प्रवेशद्वार:कला/परिचय

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प्र:कला

कला उन सभी कृत्रिम मानव क्रियाओं को कहा जाता है जिसमे शारीरिक और मानसिक कौशलों का प्रयोग से एक व्यक्ति अपने सृजन का परिचय देता है। कला के प्रमुख घटकों में दृश्य कला (वास्तुकला, चीनी मिट्टी सृजन कला, चित्रण, फिल्म निर्माण, पेंटिंग, फोटोग्राफी और मूर्तिकला) सहित, साहित्यिक कला (कथा, नाटक, कविता और गद्य सहित), प्रदर्शन कला (नृत्य, संगीत और थिएटर सहित) और पाक कला (खाना पकाने, चॉकलेट बनाने और वाइनमेकिंग इत्यादि) शामिल हैं।

"कामसूत्र", "शुक्रनीति", जैन ग्रंथ "प्रबंधकोश", "कलाविलास", "ललितविस्तर" इत्यादि सभी भारतीय ग्रंथों में कला का वर्णन प्राप्त होता है। अधिकतर ग्रंथों में कलाओं की संख्या 64 मानी गयी है। "प्रबंधकोश" इत्यादि में 72 कलाओं की सूची मिलती है। "ललितविस्तर" में 86 कलाओं के नाम गिनाये गये हैं। प्रसिद्ध कश्मीरी पंडित क्षेमेंद्र ने अपने ग्रंथ "कलाविलास" में सबसे अधिक संख्या में कलाओं का वर्णन किया है। उसमें 64 जनोपयोगी, 32 धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, सम्बन्धी, 32 मात्सर्य-शील-प्रभावमान सम्बन्धी, 64 स्वच्छकारिता सम्बन्धी, 64 वेश्याओं सम्बन्धी, 10 भेषज, 16 कायस्थ तथा 100 सार कलाओं की चर्चा है। सबसे अधिक प्रामाणिक सूची "कामसूत्र" की है। यूरोपीय साहित्य में भी कला शब्द का प्रयोग शारीरिक या मानसिक कौशल के लिए ही अधिकतर हुआ है। वहाँ प्रकृति से कला का कार्य भिन्न माना गया है। कला का अर्थ है रचना करना अर्थात् वह कृत्रिम है। प्राकृतिक सृष्टि और कला दोनों भिन्न वस्तुएँ हैं। कला उस कार्य में है जो मनुष्य करता है। कला सम्बंधित अधिक जानें…