प्रबंधन लेखांकन
लेखांकन | |
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प्रबंधन लेखांकन या प्रबंधकीय लेखांकन संगठनों के भीतर प्रबंधकों के लिए लेखांकन जानकारी के उन प्रावधानों तथा उपयोग से संबंधित है, जो उन्हें सुविज्ञ प्रबंधन निर्णयों को लेने के लिए एक आधार प्रदान करता है जो उन्हें उनके प्रबंधन तथा नियंत्रण कार्यों को बेहतर तरीके से करने की अनुमति देगा।
वित्तीय लेखांकन की जानकारी के विपरीत, प्रबंधन लेखांकन जानकारी:
- को संगठन के भीतर प्रबंधकों द्वारा उपयोग के इरादे से डिजाइन किया गया है, जबकि वित्तीय लेखांकन जानकारी को शेयरधारकों और ऋणदाताओं द्वारा उपयोग करने के लिए बनाया गया है।
- सार्वजनिक रूप से रिपोर्ट किये जाने के बजाय, यह आमतौर पर गोपनीय होती है और प्रबंधन द्वारा इसक
- ऐतिहासिक की बजाय यह भविष्य-परक होती है;
- वित्तीय लेखांकन मानकों की बजाय, इसकी गणना प्रबंधकों की आवश्यकताओं के अनुसार की जाती है, जिसके लिए अक्सर प्रबंधन सूचना प्रणालियों का उपयोग किया जाता है।
यह विभिन्न प्रभावों के कारण है: प्रबंधन लेखांकन जानकारी का उपयोग, आमतौर पर निर्णय लेने के लिए संगठन के भीतर किया जाता है।
प्रबंधकीय लेखांकन क्या है? prabandhkiya lekhankan ka arth) prabandhkiya lekhankan arth paribhasha visheshta;प्रबन्धकीय लेखांकन दो शब्दों प्रबंधन+लेखांकन के योग से बना है। प्रबन्धकीय या प्रबंध से आशय उस प्रकिया से है जिसमे व्यवसाय की नीतियों का नियोजन, उद्देश्यों का निर्धारण, उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उचित समन्वय एवं नियन्त्रण तथा व्यवसास मे संगठन का कार्य सम्मिलित होता है। लेखांकन से तात्पर्य है व्यवसाय के व्यवहारों का विश्लेषण एवं व्याख्या करने की प्रक्रिया से है।
यह लागत लेखांकन की एक विशिष्ट शाखा है जो प्रबन्ध को निर्णय लेने मे सहायता करती है।
साधारण बोलचाल चाल की भाषा मे, कोई भी लेखाविधि, जो प्रबंध के कार्यों मे सहायता हेतु आवश्यक सूचनाएँ प्रदान करती है, उसे प्रबंधकीय लेखांकन कहा जाता है।
प्रबंधकीय लेखांकन प्रबंध का एक महत्वपूर्ण उपकरण माना जाता है जिसका प्रयोग व्यवसाय के कुशल प्रबंध, नीति-निर्धारण तथा निर्गमन के लिए अत्यंत आवश्यक है।
प्रबंधकीय लेखांकन की परिभाषा (prabandhkiya lekhankan ki paribhasha)
आर.एन. एन्थोनी के अनुसार," प्रबंधकीय लेखांकन लेखा-पद्धति की सूचनाओं से संबंधित है, जो कि प्रबंध के लिये बहुत उपयोगी है।"
आई.सी.डब्ल्यू.ए. के अनुसार," लेखाविधि का कोई भी रूप, जो कि व्यवसाय को अधिक कुशलतापूर्वक संचालन योग्य बनाये, प्रबंधकीय लेखाविधि कहा जाता है।"
बास्टाॅक के अनुसार," प्रबंधकीय लेखांकन लेखांकन के प्रबंध को उन आँकड़ों चाहे वह मुद्रा मे हो या अन्य इकाइयों मे, प्रस्तुत करने की उस कला के रूपे परिभाषित किया जा सकता है जिससे कि प्रबंध को उनके कार्यकरण मे सहायता प्राप्त हो सकें।"
टी. जी. रोज के अनुसार," प्रबंधकीय लेखांकन लेखा सूचनाओं की प्राप्ति एवं विश्लेषण है तथा यह उनकी पहचान एवं व्याख्या प्रबंध को सहायता करने के लिए करता है।"
वाॅल्टर बी. मैकफरलैण्ड के अनुसार," प्रबंधकीय लेखांकन किसी उपक्रम के नियोजन एवं प्रशासन हेतु सभी स्तरों पर प्रबंध के लिए उपयोगी वित्तीय समंक की पूर्ति करने से सम्बंधित है।"
आई. सी. एम. ए. लंदन के अनुसार," प्रबंधकीय लेखांकन, लेखांकन सूचनाओं के इस प्रकार तैयार करने मे प्रयुक्त कुशलता तथा पेशेवर ज्ञान है जो कि प्रबंध को नीति निर्धारण तथा संस्था की क्रियाओं के नियोजन व नियंत्रण मे सहायक हो सके।"
अमेरिकी लेखा संघ के अनुसार," प्रबंधकीय लेखाविधि मे वे रीतियां व संकल्पनायें सम्मिलित है जो प्रभावपूर्ण नियोजन के लिये, वैकल्पिक व्यावसायिक क्रियाओं मे चयन के लिये तथा नियंत्रण के लिये निष्पादन को मूल्यांकन और निर्वाचन करने हेतु आवश्यक है।"
उपरोक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के बाद हम निष्कर्ष रूप मे यह कह सकते है कि प्रबंधकीय लेखांकन से आशय ऐसी तकनीक एवं पद्धति से है जो वित्तीय लेखांकन के आधार पर प्रबंध को प्रभावकारी नियंत्रण करने मे सहायता पहुँचाने के उद्देश्य मे महत्वपूर्ण सूचनाएं उपलब्ध कराती है। संक्षिप्त मे इसे प्रबंधकों द्वारा लेखा सूचनाओं के प्रयोग की क्रिया कह सकते है।
प्रबन्धकीय लेखांकन की विशेषताएं या प्रकृति (prabandhkiya lekhankan ki visheshta)
प्रबन्ध लेखांकन की विशेषताएं इस प्रकार है--
1. भविष्य पर अधिक जोर
प्रबन्धकीय लेखांकन वर्तमान की अपेक्षा भविष्य पर अधिक जोर देता है। प्रबन्धकीय लेखा-विधि का कार्य केवल ऐतिहासिक तथ्यों का संकलन करना ही नही होता बल्कि क्या होना चाहिए था,य इस पर प्रकाश डालना भी होता है। प्रबन्धकीय लेखांकन के अंतर्गत भविष्य की योजनाएं तथा पूर्वानुमान तैयार किये जाते है और जब भविष्य वर्तमान के रूप मे हमारे समक्ष उपस्थित होता है तो पूर्वानुमान से तुलना कर उपलब्धियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन किया जाता है। इससे प्रबंध के लिए समस्त व्यावसायिक क्रियाओं पर उचित नियंत्रण रख पाना आसान हो जाता है।
2. पूर्व सूचनाओं का प्रयोग
संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रबन्धकीय लेखांकन मे विभिन्न सूचनाओं का प्रयोग किया जाता है। संस्था के उद्देश्य निर्धारण मे तथा योजना बनाने मे पिछली अवधियों के समंकों का अध्ययन किया जाता है। पूर्व अवधि के समंकों से विभिन्न कार्यों के प्रमाप निर्धारित किये जाते है तथा इन प्रमापों की वास्तविक निष्पादन से तुलना कर विभागीय कार्यकुशलता की जांच की जाती है।
3. केवल आँकड़े प्रदान करना, निर्णय नही
प्रबन्धकीय लेखांकन की तीसरी विशेषता यह की यह प्रबन्धकीय लेखा-विधि निर्णय के संबंध मे आंकड़े प्रदान करती है, निर्णय नही, इससे व्यावसायिक निर्णय संभव हो पाते है। प्रभावपूर्ण निर्णय के लिए आवश्यक तथा जुटाना तथा उनका विश्लेषण व प्रबंध के समक्ष प्रस्तुतीकरण का कार्य लेखापाल द्वारा किया जाता है, वह स्वयं निर्णय नही लेता। वस्तुतः निर्णयन का काम संस्थाओं के प्रबन्धकों का होता है।
4. लेखांकन नियमों एवं सिद्धांतों का पालन नही
प्रबन्धकीय लेखांकन मे वित्तीय लेखांकन की भांति निश्चित प्रकृति के नियमों का पालन नही किया जाता है। वास्तव मे प्रबन्धकीय लेखांकन का मुख्य लक्ष्य प्रबंध को आवश्यक सूचनाएँ सरलीकृत रूप मे उपलब्ध कराकर उनकी दक्षता मे वृद्धि करना है। अतः इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु प्रबन्धकीय लेखांकन सामान्य स्वीकृति नियमों से पृथक अपने स्वयं के नियम बना सकता है तथा तथ्यों के प्रस्तुतीकरण मे अपने अनुभव ज्ञान, बुद्धि एवं कल्पना शक्ति का प्रयोग कर ऐसी सूचनाओं को सृजित कर सकता है जो प्रबन्धकों को महत्वपूर्ण निर्णयन मे सहायक हो।
5. चुनाव पर आधारित या चयनात्मक प्रकृति
प्रबन्धकीय लेखांकन की यह एक महत्वपूर्ण विशेषता है कि यह लेखांकन चुनाव पर आधारित है। किसी भी प्रबन्धकीय समस्या को निपटाने हेतु विभिन्न साधनों का तुलनात्मक अध्ययन करके श्रेष्ठ साधन का चुनाव किया जाता है, जिससे एक सही एवं मितव्ययी योजना का निर्माण करने मे सुविधा होती है।
6. लागत के विभिन्न तत्वों का अध्ययन
प्रबन्धकीय लेखांकन लागत के विभिन्न तत्वों पर ध्यान आकर्षित करती है। इसके अंतर्गत लागत को विभिन्न भागों मे बांटकर उनका उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर अध्ययन किया जा सकता है।
7. कारण व प्रभाव का अध्ययन
प्रबन्धकीय लेखांकन विधि सदैव "कारण व प्रभाव " के सम्बन्ध का अध्ययन करती है। प्रत्येक प्रबन्धकीय समस्या का निराकरण व संबंधित निर्णय लेते समय " कारण व प्रभाव " की खोज की जाती है, और यह विधि इस प्रयत्न मे अधिक योग देती है। इस क्रिया मे प्रबन्धकीय लेखा-विधि केवल मौद्रिक लेन-देनों को ही ध्यान मे नही रखती है, बल्कि कभी-कभी गैर नकद व्यवहारों एवं तथ्यों को भी इस विधि के अंतर्गत संकलित व विश्लेषण किया जाता है।
8. मिश्रित पद्धति
प्रबन्धकीय लेखांकन की एक विशेषता यह है कि यह एक मिश्रित पद्धति है, इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की विधियों, प्रणालियों, प्रविधियों तथा विषयों से संबंधित सामग्री का प्रयोग किया जाता है। इसके अंतर्गत विभिन्न विषयों जैसे-- वित्तीय लेखांकन, लागत लेखांकन, सांख्यिकी, कंपनी विधि, व्यावसायिक सन्नियम आदि विषयों का व्यावहारिक प्रयोग शामिल होता है।
9. विशेष तकनीक एवं अवधारणा का प्रयोग hu
लेखांकन आँकड़ों को अधिक उपयुक्त बनाने के लिए प्रबन्धकीय लेखा-विधि मे केवल विशेष तकनीक एवं अवधारणाओं का ही प्रयोग किया जाता है। उदाहरणतः इसके अंतर्गत वित्तीय नियोजन एवं विश्लेषण, प्रमाप लागत, बजटरी कण्ट्रोल, लागत एवं नियंत्रण लेखांकन आदि का ही प्रयोग किया जाता है।
10. नियम की निश्चितता का अभाव
इसके अंतर्गत नियम निश्चित प्रकृति के नही होते है। प्रबंध लेखापाल द्वारा प्रबंधकों की आवश्यकतानुसार अंको को विभिन्न तालिकाओं, चार्टों आदि के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। आंकड़ों को तर्कशक्ति एवं बुद्धि कौशल के आधार पर तुलनात्मक रूप मे तथा प्रतिशत के रूप मे भी प्रस्तुत किया जाता है।
11. लेखांकन सेवा प्रबन्धकीय लेखाविधि प्रबंध के प्रति एक लेखांकन सेवा है
इस सेवा के अंतर्गत संस्था की नीतियों के निर्धारण का विवेकपूर्ण निर्णय लेने के लिए इच्छित आवश्यक सूचनाएँ प्रबंध को तत्काल उपलब्ध करायी जाती है। ये सूचनाएं वित्तीय और गैर-वित्तीय दोनों प्रकार की हो सकती है।
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पारम्परिक बनाम नवोन्मेषी अभ्यास
[संपादित करें]1980 के दशक के उत्तरार्ध में, लेखांकन पेशेवरों और शिक्षकों की इस आधार पर व्यापक आलोचना की गई कि व्यावसायिक वातावरण में तीव्र परिवर्तनों के बावजूद, प्रबंधन लेखांकन अभ्यासों ने (और इससे भी आगे, लेखांकन के छात्रों को पढ़ाया गया पाठ्यक्रम) पिछले 60 सालों में थोड़ा परिवर्तन किया था। व्यावसायिक लेखा संस्थानों ने शायद इससे डर कर कि प्रबंधन लेखाकार तेजी से व्यापार संगठनों में ज़रूरत से ज़्यादा के रूप में देखे जाएंगें, बाद में प्रिबंधन लेखांकनों के लिए अधिक नवोन्मेष कुशलता सेट के विकास के लिए पर्याप्त संसाधनों को समर्पित किया।
'पारंपरिक और नवोन्मेष' प्रबंधन लेखांकन अभ्यासों के बीच अंतर को लागत नियंत्रण तकनीकों के लिए संदर्भ द्वारा रेखांकित किया जा सकता है। लागत लेखा प्रबंधन लेखांकन में केंद्रीय पद्धति है और परंपरागत रूप से, प्रबंधन लेखाकारों की प्रमुख तकनीक भिन्नता विश्लेषण, था, जो कच्चे माल और उत्पादन अवधि के दौरान उपयोग किए गए श्रम के वास्तविक और बजट किए गए लागतों की तुलना के प्रति व्यवस्थित दृष्टिकोण है।
हालांकि भिन्नता विश्लेषण के कुछ प्रकारों का उपयोग अभी भी अधिकांश निर्माता फ़र्मों द्वारा किया जाता है। इन दिनों यह नवोन्मेषी तकनीकों के संयोजन में उपयोग किए जाने को प्रवृत दिखाई देता है, जैसे जीवन चक्र लागत विश्लेषण और गतिविधि-आधारित लागत, जो मष्तिष्क में आधुनिक व्यावसायिक वातावरण के निर्दिष्ट आयामों के साथ डिजाइन किया गया है। जीवन चक्र लागत की मान्यता है कि किसी उत्पाद के निर्माण की लागत को प्रभावित करने के प्रबंधकों की योग्यता तब व्यापक हो जाती है जब उत्पाद जब तक अपने जीवन चक्र के डिजाइन की अवस्था में होता है (यानि, डिजाइन को अंतिम रूप दिए जाने और उत्पादन प्रारंभ होने के पहले), क्योंकि उत्पाद डिज़ाइन में लघु परिवर्तन उत्पाद निर्माण की लागत में महत्वपूर्ण बचत का नेतृत्व कर सकता है। गतिविधि-आधारित लागत (एबीसी) की मान्यता है कि, आधुनिक कारखानों में, अधिकांश निर्माण लागत 'गतिविधियों' के परिमाण द्वारा निर्धारित किए जाते हैं (अर्थात, प्रति माह चलने वाले उत्पादन की संख्या और उत्पादन उपकरण आदर्श समय का परिमाण) और इसलिए, प्रभवी लागत नियंत्रण की कुंजी इन गतिविधियों की कुशलता को अनुकूलित करना है। गतिविधि-आधारित लेखांकन कारण और प्रभाव लेखांकन के रूप में भी जाना जाता है।
जीवन चक्र लागत और गतिविधि-आधारित लागत दोनों ही, विशिष्ट आधुनिक कारखाने में, यह मान्यता देते हैं कि विघटनकारी घटनाओं से बचाव (जैसे मशीन की विफलता और गुणवत्ता नियंत्रण विफलताएं) कच्चे माल की लागत को कम करने (उदाहरण के लिए) की तुलना में अधिक व्यापक महत्ता का है। गतिविधि-आधारित लागत वाहक के रूप में प्रत्यक्ष श्रम का प्रभाव भी कम करता है और लागत को वहन करने वाली गतिविधियों के बजाय ध्यान केंद्रित करता है, जैसे सेवा का प्रावधान या उत्पाद घटक का उत्पादन.
निगम के भीतर भूमिका
[संपादित करें]आज निगम में अन्य भूमिकाओं के अनुरूप, प्रबंधन लेखाकारों के पास दोहरे रिपोर्टिंग संबध हैं। रणनीतिक भागीदार और निर्णय आधारित वित्तीय और कार्यकारी सूचना के प्रदाता के रूप में, प्रबंधन लेखाकार व्यावसायिक टीम के प्रबंधन और उसी समय निगम के वित्तीय संगठन के संबंधों और जिम्मेदारियों को रिपोर्ट करने के लिए जिम्मेदार है।
गतिविधियों के प्रबंधन लेखाकार पूर्वानुमान और योजना, भिन्न विश्लेषण के प्रदर्शन, समेत व्यवसाय में लागत की निगरानी और समीक्षा वह हैं जिन्हें वित्त और व्यावसायिक टीम दोनों की दोहरी जिम्मेदारी है। ऐसे कार्यों के उदाहरण, जहां जिम्मेदारी व्यावसायिक प्रबंधन टीम बनाम कॉरपोरेट वित्त विभाग के लिए अधिक अर्थपूर्ण हो सकता है, वे हैं, नए उत्पाद लागत का विकास, कार्यवाहियों का शोध, व्यावसायिक वाहक मैट्रिक्स, विक्रय प्रबंधन स्कोरकार्ड और क्लाएंट लाभदायिकता विश्लेषण है इसके विपरीत, कुछ वित्तीय रिपोर्ट की तैयारी, स्रोत व्यवस्था के वित्तीय आंकडों के सामंजस्य, जोखिम और नियामक रिपोर्टिंग कॉरपोरेट वित्त टीम के लिए अधिक उपयोगी होंगे क्योंकि वे निगम के सभी खंडों की एकीकृत निश्चित वित्तीय जानकारी के साथ परिवर्तित होते हैं। लेखांकन और वित्त कैरियर मार्ग की प्रगति को देखते हुए एक व्यापक दृश्य यह माना जाता है कि वित्तीय लेखांकन प्रबंधन लेखांकन के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। मूल्य सृजन की धारणा के अनुरूप, प्रबंधन लेखाकार कठिन वित्तीय लेखांकन को अनुपालन और ऐतिहासिक प्रयास से अधिक होने पर भी व्यवसाय की सफलता को वहन करने में मदद करते हैं।
वैसे निगमों में, जो अपने अधिकांश लाभों को सूचना अर्थव्वस्था से संचालित करते हैं, जैसे बैंक, प्रकाशन गृहों, दूरसंचार कंपनियां और सुरक्षा संविदाकार, सूचना तकनीक लागत अनियंत्रित व्यय के ऐसे महत्वपूर्ण स्रोत हैं जो आकार में प्राय: कुल क्षतिपूर्ति लागत और संपत्ति संबंधी लागतों के बाद सबसे व्यापक कॉरपोरेट लागत हैं। ऐसे संगठनों में प्रबंधन लेखांकन का कार्य सूचना तकनीक विभाग सूचना तकनीक लागत पारदर्शिता के साथ निकटता से कार्य करना है।[1]
एक वैकल्पिक दृश्य
[संपादित करें]प्रबंधन लेखांकन का एक अत्यंत अल्प अभिव्यक्त वैकल्पिक विचार यह है कि संगठनों में यह न तो तटस्थ या सौम्य प्रभाव है, बल्कि निगरानी के माध्यम से प्रबंधन नियंत्रण के लिए तंत्र है। यह विचार विशेष रूप से प्रबंधन नियंत्रण सिद्धांत के संदर्भ में प्रबंधन लेखांकन का पता लगाता है। भिन्न रूप से कहा जाए तो, प्रबंधन लेखांकन सूचना वह तंत्र है जिसका उपयोग प्रबंधकों द्वारा संगठन में अपने नियंत्रण कार्यों को सरल बनाने के लिए संगठन के संपूर्ण आंतरिक संरचना के परिदृश्य के वाहन के रूप में उपयोग किया जाता है।
विशिष्ट अवधारणाएं
[संपादित करें]Grenzplankostenrechnung (GPK)
[संपादित करें]ग्रेंज्प्लान्कोस्तेंरेच्नुंग जीपीके (Grenzplankostenrechnung (GPK)) एक जर्मन लागत पद्धति है, जो 1940 और 1950 के दशक के उत्तरार्ध में विकसित, किसी उत्पाद या सेवा के लिए प्रबंधकीय लागतों को कैसे परिकलित और असाइन किया जाता है, के लिए अनुरूप और परिशुद्ध अनुप्रयोग प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है। ग्रेंज्प्लान्कोस्तेंरेच्नुंग (Grenzplankostenrechnung) शब्द, जिसे अक्सर जीपीके (GPK) कहा जाता है, को श्रेष्ठ रूप में या तो आंशिक नियोजित लागत लेखा या लचीला विश्ल्ोषण लागत नियोजन और लेखांकन के रूप में अनुवाद किया गया है
जीपीके (GPK) की उत्पत्ति का श्रेय एक ऑटोमेटिव इंजिनियर हंस जॉर्ज प्लॉट और एक शिक्षाविद वूफगैंग किल्गर को है, जो लागत लेखांकन सूचना को शुद्ध और उन्नत करने के लिए डिजाइन किए गए जारी पद्धति को पहचानने और वितरित करने के पास्परिक लक्ष्य के प्रति कार्यरत हैं। GPK लागत लेखांकन की पाठ्यपुस्तकों में प्रकाशित किया गया है, विशेष रूप से, Flexible Plankostenrechnung und Deckungsbeitragsrechnun और जर्मन-भाषी विश्वविद्यालयों में आज पढ़ाया जाता है।
कमजोर लेखांकन (कमजोर उद्यम के लिए लेखांकन)
[संपादित करें]1990 के मध्य से उत्तरार्ध में, कमजोर उद्यम (टोयोटा उत्पादन प्रणाली के तत्वों को क्रियान्वित कर रही कंपनियां) में लेखांकन के बारे में कई पुस्तकें लिखी गईं। कमजोर लेखांकन शब्द इसी अवधि के दौरान गूंजा. इन पुस्तकों ने यह विरोध किया कि पारंपरिक लेखांकन पद्धतियां व्यापक उत्पादन के लिए बेहतर अनुकूल हैं और अच्छे व्यावसायिक अभ्यासों में समय पर निर्माण और सेवाओं का समर्थन या माप नहीं करती हैं। डियरबॉर्न, एमआई (Dearborn MI) में 2005 के दौरान कमजोर लेखा शिखर सम्मेलन एक शीर्ष बिंदु पर पहुंच गया। 320 व्यक्तियों ने इसमें भाग लिया और कमजोर उद्यम में लेखांकन के नए दृष्टिकोण की विशेषताओं पर चर्चा की। 520 व्यक्तियों ने 2006 में 2सरे वार्षिक सम्मेलन में भाग लिया।
संसाधन उपभोग लेखांकन (RCA)
[संपादित करें]संसाधन उपभोग लेखांकन मूल रूप से एक गतिशील, पूर्ण एकीकृत, सिद्धांत-आधारित और व्यापक प्रबंधन लेखांकन दृष्टिकोण है जो प्रबंधकों को उद्यम अनुकूलन के लिए निर्णय समर्थन सूचना प्रदान करता है। आरसीए (RCA) 2000 के आसपास एक प्रबंधन लेखांकन दृष्टिकोण के रूप में उभरा और बाद में दिसंबर 2001 में कॉस्ट मैनेजमेंट सेक्शनआरसीए इटरेस्ट ग्रुप (Cost Management Section RCA interest group) में उन्नत विनिर्माण के लिए इंटरनेशनल- कंसोर्टियम-सीएएम-1 (CAM-I) में एक विकसित हुआ। व्यावहारिक केस अध्ययन और अन्य शोध के माध्यम से सावधानी पूर्वक दृषटिकोण को अगले सात सालों तक परिशुद्ध और सत्यापित करने में व्यतीत करने के बाद, रूचि रखने वाले शिक्षाविदों और अभ्यासकारों के एक समूह ने सार्वजनिक सुलभता के लिए RCA को परिचित कराने के लिए आरसीए इंस्टीच्यूट (RCA Institute) की स्थापना की और अनुशासित अभ्यासों को प्रोत्साहित करने के द्वारा प्रबंधन लेखांकन ज्ञान के मानक को उजागर किया।
थ्रुपुट (Throughput) लेखांकन
[संपादित करें]सबसे महत्वपूर्ण, प्रबंधकीय लेखांकन में नवीनतम निर्देशन throughput लेखांकन है, जो आधुनिक उत्पादन प्रक्रियाओं की अंतनिर्भरताओं की पहचान करता है। किसी भी दिए गए उत्पाद, ग्राहक या आपूर्तिकर्ता के लिए, यह एक सीमित संसाधन के प्रति यूनिट योगदान को मापने का उपकरण है।
हस्तान्तरण मूल्य निर्धारण
[संपादित करें]प्रबंधन लेखांकन विभिन्न उद्योगों में उपयोग किया गया लागू अनुशासन है। उद्योग पर आधारित विशिष्ट कार्य और पालन किए गए सिद्धांत भिन्न हो सकते हैं। बैंकिंग में प्रबंधन लेखांकन सिद्धांत विशेषीकृत हैं, लेकिन उपयोग किए गए कुछ सामान्य बुनियादी अवधारणाएं नहीं हैं कि उद्योग निर्माण आधारित या सेवा उन्मुख है या नहीं। उदाहरण के लिए, हस्तांतरण मूल्य निर्धारण विनिर्माण में उपयोग किया एक अवधारणा है, लेकिन यह बैंकिंग में भी लागू होता है। यह एक मौलिक सिद्धांत है जो विभिन्न व्यावसायिक इकाइयों को मूल्य और राजस्व प्राप्ति में उपयोग किया जाता है। आवश्यक रूप से, बैंकिंग में हस्तांतरण मूल्य निर्धारण विभिन्न कोष स्रोतों और उद्यम के उपयोग के लिए बैंक ब्याज दर जोखिम को असाइन करने की विधि है। इस प्रकार, बैंक का कॉर्पोरेट कोष विभाग बैंक द्वारा ग्राहकों को कर्ज देते पर बैंक के संसाधनों के उपयोग के लिए व्यावसायिक इकाइयों के लिए धन देने पर शुल्क लेगा। राजकोष विभाग भी उन व्यवसायिक इकाइयों के लिए ऋण के लिए धन देगा जो बैंक में जमाएं (संसाधन) लाते हैं। हालांकि धन हस्तांतरण मूल्य निर्धारण प्रक्रिया मुख्य रूप से विभिन्न बैंकिंग इकाइयों के कर्जों और जमाओं पर लागू होते होने योग्य है, यह पूर्व सक्रियता व्यावसायिक खंड की सभी सभी परिसंपत्तियों और देनदारियों लागू होती है। एक बार मूल्य निर्धारण हस्तांतरण के लागू होने और किसी भी अन्य प्रबंधन लेखांकन प्रविष्टियों या समायोजनों को (जो आम तौर पर ज्ञापन खाते हैं और कानूनी निकाय परिणामों को शामिल नहीं करते हैं) बही में दर्ज होने के बाद, व्यापार इकाइयां खंड के उन वित्तीय परिणामों को देने में सक्षम होती हैं जो प्रदर्शन के मूल्यांकन के लिए आंतरिक और बाहरी उपयोगकर्ताओं द्वारा उपयोग की जाती हैं।
संसाधन और सतत जानकारी
[संपादित करें]चालू रखने और प्रबंधन लेखांकन में एक ज्ञान आधार को बनाने के लिए जारी रखने के लिए कई तरीके हैं। प्रमाणित प्रबंधन लेखाकारों (CMAS) की आवश्यकता प्रत्येक साल जारी शिक्षा को प्राप्त करने के लिए हैं जो प्रमाणित सार्वजनिक लेखाकार के समान है। एक कंपनी के पास कॉरपोरेट के स्वामित्व वाले पुस्तकालय में उपयोग के लिए उपलब्ध शोध और प्रशिक्षण सामग्री हो सकती है। यह उन 'फॉर्च्यून 500' कंपनियों में अधिक सामान्य है जिनके पास इस प्रकार के प्रशिक्षण माध्यम को धन देने के लिए संसाधन हैं।
वहाँ भी कई पत्रिकाओं, ऑन लाइन आलेख और उपलब्ध ब्लॉग्स हैं। लागत प्रबंधन[मृत कड़ियाँ] (Cost Management) और इंस्टीच्यूट ऑफ मैनेजमेंट एकाउंटिंग(आईएमए) (Institute of Management Accounting) के साइट ऐसे स्रोत हैं जो प्रबंधन लेखंकन त्रैमासिक और सामरिक वित्त प्रकाशनों को शामिल करते हैं। वास्तव में, प्रबंधन लेखांकन की आवश्यकता प्रत्येक संगठन को है।
प्रबन्ध लेखांकन कार्य/ प्रदान की गई सेवाएं
[संपादित करें]निम्ना सूचीबद्ध कार्य/सेवाएं प्रबंधन लेखांकन द्वारा किए गए प्राथमिक कार्य हैं। इन गतिविधियों के सापेक्ष जटिलता का स्तर अनुभव स्तर और किसी व्याक्ति की योग्यताओं पर निर्भर हैं।
- भिन्नता विश्लेषण
- दर और माप विश्लेषण
- व्यापार मेट्रिक्स विकास
- मूल्य मॉडलिंग
- उत्पाद लाभप्रदता
- भौगोलिक बनाम उद्योग या ग्राहक रिपोर्टिंग अनुभाग
- बिक्रय प्रबंधन स्कोरकार्ड्स
- लागत विश्लेषण
- लागत लाभ विश्लेषण
- लागत-मात्रा-लाभ विश्लेषण
- जीवन चक्र लागत विश्लेषण
- ग्राहक लाभप्रदता विश्लेषण
- आईटी लागत पारदर्शिता
- पूंजी बजटिंग
- खरीद बनाम लीज़ विश्लेषण
- रणनीति योजना
- रणनीति प्रबंधन सलाह
- आंतरिक वित्तीय प्रस्तुति और संचार
- बिक्री और वित्तीय पूर्वानुमान
- वार्षिक बजटिंग
- लागत आवंटन
- संसाधनों का आवंटन और उपयोग
सम्बन्धित योग्यताएं
[संपादित करें]लेखांकन के क्षेत्र में निम्न सहित कई संबंधित व्यारवसायिक योग्यताएं और प्रमाणीकरण हैं:
- प्रबंधन लेखांकन योग्यताएं
- अन्य व्यावसायिक लेखांकन योग्यतायें
पद्धतियां
[संपादित करें]- लागत आधारित गतिविधियां
- Grenzplankostenrechnung (जीपीके)
- कमजोर लेखांकन
- संसाधन उपभोग लेखांकन
- मानक लागत
- Throughput लेखांकन
- हस्तांतरण मूल्य निर्धारण
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]प्रबंधकीय लेखांकन क्या है? prabandhkiya lekhankan ka arth) prabandhkiya lekhankan arth paribhasha visheshta;प्रबन्धकीय लेखांकन दो शब्दों प्रबंधन+लेखांकन के योग से बना है। प्रबन्धकीय या प्रबंध से आशय उस प्रकिया से है जिसमे व्यवसाय की नीतियों का नियोजन, उद्देश्यों का निर्धारण, उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उचित समन्वय एवं नियन्त्रण तथा व्यवसास मे संगठन का कार्य सम्मिलित होता है। लेखांकन से तात्पर्य है व्यवसाय के व्यवहारों का विश्लेषण एवं व्याख्या करने की प्रक्रिया से है।
यह लागत लेखांकन की एक विशिष्ट शाखा है जो प्रबन्ध को निर्णय लेने मे सहायता करती है।
साधारण बोलचाल चाल की भाषा मे, कोई भी लेखाविधि, जो प्रबंध के कार्यों मे सहायता हेतु आवश्यक सूचनाएँ प्रदान करती है, उसे प्रबंधकीय लेखांकन कहा जाता है।
प्रबंधकीय लेखांकन लेखांकन प्रबंध का एक महत्वपूर्ण उपकरण माना जाता है जिसका प्रयोग व्यवसाय के कुशल प्रबंध, नीति-निर्धारण तथा निर्गमन के लिए अत्यंत आवश्यक है।
प्रबंधकीय लेखांकन की परिभाषा (prabandhkiya lekhankan ki paribhasha)
आर.एन. एन्थोनी के अनुसार," प्रबंधकीय लेखांकन लेखा-पद्धति की सूचनाओं से संबंधित है, जो कि प्रबंध के लिये बहुत उपयोगी है।"
आई.सी.डब्ल्यू.ए. के अनुसार," लेखाविधि का कोई भी रूप, जो कि व्यवसाय को अधिक कुशलतापूर्वक संचालन योग्य बनाये, प्रबंधकीय लेखाविधि कहा जाता है।"
बास्टाॅक के अनुसार," प्रबंधकीय लेखांकन लेखांकन के प्रबंध को उन आँकड़ों चाहे वह मुद्रा मे हो या अन्य इकाइयों मे, प्रस्तुत करने की उस कला के रूपे परिभाषित किया जा सकता है जिससे कि प्रबंध को उनके कार्यकरण मे सहायता प्राप्त हो सकें।"
टी. जी. रोज के अनुसार," प्रबंधकीय लेखांकन लेखा सूचनाओं की प्राप्ति एवं विश्लेषण है तथा यह उनकी पहचान एवं व्याख्या प्रबंध को सहायता करने के लिए करता है।"
वाॅल्टर बी. मैकफरलैण्ड के अनुसार," प्रबंधकीय लेखांकन किसी उपक्रम के नियोजन एवं प्रशासन हेतु सभी स्तरों पर प्रबंध के लिए उपयोगी वित्तीय समंक की पूर्ति करने से सम्बंधित है।"
आई. सी. एम. ए. लंदन के अनुसार," प्रबंधकीय लेखांकन, लेखांकन सूचनाओं के इस प्रकार तैयार करने मे प्रयुक्त कुशलता तथा पेशेवर ज्ञान है जो कि प्रबंध को नीति निर्धारण तथा संस्था की क्रियाओं के नियोजन व नियंत्रण मे सहायक हो सके।"
अमेरिकी लेखा संघ के अनुसार," प्रबंधकीय लेखाविधि मे वे रीतियां व संकल्पनायें सम्मिलित है जो प्रभावपूर्ण नियोजन के लिये, वैकल्पिक व्यावसायिक क्रियाओं मे चयन के लिये तथा नियंत्रण के लिये निष्पादन को मूल्यांकन और निर्वाचन करने हेतु आवश्यक है।"
उपरोक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के बाद हम निष्कर्ष रूप मे यह कह सकते है कि प्रबंधकीय लेखांकन से आशय ऐसी तकनीक एवं पद्धति से है जो वित्तीय लेखांकन के आधार पर प्रबंध को प्रभावकारी नियंत्रण करने मे सहायता पहुँचाने के उद्देश्य मे महत्वपूर्ण सूचनाएं उपलब्ध कराती है। संक्षिप्त मे इसे प्रबंधकों द्वारा लेखा सूचनाओं के प्रयोग की क्रिया कह सकते है।
प्रबन्धकीय लेखांकन की विशेषताएं या प्रकृति (prabandhkiya lekhankan ki visheshta)
प्रबन्ध लेखांकन की विशेषताएं इस प्रकार है--
1. भविष्य पर अधिक जोर
प्रबन्धकीय लेखांकन वर्तमान की अपेक्षा भविष्य पर अधिक जोर देता है। प्रबन्धकीय लेखा-विधि का कार्य केवल ऐतिहासिक तथ्यों का संकलन करना ही नही होता बल्कि क्या होना चाहिए था,य इस पर प्रकाश डालना भी होता है। प्रबन्धकीय लेखांकन के अंतर्गत भविष्य की योजनाएं तथा पूर्वानुमान तैयार किये जाते है और जब भविष्य वर्तमान के रूप मे हमारे समक्ष उपस्थित होता है तो पूर्वानुमान से तुलना कर उपलब्धियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन किया जाता है। इससे प्रबंध के लिए समस्त व्यावसायिक क्रियाओं पर उचित नियंत्रण रख पाना आसान हो जाता है।
2. पूर्व सूचनाओं का प्रयोग
संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रबन्धकीय लेखांकन मे विभिन्न सूचनाओं का प्रयोग किया जाता है। संस्था के उद्देश्य निर्धारण मे तथा योजना बनाने मे पिछली अवधियों के समंकों का अध्ययन किया जाता है। पूर्व अवधि के समंकों से विभिन्न कार्यों के प्रमाप निर्धारित किये जाते है तथा इन प्रमापों की वास्तविक निष्पादन से तुलना कर विभागीय कार्यकुशलता की जांच की जाती है।
3. केवल आँकड़े प्रदान करना, निर्णय नही
प्रबन्धकीय लेखांकन की तीसरी विशेषता यह की यह प्रबन्धकीय लेखा-विधि निर्णय के संबंध मे आंकड़े प्रदान करती है, निर्णय नही, इससे व्यावसायिक निर्णय संभव हो पाते है। प्रभावपूर्ण निर्णय के लिए आवश्यक तथा जुटाना तथा उनका विश्लेषण व प्रबंध के समक्ष प्रस्तुतीकरण का कार्य लेखापाल द्वारा किया जाता है, वह स्वयं निर्णय नही लेता। वस्तुतः निर्णयन का काम संस्थाओं के प्रबन्धकों का होता है।
4. लेखांकन नियमों एवं सिद्धांतों का पालन नही
प्रबन्धकीय लेखांकन मे वित्तीय लेखांकन की भांति निश्चित प्रकृति के नियमों का पालन नही किया जाता है। वास्तव मे प्रबन्धकीय लेखांकन का मुख्य लक्ष्य प्रबंध को आवश्यक सूचनाएँ सरलीकृत रूप मे उपलब्ध कराकर उनकी दक्षता मे वृद्धि करना है। अतः इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु प्रबन्धकीय लेखांकन सामान्य स्वीकृति नियमों से पृथक अपने स्वयं के नियम बना सकता है तथा तथ्यों के प्रस्तुतीकरण मे अपने अनुभव ज्ञान, बुद्धि एवं कल्पना शक्ति का प्रयोग कर ऐसी सूचनाओं को सृजित कर सकता है जो प्रबन्धकों को महत्वपूर्ण निर्णयन मे सहायक हो।
5. चुनाव पर आधारित या चयनात्मक प्रकृति
प्रबन्धकीय लेखांकन की यह एक महत्वपूर्ण विशेषता है कि यह लेखांकन चुनाव पर आधारित है। किसी भी प्रबन्धकीय समस्या को निपटाने हेतु विभिन्न साधनों का तुलनात्मक अध्ययन करके श्रेष्ठ साधन का चुनाव किया जाता है, जिससे एक सही एवं मितव्ययी योजना का निर्माण करने मे सुविधा होती है।
6. लागत के विभिन्न तत्वों का अध्ययन
प्रबन्धकीय लेखांकन लागत के विभिन्न तत्वों पर ध्यान आकर्षित करती है। इसके अंतर्गत लागत को विभिन्न भागों मे बांटकर उनका उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर अध्ययन किया जा सकता है।
7. कारण व प्रभाव का अध्ययन
प्रबन्धकीय लेखांकन विधि सदैव "कारण व प्रभाव " के सम्बन्ध का अध्ययन करती है। प्रत्येक प्रबन्धकीय समस्या का निराकरण व संबंधित निर्णय लेते समय " कारण व प्रभाव " की खोज की जाती है, और यह विधि इस प्रयत्न मे अधिक योग देती है। इस क्रिया मे प्रबन्धकीय लेखा-विधि केवल मौद्रिक लेन-देनों को ही ध्यान मे नही रखती है, बल्कि कभी-कभी गैर नकद व्यवहारों एवं तथ्यों को भी इस विधि के अंतर्गत संकलित व विश्लेषण किया जाता है।
8. मिश्रित पद्धति
प्रबन्धकीय लेखांकन की एक विशेषता यह है कि यह एक मिश्रित पद्धति है, इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की विधियों, प्रणालियों, प्रविधियों तथा विषयों से संबंधित सामग्री का प्रयोग किया जाता है। इसके अंतर्गत विभिन्न विषयों जैसे-- वित्तीय लेखांकन, लागत लेखांकन, सांख्यिकी, कंपनी विधि, व्यावसायिक सन्नियम आदि विषयों का व्यावहारिक प्रयोग शामिल होता है।
9. विशेष तकनीक एवं अवधारणा का प्रयोग
लेखांकन आँकड़ों को अधिक उपयुक्त बनाने के लिए प्रबन्धकीय लेखा-विधि मे केवल विशेष तकनीक एवं अवधारणाओं का ही प्रयोग किया जाता है। उदाहरणतः इसके अंतर्गत वित्तीय नियोजन एवं विश्लेषण, प्रमाप लागत, बजटरी कण्ट्रोल, लागत एवं नियंत्रण लेखांकन आदि का ही प्रयोग किया जाता है।
10. नियम की निश्चितता का अभाव
इसके अंतर्गत नियम निश्चित प्रकृति के नही होते है। प्रबंध लेखापाल द्वारा प्रबंधकों की आवश्यकतानुसार अंको को विभिन्न तालिकाओं, चार्टों आदि के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। आंकड़ों को तर्कशक्ति एवं बुद्धि कौशल के आधार पर तुलनात्मक रूप मे तथा प्रतिशत के रूप मे भी प्रस्तुत किया जाता है।
11. लेखांकन सेवा प्रबन्धकीय लेखाविधि प्रबंध के प्रति एक लेखांकन सेवा है
इस सेवा के अंतर्गत संस्था की नीतियों के निर्धारण का विवेकपूर्ण निर्णय लेने के लिए इच्छित आवश्यक सूचनाएँ प्रबंध को तत्काल उपलब्ध करायी जाती है। ये सूचनाएं वित्तीय और गैर-वित्तीय दोनों प्रकार की हो सकती है।
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बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- सीएएम-I कंर्सोटियम फॉर एडवांस्ड मैन्युफैक्चरिंग-इंटरनेशनल
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- एआईसीपीए फिनांसियल मैनेजमेट सेंटर - रिसोर्स फॉर सीपीएज़ वर्किंग इन बिज़नेस, इंडस्ट्री एंड गवर्नमेंट.
- इंस्टीच्यूट ऑफ मैनेजमेंट एकाउंटेंट्स - रिसोर्स फॉर मैनेजमेंट एकाउंटेंट्स (सीएमए'ज़) वर्किंग इन इंडस्ट्री.
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- एकाउंटिंग के प्रकार क्या है?
- ↑ [1] ^ * "टेकिंग कंट्रोल ऑफ आइटी कॉस्ट". नोक्स, सेबस्टियन. लंदन (फाइनेंशियल टाइम्स / अप्रेंटिस हॉल): 20 मार्च 2000. ISBN 978-0-385-30840-3