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प्रयोगशाला

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उन्नीसवीं शताब्दी के भौतिकशास्त्री एवं रसायनज्ञ माइकल फैराडे अपनी प्रयोगशाला में
जैव रसायन प्रयोगशाला

प्रयोगशाला वैज्ञानिक प्रयोगों, अनुसंधान, शिक्षण, या रसायनों और औषधियों के निर्माण हेतु सुसज्जित एक कक्ष या भवन है। विज्ञान के अध्ययन में प्रयोगशाला कार्यों का विशेष महत्त्व है क्योंकि वैज्ञानिक सिद्धान्तों का विकास और विस्तार प्रयोगशाला कार्यों के आधार पर ही होता है। रासायनिकी एक प्रयोगमूलक विषय है। सैद्धान्तिक अवधारणाएँ प्रायोगिक कार्य द्वारा अच्छी तरह से समझी जा सकती हैं। प्रायोगिक कार्य से रासायनिक परिघटनाओं को प्रयोगशाला की नियन्त्रित परिस्थितियों में अनुसन्धान की विधि द्वारा परखने का अवसर मिलता है। अन्य शब्दों में, इससे प्रयोगकर्ता को जिज्ञासु प्रेक्षक बनने और परिणाम निकालने का भरपूर अवसर मिलता है।

प्रयोगशाला कार्य का प्रशिक्षण, उपकरणों एवं उपस्करों को सम्भालने एवं संचालित करने की नैपुण्य प्राप्त करने और प्रयोग करने में सहायक होता है। इस प्रकार से प्रायोगिक कार्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण के उत्थान और सहयोगी आचार व्यवहार अपनाने में सहायता करता है। प्रयोगशाला में कार्य करना विलक्षण और सृजनात्मक विचारों को क्रियान्वित करके साकार करने का आधार प्रदान करता है।

प्रयोगशाला कार्य के मूलभूत सिद्धान्तों में दक्ष होने हेतु प्रयोगकर्ता को उपस्करों को संचालित करना अवश्य शिखना चाहिए और सुरक्षा उपायों तथा अच्छे प्रयोगशाला आचरण से अवगत होना चाहिए। प्रयोगशाला में कार्य करने हेतु प्रवेश करने से पहले प्रयोगकर्ता निज को व्यवस्थित करें और प्रयोगशाला कार्य से पूर्व की प्रस्तुति और प्रायोगिक क्रियाविधि से पूर्णतः अवगत हो लें जिससे उसका कार्य अव्यवस्थित न हो। यदि समूह में प्रयोग करने की आवश्यकता न हो तो अकेले ही प्रयोग करें। कार्य करते समय अपनी विचारशीलता और सहजबुद्धि का प्रयोग करना चाहिए। यह व्यवहार, वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्राप्त करने की मूलभूत आवश्यकता है। प्रयोगशाला की स्मरण पुस्तक में प्रयोगों का विवरण लिखना चाहिए।

विभिन्न आयतनों की परखनलियाँ उपलब्ध हैं परन्तु वर्तमान स्तर पर रसायन का प्रयोगात्मक कार्य करने हेतु सामान्यतः 125 mm (दैर्घ्य) × 15 mm (व्यास), 150 mm (दैर्घ्य) × 15 mm (व्यास) तथा 150 mm (दैर्घ्य) × 25 mm (व्यास) की परखनलियाँ प्रयोग की जाती हैं। मुख पर किनारा बनी हुई और बिना किनारे वाली परखनलियाँ भी उपलब्ध हैं। कम व्यास की परखनलियाँ ऐसी अभिक्रियाएँ करने हेतु प्रयोग की जाती हैं जिनमें गरम करने की आवश्यकता नहीं होती या बहुत कम समय गरम करना होता है। अभिक्रिया करते समय परखनली का केवल एक-तृतीयांश भाग ही भरना चाहिए। बड़े व्यास वाली परखनली को क्वथन नली कहते हैं। इसका प्रयोग तब करते हैं जब अधिक विलयन गरम करने की आवश्यकता होती है। परखनली में कोई मिश्रण या विलयन गरम करने के लिए इसे परखनली धारक से धरा जाता है। विलयन भरी परखनलियों को सीधा खड़ा रखने हेतु परखनली दान का प्रयोग करना चाहिए।

अधिकांशतः प्रयोगशाला में गोल फ्लास्क तथा शंक्वाकार फ्लास्क प्रयोग किए जाते हैं। यह 5 mL से 2000 mL क्षमता तक उपलब्ध हैं। आकार और प्रकार का चयन अभिक्रिया के प्रकार और प्रयोग में प्रयुक्त होने वाले विलयन की मात्रा पर निर्भर करता है। गोल फ्लास्क में मिश्रण गरम अथवा पश्चवाह हेतु सामान्यतः सीधे ही ज्वाला/बालू ऊष्मक/जल ऊष्मक का प्रयोग किया जाता है। शंक्वाकार फ्लास्कों का उपयोग कमरे के ताप पर या कम ताप पर प्रयोग करने हेतु किया जाता है। यह विशेषतः आयतनमितीय विश्लेषण हेतु प्रयुक्त होते हैं।

5 ml से 2000 ml तक की क्षमता के बीकर उपलब्ध हैं तथा इन्हें विलयन बनाने, अवक्षेपण करने और विलायक का वाष्पन इत्यादि करने हेतु प्रयुक्त किया गाता है।

इन्हें अमिश्रणीय द्रवों को पृथक् करने के प्रयोग किया जाता है। अनेक आकृतियों और आकारों के पृथक्कारक कीप उपलब्ध हैं।

सुरक्षा

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प्रयोगशाला में सुरक्षा अति आवश्यक है। रसायन अथवा भौतिकी में कई प्रकार के ऐसे प्रयोग होते हैं जिसमें आग लगने या रासायनिक अभिक्रिया आदि होने का खतरा बना रहता है। इस कारण सभी प्रयोगशाला में आग बुझाने का सभी सामान पहले से होता है। इसके अलावा प्रयोगशाला में प्रवेश से पूर्व ही यह बताया जाता है कि यहाँ क्या और कैसे करना है। इसके साथ ही सभी प्रकार के सावधानी से जुड़ी बातें बताई जाती हैं।

सन्दर्भ

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बाहरी कड़ियाँ

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