बेगम रुक़य्या
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रुक़य्या सख़ावत हुसैन (बंगाली: রোকেয়া সাখাওয়াত হোসেন), आम तौर पर बेगम रुक़य्या (बंगाली: বেগম রোকেয়া; 1880 – 9 दिसंबर 1932) अविभाजित बंगाल में सुप्रसिद्ध लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता थीं। वे लैंगिक समानता का संघर्ष में अपना योगदान हेतु जाना जाता हैं। बेगम रुक़य्या ने मुसल्मान लड़कियों के लिए पाठशाला खोली, यह पाठशाला आज भी खुली रहती है। वे महत्त्वपूर्ण मुसल्मानी नारीवादी थीं। उसकी सबसे महत्त्वपूर्ण और जानी-पहचानी कृतियाँ सुलताना का सपना व पद्दोराग हैं। समकालीन बंगाली नारीवादी तसलीमा नसरीन ने कहा कि वे बेगम रुक़य्या की कृतियाँ से काफ़ी प्रभावित हुई।[1]
उसका जन्मनाम रुक़य्या ख़ातुन था, परंतु वे सामान्य रूप से बेगम रुक़य्या नाम से कहा जाता है।
कार्य[संपादित करें]
- सुलतानार शोपनो (सुलताना का सपना)
- ओबोरोध्बाधिनी (महिलाएँ निर्वासन में)
- मोटिचुर
- पद्दोराग (पद्म की गंध)
- (असंपूर्ण) नारीर आधिकार (महिलाओं के अधिकार), इस्लामी महिला एसोसिएशन हेतु निबंध
सन्दर्भ[संपादित करें]
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विकिमीडिया कॉमन्स पर बेगम रुक़य्या से सम्बन्धित मीडिया है। |
- ↑ Targett, Simon (1995-02-24). "She who makes holy men fume". Times Higher Education. मूल से 3 अप्रैल 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-06-01.
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