव मंदिर जो भरवाड़ समाज का श्री कृष्ण समय से आस्था का स्थान है वह यही जगह है जहा पर श्री कृष्ण और ग्वालों ने उत्तरप्रदेश से आकर गुजरात में सर्वप्रथम विश्राम किया था और श्री कृष्ण और ग्वालों ने मिलकर शिवलिंग की स्थापना की थी, इसलिए उस मंदिर का नाम ग्वालीनाथ महादेव पड़ा. बाद में गाय चराने के लिए गवालो को सही जगह लगने पर वहा आसपास में बसने लगे और बाद में श्री कृष्ण ने द्वारका नगरी बसाई. आज भी आप ग्वालीनाथ महादेव मंदिर जो गुजरात के बनासकांठा में जिल्ले में थरा में मौजूद है जहा जाके आप इतिहास जान सकते है. ग्वाले गुजरात में आकर गाय के साथ जंगलों में ही बस गए थे, बाद में गुजरात में उस समय भरू नाम से एस हरा भरा प्रदेश था जिस पर भरवाड़ो ने अपने गढ़ के रूप में बसाया था , जहा पर भरवाड़ अपनी गायों का तबेला करके रहते थे जिसे गुजराती में वाडा बोलते है इसलिए वह ग्वालों का नाम भरू प्रदेश से "भरू" और वाडा करने से "वाड" मिलके एक शब्द "भरवाड़" बन गया जो बाद में जातिनाम बन गया जो इतिहास में देखने मिलता है. जबकि भेड़ और वाड मिलके भरवाड शब्द बना है ऐसा कही इतिहास में प्रमाण ही नही है, जबकि उस समय सिर्फ भरवाड़ गौ पालन ही करते थे, गुजरात में बसने के कई सालो बाद उसने उन्होंने भेस ,भेड़ और बकरी पालन शुरु किया. गुजरात में गडरी गडरिया समाज की संख्या कम होने ओर भरवाड़ के भेड़ बकरी रखने से उनको गडरिया से भी जोड़ने की बात करते है बल्कि, इतिहास में भरवाड़ और गडरिया एक जाति है ऐसा आज तक एक भी प्रमाण या उल्लेख कही मिला नही है.भरवाड़ और गडरिया जाति के कोई गोत्र , कुल और शाखाए कही भी एक दूसरे से मिलती नही है, इसलिए भरवाड़ जाति को सिर्फ भेड़ बकरी रखने से गडरिया जाति में सामिल करना मूर्खता भरी बात होंगी. गोकुल से आने के बाद वह सिर्फ गुजरात में ही जंगलों में बसे थे इसलिए भरवाड़ जाति सिर्फ गुजरात तक ही सीमित रह गई थी, और आज भी भरवाड़ सिर्फ गुजरात और बहुत कम महाराष्ट्र में देखने मिलते है, क्योंकि गुजरात और महाराष्ट्र थोड़े साल पहले ही अलग राज्य बने है. यह सभी माहिती गुजरात के पुराने इतिहासों, बुक, लेखों के आधार प्राप्त हुई है.

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वर्गीकरण[संपादित करें]

भरवाड़ों को गुजरात में OBC वर्ग के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिस OBC में ज्यादा रबारी, ठाकोर,भरवाड़,आहिर,गढ़वी, रजपुत,चौधरी, मेर जैसी योद्धा जातियां भी सामिल है

सन्दर्भ[संपादित करें]

गुजरात में मुख्य भरवाड़ और रबारी दो ही जातियां है जो पशुपालन करती है

  1. Hebbar, Nistula (4 December 2017). "OBCs to play kingmaker in battle for Gujarat". Extrapolating on the 1931 Census, the OBCs, excluding Muslim OBCs, comprise 35.6% of the total population, with the Koli-Thakore block the largest, followed by artisan castes at 6.1%; Bharwad (Gadaria) at 2%; and other middle castes at 3.3%.
  2. Mitra (2005), पृ॰ 84