बिलायती बबूल
बिलायती बबूल या दक्खिनी (वानस्पतिक नाम : Prosopis juliflora / प्रोसोपीस् यूलीफ़्लोरा) झाड़ीदार छोटे आकार का वृक्ष है। [1]इसका मूल स्थान मेक्सिको, दक्षिण अमेरिका और कैरेबियन हैं। अब यह एशिया, आस्ट्रेलिया एवं अन्य स्थानों पर एक अवांछित वृक्ष (weed) के रूप में पाया जाने लगा है। इसको पशुआहार, लकड़ी एवं पर्यावरण प्रबन्धन के लिये उपयोग में लाया जाता है। इसको 'अंग्रेजी बबूल तथा 'काबुली कीकर' भी कहते हैं।
यह वृक्ष सामान्यत 2 मीटर से 8मीटर लम्बा होता है और इसके तने का व्यास 5 सेमी से 30 सेमी तक होता है। इसकी जड़ें इतनी गहराई तक पहुँचती हैं कि यह एक कीर्तिमान है। एरिजोना के पास एक खुली खान में पाया गया था कि इसकी जड़ें 53.3 मीटर गहराई तक प्रवेश कर गयीं थीं।यह ईधन की समस्या को नियंत्रित करने में बहुत मददगार साबित हुआ ग्रामीण क्षेत्रों में ईधन के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है इसके बीज को पंण्डित जवाहरलाल नेहरु जी के प्रधानमंत्री काल में हवाई जहाज से सम्पूर्ण भारत में नहरों के किनारे व ऊसर बंजर भूमि पर बिखरवाया गया था
सन्दर्भ
[संपादित करें]इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- बिलायती बबूल की फलियों से पशु आहार
- बिजली संकट खत्म करेगा विलायती बबूल[मृत कड़ियाँ]
- देशी पेड़-पौधों को खत्म कर रहा विलायती बबूल (दैनिक जागरण ; जनवरी, २०१६)
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- ↑ "Prosopis juliflora (बिलायती बबूल) | कहानी बावळये की : लक्ष्मण बिश्नोई 'लक्ष्य'". Jhalko Bikaner. मूल से 31 अक्तूबर 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2021-10-31.